भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। जो निरंतर गति से
चलायमान है। आज के समय में विश्व के राष्ट्रों के बीच बढ़ते हुये आर्थिक
अंतर ने विकास के प्रयत्नों की आवश्यकता को और अधिक आवश्यक बना
दिया है। किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास का तात्पर्य नये दृष्टिकोण में
भौतिक कल्याण में वृद्धि गरीबी का निवारण असमानता और बेरोजगारी को कम
करने का प्रयत्न किया जा रहा है। आर्थिक विकास में प्रति व्यक्ति उत्पादन द्वारा
सामाजिक और आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन से है। विकासशील देशों में भारत सबसे तेजी से विकास कर रहा है।
भारत अन्य देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन देशों के समान बढ़ रहा है। भारत की
अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देष में
क्रांतिकारी परिवर्तन हुये है। नये-नये उद्योग स्थापित हुए है। जो विकास के क्षेत्र
में चलायमान हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र में वृद्धि औद्योगिक
विकास, बैकिंग सुविधाओं का विकास प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, बचत एवं
पूँजी-निर्माण में वृद्धि व नवीन उद्योगों की स्थापना, आदि नवीन विशेषताएँ है।
1. नियोजित अर्थव्यवस्था- भारत में विकास के लिये नियोजन की नीति
अपनायी गयी हैं। यह नियोजन 1 अप्रैल 1951 से चालू किया गया है।
अब तक बहुत सी विकास योजनाओं को क्रियान्वित किया गया हैं। जिससे
देष का विकास हुआ है।
2. सार्वजनिक क्षेत्र का विकासः- यहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्रों का विकास भी
लगातार हो रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत लोहा एवं इस्पात उद्योग,
सीमेन्ट उद्योग, रसायन उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, कोयला उद्योग व अनेक
उपभोक्ता उद्योग शामिल हैं।
3. बैंकिंग सुविधाओं का विकासः- यहाँ पर बैंकिंग सुविधाओं का बराबर विकास
हो रहा है। जून 1969 में भारत में व्यापारिक बैंकों की 8262 शाखाएँ थी,
लेकिन जून 2007 के अंत में इन शाखाओं की संख्या 72,165 हो गई
है।
4. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि- भारतीय अर्थव्यवस्था में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद
व्यक्ति के आय लगातार बढ़ रही है। वर्तमान की कीमतों के आधार पर यह
1999-2000 में 15,881 रुपये में बढ़कर 2006-2007 में 29ए642
रुपये हो गयी है। और 2016-17 में यह 1,03,870 रुपये थी।
2017-18 में वर्तमान मूल्य पर प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 1,12,835
रुपये पर पहुँचने का अनुमान है।
5. बचत एवं पूंजी निर्माण दरों में वृद्धि- बचतों व पूंजी निर्माण की दरों में भी
वृद्धि हो रही है। 1950-51 में बचते सफल घरेलू आय का 8.6 प्रतिषत
थी, जबकि 06-07 में 34.8 हो गयी। और यह वर्तमान समय में लगातार
बढ़ रही है।
6. सामाजिक सेवाओं का विस्तार- भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सामाजिक
सेवाओं का विकास हुआ है। शोध एवं तकनीकी शिक्षा में प्रगति हुई।
साक्षरता का स्तर है। व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रौद्योगिकीय शिक्षा के विद्यालयों
में महाविद्यालयों की संख्या बढ़ी हैं।
7. सामाजिक परिवर्तनः- देष में हो रहे विकास के फलस्वरूप यहाँ सामाजिक
परिवर्तन की गति तेज हुई हैं। रूढि़वादिता, जाति-प्रथा, बाल-विवाह तथा
छुआ-छूत जैसी बुराइया कम हुई हैं। सामाजिक राजनैतिकता तथा आर्थिक
क्रियाकलापों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ी हैं। महिलाओं में शिक्षा एवं
ज्ञान का स्तर बढ़ा हैं।
8. बाजार तंत्र- भारतीय अर्थव्यवस्था में एक मजबूत व्यापार तंत्र का विकास
हुआ है। यहाँ वस्तुओं के साथ-साथ श्रम एवं पूंजी के संगठित बाजार हैं।
वस्तु बाजार अधिकांश वस्तुओं की कीमतें माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा
निर्धारित होती है। साथ ही अनिवार्य वस्तुओं के अभाव में उनका वितरण
उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से किया जाता हैं। कृषकों को सुरक्षा
प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा अनेक उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य
निर्धारित किया जाता हैं।
9. गरीबी एवं बेरोजगारी दूर करने के उपायः- देष में गरीबी एवं बेरोजगारी दूर
करने के लिये विशिष्ट कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जैेस ग्रामीण रोजगार
गारण्टी कार्यक्रम समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम आदि।
10. नवीन प्रौद्योगिकीः- भारत में नित हो रहे नवीन खोजो से नवीन
प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। इसमें उत्पादन तकनीक में सुधार और
नये उद्योगों की स्थापना हो रही है। ‘विकास उद्योगों’ की स्थापना से
व्यावसायिक जीवन में गति शीलता बढ़ गई है तथा प्रबंधकों के समक्ष
प्रबंधकों के समक्ष प्रबंधन के नये-नये आयाम विकसित हो रहे है।
11. कृषि पर निर्भरता :- भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आधारित है। कृषि का कुल राष्ट्रीय आय में 30 प्रतिशत का योगदान है। विकसित देशों में राष्ट्रीय आय में योगदान 2 से 4 प्रतिशत है। वर्षा कृषि के लिये जल का प्रमुख स्त्रोत है। अधिकांश क्षेत्रों में पुरानी तकनीक से कृषि की जाती है।
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