ठोस अवस्था के गुण || ठोस अवस्था का वर्गीकरण

पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसमें अवयवी कण (अणु, परमाणु आयन आदि।) परस्पर अत्यन्त प्रबल आर्कशण द्वारा जुडे होते है। 
  1. आकार एवं आयतन निश्चित रहते है
  2. घनत्व, गलनांक क्वथनांक के मान उच्च होते है। तथा संपीड़यता, विसरणशीलता लगभग नगण्य होती है ठोस अवस्था कहलाती है।

ठोस अवस्था के गुण

ठोस अवस्था के गुण बताइए -
  1. विधुतीय गुण
  2. चुंबकीय गुण
  3. परावैधुत गुण

1. विधुतीय गुण

ठोसों में विघुती्य गुण, इलेक्ट्रॉनों या धन छिद्रों की गति के द्वारा अथवा आयनों की गति के द्वारा होता है। धन छिद्रों या इलेक्ट्रॉनों की गति को इलेक्ट्रॉनिक चालकता (Electrical conductivity) तथा आयनों की गति को आयनिक चालकता (Ionec conductivity) कहते है। 

आयनों अथवा घनात्मक छिद्रों में चालकता इलेक्ट्रॉनिक दोश के कारण होती है। इलेक्ट्रॉनों से चालन को n- चालन तथा धन छिद्रों में से चालन को P चालन कहते है। शुद्ध आयनिक ठोस जहाँ चालन केवल आयनों की गति द्वारा होता है विघुत् उदासीन होते है, इनमें से गलित या विलयन अवस्था में ही विघुत् प्रवाहित हो सकती है। विघुत् चालकता के आधार पर ठोस तीन प्रकार के होते हैं-

1. सुचालक (Conductor)- इनमें विघुत्धारा का अधिकतम प्रवाह हो सकता है। इनकी चालकता 108 ओम.1 सेमी.1 कोटि की होती है। उदाहरण- धातुएँ (जैसे- Al,Cu,Ag) विघुत्-अपघट्य, (जैसे- NaCl, H2SO4)

2. कुचालक (Non-Conductor)- इनमें प्रायोगिक रूप से विघुत् का प्रवाह नहीं होता है तथा इनकी विघुत चालकता 10-23 ओम.1 सेमी.1 कोटि की होती है। उदाहरण- अधातु में (जैसे-P,S) विघुत् अन अपघट्य (जैसे- यूरिया, सुक्रोज)

3. अर्द्धचालक (Semiconductor)-सामान्य ताप पर किसी अर्द्धचालक की विघुत् चालकता, सुचालक व कुचालक के मध्य (10-9 से 102 ओम 10.1 सेमी-1 कोटि) की होती है। पूरमशून्य ताप पर ये पूर्ण कुचालक होते है, परन्तु कमरे के ताप पर कुछ विघुत् धारा प्रवाहित कर सकते है। उदाहरण- Si, Ge आदि।
  1. अर्द्धचालकों की चालकता उनमें उपस्थित अशुद्धियों अथवा क्रिस्टल जालक में दोश के कारण होता है। 
  2. ताप में वृद्धि से इनकी चालकता बढ़ती है, जबकि धातुओं की चालकता घटती है। 
  3. अर्द्धचालकों के गुण, अशुद्धि की प्रकृति के आधार पर परिवर्तित होते है। अर्द्धचाजलक, ट्राँजिस्टरों में तथा प्रसारणीय मानकों में प्रकाश विघुत्ीय यंत्रो (Photoelectric devices) के रूप में प्रयुक्त होते है। 

2. चुंबकीय गुण

चुम्बकीय क्षेत्र में ठोस पदार्थ के व्यवहार के आधार पर इन्है। निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है- 

1. अनुचुम्बकीय पदार्थ (Paramagnetic Substance)- पे पदार्थ, जो बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। इन पदार्थों के परमाणु, अणुओं या आयनों में आयुग्मित इलेक्टॉन उपस्थित होते हैं । चुम्बकीय क्षेत्र से हटा लेने पर इनका चुंबकत्व समाप्त हो जाता है । उदाहरण- Ti24,Cu2+ आदि।

2. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ (Diamagnetic Substance)- वे पदार्थ, जो बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से प्रतिकर्शित होते हैं, प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। इन पदार्थों के परमाणु, अणु या आयनों में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते है। इन दोनों इलेक्ट्रॉनो का चुम्बकीय आघूर्ण एक-दूसरे के प्रभाव को निरस्त कर देता है। उदाहरण- NaCl, TiO2 , V2O5 आदि।

3. लौह चुम्बकिय पदार्थ (ferromagnetic substance)- वे पदार्थ जो ब्राहा्र चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा तेजी से आकर्षित होते है लौह चुम्बकीय पदार्थ कहलाते है इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनो की संख्या अधिक तथा संरेखन (Alignment) एक ही दिशा में होता है। चुम्बकीय क्षेत्र से हटा लेने पर भी ये चुम्कत्व दर्शाते रहते है। उदाहरण- Fe, Ni, Co आदि ।

4. प्रतिलौहचुम्बकीय पदार्थ (antiferromagnetic substance)- जब बराबर संख्या में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन विपरीत दिशा में संरेखित (aligned)होते है तेा उनके चुम्कीय आघूर्ण एक दूसरे को निरस्त कर देते है ऐसे प्रदार्थो को प्रतिलौहचुम्बकीय पदार्थ कहते है। उदाहरण- Fe2O3, MnO2, NiO आदि ।

5. लघु लौहचुंबकीय पदार्थ (ferrimgnetic substance)- जब अयुग्मित इलेक्ट्रॉनो की असमान संख्या विपरित दिषा में सरेखित (aaligned)होते है किन्तु परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य नहीं होता है ऎसे प्रदार्थो केा फैरी चुम्बकीय पदार्थ कहते है। उदाहरण- Fe3O4 आदि ।

3. परावैधुत गुण

किसी पदार्थ को स्थिर वैधुत क्षेत्र (electronic field)में रखने पर उस प्रदार्थ के अवयवो का धु्रवण हो जाता है इस प्रकार के ध्रुवण में इलेक्ट्रॉनो का विस्थापन धन प्लेट (+ve plate)की ओर तथा नाभिको का विस्थापन ऋण प्लेट (-ve plate) की ओर हो जाता है इसके परिणाम स्वरूप प्रदार्थ के अवयवो में द्धिध्रुव आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है। ये द्धिध्रुव (Dipole moment) विधुत क्षेत्र में स्वंय को इस प्रकार सरेखित कर लेते है कि क्रिस्टल में नेट (Net) द्धिध्रुव आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है । इसके विपरित द्धिधवो का संरेखण इस प्रकार से भी हो सकता है कि वे एक दूसरे के प्रभाव को नश्ट कर दे और नेट द्धिध्रुव आघुर्ण शून्य हो जाये। 

1. दाब विधुत क्रिस्टल (Piezoelectric Crystal)- ऐसे क्रिस्टल, जिन पर यांत्रिक विद्युत धारा उत्पन्न होती है, उन्हें दाब विद्युत क्रिस्टल तथा उत्पन्न विद्युत, पिजोइलेक्ट्रिसिटी कहलाती है। इस प्रकार के क्रिस्टल यांत्रिक विद्युत ट्रांसड्यूसर की तरह कार्य करते है, जिनका उपयोग रिकार्ड प्लेयरो में किया जाता है जहाँ वे दाब के प्रभाव से विद्युत सिंगनल उत्पन्न करते हैं। उदाहरण- क्वार्टज, रोशेल लवण आदि।

2. तापविद्युत् क्रिस्टल (Pyroelectric Crystal)- ऐसे क्रिस्टल जो गरम किये जाने पर क्षीण विद्युत् धारा उत्पन्न करते हैं उन्हें ताप विद्युत् क्रिस्टल तथा उत्पन्न विद्युत्, पायरोइलेक्ट्रिसिटी कहलाती है।

3. लौहविद्युत्ता (Antiferroelectricity)- कुछ दाब विद्यतु क्रिस्टलों में विद्युत् क्षेत्र की अनुपस्थिति में भी द्विध्रवों का स्थायी रूप से संरेखण रहता है, किन्तु बाह्य विद्युत् क्षेत्र से द्विध्रवों के दिक्विन्यास को विपरीत दिशा में बदला जा सकता है जिससे ध्रुवण की दिशा भी परिवर्तित हो जाती हैं । उदाहरण- पोटेशियम।

4. प्रतिलौहविद्युत्ता (Antiferroelectricity)- इन क्रिस्टलों में द्विध्रुवो का संरेखण एक के बाद एक विपरीत दिशाओं में होता हैं जिससे क्रिस्टल का नेट (Net) द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। उदाहरण- लैंड जिरकोनेट(PbZrO3)।

ठोस अवस्था का वर्गीकरण

अवयवी कणों की व्यवस्था के आधार पर ठोस पदार्थ को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
  1. क्रिस्टलीय ठोस 
  2. अक्रिस्टलीय ठोस
1. क्रिस्टलीय ठोस - वे ठोस जिनमें अवयवी कणों (जैसे अणु, परमाणु) का नियमित क्रम होता है क्रिस्टलीय ठोस कहलाते है। क्रिस्टलीय ठोस के निम्न गुण होते है।
  1. इनकी निश्चित ज्यामिति होती है।
  2. इन कणों के मध्य यथेष्ठ आकर्षक बल होता है।
  3. ये बल वाण्डर बल, स्थिर वैधुत आकर्षक बल, सहसंयोजक बन्ध या धात्विक बन्ध होते है।
  4. इनका गलनांक निश्चित होता है।
  5. ये विषम देशिक होते है।
उदाहरण- सामान्य लवण, ग्रेफाइट, हीरा, क्वार्ट्ज, कैल्साइट आदि क्रिस्टलीय ठोस के उदाहरण हैं।

2. अक्रिस्टलीय ठोस - अक्रिस्टलीय ठोस में अवयवी कणों (परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों) की कोई क्रमबद्ध संरचना नहीं होती। इनके गुण  हैं-
  1. इनकी कोई निश्चित ज्यामिति नहीं होती।
  2. यह ठोस समदैषिक (Isotropic) होते हैं। अर्थात् भौतिक गुण सभी दिशाओं में समान होता है।
  3. इन पदार्थों में कुछ सीमा तक सपींडय्ता तथा दृढ़ता भी पाई जाती हैं।
  4. इनका निश्चित गलनांक भी नहीं होता है। 
उदाहरण- काँच, सिलिका, प्लास्टिक आदि।

1 Comments

Previous Post Next Post