किसी भी राष्ट्र के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना उस राष्ट्र के लिये प्राण
वायु के समान है। क्योंकि राष्ट्र किसी भूमि से नहीं किसी निश्चित भूभाग में रहने वाले
एक समान सोच वाले लोगों से बनती है, जिसे सभी लोग मिलकर एक राष्ट्र का नाम
देते हैं। परन्तु कुछ निश्चित तत्व राष्ट्रीयता के विकास में बाधक होते हैं, क्योंकि शिक्षा
को इन्हीं तत्वों से जूझना पड़ता है ताकि राष्ट्रीयता की भावना का समुचित विकास हो
सके।
राष्ट्रीयता में बाधक तत्व
राष्ट्रीयता में बाधक तत्व हैं-
- साम्प्रदायिकता
- भाषावाद
- क्षेत्रीयता
- जातिवाद
- रंगभेद
- दूषित शिक्षा प्रणाली
- नैतिक पतन एवं भ्रष्टाचार
- दूषित राजनीति
1. साम्प्रदायिकता
जब को भी देश जैसे कि भारत विभिन्न धर्म के लोगों से
बसा होता है, तब लोग अपने धर्म को सर्वोपरि मानते हुये दूसरे सम्प्रदाय के
लोगों से बहुधा मानसिक रूप से नहीं जुड़ पाते हैं, इससे अप्रत्यक्ष रूप में राष्ट्र
के लोग साम्प्रदायिक गुटों में बंटे रहते हैं और सम्प्रदाय को राष्ट्र से भी ऊपर
मानने लगते हैं, तब समस्या और जटिल हो जाती है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
ने साम्प्रदायिकता एवं राष्ट्रीयता के सम्बंध को स्पष्ट करते हुये लिखा कि
-’’आखिर धर्म क्या है? समाज को धारण करे, समाज को बनाये रखता है, वहीं
धर्म है जो धर्म समाज को विभाजित करता है वह समाज में फूट डालता है,
मतभेद पैदा करता है, घृणा व द्वेण फैलाता है, वह अर्धम है।’’
2. भाषावाद
किसी देश में विभिन्न भाषा-भाषी लोगों का निवास उस देश में
राष्ट्रीयता की भावना के विकास में बाधक तत्व है, क्येांकि भारत जैसे देश में
जब प्रदेशों का बंटवारा भाषा के आधार पर हुआ तब लोगों की निष्ठा अपने भाषा
के प्रति अधिक बढ़ी और फलस्वरूप राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने वाली
‘हिन्दी भाषा’ जो कि राष्ट्र भाषा भी हैं, वह आज उपेक्षित है, और अधिकांश
लोगों द्वारा प्रयोग में नहीं लायी जा रही है।
अब तो यहां तक देखने में आता
है, कि अहिन्दी भाषा राज्य हिन्दी का विरोध कर बंटे हुये है।
3. क्षेत्रीयता
जब राष्ट्र अनके राज्यों में बंटा होता है, तब सम्पूर्ण राष्ट्र पहले
क्षेत्रीयता के आधार पर बट जाता है। किसी भी देश में राष्ट्र , राष्ट्रीयता की
भावना के विकास में क्षेत्रीय कट्टरता भी एक बाधक तत्व है। क्षेत्रीयता का
भारत जैसे देश में प्रभाव पर डॉ0 सम्पूर्णानन्दन ने टिप्पणी करते हुये लिखा
कि- ‘‘आज दक्षिण भारत के लोगों के मुॅह से सुनने में आती है, कि हम
हिन्दुस्तान से अलग होना चाहते हैं, पर जो धनाढ्य हैं वे सोचते है कि क्या
अपने आजादी व सम्पत्ति की रक्षा कर सकेंगे। क्या तमिलनाडू वाले अलग
होकर अपनी अधिक रक्षा कर सकते हैं। वह ऐसा करके अपने को भी डुबोयेंगे
और दूसरों को भी ले डूबेंगे। इसलिये ऐसा सेचना बड़ी भयानक चीज है।’’’
4. जातिवाद
समाज का जातीय विखण्डन लोगों के हृदय को जोड़े नहीं पाया
और इसने पूरे समाज को द्वेषपूर्ण बना दिया। ऊँच-नीच के भेदभाव ने हृदय
को इतना कलुशित किया है कि समाज समवेत सुख व दुख में खड़ा नहीं हो
पाता है तो राष्ट्र के लिये कैसे खड़ा होगा। भारत जैसे देश की यह सत्य
कहानी है, इस दर्द को जवाहर लाल नेहरू ने इस प्रकार व्यक्त किया कि-
‘‘मैं समझता हॅू कि भारत को एक मानने में सबसे खराब चीज यहां की जाति
प्रथा है।
हम आप बहस करते हैं, कभी जनतंत्र की, प्रजातंत्र की, समाजवाद
की और किस किस की। इन सबमें चाहे जो लाजमी हो पर उसमें जाति प्रथा
नहीं आ सकती क्योंकि यह राष्ट्र की हर तरक्की के प्रतिकूल है। जात-पात
में रहते हुये न हम समाजवाद, न ही प्रजातंत्र को पा सकते हैं। यह प्रथा तो
देश और समाजवाद को टुकड़े कर ऊपर नीचे और अलग-अलग भागो में
बांटती है इस तरह वह बांटने का कार्य करती है और अब जाति प्रथा पुरानी
व हानिकारक हो गयी।’’
आज हमारे देश की राजनीति का आधार जातिवाद
है।
5. रंगभेद
यह भेद ऐसा है, जिसने एक राष्ट्र को ही नही विश्व को दो खण्डों
में बांटा श्वेत एवं अश्वेत। क देशों में सम्पूर्ण राजनीति इसको आधार बनाकर
की जाती है। अमेरिका, अफ्रीका आदि ऐसे ही देश है। रंगभेद ने इन राष्ट्रों
को दो खण्डों में बांट रखा है, जिससे कि लोगों का हृदय आपस में नहीं
मिलता लोगों के लिये राष्ट्र से ऊपर प्रजाति है।
6. दूषित शिक्षा प्रणाली
राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार-प्रसार न होने के
कारण में दूषित शिक्षा प्रणाली भी एक प्रमुख भूमिका निभाती है। पाठ्यक्रम में
राष्ट्रीयता के विकास करने वाले तत्व कम पाये जाते हैं। भारत जैसे प्रजातंत्र
में प्रजातांत्रिक मूल्यों एवं राष्ट्रीयता की भावना के विकास का दायित्व शिक्षा
को ही सौंपा गया है, परन्तु शिक्षा का उचित प्रचार-प्रसार भी अभी संतोषजनक
स्तर तक नहीं हो पाया है, और शिक्षा में राष्ट्रीयता के तत्वों को भी समावेशित
नहीं किया गया है।
7. नैतिक पतन एवं भ्रष्टाचार
किसी भी समाज में अनुशासनहीनता, कतर्व् यहीनता,
अधिकारों का अधिक प्रयोग, उत्तरादयित्वों के प्रति उदासीनता निष्ठा की कमी
भौतिकवादी दृष्टिकोण राष्ट्रीयता की भावना के उद्भव में बाधक तत्व है,
क्योंकि नागरिकों का नैतिक उत्थान एवं सच्चरित्रता ही देश की उन्नति का
आधार होती है।
8. दूषित राजनीति
भारत सहित अधिकांश देश की राजनीति में अब स्वच्छता
नहीं रह गयी है, और राजनीति झूठ, फरेब, धोखा, गुमराह, भ्रष्टाचार व देश के
ऊपर अपने स्वार्थों के प्रति भूख का पर्याय बन चुकी है। राजनितिज्ञ साम्प्रदायिकता,
क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद एवं रंगभेद को ही अपनी राजनीति का आधार
बनाते हैं। राजनितिज्ञ अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु देश को जोड़ते नहीं तोड़ते हैं।
इस
प्रकार से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनेक कारक राष्ट्रीयता के विकास में बाधक है।
Nice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteGood article
ReplyDeleteGood articles, thank you so much
ReplyDeleteKartik gujjar
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