विदेशी व्यापार का अर्थ, परिभाषा एवं महत्व

विदेशी व्यापार का अर्थ

विदेशी व्यापार (Foreign trade) का अर्थ उस व्यापार से है जिसके अंतर्गत दो या दो से अधिक देशों के बीच वस्तुओं आरै सेवाओं का विनिमय किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि भारत अमेरिका से व्यापार करता है तो यह विदेशी व्यापार होगा। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि प्रत्येक देश अन्य देशों से क्रय करके अपनी नागरिकों के लिए वस्तुओं के लिए वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने का प्रयत्न करता है और इसी के साथ अपने अतिरेक उत्पादन को बेचने का भी प्रयत्न करता है। दूसरे देशों से वस्तुएँ खरीदना आयात कहलाता है और बेचना निर्यात कहलाता है। 

किसी भी देश के विदेशी व्यापार में उसके आयात और निर्यात दोनों शामिल किया जाता है। विदेशी व्यापार में केवल वस्तुओं का ही क्रय विक्रय ही शामिल नहीं होता बल्कि सेवाओं का भी क्रय विक्रय भी शामिल होता है जैसे- जहाज रानी बोर्ड परिवहन, बैंकिंग, बीमा और परामर्श सेवाएं आदि।

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विदेशी व्यापार की परिभाषा

प्रो. बेस्टेबिल- ‘सामाजिक विज्ञान की दृष्टि कोण से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न समुदाओं के बीच होने वाला व्यापार है अर्थात् यह उन विभिन्न सामाजिक संगठनों के बीच होने वाला व्यापार है, जिन्हें समाजशास्त्र अपने अन्वेषण का क्षेत्र मानता है।’

फेडरिक लिस्ट- ‘आंतरिक व्यापार हमारे बीच है तथा विदेशी व्यापार हमारे और उनकें ;दूसरे देशों के बीचद्धबीच होता है।’

संक्षेप में कहा जा सकता है कि देश की सीमाओं के भीतर होने वाला व्यापार अंतरसेवीय या राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है तथा देश की सीमाओं के विभिन्न देशों के बीच होने व्यापार अंतर्राष्ट्रीय/विदेशी व्यापार कहलाता है। विदेशी व्यापार एक देश दूसरे देश के साथ लाभ के सिद्धांतों पर आधारित होता हैं।

विदेशी व्यापार का महत्व

वर्तमान व्यापार का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इनका कारण यह है कि को भी राष्ट्र दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि वह आत्म निर्भर है। अपनी कुछ ना कुछ आवश्यकताओं के लिए उसे विदेशी व्यापार पर निर्भर ही रहना पड़ता है। इस संदर्भ में विदेशी व्यापार के महत्व या लाभों का विवेचन उपयोगी होगा। 

एडम स्मिथ के अनुसार-विश्व में सभ्यता और संस्कृति विदेशी व्यापार के माध्यम से ही संभव हो सकी है। विदेशी व्यापार में आयात और निर्यात दोनों ही शामिल होता है अत: विदेशी व्यापार के महत्व को आयात और निर्यात के संदर्भ में निम्न अनुसार समझा जा सकता है -

आयात का महत्व 

1. जीवन स्तर को बढ़ा़ ने के लिए- संसाधनों की कमी के कारण विलासिता की वस्तुएॅं जैसे- कार, वाशिंग मशीन, टी.वी. आदि विकासशील देशों में सीमित मात्रा में होती है। मांग के अनुसार आयात कर इन्हें प्राप्त कर सकते हैं।

2. अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक- आयात अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक होता है। औद्योगिक विकास के लिए मशीन उपकरण आदि पूंजीगत वस्तुओं की आवश्यकता होती है देश में ये साधन उपलब्ध न होने की स्थिति में विदेशी से क्रय कर इन्हें आयात किया जा सकता है।

3. उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार- वस्तुओं का आयात घरेलू उत्पादन की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक हो सकता है। विदेशी वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा होने से गुणात्मक वस्तुओं का उत्पादन कर ही प्रतिस्पर्धा किया जा सकता है। जैसा कि इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के आयात से भारत में भी इनकी गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

4. आवश्यक वस्तुओं की कमी को पूरा करना- आवश्यक वस्तुओं जैसे- अनाज, खाने के तेल आदि के घरेलू मांग एवं पूर्ति के अंतर को आयात के द्वारा पूरा किया जा सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत अनाज के मामले आत्मनिर्भर नहीं था। इसकी कमी को गेहूॅं और चावल का बड़ी मात्रा में आयात कर पूरा किया गया वर्तमान खाद्य तेल की पूर्ति आयात कर किया जा रहा है।

निर्यात का महत्व 

1. अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक - निर्यात अर्थव्यवस्था के विकास में निम्न प्रकार से सहायक होते हैं।

2. अतिरेक उत्पादन को बेचने में सहायक- निर्यात अतिरेक उत्पादन को बेचने में सहायक होता है।

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