Internet का अर्थ - कैसे काम करता है, इतिहास, प्रकार और परिभाषा

‘इंटरनेट‘ का अर्थ है आपस में जुड़े हुए कम्प्यूटरों का जाल । इंटरनेट की शुरूआत सन् 1960 में अमेरिका के Department of Defence को Advanced Research Project Agency (ARPA) ने किया । सन् 1969 में कम्प्यूटरों का जाल बनाने के लिए चार Host Computers को आपस में जोड़ा गया । आज सूचना संचार तकनीकी के युग में करोड़ों की संख्या में कम्प्यूटर विश्व भर में आपस में LAN तथा WAN के माध्यम से जाल के रूप में जुड़े हुए है ।

इंटरनेट की दुनिया में जाने के लिए आपके पास एक कम्प्यूटर चाहिए जिसमें साउंड कार्ड हो और इंटरनेट कनेक्शन भी होना चाहिए । इसके माध्यम से आप ई-मेल और वाॅइस मेल भेज सकते है और प्राप्त कर सकते है साथ ही इसमें एक कैमरा भी होता है जो कि आॅनलाईन काॅन्फ्रेस आदि में उपयोगी होता है ।

Search Engine का उपयोग कर आप वे सभी विषय खोज सकते है। इंटरनेट की तुलना हम एक विशाल क्षेत्रफल में फैले हुए पुस्तकालय से भी कर सकते है जिसमें किताबें, जर्नल, समाचार पत्र, रिपोर्ट, शोध कार्य, शोधपत्र, वीडियों कैसेट, सीडी, डीवीडी आदि समाहित है, बस अंतर सिर्फ इतना है कि पुस्तकालय में चार कमरों की दीवारों
में अलमारियों में इन सामग्रियों को रखा जाता है और यहाॅ पर कम्प्यूटर की हार्डडिस्क में इसका संग्रहण होता है ।

इंटरनेट का अर्थ

इंटरनेट का अर्थ

इंटरनेट शब्द का हिंदी अनुवाद अंतरजाल किया जाता है लेकिन मूल अंग्रेज़ी शब्द ही व्यापक प्रचलन में है। इसे संक्षिप्त में ‘नेट’ भी कह दिया जाता है, जिसका अर्थ है जाल। वास्तव में इंटरनेट एक जाल ही है, जिसके असंख्य धागे एक दूसरे से मिलकर एक विशाल और अत्यंत जटिल संरचना का निर्माण करते हैं। इसकी तुलना मकड़ी के जाल से की जा सकती हैं। एक परिभाषा के अनुसार ‘अंतरजाल एक-दूसरे से जुड़े संगणकों का एक विशाल विश्वप्यापी नेटवर्क या जाल है। 

इसमें क संगठनों, विश्वविद्यालयों आदि के निजी और सरकारी संगणक जुडे़ हुए हैं। अंतरजाल से जुड़े हुए संगणक आपस में अंतरजालीय नियमावली (Internet Protocol) सूचना का आदान-प्रदान करते हैं।’ अंतरजाल के जरिये मिलने वाली सूचनाओं और सेवाओं में अंतरजालपृष्ठ, -मेल और आपसी बातचीत (आडियो तथा वीडियो कांफ्रेंसिंग) सेवा प्रमुख हैं। इनके साथ-साथ चलचित्र, संगीत, वीडियो के इलेक्ट्रानिक या कम्प्यूटर की भाषा में कहें तो डिज़िटल रूप भी इसमें शामिल हैं।

अपने पारिभाषिक रूप में इंटरनेट दुनिया भर में मौजूद कम्प्यूटर को एक-दूसरे से जोड़ने वाली एक अंतर्जालीय जटिल संरचना है, जिसे कार्य करने के लिए धरती के आउटर स्पेस में अत्याधुनिक उपग्रह संचार प्रणाली और धरती पर फाइबर केबल्स की आवश्यकता होती है, जिनमें आँकड़ों का संचरण लगभग प्रकाश की गति से होता है। हम तक यह संचरण टेलीफोन के तार और मोबाइल कनेक्शन के द्वारा पहुंचता है। इंटरनेट के द्वारा दुनिया भर में मौजूद करोड़ों कम्प्यूटर एक सेकेंड या उससे भी कम वक़्त में एक-दूसरे संवाद कर सकते हैं और अपनी सूचनाओं को आपस में बाँट सकते हैं। इंटरनेट और संचार से जुड़े नए-नए उपकरण निरन्तर विकसित होते जा रहे हैं

इंटरनेट का सफर, 1970 के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाबकाहन् (Bob Kanh) ने शुरू किया था। उन्होनें एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहंचु कर पनु : उस सूचना की प्रतिलिपी बना सकें -अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया। सूचना का इस तरह से आदान प्रदान तब भी हो सकता है जब किसी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इंटरनेट प्रोटोकॉल पता कहा जाता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं

सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहंचु ता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को ही इंटरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol (I-P) कहा जाता है।

अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैैं इसको Local Area Network (LAN) लेन कहते हैैं लेन में जुड़ा को कंप्यूटर या को अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैैं इंटरनेट, दुि नया भर के कम्प्यूटर का ऐसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है। वास्तविकता तो यह है कि इंटरनेट अब एक विशाल नेटवर्क होने से कहीं आगे ख़्ाुद क सारे नेटवक्र्स का अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क है। आज 200 से भी ज़्यादा देशों के लाखों नेटवर्क इसके सम्पर्क द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हैं। शिक्षा, विज्ञान, सरकार और व्यवसाय आदि अनेक क्षेत्रों से जुड़े करोड़ों लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। पहले जहाँ यह विशिष्टों का साध्य था, वहीं अब ये सामान्यजनों का साधन बन चुका है। अनगिनत लोगों को इसने रोज़गार दिया है। कम्प्यूटर्स के इस अनोखे त्वरित अंतर्जालीय जुड़ाव को समझने के लिए सरल रूप में इस तरह चित्रित किया जा सकता है -

दुनिया भर के कम्प्यूटर्स तक पहुँचने और वांछित फाइल ढूँढने की प्रमुख विधियाँ हं-ै गोफर्स, आर्ची, डब्लूएआइर्ए स और वल्र्ड वाइड वेब। डब्लूडब्लूडब्लू का ही पूर्ण रूप वल्र्ड वाइड वेब है, जिसे वेबसाइट्स के पते में इस्तेमाल कर इंटरनेट पर दस्तावेज़ों की खोज की पद्धति के रूप में प्रयोग किया जाता है। उपर्युक्त आरेख सीमित है, इस तरह के जुड़ाव वस्तुत: अनगिनत होते है और हर वक़्त अस्तित्वमान होते हैं। डब्लूडब्लूडब्लू (www) से जब को वेबपृष्ठ नहीं प्राप्त नहीं होता तो उसे हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकाल द्वारा प्राप्त किया जाता है, जिसका संक्षिप्त रूप एचटीटीपी (http://) इस्तेमाल में आता है।

इंटरनेट का संक्षिप्त इतिहास

  1. 1969 इंटरनेट अमेरिकी रक्षा विभाग के द्वारा UCLA के तथा स्टैनफोर्ड अनुसंधान संस्थान कंप्यूटर्स का नेटवकिर्ंग करके इंटरनेट की संरचना की ग। शुरू में इसे अर्पानेट (ARPANET) कहा गया। अमेरिका रक्षा विभाग ने सैन्य एवं नागरिक अनुसंधानकर्ताओं को रक्षा योजनाओं के बारे में सूचनाएँ भिजवाने के लिए इसकी स्थापना की।
  2. 1979 में ब्रिटिश डाकघर ने पहला अंतरराष्ट्रीय कंप्यूटर नेटवर्क बना कर न प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आरम्भ किया।
  3. 1980 में बिल गेट्स का आबीएम के कंप्यूटर्स पर एक माइक्रोसॉफ्ट अॉपरेटिंग सिस्टम लगाने के लिए सौदा हुआ।
  4. 1983 में अर्पानेट को दो नेटवर्कों में बँट गया, जो आपस में जुड़ हुए थे - अर्पानेट और मिलनेट (MILNET)। यहीं से इंटरनेट की औपचारिक शुरूआत मानी जाती है।
  5. 1984 एप्पल ने पहली बार फाइलों और फोल्डरों, ड्रॉप डाउन मेनू, माउस, ग्राफिक्स का प्रयोग आदि से युक्त आधुनिक सफल कम्प्यूटर लांच किया।
  6. आरम्भिक काल में इंटरनेट का उपयोग केवल सेना से सम्बन्धित अनुसंघानों तथा क्रियाकलापों के लिए ही स्वीकृत था लेकिन 1986 में NSFNET(National Science Foundation Network) नामक एक नेटवर्क इंटरनेट से सम्बद्ध हो गया और धीरे-धीरे इसने दुनिया भर के लिए अपने द्वार खोल दिए।
  7. 1989 टिम बेर्नर ली ने इंटरनेट पर संचार को सरल बनाने के लिए ब्राउजरों, पन्नों और लिंक का उपयोग कर के वल्र्ड वाइड वेब बनाया।
  8. 1996 गूगल ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक अनुसंधान परियोजना शुरू किया जो कि दो साल बाद औपचारिक रूप से काम करने लगा। 
  9. 2009 डॉ स्टीफन वोल्फरैम ने वाल्फैरम अल्फा लांच किया।
  10. भारत में अंतरजाल 80 के दशक मे आया, जब एर्नेट (educational & research network) को सरकार, इलेक्ट्रानिकस विभाग और संयुक्त राष्ट्र उन्नति कार्यक्रम (UNDP)की ओर से प्रोत्साहन मिला तथा सामान्य उपयोग के लिये जाल 15 अगस्त 1995 से उपलब्ध हुआ, जब विदेश संचार निगम सीमित (VSNL) ने गेटवे सर्विस शुरू की।

इंटरनेट कनेक्शन के प्रकार

इंटरनेट की मदद से हम घर बैठे अपने कंप्यूटर पर दुनिया भर की सूचनाएं पलक झपकते ही हासिल कर सकते हैं। लेकिन कंप्यूटर पर इंटरनेट सुविधा प्राप्त करने के लिए हमें इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है। आधुनिक दौर में डेस्कटॉप से लेकर लैपटॉप, गेमिंग कन्सोल, टैबलेट्स, मोबाइल फोन तक में इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है। यह उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है कि वह किस तरह के इंटरनेट कनेक्शन से जुड़ना चाहता है। कुछ प्रमुख कनेक्शन हैं -

1. Dial Up Connection - इस प्रक्रिया में उपभोक्ता का कंप्यूटर फोन लाइन के जरिये जोड़ा जाता है। इस तरह के कनेक्शन को एनालॉग (Analog) कनेक्शन कहा जाता है। इस कनेक्शन के जोड़ने के बाद फोन का इस्तेमाल करना संभव नहीं होता। हालांकि, गति धीमी होने के कारण अब इस कनेक्शन का प्रचलन लगभग खत्म हो चुका है।

2. Broadband Connection - ब्रॉडबैंड कनेक्शन सबसे ज्यादा तीव्र गति वाला इंटरनेट कनेक्शन है। इसमें भारी मात्रा में सूचनाएं भेजने के लिए एक से अधिक डाटा चैनलों का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रॉडबैंड ब्रॉड बैंडविथ (Broad Bandwidth) का संक्षिप्त रूप है। केबल और टेलीफोन कंपनियां ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध कराती हैं।

3. DSL Connection - डीएसएल कनेक्शन की फुलफॉर्म है, डिजिटल सब्सक्राइबर लाइन (Digital Subscriber Line) इस कनेक्शन में उपभोक्ता के घर में उपलब्ध दो तारों वाली टेलीफोन लाइन का इस्तेमाल किया जाता है। इससे यह सुविधा लैंडलाइन कनेक्शन के साथ ही उपलब्ध हो जाती है। डायल अप कनेक्शन से इतर इस व्यवस्था में इंटरनेट के इस्तेमाल के दौरान उपभोक्ता लैंडलाइन फोन का भी प्रयोग कर सकता है।

4. Wireless Connection -जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस तरह के कनेक्शन में तारों की मदद नहीं ली जाती है। इसमें केबल या टेलीफोन नेटवर्क के बजाय रेडियो तरंगों (Radio Frequency) का प्रयोग किया जाता है। इस कनेक्शन की सबसे बड़ी सुविधा यह है कि इसमें कनेक्शन हमेशा ऑन रहता है।

5. Mobile Connection -संचार क्रांति के दौर में अब इंटरनेट हर उपयोगकर्ता के हाथों तक आसान पहुंच बना चुका है। इसका जरिया बना है मोबाइल फोन। जीएसएम (GSM) 3जी, 4-जी जैसी नयी तकनीकों की मदद से अब हम मोबाइल, टैबलेट पर आसानी से इंटरनेट सुविधा हासिल कर सकते हैं।

इंटरनेट के उपकरण

इकाई के इस हिस्से हम उन साधनों को जानने का प्रयास करेंगे जो इंटरनेट सुविधा को सफल बनाने का काम करते हैं। इनमें किसी कंप्यूटर को इंटरनेट से जोड़ने वाले उपकरण भी शामिल हैं तो कंप्यूटर पर इंटरनेट और संचार सुविधा संचालित करने वाले एप्लीकेशन प्रोग्राम भी। आइए, इनका संक्षिप्त परिचय लेते हैं:

1. Modem - मोडेम का विस्तारित शब्द है मॉडुलेटर डि मॉडुलेटर (Modulator-De-Modulator) यह एक ऐसा उपकरण है जो कंप्यूटर में मौजूद डिजिटल डाटा (Digital Data) को एनालॉग सिग्नलों (Analog Signal) में बदलता है। एनालॉग सिग्नल वे सिग्नल होते हैं, जो टेलीफोन लाइन या अन्य संचार माध्यम के जरिये एक से दूसरे स्थान तक भेजे जा सकते हैं। इसी तरह वह एनालॉग सिग्नल को डिजिटल डाटा में बदल देता है, ताकि कंप्यूटर सिग्नल को समझ सके।

2. Web Browser - वेब ब्राउजर दरअसल एक तरह के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं, जो कंप्यूटर में ही स्थापित रहते हैं। इनकी मदद से उपभोक्ता इंटरनेट का इस्तेमाल सूचनाएं, डाटा की तलाश करने में कर पाता है। उदाहरण: इंटरनेट एक्स्प्लोरर, गूगल का गूगल क्रोम ब्राउजर,, मोजिला फायर फॉक्स, एप्पल सफारी आदि।

इंटरनेट का अर्थ


3. World Wide Web - हम जानते हैं कि वेब का अर्थ जाले से होता है। वल्र्ड वाइड वेब का अर्थ सूचनाओं या डाटा के एक ऐसे जाल से है जो पूरी दुनिया में विस्तृत हो और कोई भी इंटरनेट उपयोगकर्ता इस डाटाबेस से अपनी जरूरत के मुताबिक सूचना हासिल कर सकता है। यह मूलत: डाटाबेस के अलग-अलग पेजों का एक समूह है जो शीर्षकों (Titles) में बंटे रहते हैं और जिन्हें वेबसाइट कहा जाता है।

4. Website - इंटरनेट पर कोई भी जानकारी डाटाबेस संबंधित पेजों के रूप में उपलब्ध रहती है, जिन्हें वेबसाइट कहा जाता है। ब्राउजर के जरिये उपयोगकर्ता इन वेबसाइट तक पहुंच सकता है। वेबसाइट जीवन के हर आयाम, पहलू पर आधारित होती हैं। खेल, मनोरंजन, विज्ञान अलग-अलग विषय की हजारों-लाखों वेबसाइट यानी पेज इंटरनटे पर उपलब्ध रहते हैं। शोधकार्यों के लिए ये वेबसाइट शोधार्थियों (Research Fellows) की खासी मददगार साबित होती हैं।

5. Webpage and HTML - एचटीएमएल एक उच्चस्तरीय प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है, जो वेबपेज तैयार करने में काम आती है। वेबपेज क्या है, यह हम पहले ही जान चुके हैं। कोई भी वेबसाइट कई वेबपेजों का एक समूह हो सकता है। एचटीएमएल का विस्तृत शब्दरूप है हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (Hypertext Markup Language) (HTTP/ http) एचटीटीपी का विस्तृत शब्दरूप है हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल (Hypertext Transfer Protocol) यह प्रोटोकॉल दरअसल वल्र्ड वाइड वेब में मौजूद डाटाबेस की बुनियाद है, हम जब भी ब्राउजर पर किसी वेबसाइट को सर्च करने के लिए किसी वेबसाइट का नाम लिखते हैं तो उसके आगे http:// लिखा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि उपयोगकर्ता वेब पर वह फाइल तलाशना चाहता है, जो एचटीएमएल भाषा में उपलब्ध हो। एचटीटीपी को वल्र्ड वाइड वेब की आचार संहिता भी माना जाता है।

6. Domain Name - इंटरनेट पर एक ही विषय से जुड़ी हजारों-लाखों वेबसाइट उपलब्ध होती हैं, ऐसे में इनमें से उपयोगकर्ता के वास्तविक उपयोग वाली वेबसाइट तलाशना लंबा समय और उर्जा खाने वाला काम बन जाता है। ऐसे में हर वेबसाइट को जो नाम दिया जाता है वह डोमेन नेम कहलाता है। वास्तव में डोमेन नेम इंटरनेट पर किसी वेबसाइट का पता होता है। ब्राउजर पर जब भी उपयोगकर्ता किसी वेबसाइट का नाम लिखता है तो ब्राउजर तुरंत लाखों वेबपेज में से संबंधित वेबपेज को आसानी से तलाश लेता है। अब जब भी हम ब्राउजर पर किसी वेबसाइट को तलाश करते हैं तो उसे इस तरह पूरा लिखा जाता है- www.facebook.com इसमें शुरूआती तीन अक्षर www बताते हैं कि हम जिस पेज की तलाश कर रहे हैं, वह वल्र्ड वाइड वेब पर उपलब्ध है, जबकि बाकी के दो शब्द यानी facebook.com इस वेबपेज का डोमेन नेम है। किन्हीं भी दो वेबसाइट का डोमेन नेम कभी भी एकसमान नहीं हो सकता है। यही वजह है कि ब्राउजर पर वेबसाइट का पूरा नाम लिखते ही अभीष्ट वेबपेज तुरंत खुल जाता है।

7. URL - यूआरएल यानी यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (Uniform Resource Locator) किसी वेबसाइट का पूरा नाम यानी वल्र्ड वाइड वेब पर उस वेबसाइट या वेबपेज का पूरा पता है। इसे हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं।

8. Search Engines - कई बार होता यह है कि उपयोगकर्ता को उस विषय की तो जानकारी रहती है, जिसके लिए उसे डाटा या सूचनाओं की आवश्यकता है, लेकिन उसे यह मालूम नहीं होता कि कौन सी वेबसाइट उसके लिए उपयोगी होगी। कई बार उसे अभीष्ट वेबसाइट का नाम भी मालूम नहीं होता है। ऐसे में सर्च इंजन इंटरनेट उपयोगकर्ता के खासे मददगार साबित होते हैं। दरअसल, सर्च इंजन पर उपयोगकर्ता को वेबसाइट का पूरा नाम लिखने के बजाय सिर्फ कुछ कीवर्ड (Keywords) ही लिखने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए अगर उपयोगकर्ता समाज में बढ़ते अपराधों के विषय पर डाटा-सूचनाएं और जानकारी जुटाना चाहता है, लेकिन उसे नहीं मालमू है कि वह किस वेबसाइट पर जाए तो वह ब्राउजर पर क्राइम (Crime) या समाज (Society) या समाज में अपराध (Crime in Society) जैसे शब्द ही लिख सकता है। सर्च इंजन तुरंत इन शब्दों के आधार पर एक साथ कई वेबपेज की सूची उपलब्ध करा देता है, जिन पर क्लिक कर उपयोगकर्ता अभीष्ट जानकारी हासिल कर पाता है। गूगल, याहू, बिंग आदि ऐसे ही सर्च इंजन हैं।

9. E-mail - ई-मेल, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसी चिट्ठी या संदेश है जिसका स्वरूप इलेक्ट्रॉनिक यानी डिजिटल है। वास्तव में ई-मले भी एक तरह का सॉफ्टवेयर है, जो उपयोगकर्ता को कोई संदेश दूसरे उपयोगकर्ता तक पहुंचाने की सुविधा देता है। ई-मेल दो प्रकार की होती हैं। पहली ब्राउजर आधारित, इस तरह की मेल में उपयोगकर्ता को इंटरनेट पर मौजूद ई-मेल सुविधा देने वाली कंपनी से जुड़ना होता है। इसके लिए उपयोगकर्ता को संबंधित कंपनी में अपना विशेष खाता बनाना होता है। जीमेल, याहूमेल, रेडिफमेल, हॉटमेल ऐसी ही कंपनियां हैं जो ई-मेल सुविधा देती हैं। यह प्रक्रिया नि:शुल्क होती है। इनसे जुड़ा उपयोगकर्ता इस तरह अपना ई-मेल खाता या ई-मेल आईडी बनाता है: xyz@gmail.com दूसरी ई-मेल होती हैं उपभोक्ता आधारित। इस तरह की मेल कंप्यूटर में इंस्टॉल सॉफ्टवेयर पर ही उपलब्ध होती हैं। मसलन माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस सॉफ्टवेयर पर आउटलुक, आउटलुक एक्सप्रेस आदि।

इंटरनेट के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष

इंटरनेट के आविष्कार ने सूचना प्रौद्योगिकी को जहां बड़े स्तर पर प्रोत्साहित किया है वहीं इसने मानव-जीवन की शैली पर भी अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा है। यह एक क्रान्ति है जिसने हर वर्ग को हर तरह से अपने घेरे में ले रखा है। चिकित्सक, अभियंता, वैज्ञानिक, व्यवसायी, शिक्षक, शोधकर्ता, विद्यार्थी तथा आम नागरिक सभी इंटरनेट को प्रयोग में ला सकते हैं। यह सर्व उपयोगी और सर्वव्यापी है। इंटरनेट ने जहां समाज के विकास में अपना योगदान दिया है वहीं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी सामने आये हैं। इंटरनेट के सकारात्मक व नकारात्मक पहलू निम्नवत है

 इंटरनेट के सकारात्मक पक्ष

  1. ज्ञान-विज्ञान व सूचनाओं का प्रसार-प्रचार। 
  2. सम्पूर्ण विश्व का एक छोटे दायरे में आना, जिससे विश्व के समुदायों में नजदीकी बढ़ी है। 
  3. कहीं भी, कभी भी, किसी भी वांछित सूचना, प्रकार व क्षेत्र-विशेष की जानकारी।
  4. उद्योगों, व्यापार, बैंकों समाचार-पत्रों, संस्थानों आदि के दूर-दराज के कार्यालयों व व्यक्तियों का आपस में निकट सम्पर्क।
  5. दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र पर घर बैठे एक माऊस के क्लिक से नजर व जानकारी। 
  6. ग्लोबल वल्र्ड की अवधारणा का विकास व नौकरी, कैरियर आदि क्षेत्रों का त्वरित सम्पर्क व जुड़ाव। 
  7. टेलीफोनी व चैटिंग के माध्यम से सामाजिक सम्पर्क में बढ़ोत्तरी व व्यक्तित्व विकास के नवीन पहलुओं का योगदान।

 इंटरनेट के नकारात्मक पक्ष

  1. किशोर एवं युवा पीढ़ी में अश्लीलता व भ्रम की स्थितियों का प्रचलन। 
  2. राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्रों में नकारात्मक विचारों का प्रसार।
  3. धोखाधड़ी, व अनैतिक प्रयोग पर रोक के सटीक उपाय नहीं। 
  4. देश की सुरक्षा के प्रति खतरा। 
  5. मशीनी निर्भरता को बढ़ावा। 
  6. बड़े संस्थानों व खुफिया तंत्रों में सेंधमारी व सिस्टम हैक कर देना या वायरस के हमले से अकल्पित नुकसान।
  7. सामान्य लोगों में मानवीयता की भावना का क्षरण व खाओ-पीओ, मौज करो की प्रवृत्ति को बढ़ावा। 
  8. सरकारी, व्यापारी, घरेलू कम्प्यूटरों में इलेक्ट्रॉनिक घुसपैठ, सूचनाओं की चोरी।

5 Comments

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