सृजनात्मकता का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, सिद्धांत

सृजनात्मकता वह योग्यता है जो व्यक्ति को किसी समस्या का विद्ववतापूर्ण समाधान खोजने के लिए नवीन ढंग से सोचने तथा विचार करने में समर्थ बनाती है। प्रचलित ढंग से हटकर किसी नये ढंग से चिंतन करने तथा कार्य करने की योग्यता ही सृजनात्मकता है।

सृजनात्मकता का अर्थ

सृजनात्मकता का सामान्य अर्थ है सृजन अथवा रचना करने की योग्यता। मनोविज्ञान में सृजनात्मकता से तात्पर्य मनुष्य के उस गुण, योग्यता अथवा शक्ति से होता है जिसके द्वारा वह कुछ नया सृजन करता है। प्रत्येक व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की मानसिक योग्यता होती है। जिसके आधार पर वह लेखक, कलाकार वैज्ञानिक तथा संगीतज्ञ इत्यादि बनता है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति होती है।

सृजनात्मकता की परिभाषा

भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों ने सृजनात्मकता को भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है। सृजनात्मकता की कुछ प्रमुख
परिभाषाएँ हैं -

डीहान तथा हेविंगहस्र्ट के अनुसार ”सृजनात्मकता वह विशेषता है, जो किसी नवीन व वांछित वस्तु के उत्पादन की ओर प्रवृत्त करें। यह नवीन वस्तु संपूर्ण समाज के लिए नवीन हो सकती है। अथवा उस व्यक्ति के लिए नवीन हो सकती है जिसने उसे प्रस्तुत किया।“

डे्वहल के शब्दों में ”सृजनात्मकता वह मानवीय योग्यता है जिसके द्वारा वह किसी नवीन रचना या विचारों को प्रस्तुत करता है।’’

ई0 पी0 टॉरेन्स (1965) के अनुसार-’’सृजनशील चिन्तन अन्तरालों, त्रुटियों, अप्राप्त तथा अलभ्य तत्वों को समझने, उनके सम्बन्ध में परिकल्पनाएं बनाने और अनुमान लगाने, परिकल्पनाओं का परीक्षण करने, परिणामों को अन्य तक पहुचानें तथा परिकल्पनाओं का पुनर्परीक्षण करके सुधार करने की प्रक्रिया है।’’ 

गिलफोर्ड के शब्दों में ‘‘सृजनात्मकता प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कुछ नया निर्मित होता है- विचार, वस्तु जिसमें पुराने तत्वों को नवीन तरीके से व्यवस्थिित किया जाता है, नवीन सृजन किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करता हो’’।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार-’’सृजनात्मकता नवीन रचना अथवा उत्पादन में अनिवार्य रूप से पाई जाती है।’’ 

क्रो व क्रो के अनुसार-’’सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।’’ कोल एवं 

ब्रूस के अनुसार-’’सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पाद के रूप में मानव मन की ग्रहण करने, अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवं क्रिया है।’’ 

सृजनशील व्यक्ति की विशेषताएं 

मनोवैज्ञानिकों ने सृजनशील व्यक्ति की विशेषताओं को समझने के लिए अनेक अध्ययन किये जिसमें मुख्य रूप से व्यक्तित्व परीक्षणों तथा जीवन के अनुभवों का प्रयोग किया गया। मेकिनन तथा उनके सहयोगियों ने वैज्ञानिकों, आविष्कारकों तथा विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों का अध्ययन करके कुछ गुणों का निर्धारण किया।
  1. कम बुद्धि वाले व्यक्तियों में सृजनात्मकता चिन्तन नहीं के बराबर होता है। 
  2. सृजनशील व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा वातावरण के प्रति संवेदना अधिक पायी जाती है।
  3. सृजनशील व्यक्तियों के विचारों तथा क्रियाओं में स्वतंत्रता देखी जाती है। 
  4. ये व्यक्ति किसी भी घटना, चीज व वस्तु को गंभीरता से नहीं होते है वरन् प्रत्येक कार्य को मनोविनोद से करते हैं। 
  5. सृजनशील व्यक्ति किसी भी विषय पर अधिक विचार व्यक्त करते है। 
  6. सृजनात्मकता व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों ज्यादा लचीलापन पाया जाता है। 
  7. सृजनात्मकता विचारको में हमेशा एक नवीन जटिल समस्या का समाधान करते हैं। 
  8. सृजनशील व्यक्ति अपनी इच्छाओं का कम से कम दमन करते हैं। ऐसे व्यक्ति इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि दूसरे व्यक्ति क्या सोचेंगे तथा वे अपनी इच्छाओं तथा आवेगों का आदर करते है। 
  9. सृजनशील व्यक्ति अपने विचारों को खुलकर अभिव्यक्त करते हैं तथा उन्हें तर्कपूर्ण तरह से प्रस्तुत करते हैं। 
  10. सृजनशील व्यक्ति रूढ़िवादी विचारों को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं।
  11. सृजनात्मकता व्यक्ति विभिन्न प्रकार की बाधाओं को दूर करते हुए धैर्यपूर्वक अपना कार्य करते हैं।
  12. सृजनात्मकता व्यक्तियों में अपने कार्य के प्रति आत्मविश्वास पाया जाता है ऐसे व्यक्ति लक्ष्य के प्रति संवेदनशील होते है।

सृजनात्मकता को बढ़ाने के उपाय 

प्रत्येक व्यक्ति में सृजनशील होने के गुण होते हैं परन्तु अच्छा वातावरण न मिल पाने के कारण इसका विकास नही हो पाता है। सृजनात्मकता को उन्नत बनाने के लिए आसवार्न ने विक्षिप्तकरण विधि को महत्वपूर्ण बताया है। इस विधि में व्यक्ति को अधिक से अधिक संख्या में नये-नये विचारों को देना होता है तथा अन्य लोगों के विचारों को भी संयोजित कर सकते हैं इसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को तथा एक दूसरे को प्रोत्साहित करता है। अनुसंधानों से यह पता चलता है कि विक्षिप्तकरण से विचारों की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में बढ़ोत्तरी होती है।

सृजनात्मकता को उन्नत बनाने के लिए गौर्डन द्वारा साइनेक्टिस विधि का प्रयोग किया गया है। इसमें सादृश्यता का प्रयोग किया गया है। मुख्य रूप से व्यक्तिगत सादृश्यता इस तरह की सादृश्यता में व्यक्ति को अपने आप को किसी परिस्थिति में रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे यदि आप यह चाहते हैं कि को खास मशीन ठीक ढंग से कार्य करे तो कल्पना करें कि खुदही वह मशीन है। 

प्रत्यक्ष सादृश्यता इसमें व्यक्ति को ऐसी चीजे पाने या खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो समस्या के समाधान में सहायता करता है। 

सांकेतिक सादृश्यता में वस्तुनिष्ठ अव्यक्तिक का प्रयोग करके सर्जनात्मकता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। 

कल्पनाचित्र सादृश्यता में व्यक्ति किसी घटना या वस्तु पर सामान्य सीमाओं से स्वतंत्र होकर कल्पना करता है। इन विधियों के उपयोग द्वारा उद्योग, व्यवसाय तथा शिक्षा के क्षेत्र में लोगों की सृजनात्मकता को बढ़ाया जाता है।

सृजनात्मकता के सिद्धांत

सृजनात्मकता को समझने के लिए मनोवैज्ञानिको ने कई सिद्धान्तो को प्रतिपादित किये जो निम्न हैं-

1. वंषानुक्रम का सिद्धांत

इस सिद्धान्त के अनुसार सृजनात्मकता का गुण व्यक्ति में जन्मजात होता है, यह शक्ति व्यक्ति को अपने माता-पिता के द्वारा प्राप्त होती है। इस सिद्धान्त के मानने वालों का मत है कि वंषानुक्रम के कारण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में सृजनात्मक शक्ति अलग-अलग प्रकार की और अलग-अलग होती है।

2. पर्यावरणीय सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक एराटी ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार सृजनात्मकता केवल जन्मजात नहीं होती बल्कि इसे अनुकूल पर्यावरण द्वारा मनुष्य में अन्य गुणों की तरह विकसित किया जा सकता है। इस सिद्धान्त के अन्य गुणों की तरह विकसित किया जा सकता है। 

इस सिद्धान्त के मानने वालो का स्पष्टीकरण है कि खुले, स्वतंत्र और अनुकूल पर्यावरण में भिन्न-भिन्न विचार अभिव्यक्त होते हैं और भिन्न-भिन्न क्रियाएं सम्पादित होती हैं जो नवसृजन को जन्म देती हैं। इसके विपरीत बन्द समाज में इस शक्ति का विकास नहीं होता।

3. सृजनात्मकता स्तर का सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक टेलर ने किया है। उन्होंने सृजनात्मकता की व्याख्या 5 उत्तरोत्तर के रूप में की है। उनके अनुसार कोई व्यक्ति उस मात्रा में ही सृजनशील होता है जिस स्तर तक उसमें पहुंचने की क्षमता होती है। ये 5 स्तर निम्न हैं-

  1. अभिव्यक्ति की सृजनात्मकता यह वह स्तर है जिस पर कोई व्यक्ति अपने विचार अबाध गति से प्रकट करता है इन विचारों का सम्बन्ध मौलिकता से हो, यह आवश्यक नहीं होता । टेलर के अनुसार यह सबसे नीचे स्तर की सृजनशीलता होती है।
  2. उत्पादन सृजनात्मकता इस स्तर पर व्यक्ति कोई नयी वस्तु को उत्पादित करता है। यह उत्पादन किसी भी रूप में हो सकता है। यह दूसरे स्तर की सृजनशीलता होती है।
  3. नव परिवर्तित सृजनात्मकता इस स्तर व्यक्ति किसी विचार या अनुभव के आधार पर नये रूप को प्रदर्शित करता है।
  4. खोजपूर्ण सृजनात्मकता इस स्तर व्यक्ति किसी अमूर्त चिन्तन के आधार पर किसी नये सिद्धान्त को प्रकट करता है।
  5. उच्चतम स्तर की सृजनात्मकता इस स्तर पर पहुंचने वाले व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में उच्चतम स्तर की सृजनात्मकता को प्रकट करता है।

4. अर्धगोलाकार सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक क्लार्क और किटनों ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार सृजनशीलता मनुष्य के मस्तिष्क के दाहिने अर्द्धगोले से प्रस्फुटित होती है एवं तर्क शक्ति मनुष्य के मस्तिष्क के बाएँ अर्द्धगोले से प्रस्फुटित होती है । इस सिद्धान्त के अनुसार सृजनात्मक कार्य व्यक्ति के मस्तिष्क के दोनों ओर के अर्द्धगोलो के बीच अन्त:क्रिया के फलस्वरूप होते हैं।

5.  मनोविष्लेषणात्मक सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक फ्रॉयड ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार सृजनशीलता मनुष्य के अचेतन मन में संिचत अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति के कारण आती है। अतृप्त इच्छाओ को शोधन करने से वे सृजनात्मक कार्य की ओर अग्रसर होते है।

सृजनात्मकता का मापन

सृजनात्मकता व्यक्ति का घनात्मक गुण है अत: मनोवैज्ञानिकों ने इसकी माप के लिए विभिन्न परीक्षण बनाये हैं। परन्तु सबसे प्रचलित टारेंस का परीक्षण है। सृजनात्मकता को मापने के लिए टारेन्स ने 1966 में एक परीक्षण बनाया जो अत्यन्त लोकप्रिय साबित हुआ। इस परीक्षण के दो भाग है - शाब्दिक भाग तथा आकृतिक भाग। शाब्दिक भाग के सात उपभाग है। प्रत्येक उपभाग अपने में पूर्ण है तथा सर्जनात्मकता का मापन करने में सक्षम है।

1. पूछना तथा अनुमान करना - इस उपभाग में व्यक्ति को एक तस्वीर या आकृति दी जाती है तथा उससे यह अनुमान लगाने को कहा जाता है कि यह आकृति किस तरह से तथा किन कारकों से बनी है तथा तस्वीर में आगे क्या होने वाला है। इस उपभाग को पूर्ण करने की समय 5 मिनट है।

2. कारण- इस उपभाग की समय सीमा भी 5 मिनट है इसमें एक तस्वीर दी गयी है जिसे देखकर एक कहानी लिखनी होती है।

3. उत्पादन उन्नति - इस उपभाग में 6 मिनट में व्यक्ति को दिये गये खिलौने से कुछ ऐसा करने का सुझाव देने को कहा जाता है जिससे वह कुछ अजूबा दिखायी दे।

4. अनुमानित परिणाम- इस उपभाग की समय सीमा 5 मिनट है।

5. असाधारण उपयोग - इसमें व्यक्ति से साधारण वस्तु जैसे टीन आदि के असाधारण उपयोग जो उसके मन में आ सकते हैं लिखने को कहा जाता है। इस उपभाग की समय सीमा 10 मिनट है।

6. असाधारण प्रश्न- इस उपभाग की समयसीमा 5 मिनट है। इसमें व्यक्ति को टीन के बक्से को देखकर जितने प्रश्न आते है उन्हें लिखना है।

7. मान लीजिए- इसमें व्यक्ति के सामने एक असम्भव स्थिति दी जाती है तथा यह पूछा जाता कि इस असम्भव स्थिति के उत्पन्न हो जाने पर क्या होगा। आकृति भाग में व्यक्ति की सृजनात्मकता के मापन के लिए तीन उपपरीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।
  1. आकृति बनाना- इसमें व्यक्ति को एक आकृति को बनाना है तथा उसका शीर्षक भी लिखना है।
  2. आकृति पूर्ण करना- इसमें 10 मिनट में दस अपूर्ण चित्रों को पूर्ण करना है साथ ही उसका शीर्षक भी लिखना है।
  3. सामान्तर रेखा- इसमें दस सामान्य रेखाओं के युग्म दिये जाते हैं जिसे आधार मानकर उसे पूर्ण करना है अथवा आकृति बनानी है।

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