सामाजिक अनुसंधान के प्रकार

किसी क्षेत्र विशेष में नए ज्ञान की खोज या पुराने ज्ञान का फिर से परीक्षण या दूसरे तरीके से विश्लेषण कर नए तथ्यों का एकत्र करना अनुसंधान कहलाता है।

सामाजिक शोध सामाजिक घटनाओं एवं समस्याओं के सम्बन्ध में ज्ञान की खोज या पुराने ज्ञान का फिर से परीक्षण या दूसरे तरीके से विश्लेषण कर नए तथ्यों का एकत्र करना हम सामाजिक अनुसंधान कहते हैं। 

सामाजिक अनुसंधान के प्रकार

1. अन्वेषणात्मक सामाजिक अनुसंधान 

किसी घटना के सम्बन्ध में प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त करने हेतु किया गया अनुसंधान जिससे कि मुख्य अनुसंधान की रूपरेखा एवं उपकल्पना का निर्माण किया जा सके। जब किसी समस्या के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पक्ष की पर्याप्त जानकारी नहीं होती तथा अनुसन्धानकर्ता का उद्देश्य किसी विशेष सामाजिक घटना के लिए उत्तरदायी कारणों को खोज निकालना होता है। तब अध्ययन के लिए जिस अनुसंधान का सम्बन्ध प्राथमिक अनुसन्धान से है। जिसके अन्र्तगत समस्या के विषय में प्राथमिक जानकारी प्राप्त करके भावी अध्ययन की आधार शिला तैयार की जाती है। 

इस प्रकार के शोध का सहारा तब लिया जाता है, जब विषय से सम्बन्धित को सूचना अथवा साहित्य उपलब्ध न हो और विषय के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्ष के सम्बन्ध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करना हो, जिससे कि उपकल्पना का निर्माण किया जा सके।

इस प्रकार के शोध के लिये अनुसंधानकर्त्ता को इन चरणों को अपनाना आवश्यक होता है:-
  1. साहित्य का सर्वेक्षण
  2. अनुभव सर्वेक्षण
  3. सूचनादाताओं का चयन
  4. उपर्युक्त प्रश्न पूछना

अन्वेषणात्मक अनुसंधान का महत्व

  1. अनुसंधान समस्या के महत्व पर प्रकाश डालना तथा सम्बन्धित विषय पर अनुसंधानकर्ताओं के ध्यान को आकर्षित करना
  2. पूर्व निर्धारित परिकल्पनाओं का तात्कालिक दशाओं में परीक्षण करना
  3. विभिन्न अनुसंधान पद्धतियों की उपयुक्तता की सम्भावना को स्पष्ट करना
  4. किसी विषय समस्या के व्यापक और गहन अध्ययन के लिए एक व्यवहारिक आधारषिला तैयार करना

2. वर्णनात्मक अनुसंधान

वर्णात्मक सामाजिक अनुसंधान में घटना के सम्बन्ध में प्रमाणिक तथ्य एकत्रित करके उनका क्रमबद्ध एवं तार्किक वर्णन करना है। वर्णनात्मक अनुसंधान का उद्देश्य किसी अध्ययन विषयक के बारे में यर्थात तथा तथ्य एकत्रित करके उन्हें एक विवरण के रूप में प्रस्तुत करना हेाता है। सामाजिक जीवन के अध्ययन से सम्बन्धित अनेक विषय इस तरह के होते है जिनका अतीत में को गहन अध्ययन प्राप्त नहीं होता ऐसी दशा में यह आवश्यक होता है कि अध्ययन से सम्बन्धित समूह समूदाय अथवा विषय के बारे में अधिक से अधिक सूचनायें एकत्रित करके उन्हें जनसामान्य के समक्ष्य प्रस्तुत की जाये ऐसे अध्ययनों के लिए जो अनुसंधान किया जाता है। उसे वर्णनात्मक अनुसंधान कहते है। 

इस प्रकार के अनुसंधान में किसी पूर्व निर्धारित सामाजिक घटना, सामाजिक परिस्थिति अथवा सामाजिक संरचना का विस्तृत विवरण देना होता है। अनुसंधान हेतु चयनित सामाजिक घटना या सामाजिक समस्या के विभिé पक्षों से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करके उनका तार्किक विश्लेषण किया जाता है, एवं निष्कर्ष निकाले जाते हैं। तथ्यों को एकत्रित करने के लिये, प्रश्नावली, साक्षात्कार अथवा अवलोकन आदि किसी भी प्रविधि का प्रयोग किया जा सकता है। 

ऐसे अनुसंधान को स्पष्ट करने के लिये जन गणना उपक्रम का उदाहरण लिया जा सकता। जन गणना में भारत के विभिन्न प्रान्तों में भिन्न-भिन्न विशेषताओं से युक्त समूहों का संख्यात्मक तथा, आंशिक तौर पर, गुणात्मक विवरण दिया जाता है।

वर्णनात्मक अनुसंधान के चरण

  1. अध्ययन विषय का चुनाव
  2. अनुसंधान के उद्देश्यों का निर्धारण
  3. तथ्य संकलन की प्रविधियों का निर्धारण
  4. निदर्षन का चुनाव
  5. तथ्यों का संकलन
  6. तथ्यों का विश्लेषण
  7. प्रतिवेदन को प्रस्तुत करना

3. परीक्षणात्मक अनुसंधान

ऐसा अनुसंधान जिसमें नियंत्रित दशाओं के अन्तर्गत मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्री अनुसंधान की वैज्ञानिकता के विरूद्ध यह आरोप लगाया जाता है कि इसमें प्रयोगी करण का अभाव होने का कारण इसे वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है। जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञानों में अध्ययन विषय को नियन्त्रित करके घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, उसी प्रकार नियन्त्रित परिस्थितियों में सामाजिक घटनाओं का निरीक्षण एवं परीक्षण परीक्षणात्मक अनुसंधान कहलाता है।

इस प्रकार के अनुसंधान द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि किसी नवीन परिस्थिति अथवा परिवर्तन का समाज के विभिन्न समूहों, संस्थाओं अथवा संरचनाओं पर क्या एवं कितना प्रभाव पड़ा है। इसके लिये सामाजिक समस्या या घटना के उत्तरदायी कुछ चरों (Attributes) को नियन्त्रित करके, शेष चरों के प्रभाव को नवीन परिस्थितियों में देखा जाता है, और कार्य कारण सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। 

परीक्षणात्मक अनुसंधान के तीन प्रकार हैं:- (i) पश्चात परीक्षण (ii) पूर्व पश्चात परीक्षण (iii) कार्यान्तर परीक्षण

(i) पश्चात् परीक्षण - पश्चात परीक्षण वह प्रविधि है जिसके अन्र्तगत पहले स्तर पर लगभग समान विशेषता वाले दो समूहो का चयन कर लिया जाता है। जिनमें से एक समूह को नियन्त्रित समूह (controlled group) कहा जाता है, क्योंकि उसमें को परिवर्तन नहीं लाया जाता है। दूसरा समूह परीक्षणात्मक समूह (experimental group) होता है, इसमें चर के प्रभाव में परिवर्तन करने का प्रयास किया जाता है। कुछ समय पश्चात् दोनों समूहों का अध्ययन किया जाता है। यदि परीक्षणात्मक समूह में नियन्त्रित समूह की तुलना में अधिक परिवर्तन आता है, तो इसका अर्थ यह माना जाता है कि इस परिवर्तन का कारण वह चर है जिसे परिक्षणात्मक समूह में लागू किया गया था। 

उदाहरणस्वरूप, दो समान समूहों या गॉंवों को लिया गया-जो कुपोषण की समस्या से ग्रस्त हैं। इनमें से एक समूह, में जिसे परीक्षणात्मक समूह माना गया है, कुपोषण के विरुद्ध प्रचार-प्रसार किया जाता है एवं जागरूकता पैदा की जाती है। एक निश्चित अवधि के पश्चात् परीक्षणात्मक समूह की तुलना नियन्त्रित समूह से की जाती है जिसे ज्यों का त्यों रहने दिया गया। यदि परीक्षणात्मक समूह में कुपोषण को लेकर नियन्त्रित समूह की तुलना में काफी अन्तर पाया जाता है तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रचार-प्रसार एवं जागरूकता से कुपोषण को कम किया जा सकता है।

(ii) पूर्व पश्चात् परीक्षण - इस विधि के अन्र्तगत अध्ययन के लिए केवल एक ही समूह का चयन किया जाता है। ऐसे अनुसंधान के लिए चयनित समूह का दो विभिन्न अविधेयों में अध्ययन करके पूर्व और पश्चात के अन्तर को देखा जाता है। इसी अन्तर को परीक्षण अथवा उपचार का परिणाम मान लिया जाता है।

(iii) कार्यान्तर तथ्य परीक्षण - यह वह विधि है जिसमें हम विभिन्न आधारों पर प्राचीन अभिलेखों के विभिन्न पक्षों की तुलना करके एक उपयोगी निष्कर्ष पर पहुँच सकते है। ऐसे अनुसंधान के लिए चयनित समूह का दो विभिन्न अविधेयों में अध्ययन करके पूर्व और पश्चात के अन्तर को देखा जाता है। इस विधि का प्रयोग भूतकाल में घटी अथवा ऐतिहासिक घटना का अध्ययन करने के लिये किया जाता है। भूतकाल में घटी हुई घटना को दुबारा दोहराया नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में उत्तरदायी कारणों को जानने के लिये इस विधि का प्रयोग किया जाता है। 

इस विधि द्वारा अध्ययन हेतु दो ऐसे समूहों को चुना जाता है जिनमें से एक समूह ऐसा है जिसमें को ऐतिहासिक घटना घटित हो चुकी है। एवं दूसरा ऐसा समूह ऐसा है जिसमें वैसी को घटना घटित नहीं हुआ है।

4. विशुद्ध अनुसंधान 

समाजिक अनुसंधान का उददेश्य जब किसी समस्या का समाधान ढूढ़ना नहीं होता है। बल्कि सामाजिक घटनाओं के बीच पाये जाने वाले कार्य कारण के सम्बन्धों समझकर विषय से सम्बन्धित वर्तमान ज्ञान में वृद्धि करना होता है तब इसे हम विशुद्ध अनुसंधान कहते है। विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान का कार्य, नवीन ज्ञान की प्राप्ति कर, ज्ञान के भण्डार में वृद्धि करना है। 

साथ ही, पूर्व के अनुसंधानों से प्राप्त ज्ञान, पूर्व में बनाये गये सिद्धान्तों एवं नियमों को परिवर्तित परिस्थितियों में पुन:परीक्षण करके परिमार्जन, परिष्करण एवं परिवर्द्धन करना है। इस प्रकार विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान के उद्देश्यों को निम्नाकिंत रूप से व्यक्त किया जा सकता है।

विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान के उद्देश्य

नवीन ज्ञान की ज्ञान की प्राप्ति नवीन अवधारणाों का प्रति-पादनउपलब्ध अनुसंधान विधियों का जॉंचकार्यकारण पूर्व का सम्बन्ध बतानापुन: परीक्षण

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान विज्ञान की प्रगति एवं विकास में अत्यन्त उपयोगी है।

5. व्यावहारिक अनुसंधान 

एक अनुसंधान कर्ता जब स्वीकृत सिद्धान्तों के आधार पर किसी समस्या का इस दृष्टिकोण से अध्ययन करता है कि वह एक व्यवहारिक समाधान खो सके ऐसे अनुसंधान को हम व्यवहारिक अनुसंधान कहते है। विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है, वरन् सामाजिक जीवन के विभिé पक्षों जैसे जनसंख्या, धर्म, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक एवं धार्मिक समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करना एवं इनके कार्य-कारण सम्बन्धों की तर्कसंगत व्याख्या करना भी है। अत:, व्यावहारिक अनुसंधान का सम्बन्ध हमारे व्यावहारिक जीवन से है। 

इस संदर्भ में श्रीमती यंग ने लिखा है, “ज्ञान की खोज का एक निश्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं व कल्याण से होता है। वैज्ञानिकों की यह मान्यता है कि समस्त ज्ञान सारभूत रूप से इस अर्थ में उपयोगी है कि वह सिद्धान्तों के निर्माण में या एक कला को व्यवहार में लाने में सहायक होता है। 

सिद्धान्त तथा व्यवहार आगे चलकर प्राय: एक दूसरे से मिल जाते हैं।”

6. क्रियात्मक शोध 

समाज की मौजूदा दशाओं को परिवर्तित करने के उद्देश्य से किया गया अनुसंधान, चाहे गन्दी बस्ती हो या प्रजातीय तनाव। क्रियात्मक अनुसंधान के सम्बन्ध में गुड एव हाट ने लिखा है- “क्रियात्मक अनुसंधान उस योजनाबद्ध कार्यक्रम का भाग है जिसका लक्ष्य विद्यमान अवस्थाओं को परिवर्तित करना होता है, चाहे वे गन्दी बस्ती की अवस्थायें हो या प्रजातीय तनाव पूर्वाग्रह व पक्षपात हो या किसी संगठन की प्रभावशीलता हो।” स्पष्ट है कि क्रियात्मक अनुसंधान से प्राप्त जानकारियों एवं निष्कर्षों का उपयोग मौजूदा स्थितियों में परिवर्तन लाने वाली किसी भावी योजना में किया जाता है। वास्तव में, व्यावहारिक अनुसंधान व क्रियात्मक अनुसंधान कुछ अर्थों में एक-दूसरे से समानता रखते हैंय क्योंकि दोनों में ही सामाजिक घटनाओं अथवा समस्याओं का सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात ऐसे निष्कर्ष प्रस्तुत किये जाते हैं जो व्यावहारिक एवं क्रियात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। 

उदाहरणस्वरूप, देश की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन व सुधार लाने के लिये 1964 में डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में कोठारी आयोग की नियुक्ति की ग थी। उन्होंने देश की शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित ठोस प्रमाणों एवं तथ्यों को एकत्रित कर आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन लाने के सम्बन्ध में सुझाव प्रस्तुत किये। आयोग ने शिक्षा से जुड़े देश-विदेश के सभी वर्गों के व्यक्तियों से लिखित एवं मौखिक विचारों एवं सुझावों, माँगों को अध्ययन में शामिल कियाय साथ ही मौजूदा शिक्षा प्रणाली में उपस्थित दशाओं का विश्लेषण कर, भावी शिक्षा प्रणाली की संरचना तथा क्रियान्वियन हेतु व्यावहारिक सुझाव भी प्रस्तुत किये। 

उन सुझावों में से क सुझाव भावी योजनाओं में सम्मिलित भी किये गये। तात्पर्य यह है, इस आयोग की रिपोर्ट भी क्रियान्वयन शोध का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

7. मूल्यांकनात्मक अनुसंधान 

आज सभी देश नियोजित परिवर्तन की दिशा में विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दे रहे हैं। लाखों, करोड़ों रूपये, अनेक विकास कार्यक्रमों, जैसे स्वास्थ्य सुधार, गरीबी उन्मूलन, आवास-विकास सम्बन्धी योजनाओं, परिवार नियोजन, मद्य निषेध, रोजगार योजनाओं एवं समन्वित ग्रामीण विकास आदि पर व्यय किये जा रहे हैं। तथापि, इन कार्यक्रमों एवं योजनाओं का लाभ वास्तव में लोगों को मिल भी रहा है या नहीं, यह जानना ही मूल्यांकनात्मक अनुसंधान का उद्देश्य है। 

मूल्यांकनात्मक अनुसंधान द्वारा इन कार्यक्रमों के लक्ष्यों एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाता है कि लक्ष्य एवं उपलब्धियों में कितना अन्तर रहाय और अन्तर के कारण क्या रहे। जिससे कि भविष्य में बनाये जाने वाले कार्यक्रमों और योजनाओं में इस अन्तर को कम किया जा सकेय अर्थात् योजनाओं को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके। 

अनेक सरकारी, अर्द्ध-सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समय-समय पर ऐसे मूल्यांकन करवाये जाते है कि उनके द्वारा चलाये गये कार्यक्रमों की सफलता कितनी रही? असफलता के कारण क्या रहे आदि। उदाहरणस्वरूप, सामुदायिक विकास कार्यक्रम के मूल्यांकन के लिये भारत सरकार ने ‘कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन’ की स्थापना की है।

8. गणनात्मक अनुसंधान

समाजिक जीवन में बहुत सी घटनाएँ और तथ्य इस तरह के होते है जिनका प्रत्यक्ष रूप सं अवलोकन करके उनकी गणना की जा सकती है। शाब्दिक रूप से Quantity अथवा परिमाण का अर्थ है मात्रा इस प्रकार के अनुसंधान में गणनात्मक मापन एवं सांख्यकीय विश्लेषण को अपनाया जाता है। तथ्यों के विश्लेषण में विभिé प्रकार की सांख्यकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है जिससे अध्ययन में परिदर्शिता की मात्रा बढ़ जाती है। 

उदाहरणस्वरूप, छठे वेतन आयोग के लागू हो जाने से विभिन्न वर्गों के वेतन में बढ़ोतरी का प्रतिशत क्या रहा? इस प्रकार के अनुसंधान में निर्दशन एवं अनुसंधान प्ररचना पर विशेष बल दिया जाता है।

9. गुणात्मक अनुसंधान

सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए अनेक ऐसी पद्धतियों का भी उपयोग किया जाता है जो गुणात्मक विशेषताओं जैसे लोगों की मनोवृत्तियों तथा मानव व्यवहारों पर विभिन्न संस्थाओं और विश्वासों के प्रभाव को स्पष्ट कर सकें। जब अनुसंधान का उद्देश्य व्यक्तियों के गुणों का विश्लेषण करना हो, तो गुणात्मक अनुसंधान को अपनाया जाता है।

10. तुलनात्मक अनुसंधान

इस प्रकार के अनुसंधान में विभिन्न इकाइयों एवं समूहों के बीच पायी जाने वाली समानताओं एवं विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है। भारतीय समाज एवं जापानी समाज का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की ग्रामीण महिलाओं तथा इंग्लैण्ड अथवा अमरीका की ग्रामीण महिलाओं की तुलना किया जाना। अथवा, विभिन्न महानगरों में महिला अपराधियों का तुलनात्मक अध्ययन, आदि।

संदर्भ -
  1. Young PV, Scientific Social Survey and Research 
  2. Lundberg, G.A. Social Research.
  3. Good and Hot, Methods of Social Research.
  4. K.D. Bailey, Methods of Social Research.
  5. Ahuja, Ram, Research Methods.

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