साधारण शब्दों में कार्य विश्लेषण को एक काम के विषय में सूचनाओं को एकत्र करने के लिए एक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है। दूसरे शब्दों में, कार्य विश्लेषण, कार्याें का एक औपचारिक एवं विस्तृत निरीक्षण है। यह एक कार्य के विषय में सूचनाओं के संग्रहण की एक प्रक्रिया है। इस प्रकार, कार्य विश्लेषण, कार्य की विषय-वस्तु, भौतिक परिस्थितियों जिनमें कार्य सम्पादित किया जाता है तथा कार्य के उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए आवश्यक पात्रताओं का व्यवस्थित अनुसंधान है।
कार्य विश्लेषण का अर्थ एवं परिभाषा
मानव संसाधन प्रबन्ध में कार्य विश्लेषण अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है। कर्मचारी और नियोक्ता के मध्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण कड़ी है - कार्य । उपक्रम में किये जाने वाले प्रत्येक कार्य का विश्लेषण किया जाता है। यह विश्लेषण ही कर्मचारियों के चयन, प्रशिक्षण एवं पदोन्नति का आधार बनता है। किस कार्य के लिये किस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होगी, यह कार्य विश्लेषण का प्रमुख पहलू है।कार्य विश्लेषण से ही विषिश्टीकरण का मार्ग प्रशस्त होता है। कार्य व्यापक शब्द है, इसके
अन्तर्गत आने वाले उपकार्याें को भी सम्मिलित किया जाता है। कार्य विश्लेषण के अन्तर्गत कार्य का
विस्तृत अध्ययन किया जाता है। इसमें कार्य के प्रकार, कार्य के लिये न्यूनतम योग्यतायें, परिस्थितियां
जिनमें कार्य सम्पादित किया जाना है, का अध्ययन किया जाता है।
कार्य विश्लेषण में कार्य का सूक्ष्म
परीक्षण किया जाता है। कार्य विश्लेषण एक प्रक्रिया है जिसमें कार्य विषेश से सम्बन्धित कर्तव्यों की
व्याख्या की जाती है। यह कार्य का सम्पूर्ण अध्ययन है। इसके द्वारा कार्य के सम्बन्ध में कर्मचारी के
दायित्व, कर्तव्य, कार्य दषायें, प्रकृति, उचित वेतन, योग्यतायें, समय एवं विशेषाधिकार आदि का ज्ञान
प्राप्त किया जाता है। कार्य विश्लेषण के लिये कृत्य विश्लेषण शब्द भी प्रयुक्त होता है।
स्काॅट, क्लोदियर एवं स्प्रीगल के अनुसार, ’’कार्य विश्लेषण कार्य से
सम्बद्ध क्रियाओं, कर्तव्यों और सम्बन्धों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने की विधि है।’’
डेल योडर के शब्दों में, ’’कार्य विश्लेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रत्येक कार्य से
सम्बन्धित तथ्यों को योजनाबद्ध प्रणाली से खोज कर अंकित किया जाता है।’’
मइकेल ज्यूसियस के अनुसार, ’’ कार्य विश्लेषण कर्तव्यों, क्रियाओं और कार्याें के
संगठनात्मक पहलुओं के अध्ययन की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य विषिश्टताओं की प्राप्ति है जिन्हें
कुछ व्यक्ति कार्य विवरण भी कहते हैं।
एडबिन बी. फ्लिप्पो ने कार्य विष्लेशण को इस प्रकार परिभाषित किया है, ’’
किसी कार्य विषेश के सम्बन्ध में प्रक्रियाओं और उत्तरदायित्वों की सूचना एकत्र करने एवं उनका
अध्ययन करने की विधि ही कार्य विश्लेषण है।’’
एम.एल.ब्लम के अनुसार, ‘‘कार्य विश्लेषण की परिभाषा एक कार्य से
सम्बन्धित विभिन्न अंगभूतों, कर्तव्यों, कार्य-दशाओं तथा कर्मचारी की
व्यक्तिगत पात्रताओं के समुचित अध्ययन के रूप में की जा सकती है।’’
एडविन बी. फिलिप्पो के अनुसार, ‘‘कार्य विश्लेषण एक कार्य विशेष की क्रियाओं
एवं उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में सूचनाओं का अध्ययन करने एवं उन्हें एकत्रित
करने की प्रक्रिया है।’
इस प्रकार हम संक्षेप में यह कह सकते है कि कार्य विवरण यह बताता है कि क्या करना है? कैसे करना है? तथा क्यों करना है? यह प्रत्येक कार्य के मानक निर्धारित करता है। अच्छे कार्य विवरण की विशेषतायें : कार्य विवरण के अभिलेखन के दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए:
कार्य विशिष्टता की विषय-वस्तु - एक कार्य विशिष्टता के प्रारूप के अन्तर्गत विषय-वस्तु के रूप में सामान्यत: कर्मचारी योग्यता सम्बन्धी सूचनायें सम्मिलित की जाती है
कार्य विश्लेषण के लक्षण
कार्य विश्लेषण की परिभाषाओं के अध्ययन से इसके जो लक्षण सामने आते हैं, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण लक्षण है -- कार्य विश्लेषण एक अत्यन्त महत्वपूर्ण मानव संसाधन प्रबन्धन तकनीक है। मानवीय संसाधनों की प्राप्ति में यह प्रथम पग होता है।
- कार्य विश्लेषण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रत्येक कार्य के विषय में तथ्यों का व्यवस्थित रूप से अवलोकन एंव अध्ययन किया जाता है।
- कार्य विश्लेषण के अन्तर्गत उस कार्य के विषय में तथ्यों का संकलन एवं अध्ययन किया जाता है जो अस्तित्व में होता है।
- कार्य विश्लेषण कार्य के मानक निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है। ये मानक,समुचित कार्य निष्पादन के लिए अपेक्षित न्यूनतम स्वीकार्य पात्रताओं निपुणताओं तथा योग्यताओं की शर्ते निर्दिष्ट करते है।
कार्य विश्लेषण के उद्देश्य
यद्यपि कार्य विश्लेषण सम्पूर्ण मानव संसाधन प्रबन्धन गतिविधियों के लिए एक अत्यन्त आवश्यक आधार होता है, परन्तु इसके विशेषीकृत उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:- कर्मचारियों की अधिप्राप्ति के लिए उचित एवं तर्कसंगत आधार स्थापित करना।
- प्रत्येक कार्य के विषय में अवलोकन एवं अध्ययन के माध्यम से मानव संसाधन नियोजन के लिए आवश्यक सूचनायें उपलब्ध कराना।
- कार्य मूल्यांकन के लिए आवश्यक तथ्यों एवं सूचनाओं को उपलब्ध कराना।
- प्रत्येक कार्य के लिए अपेक्षित न्यनतम स्वीकार्य पात्रताओं, निपुणताओं तथा योग्यताओं सम्बन्धी मानकों को निर्दिष्ट करके कर्मचारियों की भर्ती एवं चयन सम्बन्धी प्रक्रिया को सुगमता प्रदान करना।
- कर्मचारियों के लिए प्रभावी प्रशिक्षण एवं विकास के कार्यक्रमों की योजना तथा विषय-वस्तु का निर्माण करने में सहायता प्रदान करना।
- किसी कार्य विशेष को सम्पादित करने हेतु अपेक्षित योग्यता सम्बन्धी सूचना उपलब्ध कराकर मजदूरी एवं वेतन के निर्धारण में योगदान देना।
कार्य विश्लेषण के अंग
कार्य विश्लेषण के तीन महत्वपूर्ण अंग हो सकते है, जिनका वर्णन है -- कार्य विवरण
- कार्य विशिष्टता
- कर्मचारी विशिष्टता
1. कार्य विवरण
कार्य विवरण एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो मूल रूप से विवरणात्मक प्रकृति का होता है तथा जिसमें कार्य के निष्पादन हेतु अपेक्षित क्रियाकलापों, कर्तव्यों, उत्तरदायित्वों, कार्य की भौतिक दशाओं तथा उसमें प्रयुक्त यन्त्रों एवं उपकरणों आदि का उल्लेख किया जाता है। यह एक ऐसा लिखित वक्तव्य है, जिसमें दर्शाया जाता है कि कार्य-धारक से अपेक्षित वास्तविक क्रियायें क्या हैं? इनके निष्पादन में उसे किन साधनों की आवश्यकता होगी? तथा उसके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व क्या होगें? जैसे कि एडविन बी. फिलिप्पो ने कहा है कि, ‘‘कार्य विवरण एक कार्य विशेष के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का व्यविस्थत एवं तथ्यपरक वर्णन है।’’इस प्रकार हम संक्षेप में यह कह सकते है कि कार्य विवरण यह बताता है कि क्या करना है? कैसे करना है? तथा क्यों करना है? यह प्रत्येक कार्य के मानक निर्धारित करता है। अच्छे कार्य विवरण की विशेषतायें : कार्य विवरण के अभिलेखन के दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए:
- कार्य विवरण में कार्य की प्रकृति तथा उसके विषय-क्षेत्र का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
- कार्य विवरण संक्षिप्त, तथ्यपरक एवं सुस्पष्ट होना चाहिये। साथ ही, इसमें कार्य का एक स्पष्ट चित्रण प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- कार्य विवरण में कार्य के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये।
- कार्य परिचय: कार्य का शीर्षक, विभाग, उप-विभाग,संयन्त्र तथा कार्य संख्या आदि।
- कार्य सारांश: सम्पूर्ण रूप से कार्य क्या है? इसके विषय में एक संक्षिप्त विवरण।
- कार्य कर्तव्य: कार्य की प्रमुख एवं सहायकता क्रियायें, कार्य की विधि कार्य में प्रयुक्त साधान एवं सुविधायें तथा कार्य में लगने वाला समय आदि।
- प्रदत्त पर्यवेक्षण: कार्य हेतु प्रदत्त पर्यवेक्षण का स्तर तथा जवाबदेही आदि।
- अन्य कार्यों से सम्बन्ध: कार्य की अन्य कार्यो के सापेक्ष स्थिति, अन्य कार्यों से लम्बवत् एवं क्षैतिजीय सम्बन्ध तथा कायांर् े के मध्य समन्वय की स्थिति आदि।
- यन्त्र औजार तथा सामग्री: कार्य के लिए अपेक्षित यंत्र, औजार तथा सामग्री आदि।
- कार्य-दशायें: कार्य का भौतिक पर्यावरण, जैसे- तापमान, प्रकाश, ध्वनि, प्रदूषण, नमी, कार्यस्थल का वातावरण तथा जोखिम आदि।
- कार्य विवरण के माध्यम से कार्य का वर्गीकरण तथा श्रेणीकारण सम्भव होता है।
- कार्य विवरण संगठन के मानव संसाधन प्रबन्धक को चयन प्रक्रिया के लिए आवेदकों की तुलना करने तथा उनकी छँटनी करने में सहायता प्रदान करता है।
- सुस्पष्ट कार्य विवरण के उपलब्ध होने से कर्मचारी को उसके कार्य के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना सुविधाजनक होता है।
- कार्य विवरण के माध्यम से प्रबन्धक को कर्मचारी के औचित्य का निर्धारण करने में सुविधा होती है, जिसके फलस्वरूप कर्मचारी के स्थानान्तरण, पदोन्नतितथा पद अवनति का कार्य आसान हो जाता है।
- कार्य विवरण के होने से कर्मचारी को कार्य के प्रति समझ विकसित करने में सहायता प्राप्त होती है, जिससे उसकी कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।
- कार्य विवरण की उपस्थिति में कार्य की जटिलता एवं विविधता के आधार पर कर्मचारी की मजदूरी अथवा वेतन का निर्धारण आसान हो जाता है।
2. कार्य विशिष्टता
कार्य विशिष्टता कार्य को संतोषजनक रूप से सम्पादित करने के लिए अपेक्षित मानवीय विशेषताओं का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता है। यह कार्य को सफलता सम्पन्न करने हेतु किसी व्यक्ति में आवश्यक पात्रताओं का वर्णन करता है। कार्य विशिष्टता, एक कार्य विवरण की एक तार्किक अपवृद्धि होती है। प्रत्येक कार्य विवरण के लिए, कार्य विशिष्टता का होना वांछनीय होता है। यह संगठन को, एक कार्य विशेष का उत्तरदायित्व देने हेतु किस प्रकार के व्यक्ति की आवश्यकता है, इसका पता लगाने में सहायता प्रदान करता है।जैसा कि एडविन बी. फिलिप्पो को कथन है कि,
‘‘कार्य विशिष्टता उन न्यूनतम स्वीकार्य मानवीय विशेषताओं का विवरण है, जो एक कार्य
को उचित ढंग से सम्पन्न करने के लिए आवश्यक है।’’
कार्य विशिष्टता की विषय-वस्तु - एक कार्य विशिष्टता के प्रारूप के अन्तर्गत विषय-वस्तु के रूप में सामान्यत: कर्मचारी योग्यता सम्बन्धी सूचनायें सम्मिलित की जाती है
- शारीरिक विशिष्टतायें: आयु, लिंग, कद, वजन, स्वास्थ्य, दृष्टि, सुनने की क्षमता, शारीरिक क्षमता तथा यन्त्रों के संचालन की क्षमता आदि।
- मनोवैज्ञानिक विशिष्टतायें: गणना करने की क्षमता, व्याख्या करने की क्षमता, नियोजन की क्षमता निर्णयन की क्षमता, एकाग्रचित होने की योग्यता, व्यवस्था करने की क्षमता, मानसिक सन्तुलन, स्मरण शक्ति तथा सतर्कता आदि।
- संवेगात्मक तथा सामाजिक विशिष्टतायें: संवेगात्मक स्थिरता, लोचशीलता, मानवीय सम्बन्धों में सामाजिक अनुकूलनशीलता तथा वस्त्र, हाव-भाव, सौम्यता एवं स्वर की विशेषताओं सहित व्यक्तिगत प्रकटन आदि।
- व्यक्तिगत विशिष्टतायें: वाक् चातुर्य, उत्साह का स्तर, पहल करने की क्षमता, जानकारी ग्रहण करने की क्षमता तथा प्रस्तुतीकरण आदि। कार्य विशिष्टता, चयन प्रक्रिया में अत्यन्त उपयोगी होता है, क्योंकि यह एक कार्य विशेष के लिए नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति हेतु अपेक्षित विशेषताओं का स्पष्ट चित्रण प्रस्तुत करता है।
3. कर्मचारी विशिष्टता
कर्मचारी विशिष्टता, मानवीय योग्यताओं अथवा धरित विशेषताओं से सम्बन्धित होता है तथा यह उन पात्रताओं का उल्लेख नहीं करता है, जो कि मानवीय योग्यताओं को सूचित करते है। पात्रता, योग्यताओं का मापन करने का एक मानक है, जो कुछ निश्चित योग्यताओं, निपुणताओं तथा ज्ञान आदि के स्वामित्व को प्रमाणित करता है। अत: कर्मचारी विशिष्टता एक कार्य के लिए एक पद-धारक की न्यूनतम अपेक्षित पात्रताओं, जैसे-शारीरिक, शैक्षणिक, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक आदि का एक विवरण है, जो भावी कर्मचारी से कार्य सम्पन्न करने के लिए न्यूनतम मानवीय योग्यताओं (जैसा कि कार्य विशिष्टता में उल्लिखित किया गया है) ये युक्त होने की अनिवार्यता का वर्णन करता है।
कार्य विशिष्टता की सूचनाओं को, कर्मचारी विशिष्टता की सूचनाओं में यह ज्ञात
करने की उद्देश्य से परिवर्तित करना आवश्यक है कि एक पद को भरने के लिए किस
प्रकार के व्यक्ति की आवश्यकता है। कर्मचारी विशिष्टता एक लोकप्रिय उत्पादन नाम के
सामन होता है, जो यह परिणाम निकालता है कि एक विशेष कर्मचारी विशिष्टता से
युक्त अभ्यथ्र्ाी, कार्य विशिष्टता के अन्तर्गत उल्लिखित मानवीय योग्यताओं से प्राय: युक्त
है।
उदाहरण के लिए एक एम.बी.ए. की शैक्षिक योग्यता से युक्त अभ्यथ्र्ाी सामान्यत:
प्रबन्धन की अवधारणाओं को जानता है तथा प्रबन्धकीय निपुणताओं, जैसे- विश्लेषण
करने की निपुणता, निर्णय-निर्माण की निपुणता, व्याख्या करने की निपुणता तथा
अन्तवंयै क्तिक निपुणताओं को धारण करता है। फिर भी इस मान्यता की प्रमाणिकता की
जाँच चयन परीक्षा तथा अन्य प्रविधियों के माध्यम से की जा सकती है।
कर्मचारी
विशिष्टता, एक कार्य विशेष के लिए अभ्यर्थियों की विशेष श्रेणी के औचित्य का पता
लगाने में उपयोगी होता है।
कर्मचारी विशिष्टता की विषय-वस्तु - सामान्यत: एक कर्मचारी विशिष्टता के प्रारूप के
अन्तर्गत विषय-वस्तु के रूप में निम्नलिखित सूचनाओं का समावेश किया जाता है:
- आयु
- लिंग
- शैक्षिक योग्यतायें
- प्राप्त प्रशिक्षण
- अनुभव
- शारीरिक विशिष्टतायें
- सामाजिक विशिष्टताये
- पारिवारिक पृष्ठभूमि
- पाठ्येत्तर गतिविधियाँ
- रूचियाँ
कार्य विश्लेषण की की विधियाँ
कार्य विश्लेषण की सूचनाओं को एकत्रित करने हेतु अनेक विधियाँ उपयोग में लायी जाती है फिर भी उसमें से कोर्इ भी परिपूर्ण नहीं है। इसलिए वास्तविक अभ्यास में, कार्य विश्लेषण तथ्यों को प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न विधियों के एक संयोजन का उपयोग किया जाता है। इनमें से प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित प्रकार से हैं:1. कार्य निष्पादन विधि
इस विधि के अन्तर्गत कार्य विश्लेषक कार्य का प्रत्यक्ष रूप में अनुभव प्राप्त करने तथा क्रियाओ एवं उत्तरदायित्वो से परिचित होने के उद्देश्य से स्वयं की उसक कार्य का निष्पादन करता हैख् जिसका कि विश्लेषण किया जाता है। यह विधि उन्ही कार्यों के विश्लेषण में उपयोगी होती हैं जिनमें कम निपुणता की आवश्यकता होती है। तथा जिन्हें सरलतापूर्वक सीखा जा सकता है। यह उन कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। जो कि खतरनाक है अथवा जिनमें विस्ततृ प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।2. वैयक्तिक अवलोकन विधि
कार्य विश्लेषण की सूचनायें प्राप्त करने की यह एक लोकप्रिय एवं सरल विधि है। इसके अन्तर्गत कर्मचारी का कार्य-स्थल पर कार्य करते हुए अवलोकन किया जाता है। अवलोकन के दौरान विभिन्न प्रश्न पूछ कर क्रियाओं को समझना अत्यन्त सरल हो जाता है। परन्तु प्रशासकीय कार्यों, जिसमें अधिकतर सोच-विचार करना होता है तथा मानसिक श्रम करना पड़ता है, उनमें इस विधि का उपयोग करना सम्भव नहीं है। ऐसे कार्यों में भी यह विधि उपयोगी नहीं होती है, जिनमें कार्य रुक-रुक कर तथा लम्बे समय के लिए चलता है।3. निर्णायक घटना विधि
निर्णायक घटना विधि, कार्य विश्लेषण का एक गुणात्मक
दृष्टिकोण है, जो कार्य अथवा क्रियाओं के व्यावहारिक रूप से संकेन्द्रित विशेष विवरणों
को प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत केवल उन्हीं
घटनाओं का अध्ययन किया जाता हैं। जो कि कार्य के सफल अथवा असफल निष्पादन
को प्रदर्शित करती है। पद-धारकों से असामान्य घटनाओं तथा प्रसंगों आदि का वर्णन
करने के लिए कहा जाता है। जो कि पूर्व में घटित हो चुके हैं तथा जो कार्य की प्रकृति
पर प्रकाश डालते हों। ये घटनायें एवं प्रसंग प्रभावी अथवा अप्रभावी कार्य व्यवहार को
दर्शाते है। ये सभी कठिन निर्णय लेने के अवसर होती हैं, जिनसे यह ज्ञात किया जा
सकता हैं। कि कार्य के लिए किन योग्यताओं, सूचनाओं, गुणों तथा मानसिक चेतना की
आवश्यकता होती है।
4. साक्षात्कार विधि
साक्षात्कार विधि के अन्तर्गत कार्य विश्लेषक कर्मचारी से प्रत्यक्ष
सम्पर्क स्थापित करते हुए कार्य के सम्बन्घ में सूचनाओं को एकत्रित करता है। ये
सूचनायें कर्मचारी से प्रश्न पूछकर तथा विश्लेषक द्वारा स्वयं अवलोकन करके एकत्रित
की जाती है। इसके लिए प्रश्नों की एक अनुसूची का निर्माण करके उसका प्रयोग करना
उत्तम होता है इस विधि के द्वारा कार्य के सम्बन्ध में कर्मचारी तथा पर्यवेक्षक दोनों के
विचार प्राप्त किये जा सकते हैं।
यद्यपि कि साक्षात्कार विधि छिपी हुर्इ सूचनाओं को प्राप्त करने के अवसर प्रदान
करती है, जो कि कभी-कभी अन्य विधियों के माध्यम से उपलब्ध नहीं होती हैं, परन्तु
फिर भी इसकी कुछ सीमायें हैं, जैसे (1) यह समय एवं धन के हिसाबसे खर्चीली विधि
है; (2)सूचनाओं की विश्वसनीयता कार्य विश्लेषक की निपुणताओं पर निर्भर करती है
तथा यदि वह कर्मचारी से संदिग्ध प्रश्न पूछता है तो वे गलत हो सकती है; तथा (3)
कर्मचारी की कार्य विश्लेषक के प्रति शंका के कारण वह महत्वपूर्ण सूचनायें छिपा
सकता है।
साक्षात्कार विधि का प्रयोग करते समय कार्य विश्लेषक को इन बातों को ध्यान में रखना
चाहिए- (1) कर्मचारी को साक्षात्कार का उद्देश्य स्पष्ट करना चाहिए; (2) कर्मचारी के
विचारों को अच्छी तरह समझना चाहिए (3) सोच विचार कर उपयुक्त एवं समयानुकूल
प्रश्न पूछने चाहिये (4) कर्मचारी की कार्य रूचि प्रकट करनी चाहिए तथा (5) कर्मचारी
से प्राप्त सूचनाओं को अवलोकन करते हुए जाँच भी करते रहना चाहिये।
इस प्रकार उपरिलिखित सुझावों को ध्यानमें रखते हुए इस विधि का प्रयोग द्वारा
कार्य के सम्बन्ध मे विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
5. प्रश्नावली विधि
प्रश्नावली विभिन्न प्रश्नों से युक्त ऐसा प्रपत्र है, जो कर्मचारी को भरने के लिए दिया जाता हैं। इसमें कार्य से सम्बन्धित क्रियाओं, उत्तरदायित्वों तथा निष्पादन मानकों आदि के विषय में अनेक प्रश्न होते हैं। सामान्यतः यह प्रश्नावली कार्य विश्लेषक द्वारा सम्बन्धित कर्मचारियों के अधिकारी को दे दी जाती है। जो उन्हे कार्य के समय कर्मचारियों से भरवाता है तथा तत्पश्चात उन्हें कार्य विश्लेषक के विभाग को भेज देता है यह विधि साक्षात्कार विधि की अपेक्षा कम खर्चीली होती है। तथा इसमें सूचनायें एकत्रित करने में समय भी कम लगता है। साथ ही, इसमें अधिक संख्या में कर्मचारी भाग ले सकते है।कुछ प्रमाणिक प्रश्नावलियों का भी प्रयोग किया जाता है। इनमें से
कुछ निम्नलिखित प्रकार से है
- वस्तुस्थिति विश्लेषण प्रश्नावली: यह एक मानकीकृत प्रश्नावली है, जो कार्य उन्मुख घटकों को परिमाणात्म रूप से परखने के लिए विकसित की गयी है।
- प्रबन्ध वस्तुस्थिति विवरण प्रश्नावली : यह एक मानकीकृत संयन्त्र है , जो विशेष रूप में प्रबन्धकीय कार्यों के विश्लेषण करने में उपयोग के लिए अभिकल्पित की गयी है।
प्रश्नावली विधि में भी कुछ कठिनाइयाँ उपस्थित होती है जैसे-(1) इसमें
अलग-अलग प्रश्न पूछना सम्भव नहीं है (2) इसमें विभिन्न कर्मचारियों द्वारा एक ही
प्रश्न को भिन्न-भिन्न अथांर् े में लिया जा सकता है (3) कर्इ बार भरी हइुर् प्रश्नावलियाँ भी
अपूर्ण अपर्याप्त तथा असंगतियों से युक्त होती है।
कार्य विश्लेषण की प्रक्रिया
कार्यो को एक सुव्यस्थित प्रक्रिया के माध्यम से विश्लेषित किया जा सकता है, जिसके कुछ निश्चित चरण होते है। इन चरणों के माध्यम से कार्य विश्लेषण की प्रक्रिया को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है।1. संगठनात्मक सूचनाओं का संग्रहण कार्य विश्लेषण की प्रक्रिया के प्रथम चरण में
संगठन के सभी कार्यों का व्यापक अवलोकन किया जाता है, ताकि विभिन्न कार्यों के
बीच सम्बन्धों, संगठनात्मक लक्ष्यों तथा विभिन्न कार्यों के महत्व के विषय में विस्तृत
जानकारी प्राप्त की जा सके। इस हेतु संगठनात्मक चार्ट, कार्य-श्रेणी विवरणों तथा
कार्य-प्रवाह विवरणों आदि का अध्ययन किया जाता हैं। इसमें विभिन्न कार्यों के
पारस्परिक सम्बन्धों, कार्य-समूह की सामान्य आवश्यकताओं तथा कार्य मे सम्मिलित
विभिन्न क्रियाओं के प्रवाह का ज्ञान हो जाता है।
2. कार्य विश्लेषण कार्यक्रम का निर्माण: इसके पश्चात कार्य विश्लेषण का कार्यक्रम
तैयार किया जाता है। इसके अन्तर्गत विश्लेषण के लिए इसके उपयोग के विशिष्ट क्षेत्रों
तथा उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। साथ ही, कार्य विश्लेषण के लिए प्रभारी
अधिकारी, समय अनसु ूची तथा बजट आदि के विषय में निर्णय लिये जाते हैं।
3. विश्लेषित किये जाने वाले प्रतिनिधि कार्यों का चयन: संगठन के सभी कार्यों का
विश्लेषण करना अत्यन्त ही खर्चीला तथा समय नष्ट करने वाला कार्य है। इसलिए कार्य
विश्लेषक कुछ प्रतिनिधिक कार्यों का चयन कर लेता है, जो कि अपनी-अपनी श्रेणी के
कार्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। विभिन्न चयनित कायांर् े के मध्य प्राथमिकता का निर्धारण
कर लेना भी उचित होता है।
4. कार्य विश्लेषण तथ्यों का संग्रहण: इस चरण के अन्तर्गत कार्य विश्लेषण के
लिए तथ्य एकत्रित किये जाते हे। तथ्यों को एकत्रित करने के लिए अनेक विधियाँ
प्रयोग में लायी जाती हैं। इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सूचनाओं के
एकत्रीकरण के लिए केवल उसी विधि का उपयोग किया जाये, जो कि दी गयी
परिस्थिति में स्वीकार्य एवं विश्वनीय हो।
5. कार्य विवरण तैयार करना : इस चरण के अन्तर्गत कार्य की विषय-वस्तु के रूप
मं क्रियाओं, कर्तव्यों उत्तरदायित्वों तथा संचालनों आदि का वर्णन किया जाता है।
कार्य-धारक से कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का पालन करना तथा कार्य विवरण के
अन्तर्गत अनुसूचित क्रियाओं तथा संचालनों का निष्पादन करना अपेक्षित होता है।\
6. कर्मचारी विशिष्टता तैयार करना : इस अन्तिम चरण के अन्तर्गत कार्य
विशिष्टता की मानवीय योग्यताओं को एक कर्मचारी विशिष्टता में परिवर्तित किया जाता
है। कर्मचारी विशिष्टता, शारीरिक पात्रताओं, शैक्षिक योग्यताओं तथा अनुभव आदि का
वर्णन करता है, जो कि यह बताता है कि इन योग्यताओं से युक्त अभ्यथ्र्ाी कार्य
विशिष्टता में अनुसूचित न्यूनतम मानवीय योग्यताओं को धारण करता है।
कार्य विश्लेषण की उपयोगिता
कार्य विश्लेषण, मानव संसाधन प्रबन्धन के अन्तर्गत एक अत्यन्त महत्वपूण्र कार्य होता है। यह संगठन के मानवीय संसाधनों के विषय में अनेकों आवश्यक सूचनायें प्रदान करता है। जिनसे कर्मचारियों के सेवायोजन, पदोन्नति, प्रशिक्षण, निष्पादन मूल्यांकन, कार्य मापन तथा वृत्ति नियोजन आदि के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते है। कार्य विश्लेषण, मानव संसाधन प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित कार्यों में उपयोगी होता है:1. मानव संसाधन नियोजन में उपयोग : कार्य विश्लेषण, मानवीय संसाधन आवश्यकता
का ज्ञान एवं निपुणताओं के रूप में पूर्वानुमान में सहायता प्रदान करता है। यह कार्यों के
बीच पािश्र्वक तथा उध्र्व सम्बन्धों को व्यक्त करते हुए एक सुव्यवस्थित पदोन्नति तथा
स्थानान्तरण नीति के निर्माण को सहज बनाता है। यह एक संगठन के अन्तर्गत
आवश्यक मानवीय संसाधन योग्यता के निर्धारण में भी सहायता प्रदान करता है।
2. भर्ती एवं चयन में उपयोग : कार्य विश्लेषण के द्वारा कार्य सम्बन्धी, कर्तव्यों,
उत्तरदायित्वों तथा योग्यताओ का निर्धारण कर लिया जाता हैं। साथ ही कर्मचारियों की
योग्यताओं, रूचियों तथा व्यक्तिगत का भी निर्धारण कर लिये जाने में कर्मचारियों के
प्रकार तथा चयन की विधियों के विषय में निर्णय लेना आसान हो जाता है।
3. प्रशिक्षण एवं विकास में उपयोग : कार्य विश्लेषण के माध्यम से यह स्पष्ट हो जाता हैं।
कि प्रत्येक कर्मचारी से किस प्रकार के कार्य एवं योग्यतायें अपेक्षित हैं तथा अन्य कार्यों
के सम्बन्ध में उसके उत्तरदायित्व क्या है। इससे प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने, प्रशिक्षण
हेतु कर्मचारियों का चुनाव करने तथा विकास योजनायें तैयार करने में सहायता प्राप्त
होती है।
4. कार्य वर्गीकरण एवं कार्य मूल्यांकन में उपयोग : कार्य विश्लेषण से प्राप्त सूचनायें
कार्य समूहों के गठन के माध्यम से कार्य वर्गीकरण में सहायता होती हैं। साथ ही इनसे
विभिन्न कार्यों में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है इसके अतिरिक्त, कार्य विश्लेषण, कार्य
मूल्यांकन का भी आधार है, जिसके द्वारा संगठन के अन्तर्गत कार्यों का तुलनात्मक मूल्य
निर्धारित किया जाता है।
5. निष्पादन मूल्यांकन में उपयोग : कार्य विश्लेषण के आधार पर कर्मचारियों के कार्य
निष्पादन के मानक निर्धारित किये जाते है। इन मानकों के द्वारा कर्मचारियों का
निष्पादन मूल्यांकन करना अत्यन्त सहज हो जाता हैं।
6. मजदूरी एवं वेतन प्रशासन में उपयोग : कार्य विश्लेषण के द्वारा कार्यों का
तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है, जिससे कि श्रेष्ठ मजदूरी पद्धतियों एवं वेतन दरों का
विकास किया जाता है। इससे मजदूरी की असमानताओं को दूर करने तथा अन्य
संगठनों में प्रचलित मजदूरी की दरों के साथ तुलना करने में सहायता प्राप्त होती है।
7. सुरक्षा एवं स्वास्थ्य में उपयोग : कार्य विश्लेषण से कार्यों के सम्बन्ध में जोखिमों तथा
अस्वास्थ्यकर परिणामों की जानकारी प्राप्त हो जाती है। जिसके फलस्वरूप प्रबन्धकगण
इन जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करने तथा कार्य सम्बन्धी अस्वास्थ्यकर दशाओं को दूर
करने में उपाय करते है।