वायुमंडल की परतें एवं उनकी विशेषताएं

वायुमंडल की परतें एवं उनकी विशेषताएं

वायुमंडल में वायु की अनेक परतें हैं, जो घनत्व और तापमान की दृष्टि से एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। सामान्यत: यह धरातल से लगभग 1600 कि.मी. की ऊँचा तक फैला है। वायुमंडल के कुल भार की मात्रा का 97 प्रतिशत भाग लगभग 30 कि.मीकी ऊँचा तक विस्तृत है। वायुमण्डल में ऊँचाई के अनुसार उसकी बनावट बदलती जाती है। इसी प्रकार सौर ऊर्जा का अधिकांश भाग पहले पृथ्वी तल को गर्म करता है, अतः वायु की निचली परतों का तापमान वितरण इससे भी प्रभावित होता है। 

इसी प्रकार विभिन्न ऊँचाई पर वायु की परतें सौर ताप की विशेष गैसों को सोख लेती है। इसका प्रभाव भी वायु की संरचना पर पड़ता है। 

इसके अतिरिक्त, निचली परतों एवं उससे ऊँचाई की परतों में पाई जाने वाली गैसों का स्वरुप भी बदलता जाता है।

वायुमंडल की परतें एवं उनकी विशेषताएं

वायुमण्डल की परतों का वर्गीकरण दो प्रकार से हैं-
  1. रासायनिक बनावट के आधार पर,
  2. गैसों की उपलब्धि एवं विशेष घटनाओं के प्रभाव के आधार पर।
1. रासायनिक बनावट के आधार पर परतों का विभाजन - इस आधार पर वायुमण्डल को दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है-
  1. सममण्डल, एवं
  2. विषममण्डल।
(i) सममण्डल - सममण्डल की ऊँचाई 90 किलोमीटर तक है। इसमें गैसों की भौतिक व रासायनिक बनावट प्रायः समरुप रहती है। यहाँ की मुख्य गैसें नाइट्रोजन, आक्सीजन एवं कार्बन डाइ-आक्साइड हैं। ये मिलकर 99 प्रतिशत से अधिक भाग बनाती है। शेष 0.9 प्रतिशत में नियोन, हीलियम एवं जिनोन, आदि गैसे आती हैं। , धूल व अन्य विविध कण यहीं पाये जाते हैं। इसमें निचली परतें परिवर्तन या विक्षोभमण्डल, समतापमण्डल एवं मध्यममण्डल आते हैं।

(ii) विषममण्डल - विषममण्डल की बनावट जटिल है। इसकी ऊँचाई 90 किलोमीटर के पश्चात वायुमण्डल के शीर्ष भाग तक है। इसमें विशेष क्षेत्रीय परत में विशेष किस्म की सौर ऊर्जा से चार्ज गैसें पाई जाती हैं। यहाँ पर चार प्रकार
की ऐसी गैसों की चार परतें मिलती हैं। ये है-
  1. आण्विक नाइट्रोजन परत (200 किलोमीटर),
  2. आण्विक आक्सीजन परत (200 से 700 किलोमीटर),
  3. हीलियम परत (700 से 1,100 किलोमीटर) एवं
  4. आण्विक हाइड्रोजन परत (1,100 किलोमीटर से अधिक)।
इसमें सौर ऊर्जा से विविध ऊँचाई पर विशेष गैसें चार्ज होने से ये गैसें चुम्बकीय प्रभाव को जाग्रत रखने वाली होती है। इसी से ओजोन व आयन विकसित होती है। सौर ताप की उष्णता अधिक ऊँचाइयों पर विशेष मिलती है। इसी कारण यहाँ के तापमान भी अधिक ऊँचे रहते हैं। यहाँ पर ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ विरल गैसें ही पाई जाती हैं।

2. ऊँचाई के आधार पर परतों का विभाजन - सामान्यतः ऊँचाई पर जाने पर वायु हल्की होती जाती है फिर भी सूर्यातप से पहले पृथ्वी की सतह गर्म होती है, उसके पश्चात् वायुमण्डल की निचली परतें एवं उनसे ऊपर की परतें क्रमशः गर्म होती हैं। यही नहीं, वायुमण्डल में ओजोन, आयन, धूल के कण, जल-वाष्प, ज्वालामुखी गैस एवं अन्य कारणों के प्रभाव से न तो सभी ऊँचाइयों पर वायुमण्डल की संरचना समान ही है और न ही उनका ताप-वितरण की दृष्टि से एक-सा प्रभाव दिखाई देता है। अतः अपनी विभिन्न विशेषताओं के आधार पर एवं वायुमण्डल की बदलती हुई संरचना के अनुसार उसे निम्न परतों में बाँटा जा सकता है-
  1.  क्षोभमंडल
  2.  समताप मंडल
  3.  मध्य मंडल
  4.  आयन मंडल
  5.  बाह्य मंडल
1. क्षोभमंडल - यह वायुमण्डल का सबसे निचला भाग है। इसकी औसत ऊँचाई 12 किलोमीटर है। भूमध्य रेखा पर इसकी ऊँचाई 16 किलोमीटर तथा ध्रुवीय क्षेत्रों पर 6 से 9 किलोमीटर रह जाती है अर्थात् भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर इसकी ऊँचाई कम होती जाती है। इस मण्डल की वायु गर्म रहने का मुख्य कारण पृथ्वी से ताप का प्राप्त होना है। यहाँ जल-कण, जल-वाष्प, धूल-कण, आदि पाये जाते है। पार्थिव विकिरण की क्रिया भी होती है। यह मण्डल विकिरण, संचालन और संवहन की क्रिया द्वारा गर्म तथा ठण्डा होता रहता है। जैटस्ट्रीम पवनें निचले अक्षांशों में इसी मण्डल की ऊपरी सीमा पर चलती है। उपयुक्त कारणों एवं गतियों के प्रभाव से इस मण्डल में परिवर्तन की क्रिया सदैव घटित होती रहती है। इसी से इसको परिवर्तन मण्डल या विक्षोभ मण्डल नाम दिया गया
है। इस मण्डल में प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 सेण्टीग्रेड तापमान कम होता जाता है। 

2. समताप मंडल - यह मण्डल मध्य स्तर के बाद प्रारम्भ हो जाता है। इस मण्डल की क्षैतिज परतों के तापमान लगभग समान रहते है। क्षोभमंडल के ऊपर समताप मंडल स्थित है। क्षोम मंडल और समताप मंडल के बीच एक पतली परत है। जो दोनों मंडल को अलग करती है जिसे क्षोभसीमा कहते हैं। यह एक संक्रमण क्षेत्र है जिसमें क्षोभमंडल और समताप मंडल की मिली-जुली विशेषताएॅं पायी जाती हैं। समताप मंडल की धरातल से ऊँचा लगभग 50 किमी. है। इस परत के निचले भाग में 20 किमी. की ऊँचा तक तापमान लगभग समान रहता है। इसके ऊपर 50 किमी. ऊँचा तक तापमान क्रमश: बढ़ता है। इस परत के ऊपरी भाग में ओजोन परत होने के कारण ही तापमान बढ़ता है। इसमें वायु की गति क्षैतिज होती है। इसी कारण यह परत वायुयानों की उड़ानों के लिए आदर्श मानी जाती है।

समताप मण्डल के समान तापमान की जाँच सर्वप्रथम वैज्ञानिक टीजरेन्स डि बोर्ट ने सन् 1888 में की थी। इसकी ऊँचाई 18 से 30 किलोमीटर तक है किन्तु नवीन खोजों के अनुसार इस मण्डल की ऊँचाई 18 किलोमीटर से 80 किलोमीटर तक आँकी गयी है। इस मण्डल की ऊँचाई अक्षांश और ऋतुओं के अनुसार परिवर्तनशील रहती है। ग्रीष्म ऋतु में इसकी ऊँचाई जाड़े की ऋतु से कुछ बढ़ जाती है क्योंकि ग्रीष्म के महीनों में विक्षोभ मण्डल की परिवर्तनशील क्रियाओं से इसकी ऊँचाई में अन्तर आता है। इसी कारण इस मण्डल में मौसम परिवर्तन, संवाहनिक एवं संघनन सम्बन्धित क्रियाएँ नही होती। समताप मण्डल की ऊपरी सीमा पर तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।

3. मध्य मंडल - समताप मंडल के ऊपर वायुमंडल की तीसरी परत होती है, जिसे मध्य मंडल कहते हैं। धरातल से इसकी ऊँचा 80 किमी. तक है। इसकी मोटा 30 किमी. है। इस मंडल में ऊँचा के साथ तापमान फिर से गिरने लगता है और 80 किमी. की ऊँचा पर 00 से -100 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।

4. आयन मंडल - वायुमण्डल की यह ऊपरी परत 80 किलोमीटर से अधिकांश संगठित वायुमण्डल के समीपवर्ती भाग तक या लगभग 500 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। यह वायुमंडल की चौथी परत है। यह 80 किमी. से 400 किमी. की ऊँचाइ के बीच स्थित है। इस मंडल में तापमान ऊँचा के साथ पुन: बढ़ता जाता है। यहॉं की हवा विद्युत आवेशित होती है। पृथ्वी से भेजी गयी रेडयो तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुन: पृथ्वी पर वापस लौट आती हैं, जिससे रेडियो प्रसारण संभव होता है।

5. बाह्य मंडल -  वायुमंडल का सबसे ऊँची परत बाह्य मंडल कहा जाता है। इस मंडल की हवा अधिक विरल होती है।

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