मुद्रा के प्रकार l मुद्रा का वर्गीकरण l Types of Money

’’मुद्रा ऐसी वस्तु है, जिसे विस्तृत रूप में विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक ऋणों के अंतिम भुगतान तथा मूल्य के संचय के साधन के रूप में स्वतन्त्र एवं सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है।’’ 

ऐसी वस्तु मुद्रा हो सकती है, जिसे विनिमय के माध्यम एवं ऋणों के अंतिम भुगतान के रूप में सामान्य स्वीकृति प्राप्त है। इस आधार पर हम साख पत्रों जैसे चेक, विनिमय-पत्र आदि को मुद्रा के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते। इस प्रकार केवल धातु के सिक्के एवं कागजी मुद्रा को ही मुद्रा में शामिल किया जाता है।

मुद्रा की परिभाषा

विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा को अलग-अलग दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। जोकि इस प्रकार है-

क्राउथर के शब्दों में- ’’मुद्रा वह वस्तु है जो सामान्यतया विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग तथा सामान्यतया स्वीकार की जाती है (अर्थात्ऋणों के भुगतान के साधन के रूप में ) तथा साथ-साथ मूल्य के मापक और संचय का कार्य करती है।

वाकर के अनुसार- ‘‘मुद्रा वह है, जो मुद्रा का कार्य करे‘‘

हार्टल के अनुसार- ’’मुद्रा वह सामग्री है, जिससे हम वस्तुओं का क्रय-विक्रय कर सकते है।’’

टाॅमस के अनुसार- ’’मुद्रा के सभी सदस्यों के ऊपर एक प्रकार का अधिकार है, एक ऐसा आदेश अथवा वचन जिसे उसका स्वामी अपनी इच्छानुसार कभी भी पूरा कर सकता है। वह स्वयं साध्य नहीं है, अपितु अन्य व्यक्तियों की सेवाओं और वस्तुओं पर अधिकार जमाने का केवल साधन मात्र है।’’

गुस्ताव कैसल के अनुसार, ‘‘मुद्रा वह वस्तु है जो अन्य वस्तुओं का मूल्यांकन करने के लिये सामान्य मापक का कार्य करती है। मुद्रा का प्रमुख और मौलिक कार्य एक ऐसी गणना के आधार का कार्य करना है जिसके द्वारा विनिमय योग्य वस्तुओं के मूल्य निर्धारित किये जा सके।’’

कार्ल हैलफरिक ने तो मुद्रा की इतनी व्यापक परिभाषा दी कि समस्त मौद्रिक प्रणाली का सम्बन्ध लगभग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से स्थापित हो जाता है। उनके अनुसार ‘‘मुद्रा से हमारा आशय उन सब वस्तुओं एवं संस्थाओं से है, जो एक दिये हुये क्षेत्र तथा एक दी हुयी प्रणाली में, आर्थिक व्यक्तियों के बीच आर्थिक सहयोग में सुविधा पहुंचाती है।’’

प्रो. ऐली के अनुसार- ’’मुद्रा ऐसी वस्तु है, जो विनिमय के माध्यम के रूप में हस्तान्तरित होती है और ऋणों के अंतिम भुगतान के रूप में सामान्य रूप से ग्रहण की जाती है।’’

मुद्रा का वर्गीकरण

मुद्रा का वर्गीकरण कई तरह से किया गया है। मुद्रा को वर्गीकृत करने के लिये विभिन्न आधारों का प्रयोग किया जाता है:- (1) जिन वस्तुओं से मुद्रा बनाई जाती है (2) मुदा को जारी करने वाले की प्रकृति जैसे, सरकार, केन्द्रीय बैंक अथवा अन्य कोई। मुद्रा समाज में अनके रूपों में प्रचलित रही हैं तथा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा के वर्गीकरण की विभिन्न रीतियाँ अपनायी हैं। मुद्रा का वर्गीकरण है-

1. प्रकृति के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण

1. वास्तविक मुद्रा - किसी देश में सरकार द्वारा प्रचलित मुद्रा ही वास्तविक मुद्रा कहलाती है। अर्थात् वास्तविक मुद्रा वह होती है जो किसी देश में वास्तव में प्रचलित होती है। सिक्के तथा नोट वास्तविक मुद्रा होते हैं । वास्तविक मुद्रा तथा चलन में को अन्तर नहीं है। भारतवर्ष में 5 पेसै से लेकर 1000 रुपये तक के नोट सब वास्तविक मुद्रा के अन्तर्गत आते है।  कीन्स ने वास्तविक मुद्रा को दो भागों में बाँटा है-

i. पदार्थ मुद्रा - पदार्थ मुद्रा सदैव किसी न किसी धातु की बनी होती है आरै उसका अंकित मूल्य उसकी धातु की मुद्रा की कीमत (या यथार्थ मूल्य) के बराबर होता है। इसलिए इसका सचंय कर लिया जाता है।

ii. प्रतिनिधि मुद्रा - प्रतिनिधि मुद्रा चलन में होती है किन्तु आवश्यक रूप से धातु की नहीं होती है। प्रतिनिधि मुद्रा प्रचलन करते समय उसके पीछे शत-प्रतिशत स्वर्ण-कोष रखा जाता है जिसका वह प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए प्रतिनिधि मुद्रा में क्रय शक्ति का संचय नहीं किया जा सकता है।

2. हिसाब की मुद्रा - हिसाब की मुद्रा से आशय, उस मुद्रा से होता है जिसमें सभी प्रकार के हिसाब-किताब रखे जाते है। इसी मुद्रा में ऋणों की मात्रा, कीमतों एवं क्रय-शक्ति को व्यक्त किया जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि देश की वास्तविक मुद्रा ही हिसाब-किताब की मुद्रा हो। संकटकाल में ये दोनों अलग-अलग हो सकती है। 

जेसै - प्रथम महायुद्ध के पश्चात (सन् 1923) जर्मनी में वास्तविक मुद्रा तो मार्क थी, किन्तु हिसाब-किताब की मुद्रा अमेरिकी डालर या फ्रंके थी। इसका कारण यह था कि जर्मन मार्क की तुलना में इन मुद्राओं का मूल्य अधिक स्थिर थे प्राय: प्रत्येक देश की वास्तविक मुद्रा तथा हिसाब-किताब की मुद्रा एक ही होती है। 

जैसे - भारत में रुपया और अमेरिका में डालर वास्तविक मुद्रा भी है और हिसाब-किताब की मुद्रा भी।

2. वैधानिक मान्यता के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण

1. विधि ग्राह्य मुद्रा - यह वह मुद्रा है जो भुगतान के साधन के रूप में जनता द्वारा स्वीकार की जाती है। को भी व्यक्ति भुगतान के रूप में इसे स्वीकार करने से इनकार रहीं कर सकता है और यदि वह एसेा करता है, तो सरकार उसको दण्डित कर सकती है। इसीलिए इस विधि ग्राह्य मुद्रा कहते है। विधि ग्राह्य मुद्रा दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

1. सीमित विधि ग्राह्य मुद्रा - यह वह मुद्रा है जिसको एक निश्चित सीमा तक ही स्वीकार करने के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य किया जा सकता है। इस निश्चित सीमा में अधिक मुद्रा लेने से व्यक्ति इनकार कर दे तो न्यायालय की शरण लेकर उसको बाध्य नहीं किया जा सकता। जैसे- भारत में 5 पैसे से लेकर 25 पैसे तक के सिक्के केवल 25 रुपये तक ही विधि ग्राह्य है। अत: यदि किसी व्यक्ति को इन सिक्कों की 25 रुपये से अधिक की रजे गारी दी जाती है तो वह इसे अस्वीकार कर सकता है। हाँ वह 25 रुपये तक इन सिक्कों को स्वीकार करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है।

2. असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा - यह वह मुद्रा है जिसे को भी व्यक्ति किसी भी सीमा तक (एक बार म) भुगतान के रूप में स्वीकार करने के लिए बाध्य है। यदि को व्यक्ति असीमित मात्रा में इसे स्वीकार करने से इनकार कर दे तो उसके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है तथा उसको दण्डित किया जा सकता है। जैसे -भारत में 50 पैसे से लेकर 1000 रुपये तक के नोट असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा है।

 
3. ऐच्छिक मुद्रा यह वह मुद्रा है जिसे व्यक्ति प्राय: अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेता है, किन्तु उसके अस्वीकार करने पर कानून द्वारा उसे इस मुद्रा को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 

जैसे- चेक, हुण्डियाँ, विनिमय-पत्र इत्यादि ऐच्छिक मुद्रा कहा जा सकते हैं ।

3. पदार्थ के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण

1. धातु-मुद्रा - यदि मुद्रा धातु की बनी होती है, तो उसे धातु-मुद्रा या सिक्का कहते हैं । प्राचीन समय में धातु-मुद्रा विशेष रूप से चलन में थी। प्रारम्भ में प्राय: धातु के टुकडा़ें पर राजा, महाराजा या नवाब का का ठप्पा या चिन्ह अंकित कर दिया जाता था, किन्तु वर्तमान में एक निश्चित आकार-प्रकार एवं तौल वाली मुद्रा जिस पर राज्य का वैधानिक चिन्ह अंकित होता है, धातु-मुद्रा कहलाती है। धातु-मुद्रा में कौन-सी धातु कितनी मात्रा में हागेी ? यह कानून द्वारा निधार्रत किया जाता है। धातु मुद्रा दो प्रकार की होती है।

i. प्रामाणिक सिक्का - प्रामाणिक सिक्का को प्रधान, पूर्णकाय तथा सवार्गं मुद्रा भी कहते है। ये सिक्के प्राय: चाँदी या सोने के बनाये जाते हैं जो कानून द्वारा निश्चित वजन तथा शुद्धता के होते हैं ।

ii. सांकेतिक सिक्का - इसे प्रतीक मुद्रा के नाम से जाना जाता है। सांकेतिक मुद्रा , वह मुद्रा होती है जिसका वाह्य मूल्य एवं आंतरिक मूल्य बराबर होता है। यह मुद्रा प्राय: घटिया धातु की बनी होती है।
2. पत्र-मुद्रा - कागज नोटों के रूप में निर्गमित मुद्रा को ‘पत्र-मुद्रा ‘ कहा जाता है। पत्र-मुद्रा पर किसी सरकारी अधिकारी अथवा केन्द्रीय बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते है। अलग-अलग नोटों का आकार एवं रंग अलग-अलग निधार् िरत किया जाता है तथा कागज के नोटों पर नम्बर भी अंकित रहता है। 

भारत में 1 रुपये का नोट भारत सरकार द्वारा निर्गमित किया जाता है, जिस पर वित्त मंत्रालय के सचिव के हस्ताक्षर होते है। तथा 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 एवं 1000 रुपये के नोटों का निर्गमन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है। इन नोटों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं । पत्र-मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

i. प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा - जब निगरिमत पत्र-मुद्रा के पीछे ठीक इसके मूल्य के बराबर सोना व चाँदी, आरक्षित निधि रूप में रखे जाते है। तब इस मुद्रा को प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहा जाता है। 

ii. प्रादिष्ट पत्र-मुद्रा - यह भी पत्र-मुद्रा का ही एक रूप है। प्रादिष्ट मुद्रा प्राय: संकटकालीन स्थिति में निर्गमित की जाती है। इसीलिए इसे कभी-कभी संकटकालीन मुद्रा भी कहा जाता है। प्रथम महायुद्ध के प्रारम्भ (सन् 1914) में इसे अस्थायी आधार पर जारी किया जाता था, किन्तु अब यह स्थायी रूप धारण कर चुकी है। प्रादिष्ट मुद्रा के पीछ े किसी भी प्रकार का सुरक्षित कोष नहीं रखा जाता है और न ही सरकार पत्र-मुद्रा को धातु में परिवतिर्त करने की गारण्टी ही देती है। 

प्रादिष्ट मुद्रा का एक उदाहरण, अमेरिकी में गृहयुद्ध के दौरान ग्रीनवैक्स नामक मुद्रा का जारी करना है। इसी प्रकार, प्रथम महायुद्ध के पश्चात जमर्नी में भी कागजी मार्क मुद्रा जारी की गयी थी जो एक प्रकार की प्रादिष्ट मुद्रा ही थी।

प्रादिष्ट मुद्रा इसलिए अच्छी मानी जाती है क्याेिक इसमें संकटकालीन परिस्थिति में बहुमूल्य धातुओं का कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु जब सरकार इस प्रकार की पत्र-मुद्रा जारी करती है तो इससे अत्यधिक मुद्रा -प्रसार का भय बना रहता है, जिससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। 

प्रादिष्ट मुद्रा इसलिए अच्छी मानी जाती है क्याेिक इसमें सकंटकालीन परिस्थिति में बहुमूल्य धातुओं का कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु जब सरकार इस प्रकार की पत्र-मुद्रा जारी करती है तो इससे अत्यधिक मुद्रा -प्रसार का भय बना रहता है, जिससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है।

4. विदेशी विनिमय के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण

विदेशी विनिमय के आधार पर मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

1. सुलभ मुद्रा- यदि किसी देश की मुद्रा की माँग की तुलना में मुद्रा की पूर्ति अधिक हो और जनता की माँग पर ऋण (मुद्रा) सरलता से उपलब्ध हो रहे हो तो उस देश की मुद्रा को सुलभ मुद्रा कहा जायेगा।

2. दुर्लभ मुद्रा -  यदि बाजार में मुद्रा की पूर्ति की तुलना में माँग में लगातार वृद्धि होती जा रही हो तो उस मुद्रा को दुर्लभ मुद्रा कहा जाता है।

5. कीमत अथवा ब्याज के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण

कीमत अथवा ब्याज के आधार पर मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

1. सस्ती मुद्रा - यदि मुद्रा कम कीमत पर अथवा नीची ब्याज की दरों पर ऋण के रूप में उपलब्ध हो रही हाे ताे उसे सस्ती मुद्रा कहा जाता है।

2. महँगी मुद्रा - यदि मुद्रा बहुत अधिक कीमत पर ऊँची ब्याज दरों पर उपलब्ध हो तो उसे महँगी मुद्रा कहा जाता है।

संदर्भ -
  1. Dr. J.C. Pant and J.P. Mishra - Economics, Sahitya Bhavan Publication, Agra.
  2. Dr. TT Sethi - Monetary Economics, Laxminarayan Agrawal, Agra.
  3. Dr. TT Sethi - Macroeconomics
  4. Dr. M. L. Jhingan - Monetary Economics

6 Comments

  1. इनके लिए धन्यवाद🙏💕,
    परन्तु इसमें परिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र मुद्रा एवं आपरिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र मुद्रा नहीं दी गई है|

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