आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय एवं रचनाएँ

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
हिन्दी साहित्य में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का नाम एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में लिया जाता है। वे हिन्दी के महान गद्य लेखकों में से एक हैं। आचार्य द्विवेदी हिन्दी के सांस्कृतिक एवं ललित निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी और संस्कृत के महान विद्वान आचार्य द्विवेदी जी की ख्याति एक उपन्यासकार, निबंधकार एवं आलोचक के रूप में रूप में रही है। उनके द्वारा लिखें निबंधों एवं आलोचनाओं में उच्चकोटि की विचारात्मक क्षमता दिखाई देती है। वे एक समालोचक, निबंधकार एवं लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका अध्ययन क्षेत्र व्यापक एवं विशद था। वे हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और बंगला भाषाओं के विद्वान थे। भक्तिकालीन साहित्य का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में बलिया (उत्तरप्रदेश) जिले के आरत दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था । द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था। उनके पिता का नाम पंडित अनमोल द्विवेदी था, जो संस्कृत के एक प्रकांड विद्वान थे। उनकी माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती देवी था। उनकी पत्नी का नाम भगवती देवी था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। 

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालय से हुई। उन्होंने 1920 में बसरिकापुर के मिडिल स्कूल से मिडिल स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। फिर सन् 1923 में वे विद्याध्ययन के लिए काशी चले गए। वहाँ उन्होंने रणवीर संस्कृत पाठशाला, कमच्छा से प्रवेशिका परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। यहाँ रहकर उन्होंने 1927 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1929 में उन्होंने इंटरमीडिएट और
संस्कृत साहित्य में शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर 1930 में उन्होंने ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। शास्त्री तथा आचार्य दोनों ही परीक्षाओं में उन्हें प्रथम श्रेणी प्राप्त हुआ।

पहले वे मिर्जापुर के एक विद्यालय में अध्यापक हुए, वहाँ पर आचार्य क्षितिजमोहन सेन ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और वे उन्हें अपने साथ शांति-निकेतन ले गए। वहाँ वे 20 वर्षों तक हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष रहे। 

द्विवेदी जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। 8 नवम्बर 1930 से द्विवेदी जी ने शांति निकेतन में हिन्दी का अध्यापन प्रारम्भ किया। वहाँ रहते हुए वे गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य क्षितिमोहन सेन के संपर्क में आए। उनके प्रभाव से द्विवेदी जी ने साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अपना स्वतंत्र लेखन भी व्यवस्थित रूप से आरंभ किया। बीस वर्षों तक शांति निकेतन में अध्यापन के उपरान्त द्विवेदी जी ने जुलाई 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। 1957 में वे राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किए गए।

4 फरवरी 1979 को वे पक्षाघात के शिकार हुए और 19 मई 1979 को ब्रेन ट्यूमर से दिल्ली में उनका निधन हो गया।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की प्रमुख रचनाएँ हैं-

1. आलोचनात्मकः सूर साहित्य (1936), हिन्दी साहित्य की आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भूमिका (1940), प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद (1952), कबीर (1942), नाथ संप्रदाय (1950), हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1952), आधुनिक हिन्दी साहित्य पर विचार (1949), साहित्य का मर्म (1949), मेघदूतः एक पुरानी कहानी (1957), लालित्य तत्व (1962), साहित्य सहचर (1965), कालिदास की लालित्य योजना (1965), मध्यकालीन बोध का स्वरूप (1970),
हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास (1952), मृत्युंजय रवीन्द्र (1970), सहज साधना (1963) आदि।

2. निबंध् संग्रहः अशोक के फूल (1948), कल्पलता (1951), मध्यकालीन धर्मसाधना (1952), विचार और वितर्क (1957), विचार-प्रवाह (1959), कुटज (1964), आलोक पर्व (1972)  आदि।

3. निबंध: विष के दन्त, कल्पतरु, गतिशील चिंतन, साहित्य सहचर, नाखून क्यों बढ़ते हैं, अशोक के फूल, देवदारू, बसंत आ गया, वर्षा घनपति से घनश्याम तक, मेरी जन्मभूमि, घर जोड़ने की माया आदि।

4. उपन्यासः बाणभट्ट की आत्मकथा (1946), चारु चंद्रलेख
(1963), पुनर्नवा (1973), अनामदास का पोथा (1976) आदि।

5. अन्यः संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो (1957), संदेश रासक (1960), सिक्ख गुरुओं का पुण्य स्मरण (1979), महापुरुषों का स्मरण (1977) आदि।

ललित निबंधकार के रूप में भी द्विवेदी जी का नाम आदर से लिया जाता है। कुटज, शिरीष के फूल, अशोक के फूल उनके प्रसिद्ध निबंध हैं। उनकी विद्वता, लोकजीवन के प्रति आस्था एवं भारत की सांस्कृतिक विरासत इन निबन्धों में साफ झलकती है। द्विवेदी जी के निबंधों में पाण्डित्य साफ झलकता है। इतिहास, पुराण, साहित्य से गम्भीर तथ्य उठाकर उन्हें समसामयिकता से जोड़ देना उनके निबंधों की विशिष्टता है।

द्विवेदी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है, जो अपनी समास बहुला प्रवृत्ति के कारण कहीं-कहीं क्लिष्ट हो गई है। ललित निबंधों में उन्होंने विचारात्मक, व्याख्यात्मक, शोधपरक शैली का प्रयोग किया है। द्विवेदी जी आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ निबंधकार माने जा सकते हैं। निबंधों के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, हिन्दी साहित्य नामक इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे। उनके आलोचनात्मक ग्रन्थों में सूर साहित्य, कबीर, नाथ सम्प्रदाय, कालिदास की लालित्य योजना, मृत्युंजय रवीन्द्र, साहित्य का मर्म नामक कृतियों के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं। धर्म एवं संस्कृति पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। 

प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, मध्यकालीन धर्म साधना, सहज साधना आदि उनकी धर्म एवं कला सम्बन्धी कृतियां हैं।

अगस्त 1981 में आचार्य द्विवेदी जी की उपलब्ध सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन 11 खंडों में हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली के नाम से प्रकाशित हुआ था। यह प्रथम संस्करण 2 वर्ष से भी कम समय में ही समाप्त हो गया था। द्वितीय संशोधित परिवर्धित संस्करण 1998 में प्रकाशित हुआ। आचार्य द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक व्याकरण के क्षेत्र में भी काम किया था। उन्होंने ‘हिन्दी भाषा का वृहत ऐतिहासिक व्याकरण‘ के नाम से चार खण्डों में विशाल व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी। इसकी पांडुलिपि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग को सौंपी गयी थी, परंतु लंबे समय तक वहाँ से इसका प्रकाशन नहीं हुआ और अंततः वहाँ से पांडुलिपियाँ ही गायब हो गईं। 
द्विवेदी जी के पुत्र मुकुन्द द्विवेदी को उक्त वृहत ग्रन्थ के प्रथम खण्ड की प्रतिलिपि मिली और वर्ष 2011 में इस विशाल ग्रंथ का पहला खण्ड हिन्दी भाषा का वृहत ऐतिहासिक व्याकरण के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी ग्रंथ को यथावत ग्रन्थावली के 12वें खंड के रूप में भी सम्मिलित करके अब 12 खण्डों में ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली‘ का प्रकाशन हो रहा है।

द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य, विविध धर्मों और संप्रदायों का विवेचन आदि है। उनकी समस्त कृतियों पर उनके गहन विचारों और मौलिक चिंतन की छाप है। आचार्य द्विवेदी जी के साहित्य में मानवता का परिशीलन सर्वत्र दिखाई देता है। उनके निबंध तथा उपन्यासों में यह दृष्टि विशेष रूप से प्रतीत होती है। वर्गीकरण की दृष्टि से द्विवेदी जी के निबंध दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैं-विचारात्मक और आलोचनात्मक। विचारात्मक निबंधों की दो श्रेणियां हैं। प्रथम श्रेणी के निबंधों में दार्शनिक तत्वों की प्रधानता है तथा द्वितीय श्रेणी के निबंध सामाजिक जीवन संबंधी हैं। आलोचनात्मक निबंध भी दो श्रेणियों में बांटें जा सकते हैं। प्रथम श्रेणी में ऐसे निबंध हैं जिनमें साहित्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय दृष्टि से विवेचन किया गया है और द्वितीय श्रेणी में वे निबंध हैं जिनमें साहित्यकारों की कृतियों पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार हुआ है। द्विवेदी जी के इन निबंधों में विचारों की गहनता, निरीक्षण की नवीनता और विश्लेषण की सूक्ष्मता रहती है।

द्विवेदी जी की भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है। उन्होंने भाव और विषय के अनुसार भाषा का चयनित प्रयोग किया है। उनकी भाषा के दो रूप दिखलाई पड़ते हैं-प्राँजल व्यावहारिक भाषा एवं संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा। प्रथम रूप द्विवेदी जी के सामान्य निबंधों में मिलता है। इस प्रकार की भाषा में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का भी समावेश हुआ है। द्वितीय शैली उपन्यासों और सैद्धांतिक आलोचना के क्रम में परिलक्षित होती है। द्विवेदी जी की विषय प्रतिपादन की शैली अध्यापकीय है। शास्त्रीय भाषा रचने के दौरान भी उनकी भाषा प्रवाह खण्डित नहीं हुई है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा एवं शैली

शोध के गंभीर विषयों के प्रतिपादन में द्विवेदीजी की भाषा संस्कृतनिष्ठ हैं । आलोचना में उनकी भाषा साहित्यिक हैं । उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता हैं। ऐसे शब्दोंं के साथ उर्र्दू-फारसी तथा देशज शब्दों के बहुतेरे बोलचाल के शब्द और मुहावरे भी मिलते हैं । उनकी भाषा व्याकरण परक, सजीव, सुगठित और प्रवाह युक्त होती हैं। महादेवीजी की भाँति शब्द चित्रों के अंकन में भी वे पटु हैं । द्विवेदीजी हिन्दी के प्रौढ़ शैलीकार हैं । विषय प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने कहीं आगमन शैली का और कही निगमन शैली का प्रयोग किया हैं । आगमन शैली प्राय: वर्णन प्रधान होती है और निगमन शैली व्याख्या प्रधान । पहली में विषयवस्तु का वर्णन पहले और निष्कर्ष अंत में रहता हैं । दूसरी में सूत्र रूप में कुछ कहकर फिर उसकी व्याख्या की जाती हैं। उनके शोध संबंधी निबंध और लेख आगमन शैली में मिलते हैं। ऐसे निबंधों की शैली गवेषणात्मक हैं। भावना के उत्कर्ष से संबंधित निबंधों की शैली भावनात्मक हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनका ‘‘नाखून क्यों बढ़ते हैं?’’निबंध संकलित है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य में स्थान

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ निबंधकार एवं समीक्षक हैं आपकी प्रतिभा सर्वतोन्मुखी हैं । आप की कृतियों में चिंतन, मनन के बिम्ब स्पष्ट परिलक्षित होते हैं । आप अद्वितीय शैली के उपन्यासकार, मानवतावादी विचारधारा के प्रबल प्रवक्ता एवं भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक के रूप में सम्मानित हैं । शुक्लोत्तर युग में आप सर्वश्रेष्ठ निबंधकार है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का केन्द्रीय भाव

‘‘कुटज’’ शिवालिक की नीरस और कठोर चट्टानों में उगने वाले एक ठिगने से वृक्ष का नाम हैं । शिवालिक का अर्थ शिवा की अलकें अथवा शिव के जटाजूट का निचला हिस्सा हैं। कुटज को उसकी अनेकानेक विशेषताओं के आधार पर अनेक नाम दिये जा सकते हैं, जैसे -वनप्रभा, गिरिकांता, गिरिकूट बिहारी । कुटज ‘घर’ अथवा ‘घड़े’ से उत्पन्न व्यक्ति को ‘कुटिया’ में उत्पन्न ‘कुटकारिका’ या ‘कुटहारिका’ (दासी) से उत्पन्न किसी व्यक्ति को कहा जाता हैं । इसी प्रकार कुटज के अनेक अर्थ हैं । कुटज आग्नेय अथवा ‘कोल’ भाषा परिवार का एक शब्द हैं ।

सम्मान 

1973 में ‘आलोक पर्व‘ निबंध संग्रह के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार‘ भी प्राप्त हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डी. लिट’ की उपाधि देकर उनका विशेष सम्मान किया था। द्विवेदी जी का हिन्दी निबंध और आलोचनात्मक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। वे उच्च कोटि के निबंधकार और सफल आलोचक थे। उन्होंने सूर, कबीर, तुलसी आदि पर जो विद्वत्तापूर्ण आलोचनाएं लिखी हैं, वे हिन्दी में पहले नहीं लिखी गईं। उनका निबंध-साहित्य हिन्दी की स्थाई निधि है। द्विवेदी जी का आधुनिक युग के गद्य लेखकों में विशिष्ट स्थान है। आधुनिक युग के साहित्यकारों में उनका नाम सदा स्मरणीय रहेगा।

4 Comments

  1. https://www.hurtedtechnology.com/2018/12/acharya-hazari-prasad-dwivedi-ka-jeevan-parichay-hindi-me.html

    ReplyDelete
  2. acharya hazari prasad ji ka jeevan parichay
    https://www.hurtedtechnology.com/2018/12/acharya-hazari-prasad-dwivedi-ka-jeevan-parichay-hindi-me.html

    ReplyDelete
  3. thanx for sharing this article https://www.hurtedtechnology.com/2018/12/acharya-hazari-prasad-dwivedi-ka-jeevan-parichay-hindi-me.html

    ReplyDelete
Previous Post Next Post