अनुक्रम
वहां उन्होंने पहले कठोर तप करके ध्यान लगाया और बाद में भयंकर शारीरिक और मानसिक कष्ट उठाने के बाद अनुभव किया कि मात्र सन्यासी व्रत लाभप्रद होगा । तब उन्होंने गया के वाह्यांचल में स्थित उरूवेला में एक पीपल के पेड के नीचे आसन ग्रहण किया। वहां गम्भीर तप के बाद उन्हें सत्य की प्राप्ति हुई । उनके अनुयायियों के अनुसार सिद्धार्थ को दुख के रहस्य का ज्ञान हो गया और अंतत: समझ आ गया कि संसार सभी प्रकार के कष्टों और दुखों से भरा हुआ क्यों है तथा आदमी को इन पर काबू पाने के लिए क्या करना चाहिए । इसलिए वे बुद्ध बन गये ।
उन्होंने अपना पहला प्रवचन वाराणसी से चार मील दूर सारनाथ के डीयर पार्क में दिया । अपने शेष जीवन में वे घुमक्कड़ शिक्षक के रूप में काम करते रहे और मध्य गंगा क्षेत्र में कौसल और मगध के राजकुमारों तथा लोगों ने अपने सिद्धांतो का उपदेश देते रहे । पूर्व उत्तर प्रदेश के कसिया गांव के कुशी नगर में 483 ई.पू. 80 वर्ष की आयु में मृत्यु होने तक वे भारत में अपने धर्म के मिशनरी के रूप में काम करते रहे ।
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