भारत की पंचवर्षीय योजनाएं क्या है?

भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ भारत में आथिर्क नियोजन के लगभग छ: दशक पूरे हो चुके है। इन वर्षों में नियोजन के अन्तगर्त कितना आर्थिक विकास हुआ, क्या विकास के दर पयार्प्त है।? क्या विकास उचित दिशा में हो रहा है? इत्यादि बातों का अध्ययन हम यहां करेगें।

भारत की पंचवर्षीय योजनाएं 

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)

यह योजना 1 अप्रैल, 1951 से प्रारभं हुई। इस योजना का प्रारूप जुलाई, सन् 1951 में प्रस्तुत किया गया और इसे अंतिम रूप दिसम्बर सन् 1951 को अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित कर दी गई।

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) के उद्देश्य -
  1. देश में शुद्ध एवं विभाजन के फलस्वरूप उत्पन्न असंतुलन को ठीक करना।
  2. प्रत्यके क्षेत्र में सन्तुलित आर्थिक विकास करना, राष्ट्रीय आय व जीवन स्तर में वृद्धि करना।
  3. देश में उपलब्ध भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना।
  4. देश में आय, सम्पत्ति एवं अवसर की असमानता को दूर करना।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में व्यय- इस योजना में सावर्जनिक क्षेत्र के अन्तर्गत व्यय राशि 1960 करोड रूपये रही जबकि अनुमानित व्यय राशि 2378 करोड़ रूपये थी।

प्रथम पंचवर्षीय योजना की उपलब्धि-
  1. राष्ट्रीय आय में 18% एवं प्रति व्यक्ति आय में 11% की वृद्धि हुई। प्रति व्यक्ति उपभोग का दर 8% एवं विनियोग की दर 2-3% रही।
  2. 45 लाख लोगों को अतिरिक्त रोजगार प्रदान किया गया।
  3. 16 मिलियन एकड भूिम पर सिचांई की सुविधा का विस्तार किया गया। इस योजना में खाद्यान्न उत्पादन में 20% की वृद्धि हुई।
  4. औद्योगिक उत्पादन में वाषिर्क वृद्धि दर 8% की रही।
  5. 380 मील रेलवे लाईन बिछाई गई तथा 430 मील का नवीनीकरण किया गया।
प्रथम पंचवर्षीय योजना की कमियाँ-
  1. औद्योगिक क्षेत्रों पर केवल 4% परिव्यय कर इस क्षेत्र की अवहेलना की गई।
  2. योजना के दौरान 57-5 लाख लोगों को रोजगार उपलब्घ कराने का लक्ष्य था किन्तु 45 लाख लोगों को ही रोजगार उपलब्घ कराया जा सका।
  3. इस योजना में अनमुानित परिव्यय 2738 करोड़ रूपये था जबकि वास्तव में 1960 करोड निम्नांकित रूपये ही खर्च किये जा सके
  4. इस योजना में सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका। आर्थिक असमानता में वृद्धि देखी गई।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रेल 1956-31 मार्च 1961 तक) 

प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के लक्ष्य प्राप्त हो चुके थे अत: द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह अनुभव किया गया कि कृषि के स्थान पर भारी तथा आधारभूत उद्योगों का विकास किया जाए।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. राष्ट्रीय आय में 25% की वृद्धि ताकि तीव्र गति से देश के जीवन स्तर में वृद्धि की जा सके।
  2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना।
  3. देश में आय व सम्पत्ति की असमानता को दरू करना।
  4. देश में तीवग्र ति से औद्यागीकरण करना एवं आधारभतू भारी उद्यागेों के विकास पर विशेष रूप से ध्यान देना।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में परिव्यय- द्वितीय पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में 4800 करोड़ रुपये व्यय का लक्ष्य निर्धारित था किन्तु वास्तविक व्यय 4672 करोड़ रुपये हुआ।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में सन् 1960-61 की कीमतों पर राष्टी्रय आय में 19-5% की वृद्धि हुई। जनसख्ंया में भारी वृद्धि के कारण जिस अनुपात में राष्ट्रीय आय मे वृद्धि हुई प्रति व्यक्ति आय में नहीं हो पायी। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 8% रही।
  2. इस योजना में 210 लाख एकड़ अतिरिक्त भूति को सिंचाई उपलब्ध कराई गई।
  3. इस योजना में रेल , सडक़ , परिवहन तथा बन्दरगाहों के विकास से सबंऔद्योगिकिधत अनके योजनाएं प्रारम्भ की गई।
  4. इस पंचवर्षीय योजना में आधारभूत उद्योग जैसे- कोयला, बिजली, भारी इंजीनियरिंग, लोहा एवं इस्पात, उर्वरक पर विशेष बल दिया गया। दुर्गापरु , भिलाई और राउरकेला के स्पात कारखाने चितरंजन रेल बनाने के कारखाने तथा इण्टीगल्र कोच फैक्ट्री इस योजना की विशेष उपलब्धि रही।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- इस योजना में कृषि विकास की उपेक्षा की गई। तीन इस्पात उद्योग स्थपित तो किए गये किन्तु उत्पादक लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका। विद्यतु की कमी प्रत्यके राज्य में बनी रही। यह योजना महत्वकांक्षी योजना के बावजूद असफसल रही।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रेल 1961 - 31 मार्च 1966 तक) 

दूसरी पंचवर्षीय योजना के अनुभवों के आधार पर इस योजना में उद्योगों के विकास के साथ-साथ कृषि उत्पादन के विस्तार हेतु अनके प्रयास किये गये राष्ट्रीय आय में 30% तथा प्रति व्यक्ति आय में 17% वृद्धि का लक्ष्य रखा गया। औद्योगिक क्षेत्र में 11% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था।

1. तीसरी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. राष्ट्रीय आय में प्रतिवर्ष 5% से भी अधिक की वृद्धि करना।
  2. आय व सम्पत्ति की असमानता को कम करना तथा अवसरों की समातना स्थापित करना।
  3. मानवीय शक्तियों का अधिकाधिक प्रयागे व रोजगार के अवसरों में वृद्धि।
  4. खाद्यान्न उत्पादन में आत्म निर्भरता प्राप्त करना।
  5. 10 वर्षों में देश की औद्योगीकरण की आवश्यकता को आंतरिक संसाधनों से पूरा करना।
तीसरी पंचवर्षीय योजना में परिव्यय- ततृीय पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में 8577 करोड निम्नांकित रूपये वास्तविक व्यय किए गये

तीसरी पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि 2.5% वाषिर्क रही।
  2. खाद्यान्न उत्पादन में 2% की वाषिर्क वृद्धि हुई।
  3. औद्योगिक उत्पादन में 5.7% की वाषिर्क वृद्धि दर्ज की गई।
  4. 120 लाख लोगों को रोजगार उपलब्घ कराया गया।
तीसरी पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- राष्ट्रीय आय, आद्यान्न उत्पादन एवं औद्योगिक उत्पादन की गति धीमी रही। राष्ट्रीय आय में वृद्धि का लक्ष्य 5.6% था किन्तु 2.5% का वृद्धि दर रहा। इसी तरह खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 6% था किन्तु 2% ही प्राप्त किया जा सका। युद्ध एवं सूखा पडऩे के कारण इस योजना को अनके समस्याओं का सामना करना पडा़ । जिसका आर्थिक विकास पर प्रति कलू प्रभाव पड़ा।

वार्षिक योजनाएं (1 अप्रेल 1966 - 31 मार्च 1969 तक) भारत-पाक सघंर्ष एवं सूखा, मुदा्र अवमूल्यन, कीमतों में वृद्धि आदि कारणों से चौथी पंचवर्षीय योजना स्थगित करना पड़ा और उसके स्थान पर एक-एक वर्ष की तीन वार्षिक योजनाएं बनाई गई। इन वार्षिक योजनाओं में कुल 6625 करोड़ रूपये परिव्यय सार्वजनिक क्षेत्रों में किया गया। इन तीनों वाषिर्क योजनाओं में विशेष प्रगति नहीं हुई। राष्ट्रीय आय में क्रमश: 1.1%, 9% तथा 3% की वृद्धि हुई। आर्थिक मंदी के कारण औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि नहीं हो सकी।

चौथी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1969 - 31 मार्च 1974 तक) 

चौथी पंचवर्षीय योजना का प्रारूप अगस्त सन् 1966 में तैयार किया गया था, किन्तु मंदी व सूखा के कारण योजना स्थगित करना पड़ा। बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी आदि समस्याओं से निपटने के लिए तीसरी पंचवर्षीय योजना की तुलना में दगु ने से भी अधिक आकार रखा गया। चौथी योजना 1 अप्रले 1969 से 31 मार्च 1974 तक के लिए निर्धारित की गयी।

चौथी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. देश में स्थिरता की परिस्थितियां निमिर्त करके विकास की रूचि उत्पन्न करना।
  2. कृषि उत्पादन में उच्चवचनों व विदेषी सहायता की अनिश्चितता से राष्ट्र को सुरक्षित रखना।
  3. कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ बफर स्टॉक का निर्माण करना तथा मूल्यों में स्थिरता लाना।
  4. देश में सामाजिक व आथिर्क प्रजातंत्र की स्थापना करना।
  5. भूमिहीन कृषकों को कृषक वर्ग में परिवर्तित करना।
  6. 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की सुविधा प्रदान करना।
  7. बकैं ोऔद्योगिक पर सामाजिक नियंत्रण।
  8. पंचायती राज की स्थापना करना।
  9. सार्वजनिक उपक्रमों को प्रबंध व्यवस्था में पनुर्गठन करना।
चौथी पंचवर्षीय योजना में परिव्यय- चौथी पचं वषीर्य योजना में सावर्ज निक क्षेत्र के अन्तर्गत मलू व्यय की राशि 15902 करोड निम्नांकित रूपये रखी गयी थी किन्तु वास्तविक व्यय 15779 करोड निम्नांकित रूपये का रहा।

चौथी पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. सन् 1960-61 की कीमतों पर राष्ट्रीय आय में 3.3% तथा प्रति व्यक्ति आय में 1.2% की वृद्धि हुई।
  2. इस योजना में खाद्यान्न उत्पादन 10.8 करोड़ टन का रहा जबकि लक्ष्य 12.9 करोड निम्नांकित टन का था।
  3. औद्योगिक उत्पादन में 4.2% की ही वृद्धि हो सकी जबकि लक्ष्य 7.7% का था।
  4. 1.4 करोड़ लोगों को अतिरिक्त रोजगार उपलब्घ कराया गया था जबकि 4 करोड निम्नांकित लोगों के बरे ोजगार होने का अनुमान था। 
  5. भुगतान सन्तुलन की स्थिति सन्तोषजनक थी।
चौथी पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- चतुर्थ पंचवर्षीय योजना अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में कोसों दूर था। जिसका कारण सन् 1971 का पाकिस्तान आक्रमण, बगलादेश के शरणाथिर्यों की समस्या रहा।

पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1974 - 31 मार्च 1978 तक) 

देश में सरकार परिवर्तित हो जाने के फलस्वरूप पाचंवी औद्योगिक पंचवर्षीय योजना एक साल पूर्व समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार योजना की अवधि सन् 1974-1978 तक की रही। पाचंवी औद्योगिक पंचवर्षीय योजना के दो मुख्य लक्ष्य थे (i) गरीबी हटाओ, (ii) आर्थिक आत्मनिर्भरता।

पांचवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. राष्ट्रीय आय में 5.5% तथा प्रति व्यक्ति आय में 3.3% वार्षिक दर से वृद्धि करना।
  2. न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम पर जोर दिया गया।
  3. उचित मूल्यों पर अनिवार्य उपभागे की वस्तुएं कम से कम निधर्न वर्ग को उपलब्घ कराने के लिए सरकारी वसूली तथा वितरण।
  4. एक सुखमय तथा न्याय संगत आय-मजदूरी कीमत सन्तुलन की स्थापना।
  5. विदेषी सहायता पर निभर्र ता न्यनूतम करना।
पांचवीं पंचवर्षीय योजना में परिव्यय- इस योजना में वास्तविक परिव्यय 39426 करोड़ रूपये का रहा जबकि लक्ष्य 39322 करोड निम्नांकित रूपये का था।

पांचवीं पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि 3.7% का रहा जबकि लक्ष्य 4.37% का था।
  2. खाद्यान्न उत्पादन 12.6 करोड निम्नांकित टन पहचुं गया जबकि लक्ष्य 12.5 करोड़ टन का था।
  3. औद्योगिक वृद्धि दर सन् 1976 में 10.6% रही जोकि 1977 में 5.3% हो गयी।
  4. यद्यपि पाचं वीं योजना में नियार्त में वृद्धि हुई किन्तु प्रथम दो वर्षों में व्यापार घाटा 2400 करोड निम्नांकित रूपये का रहा। 1975-76 में व्यापार सन्तलु न में 72 करोड़ रूपये का रहा किन्तु 1975-76 में ही पनु : 690 करोड निम्नांकित रूपये का घाटा रहा।
पांचवीं पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- पांचवीं योजना चार वर्षों के दारै ान आसै त वृद्धि दर 3.9% रही। इस प्रकार संशोधित पांचवीं योजना का 4.4% का वाषिर्क वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त न हो सका। समान्य कीमत स्तर में 34.5% तथा उपभोक्ता कीमत निर्देशांक में 35.2% की वृद्धि हुई। अत: गरीब वर्ग की वास्तविक आय में वृद्धि नहीं हुई।यह योजना आपात काल के प्रारम्भ के समय में काफी सफल रही किन्तु बाद में यह सफलता बनी न रह सकी।

छठवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1980-31 मार्च 1985 तक) 

विद्यमान परिस्थितियों के अन्तगर्त उत्पन्न समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए 1978-83 की अवधि के लिए एक परिभ्रमण योजना बनाया गया जिसे छठी योजना कहा गया। किन्तु जनता सरकार के गिरने पर कांग्रेस की सरकार ने इस योजना को समाप्त कर 1980-85 की अवधि के लिए अपनी छठी योजना प्रारम्भ की। छठी योजना के मुख्य लक्ष्य थे- (i) बेरोजगारी तथा अर्द्ध बेरोजगारी को दूर करना,

छठवीं पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. छठी योजना में विकास दर लक्ष्य 5.2% से अधिक 5.4% वार्षिक रही। प्रति व्यक्ति आय में 3.2% की वृद्धि हुइ।
  2. इस योजना में कृषि उत्पादन बहुत अच्छा रहा। कछु फसलों में तो लक्ष्य से भी अधिक रहा।
  3. औद्योगिक वृद्धि दर 5.5% वार्षिक रहा जो की निर्धारित लक्ष्य से 1.5% कम रहा।
  4. इस योजना में 4.3% की दर से रोजगार में वाषिर्क वृद्धि दर्ज किया गया।
  5. वाणिज्यिक ऊर्जा में 12% वार्षिक वृद्धि हुई जबकि तेल उत्पादन का लक्ष्य 13% रखा गया था।
छठवीं पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- छठी योजना देश के विकास, आत्म निर्भरता तथा समाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने मे सफल रही है वहीं गरीबी, रोजगार, कीमत वृद्धि आधारभूत उद्योगों के उत्पादन लक्ष्य से पीछे रही है। कलु मिलकर यह एक सफल योजना रही है।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1985-31 मार्च 1990 तक) 

राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा सातवीं पंचवर्षीय योजना का प्रारूप 9 नवम्बर सन् 1985 को स्वीकृत किया गया। इस योजना का मुख्य लक्ष्य था- “रोटी काम तथा उत्पादन।”

सातवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य -
  1. गरीबी करम करना।
  2. उत्पादन बढ़ाना।
  3. अधिक रोजगार का अवसर प्रदान करना।
  4. ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को अपनाना।
  5. समाज सवेाओं में उन्नति करना।
सातवीं पंचवर्षीय योजना का परिव्यय- सातवी औद्योगिक पंचवर्षीय योजना के अन्तगर्त सावर्ज निक क्षेत्र में 180000 करोड़ रूपये व्यय का प्रावधान था। लेकिन वास्तविक व्यय 218730 करोड़ रूपये का हुआ।

सातवीं पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. सातवीं योजना में राष्ट्रीय आय में 5.8% एवं प्रति व्यक्ति शुद्धराष्ट्रीय उत्पादन में 3.6% की सकारात्मक औसत वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई।
  2. चावल, तिलहन, गन्ना के ससो औद्योगिक धातु लक्ष्य प्राप्त करते हएु कृषि उत्पादन निर्देशांक में 4.2% प्रतिवर्ष की औसत वृद्धि हुई।
  3. आद्यैागिक उत्पादन के 8.3% के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया।
  4. सकल घरेलू पूजीं निर्माण की दर 20.1% से बढक़र 23.9% दर्ज की गई। सकल घरेलू बचत 18.7% से बढ़कर 21.1% हो गयी।
सातवीं पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- इस योजना में 28457 करोड निम्नांकित रूपये घाटे की वित्त व्यवस्था की गयी जबकि लक्ष्य 14000 करोड़ रूपये का ही था जिसका कीमतों पर बुरा प्रभाव पड़ा। 54204 करोड़ रूपये व्यापार शेष का घाटा भुगतान शेष की असंतोषजनक स्थिति को प्रदशिर्त करता है। फलस्वरूप कीमत में वृद्धि, बेरोजगारी निधर्न ता आदि की समस्या निरन्तर बनी रही।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1992 - 31 मार्च 1997 तक)

आठवी औद्योगिक पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, सन् 1990 को प्रारभ होनी थी किन्तु केन्द्र में सत्ता परिवतिर्न के कारण यह योजना 1 अप्रैल, सन् 1992 से प्रारंभ हुई और 31 मार्च, सन् 1997 तक चली।

आठवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. 15 से 35 वर्ष की आयु समूह के लोगों के बीच निरक्षरता उन्मूलन तथा प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण।
  2. शताब्दी के अंत तक पूर्ण रोजगार प्राप्त करना।
  3. स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध कराना तथा मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना।
  4. कृषि का विकास व विविधीकरण ताकि निर्यात के लिए अतिरक्ति प्राप्त की जा सके
  5. जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी योजना तैयार करना।
आठवीं पंचवर्षीय योजना का परिव्यय- आठवीं योजना में 798000 करोड़ रूपये व्यय का अनुमान था जिसमें से सावर्ज निक क्षेत्र में 361000 करोड निम्नांकित रूपये का अनुमान था किन्तु वास्तविक परिव्यय 434100 करोड निम्नांकित रूपये का रहा।
  1. इस योजना में विकास दर 6.8% तथा प्रति व्यक्ति आय 4.9% औसत वृद्धि रही जबकि विकास दर का लक्ष्य 5.6% रखा गया था।
  2. औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 1992-93 में 2.3% से बढक़र 1996- 97 में 5.6% पहंचु गयी।
  3. इस योजना में 17667 मेगावाट अतिरिक्त विद्युत क्षमता का सृजन किया गया।
  4. घरेलू बचत तथा निवेश का दर क्रमश: 24.4% तथा 25.7% का रहा जबकि लक्ष्य क्रमश: 21.6% तथा 23.2% का था।
  5. खाद्यान्न उत्पादन 19.9 करोड निम्नांकित टन का रहा जबकि लक्ष्य 19.2 करोड निम्नांकितटन का था। जिसका कारण गेहँू का उत्पादन लक्ष्य से अधिक होना था।
आठवीं पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- आठवीं पंचवर्षीय योजना में आधारभूत संरचना जैसे कोयला, पेटा्रेिलयम, विद्युत उत्पादन के लक्ष्य नही औद्योगिक प्राप्त किये जा सके जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पडा़ । रोजगार सृजन की गति धीमी रही, कीमतों में लगातार वृद्धि आथिर्क विकास में रूकावट बनी रही।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1997- 31 मार्च 2002 तक) 

संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा निर्मित नौवीं योजना के प्रारूप में आंशिक संशोधन करते हुए बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने नौवीं योजना को स्वीकृति प्रदान की। नौवीं औद्योगिक योजना का मुख्य लक्ष्य न्यायपूर्ण वितरण और समानता के साथ विकास करना था।

नौवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. गरीबी उन्मूलन की दृष्टि से कृषि व ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
  2. महिलाओं तथा सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों अनुसूचित जाति औद्योगिक अनुसूचित जन जातियों एवं अन्य पिछड़ी जातियों व अल्पसंख्यकों को शक्ति प्रदान करना जिससे की सामाजिक परिवर्तन लाया जा सके।
  3. पंचायती राज व स्वयं सेवी संस्थाओं को बढ़ावा देना।
  4. समाज को मूलभूत सुविधाएँ- स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, आवास सुविधा प्रदान करना।
  5. मूल्यों में स्थायित्व लाना।
  6. सभी वर्ग के लिए भोजन व पोषण की सुविधा सुनिश्चित करना।
  7. आम सहभागिता से विकास प्रक्रिया की पयार्व रणीय क्षमता सुनिश्चित करना।
नौवीं पंचवर्षीय योजना में परिव्यय- इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का परिव्यय 859200 करोड़ रुपये था।

नौवीं पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. घरेलू बचत की दर 23.3% की रही जबकि लक्ष्य 26.1% आकां गया था।
  2. इस योजना में विकास दर 5.4% ही रहा जबकि लक्ष्य 6.5% रखा गया था।
  3. कृषि विकास की दर लक्ष्य से 1.74% पीछे रहते हुए 2.06% रही।
  4. औद्योगिक विकास दर 8.3% के लक्ष्य से कम 5.6% रहा।
  5. सन् 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का 37.3% था जो की सन् 2000 में 27.01% रह गया।
  6. विद्युत उत्पादन क्षमता में 19015 मेगावाट अतिरिक्त उत्पादन क्षमता जोड़ा जा सका जो लक्ष्य का मात्र 47% है।
  7. सचं ार सवे ा के क्षेत्र में कवे ल 80% व्यय ही किया जा सका।
  8. आयात-निर्यात का दर क्रमश: 9.8% व 6.91% रहा।
नौवीं पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- नौवीं पंचवर्षीय योजना की मुख्य कमियां निर्धारित लक्ष्य प्राप्त न कर पाना है। कृषि विकास का लक्ष्य 3.9% था लेकिन 2.06% ही कृषि विकास दर रहा। विद्युत उत्पादन का लक्ष्य कवे ल 47% ही प्राप्त किया जा सका जबकि सार्वजनिक क्षेत्र का सर्वाधिक व्यय 25.9% इस क्षेत्र में व्यय किया गया।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 2002- 31 मार्च 2007 तक) 

दसवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रेल, 2002 से प्रारंभ हुई और 31 मार्च, 2007 तक चली। इस योजना का मुख्य लक्ष्य 8% वाषिर्क वृद्धि दर के साथ मानव विकास का था।

दसवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य -
  1. 8% आसैत की दर से प्रतिवर्ष विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  2. सन् 2007 तक निर्धनता अनुपात में 5% तक कमी लाना।
  3. लाभप्रद व उच्च कोटि के रोजगार की व्यवस्था करना।
  4. सभी बच्चों को 2003 तक स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराना।
  5. साक्षरता दर को योजना के अतं तक 75% तक बढ़ाना।
  6. ग्रामीणों को पये जल की सतत व्यवस्था के साथ 2007 तक प्रदूषित नदियों को साफ करना।
  7. शिशु मृत्यु दर में कमी लाना।
  8. सन् 2007 तक 25% तक वन क्षेत्र में वृद्धि करना।
दसवीं पंचवर्षीय योजना में परिव्यय- इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में कलु परिव्यय 1525639 करोड निम्नांकित रुपये रहा,

दसवीं पंचवर्षीय योजना की उपलब्धियां-
  1. इस योजना में वार्षिक वृद्धि दर 7.8% रहा जो कि लक्ष्य से मात्र 0.2% कम है। यह विकास दर सभी योजनाओं से अधिक है। यह विकास दर अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है।
  2. सन् 2006.07 में कृषि उत्पादन का सूचकांक (1981.82 के आधार पर) 197.1 रहा।
  3. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (1993-94 के आधार पर) 247.1 रहा। (4) सन् 2006.07 में आयात एवं निर्यात में वृद्धि क्रमशः 24.5% तथा 22.6% दर्ज की गई।
  4. सन् 2006.07 में प्रति व्यक्ति आय में 7.2% प्रति वर्ष की आसैत से वृद्धि हुई। प्रति व्यक्ति आय चालू मूल्यों पर 29642 रुपये थी। 
  5. सन् 2006.07 में कृषि उत्पादन 217.3 मिलियन दर्ज की गई।
  6. इस योजना में विदेशी ऋण भार में 57% वृद्धि हुई।
दसवीं पंचवर्षीय योजना की कमियाँ- इस योजना की मुख्य कमी यह रही कि कृषि उत्पादन के क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्य 4% वाषिर्क औसत वृद्धि के लक्ष्य को पाया नहीं जा सका। योजना के दारैान 2.3% औसत वाषिर्क वृद्धि दर्ज की गई।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 2007 - 31 मार्च 2012 तक)

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 2007 से प्रारंभ हो गई है। योजना के मसौदे को योजना आयोग के बैठक में 8 नवम्बर, 2007 को तथा केन्द्रीय मंत्री मण्डल की बैठक में 30 नवम्बर, 2007 को मंजूरी प्रदान की गई। राष्ट्रीय विकास परिषद ने बाद में 19 दिसम्बर, 2007 की बैठक में योजना का अनुमोदन कर दिया है। इस योजना में कुल परिव्यय 3644718 करोड निम्नांकित रूपये प्रस्तावित है जो कि दसवीं पंचवर्षीय योजना से दुगने से भी अधिक है। प्रस्तावित परिव्यय में केन्द्र की भागीदारी 2156571 करोड़ रुपये तथा शेष 1488147 करोड़ रुपये राज्यों की भागीदारी होगी।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य -
  1. 9% वार्षिक विकास दर के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  2. कृषि में 4% उद्यागे एवं सेवाओं में 9-11% की प्रतिवर्ष वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  3. बचत की दर सकल घरेलू उत्पाद के 34.8% तथा निवेश की दर 36.7% के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  4. निधर्नता अनुपात में 10% बिन्दु की कमी करना।
  5. रोजगार के 7 करोड निम्नांकित नये अवसर सृजित करना।
  6. प्राइमरी में ड्रॉप आउट दर 20% से नीचे लाना।
  7. साक्षरता दर को 85% तक पहचुंना।
  8. 2009 तक सभी को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति करना।
  9. योजना के अतं तक सभी गाँवों में विद्युतीकरण।
  10. शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मलू न व आधारिक सरं चना के विकास को प्राथमिकता।
  11. समाजिक आथिर्क विकास में महिला,औद्योगिक अल्पसंख्यक,औद्योगिक पिछड़े जाति, औद्योगिक अनुसूचित जातियों जन जातियों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
  12. देश में आठ नए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (राजस्थान, बिहार, हिमाचंल प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, उडी़सा, मध्य प्रदेश गुजरात एवं पजांब) सात नए प्रबंधकीय संस्थान (मेघालय, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, हरियाणा, जम्मू कश्मीर एवं तमिलनाडु) स्थापित करने की योजना है।

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