राष्ट्रीयता का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, गुण, तत्व या घटक

राष्ट्रीयता (Nationality) किसी भी राष्ट्र के व्यक्तियों के मध्य एका की भावना होती है, इसमें देशप्रेम, देशभक्ति व देश के प्रति समर्पण की भावना छिपी रहती है और राष्ट्र हित की भावना के आगे वैयक्तिक व सामूहिक हितों को त्याग का प्रवृत्ति पायी जाती है, यही भावना राष्ट्रीयता कहलाती हैं।


वर्तमान युग राष्ट्रीयता का युग माना जाता है। सभी देश अपने निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना पर निर्भरत करते हैं, और यह प्रयास करते है कि शिक्षा विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता को प्रफुल्लित करें और उसके विकास में सहायक हो। राष्ट्रीयता देश के सभी नागरिकों में हम और हमारा का दृष्टिकोण उत्पन्न कर देता है और यह सबको एक सूत्र में बांधे रहता है। किसी भी राष्ट्र में भिन्न क्षेत्रों भाषा जाति धर्म व संस्कृति के लोग रहते है, परन्तु इतने विभिन्नता के होते हुये भी किसी राष्ट्र के व्यक्ति समान हित की भावना से जुड़े होते हैं और सभी व्यक्तियों के इन समान हितों की रक्षा के लिये राज्य उत्तरदायी होता है और यह व्यक्ति को व्यक्तिगत हितों से ऊपर राष्ट्र के हितों को रखने पर ही सम्भव हो पाता है। 

राष्ट्रीयता में मूल शब्द राष्ट्र है, और यता प्रत्यय लगा है और इसका अभिप्राय है राष्ट्र के प्रति लगाव। राष्ट्रीयता की व्याख्या विभिन्न प्रकार से की गयी है और इसे मन की स्थिति तथा आत्मा की सम्पत्ति मानते हैं। यह भावना जीवन एवं विचार की पद्धति के रूप में भी मानी जाती हैं।

राष्ट्रीयता का अर्थ

लैटिन शब्द ‘नेट्स’ ने राष्ट्रीयता की उत्पत्ति हुई है, जिसका अर्थ है ‘जन्म लेना’। अत: इन पदों में राष्ट्रीयता का अर्थ है किसी एक जाति विशेष में जन्म या रक्त संबंध के आधार पर संबंधित होना। वस्तुत: राष्ट्रीयता की यह समझ भ्रामक है। आज विश्व में कोई भी एक ‘राष्ट्र’ नहीं है जिसके नागरिक एक ही वंश या कलु से सबंधित हों। सभी राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न कुलों से संबंधित नागरिक रहते हैं। वंशानुगत शुद्धता बहुत कठिन है, क्योंकि यह अप्रवासियों, अंतर्जातीय तथा अंतर्कुलीय विवाहों के कारण अशुद्ध होती आ रही है। अत: निश्चित रूप से राष्ट्रीय का विकास एक मनोवैज्ञानिक घटना है, न की राजनीतिक या नस्ल आधारित। 

जे.डब्लू. गार्नर के शब्दों में- ‘‘राष्ट्रीय एक सांस्कृतिक रूप से समांगी समूह है जो कि इसकी एकता के बारे में भी सतर्क है’’

राष्ट्रीयता की परिभाषा

ब्रुवेकर के द्वारा राष्ट्रीयता की निम्न परिभाषा दी गयी- ‘‘राष्ट्रीयता साधारण रूप से देश प्रेम की अपेक्षा देश भक्ति के अधिक व्यापक क्षेत्र की ओर संकेत करती है। राष्ट्रीयता में स्थान के सम्बन्ध के अलावा, प्रजाति, भाषा, इतिहास, संस्कृति और परम्पराओं के भी सम्बंध आ जाते हैं।’’

राष्ट्रीयता के प्रकार

1. संकीर्ण राष्ट्रीयता

इस प्रकार की राष्ट्रीयता में व्यक्तियों में यह धारणा विकसित होती है कि मेरा ही राष्ट्र सर्वश्रेष्ठ है और वह संसार के अन्य देशों को अपनी राष्ट्र से पीछे व कमतर समझते हैं। यह राष्ट्र के प्रेम की सभी हदों के पार के विश्वास की बात मानते हैं, परन्तु इसमें व्यक्तिगत एवं सामाजिक हित पीछे रह जाते हैं। संकुचित राष्ट्रवाद ने संसार में क उथल-पुथल मचाया है इसके कारण-
  1. अन्तराष्ट्रीय विचारधारा पनप नहीं पाती और यह मानव हित के लिये घातक है।
  2. संकुचित राष्ट्रीयता की भावना उस राष्ट्र एवं नागरिक को स्वाथ्री बना देता है, और दूसरे देशों के प्रति घृणा उत्पन्न करती है और यह आपसी संघर्ष उत्पन्न करता है।
  3. संकुचित राष्ट्रीयता की भावना पड़ोसी देशों की भी परवाह नहीं कर आपसी तनाव बढ़ाती है जिससे कि दोनेां देश उन्नति नहीं कर पाते। यह विश्व के अस्तित्व के लिये भी खतरा उत्पन्न करती है।
  4. यह वैयक्तिक हितों के विपरीत है। इसमें सामान्य व्यक्ति का विकास अधिकांशत: उपेक्षित भी हो सकता है और यह व्यक्तियों पर दबाव बनाती है। 

2. उदार राष्ट्रीयता

 यह राष्ट्रीयता व्यक्तियों को स्वेच्छा से अपने राष्ट्र को प्रेम करने के लिये प्रेरित करती है। यह अपने राष्ट्र से प्रेम करने के साथ अन्य देशों के साथ घृणा करने की आज्ञा नहीं देता, यह समवेत विकास में विश्वास करती है। इस प्रकार की राष्ट्रीयता धर्मों जातियों और भाषाओं के लोगों में पारस्परिक सहिष्णुता की भावना को जन्म देती है। इस प्रकार की राष्ट्रीयता राष्ट्र के निवासियों को बाह्य बंधन से मुक्त होने और रहने की प्रेरणा देती है।

राष्ट्रीयता के गुण

किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व वहां के निवासी के हम की भावना पर निर्भरता करती है क्येांकि यह किसी भी राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बांधती है। राष्ट्रीयता के गुणों की चर्चा अब हम कर रहे हैं-
  1. राष्ट्रीयता किसी देश के नागरिकों को एक सूत्र में बांध देती है, इसमें स्थान, जाति, भाषा, संस्कृति आदि के आधार पर भिन्नता होते हुये भी एकता स्थापित हो जाती है।
  2. यह नागरिकों को अपने स्वार्थों से ऊपर राष्ट्र के हित को रखने के लिये प्रेरित करता है।
  3. यह राष्ट्र को उसकी सीमाओं में बांधे रखता है।
  4. राष्ट्रीयता व्यक्तियों को राष्ट्र के प्रति प्रेम होने के कारण अनुशासन स्थापन के लिये प्रेरित करती है।
  5. उदार राष्ट्रीयता राष्ट्र के उन्नति के साथ व्यक्तियों के अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति भी सचेत रहती है।
  6. राष्ट्रीयता नागरिकों को अपने राष्ट्र के उन्नति एवं विकास हेतु संचेतना जागृत करती है।
  7. उदार राष्ट्रीयता नागरिकों में अन्तर्राष्ट्रीय जागरूकता की भावना विकासित करने में सहायक होती है।
  8.  उदार राष्ट्रीयता वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना में विश्वास करती है। 
  9. किसी भी प्रकार की राजनैतिक व्यवस्था तानाशाही, साम्यवादी, समाजवादी और प्रजातंत्रीय व्यवस्था को दृढ़ बनाये रखने के लिये वहां के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना आवश्यक होती है।
  10. राष्ट्रीयता राष्ट्रों के मध्य होड़ एवं संघर्ष भी उत्पन्न कर सकती है, और राष्ट्र एक-दूसरे से आगे निकलने के लिये संघर्ष करते हैं।

राष्ट्रीयता की कमियाँ 

राष्ट्रीयता की भावना उदारवादी हो यह आवश्यक है, उसके संकुचित रूप न उभरे इसी कमी को इंगित करते हुये जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था- ‘‘राष्ट्रीयता एक ऐसा विचित्र तत्व है जो एक देश के इतिहास में जहां जीवन मानव शक्ति में एकता का संचार करता है,वहां संकुचित बनाता है, क्योंकि इसके कारण एक व्यक्ति अपने देश के बारे में संसार के अन्य देशों से पृथक-पृथक रूप में सोचता है।’’ इस रूप में स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि -
  1. राष्ट्रीयता के गुण व्यक्तियों को एक सूत्र में बांधने के साथ यह दुर्गुण पैदा करती है कि मेरा राष्ट्र अन्य राष्ट्रों से श्रेण्ठ है।
  2. यह राष्ट्र की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिये प्रेरित करती है परन्तु अन्धाधुन्ध प्रेम दूसरे राष्ट्र की सीमाओं को भंग कर अपने राष्ट्र की सीमाओं के प्रसार करने के लिये भी अग्रसर करती है।
  3. राष्ट्रीयता अपने देश की अस्मिता एवं अस्तित्व को बचाने के लिये प्रेरित करती है, तो दूसरी ओर दूसरे देश को आगे बढ़ते देखकर उसकी अस्मिता व अस्तित्व को भंग करने के लिये अभिप्रेरित करती है।
  4. अंधी राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को भी प्रभावित करती है। देश आपस में सहयोग लेना-देना नहीं चाहते है।
  5. राष्ट्रीयता की भावना का संघर्ण अन्तराष्ट्रीयता के विकास में बाधक होता है।

राष्ट्रीयता के तत्व या घटक 

राष्ट्रीयता को इसके घटक पदों में परिभाषित करना अत्यंत कठिन है। यह एक मनोवैज्ञानिक संकल्पना है, अथवा व्यक्तिगत विचार। अत: यह असंभव है कि कोई ऐसा समाज गुण अथवा निश्चित रुचि हो सकती है। जो राष्ट्रीयता में सभी जगहों पर समान हो। अत: हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते है कि यह विशेष घटक एक अलग राष्ट्रीयता समान है। इस प्रयास में हम यहां कुछ घटकों को सूचीबद्ध कर सकते है जो कि है-
  1. भौगोलिक संलग्नता
  2. भाषा समुदाय
  3. समान कुल
  4. सामान्य राजनीतिक आकांक्षाएँ
  5. समान धर्म
  6. समान राजनीतिक व्यवस्था
  7. आर्थिक कारक
  8. एक समान अधिनस्तता 
1. भौगोलिक संलग्नता -  हर व्यक्ति के मन में अपनी जमीन से किसी न किसी रूप में लगाव अवश्य होता है, जिसे उसके राष्ट्र, उसकी मातृभूमि अथवा उसकी पितृभूमि के रूप में जानते है। किन्तु इसराइल बनने से पूर्व यहूदी पूरी दुनिया में बिखरे हुए थे, किन्तु उनके मन में इसराइल के प्रति ही लगाव था।

2. भाषा समुदाय - सामान्यता किसी भी राष्ट्र के नागरिकों की एक आम भाषा होती है, क्योंकि इसी के माध्यम से वे अपने विचार तथा संस्कृति का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं। राष्ट्र के विकास में भाषा एक सहायक तत्व अवश्यक हैं, किन्तु यह अनिवार्य तत्व नहीं हो सकती। जैसे स्विस लोग फ्रेंच जर्मन तथा इटैलियन आदि भाषाएं बोलते हैं, किन्तु उन सबकी राष्ट्रीयता एक है।

3. समान कुल - कुलीय समानता का विचार यह दर्शाता है कि किसी राष्ट्रीयता विशेष से संबंधित लोग एक समूह अथवा सामाजिक एकता से संबंधित होते है। कुछ लोग यह सुझाव देते हैं कि कुलीय शुद्धता से ही राष्ट्र बनता है। वैज्ञानिक तौर पर यह गलत है उपरोक्त अध्ययनानुसार, अप्रवास, अंतर्जातीय विवाहों आदि के कारण कुलीय शुद्धता लगभग असंभव है। आज यह मिथक बन गया है। परंतु यह विश्वास कि लोग एक वास्तविक या काल्पनिक कुल से संबंधित हैं, इससे राष्ट्रीयता के विचार में योगदान मिला है। कुलीय समरूपता इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे समान भाषा, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक समरूपता को बल मिलता है।

4. सामान्य राजनीतिक आकांक्षाएँ - कुछ विचारक राष्ट्र निर्माण की इच्छा आकांक्षा को राष्ट्रीयता एक प्रमुख सिद्धांत मानते है। 1917 के पेरिस शांति सम्मेलन में इसी आधार पर Self determination nation के सिद्धांत को स्वीकार किया गया।

5. समान धर्म - धर्म भी राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण घटक है। समान धर्म से राष्ट्रीय भावना मजबूत होती है। इंग्लैण्ड ने प्रोटैस्टैन्ट (इसाई धर्म के प्रोटैस्टैन्ट चर्च के अनुयायी) की रक्षा के लिए स्पेन के जहाजी बेड़ों का मुकाबला किया। परन्तु यह एक आवश्यक घटक नहीं है। दरअसल आधुनिक समय में, राष्ट्रीयताएं बहुधर्मी बन गई हैं तथा इन परिस्थितियों में धर्म एक व्यक्तिगत मामला बन जाता है और आम जीवन में धर्म निरपेक्षता आ जाती है। धर्म हमेशा जोड़ने वाला घटक ही नहीं होता है। समान धर्म के होते हुए भी पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया एवं बग्लादेश का निर्माण हुआ। भारत विभाजन के कारण जब पाकिस्तान का निर्माण हुआ तब धर्म ने भारतीय उपमहाद्विप में विभाजन घटक के रूप में नकारात्मक कार्य ही किया।

6. समान राजनीतिक व्यवस्था - किसी राज्य में समान राजनीतिक ढांचे का होना भी चाहे वह वर्तमान में हो या भूत में राष्टी्र यता का एक घटक है। एक राज्य में लोग कानून के द्वारा एकसूत्र में बंधे होते हैं। एक ही राज्य में इस प्रकार रहने से एकता की भावना उत्पन्न होती है। विभिन्न संकट की घड़ियों में जैसे कि युद्ध के समय देशभक्ति की भावना का विकास होता है। वास्तव में सरकार विभिन्न तरीकों द्वारा इसे प्रोत्साहित करती है। गिलक्रिस्ट ठीक ही कहते हैं, ‘‘राष्ट्रीयता या तो इसलिए अस्तित्व में है क्योंकि यह एक राष्ट्र है जिसमें इसका राज्य या क्षेत्र निहित है, या इसलिए क्योंकि यह अपने राज्य या क्षेत्र के साथ राष्ट्र बनने की इच्छा रखती है।’’

7. आर्थिक कारक - आर्थिक कार्यकलाप लोगों को एक दूसरे के समीप लाते हैं। यह तर्क दिया जाता है कि ऐतिहासिक रूप से विभिन्न जनजातियों और कुलों के मिश्रण के परिणामस्वरूप ही राष्ट्रीयता उभरती है। आदि समाज में राष्ट्रीयता के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। मार्क्सवादियों का भी यही विश्वास है कि राष्ट्रीयता आर्थिक कारक के कारण ही उभरती है। उनके अनुसार किसी दास युग या सामंती समाज के लिए राष्ट्रीयता का कोई महत्व नहीं था तथा राष्ट्रीयता केवल उत्पादन के पूंजीवादी तरीके के बाद ही अस्तिव में आयी। नि:संदेह आर्थिक घटक राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण कारक है। यह राष्ट्रीयता को सहेज कर रखने का भी एक महत्वपूर्ण कारक है। परंतु यह अकेले ही राष्ट्रीयता का निर्माण नहीं कर सकता।

8. एक समान अधिनस्तता - अफ्रीकी-एशियाई देशों में राष्ट्रीय आंदोलनों को उभरने में समान अधिनस्ता एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। विभिन्न यूरोपीय साम्राज्यों ने उन पर आक्रमण किया। एक एकसमान अधिनस्तता का कारण उनमें राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न हुई क्योंकि इसने लोगों में एक होने की भावना जागृत की। भारत के समान औपनिवेशिक शोषण के कारण समान भारतीय राष्ट्रीयता का उद्य हुआ।
    उपरोक्त सभी तत्व राष्ट्रीयता को उभारने में सहयक होते हैं, किन्तु इनमें से कोई भी तत्व आत्मिक रूप से राष्ट्रीयता को निर्मित नहीं करता। वस्तुत: राष्ट्रीयता एक व्यक्ति परक भावनात्मक संवेदना से जुड़ी चीज है, जिसे किसी भी एक वस्तुगत तथ्य के द्वारा परिभाषित नहीं किया जा सकता। इन उपरोक्त तथ्यों में से किसी भी तथ्य की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति राष्ट्रीयता की भावना की उपस्थिति या अनुपस्थिति को अनिवार्य रूप से प्रभावित नहीं करता है।

    राष्ट्र और राष्ट्रीयता में अंतर 

    राष्ट्र और राष्ट्रीयता में बहुत ही सूक्ष्म भेद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों ही शब्दों की एक शब्द विशेष से उत्पत्ति हुई है। कुछ लोग इन शब्दों को परस्पर बदले जा सकने वाले शब्द कहते है। परंतु निश्चित रूप से दोनों शब्दों में अंतर है -
    1. राष्ट्रीयता एक सांस्कृतिक शब्द है। यह एक मनोवैज्ञानिक भाव है। जो कि एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लागों में एक ही कुल, इतिहास, धर्म, रीति-रिवाज, आदि के कारण उत्पन्न होता है। एक राष्ट्रीयता के लोगों में एकता की भावना होनी चाहिए उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि उनमें कुछ समानता है, जो उन्हें दूसरे लागों से अलग करती है। परंतु राष्ट्र लोगों का एक संगठन एवं ब्यवस्थित समूह है। किसी राष्ट्र में व्यक्तियों को जो एक चीज जोड़ती है, वह एक होने की भावना है। अत: राष्ट्र से एक संगठन का विचार आता है तथा राष्ट्रीयता से भावात्मक। 
    2. मूल रूप से राष्ट्रीयता एक सांस्कृतिक पद है जो केवल ‘राजनीतिक’ है जैसे कि हायक हमें बताते हैं। राष्ट्र मूल रूप से एक राजनीतिक पद है जो कि संयोगवश सांस्कृतिक है। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं कि राष्ट्रीयता की राजनीतिक और राष्ट्र की सांस्कृतिक संकल्पना नहीं है। 
    3. राज्य के विकास से यह प्रदर्शित हो चुका है कि एक से अधिक राष्ट्रीयता वाले भी राज्य हो सकते हैं तथा एक ही राष्ट्रीयता कई राज्यों में भी पाई जा सकती है। पूर्व सोवियत संघ में जब वह एक राज्य था कई राष्ट्रीयताएं समाहित थी; दूसरे उदाहरणार्थ कोरियन राष्ट्रीयता जो दो से अधिक राज्यों में विद्यमान है। अत: राज्य राष्ट्रीयता एक ही साथ पाये भी जा सकते हैं और नहीं भी। 
    4. दूसरे अर्थ में, राष्ट्र और राष्ट्रीयता दो अलग-अलग शब्द है। कुछ लोग ‘राष्ट्रीयता’ शब्द को मानते हैं कि यह राष्ट्र के निर्माण का आधारभूत तथ्य अथवा गुण है, अर्थात् राष्ट्र से पहले राष्ट्रीयता का स्थान है। इसलिए मूल उत्पत्ति के अनुसार ये दोनों एक जैसे नहीं है। यहूदी राष्ट्रीयता ने यहूदी राष्ट्र का निर्माण किया। 
    5. यदि हम ‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग एक ही कुल, भाषा और रीति-रिवाज, तथा एक ही क्षेत्र की जनसंख्या के सबसे अधिक लोगों के लिए करते हैं, तो वास्तव म ें हम देखते हैं कि ब्रिटिश लोग भी एक राष्ट्र हैं। दूसरी ओर, यदि हम ‘राष्ट्रीयता’ शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्र के छोटे-छोटे विभिन्न मानव समदु ायों के लिए करते हैं जो कि उस क्षेत्र की जनसंख्या का छोटा सा भाग हैं, तो हम देखते हैं कि वेल्श एक राष्ट्रीयता है तथा यह ब्रिटिश राष्ट्र का एक अंग है। 

    राष्ट्रीयता

    3 Comments

    1. Bhaiyo desh ka bhla kro jo hamare desh ke gareeb log hai unki help kro jitni tum per ho ske bhuke ko roti do nagge ko kapde do pyase ko pani do or bhaiyo desh ko saf or sutra rkho ap bde bhiyo se yhi request hai bs meri kyuki janab hm bhi gareeb hai isliye hm gareeb ki dikkto ko samajte hai bs poor logo ji help kro yhi request hai meri apse

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