हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों का वर्णन \\ हड़प्पा सभ्यता का अंत कैसे हुआ?

भारत में कांस्य युगीन सभ्यता सिंधु घाटी और इसके अगल-बगल के क्षेत्रों में विकसित हुई। इसे इसके सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शहरों में से एक शहर हड़प्पा के नाम से हड़प्पा सभ्यता कहते हैं; इसे विस्तृत सिन्धु घाटी सभ्यता भी कहा जा सकता है। इस सभ्यता के नगर 1920 के दशक में तब प्रकाश में आए, जब पुरातत्वविदों ने वहाँ खुदाई की। अब तक हड़प्पा संस्कृति के सैकड़ों स्थलों का पता चल चुका है, साथ ही इसके तीन चरणों - आरंभिक दशा, परिपक्व अवस्था, और पतन काल - की भी पहचान कर ली गई है, के दौरान ही यहां शहरी सभ्यता फल-फूल रही थी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हड़प्पा (पंजाब), मोहनजोदड़ो (सिंध), लोथल (गुजरात), कालीवंगाँ (राजस्थान), रोपड़ (पंजाब), बनावली, राखीगढ़ी (हरियाणा) और धौलावीरा (गुजरात) हैं। 

हड़प्पा संस्कृति की बस्तियाँ उत्तर में मांडा (जम्मू), दक्षिण में दैमाबाद (नर्मदा मुहाना), पश्चिम में सुतकागेंदोर (मकरान तट, बलूचिस्तान) और पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ के निकट, उत्तर प्रदेश) तक फैली थी। दूर जारी अफगानिस्तान में एक हड़प्पाई बस्ती की स्थापना शोरतुघई में की गई थी।

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हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना

वे लोग सुनियोजित नगरों में रहते थे। हड़प्पाई शहरों की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी मजबूत नगर-दुर्ग की उपस्थिति। दुर्ग में सार्वजनिक इमारत होती थी। दुर्ग के नीचे नगर का दूसरा हिस्सा था। यहां आम लोगों के मकान थे। नगरों में चौड़ी सड़कें थी, जो समकोण एक दूसरे को काटती थी। मकान ईट के बने थे। ज्यादातर मकान दो मंजिला थे। हरेक घर में कुएं, स्नानगृह, नाली और परनाली थी। साफ-सफाई का स्तर बहुत उन्नत था। खडंजे बिछी सड़कें और सड़कों पर प्रकाश-व्यवस्था अनजानी नहीं थी। मोहंजो-दड़ों के निचले शहर में निवास गृहों के अलावा दुर्ग वाले क्षेत्रा में अनेक खंभों वाले विशाल हाल भी मिले हैं। 

यहाँ सबसे प्रमुख विशेषता थी विशाल स्नानगृह (180 फुट लंबा और 108 फुट चौड़ा) उसमें स्नान के लिए इस्तेमाल होने वाला जलाशय 39 फुट लंबा, 23 फुट चौड़ा और आठ फुट गहरा था। हड़प्पा का विशाल अनाज भंडार एक अन्य महत्वपूर्ण इमारत थी। यहाँ किसानों द्वारा उत्पादित अतिरेक का भंडारण होता था।

हड़प्पा नगरों का अंत

हड़प्पा युग लगभग 700 वर्षों तक रहा। 700 वर्षों की यह अवधि बीच-बीच में उथल-पुथल से भी भरी रही होगी जिसका अनुमान समयसमय पर आने वाली बाढ़ों से लगता है जो मोहनजोदड़ो को नष्ट करती रहीं। तथापि, 1900 बी सी ई के पश्चात हड़प्पा सभ्यता के अधिकतर प्रमुख नगरों का परित्याग कर दिया गया था या वे स्पष्ट रूप से दबाव में थे। हड़प्पा नगरों के उद्गम की भांति ही उनके अंत के कारणों पर भी वादविवाद है। ऐसा नहीं है कि यह क्षेत्र पूरी तरह से निर्जन हो गया था या इसका परित्याग कर दिया गया था, तथ्य यह है कि 1900 बी सी ई के पश्चात् हम यहाँ परिपक्व हड़प्पा संस्कृति से भिन्न भौतिक संस्कृति की बसावटें पाते हैं जिनमें सिरामिक की बनी वस्तुएँ, टेराकोटा केक और आभूषणों के निर्माण में प्रयुक्त मिट्टी के पॉलिशदार टुकड़ों के प्रयोग का नैरन्तर्य पाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पाकालीन नगरों के प्रादुर्भाव से पूर्व स्थिति एक प्रकार से उलट हो गई जिसमें बसावटों में अब मुख्यत: गांव हैं, जिनमें क्षेत्रीय सम्बद्धता थी। मोहनजोदड़ो जैसे बड़े केन्द्रों में नगरपालिका के कार्यों और नियमों की शिथिलता घरों और भट्टियों द्वारा सड़कों का अतिक्रमण और सार्वजनिक स्थलों पर निर्माण के रूप में देखी जा सकती है।

हड़प्पा सभ्यता का समाज और अर्थव्यवस्था

हड़प्पावासी कृषि, पशुपालन, दस्तकारी, व्यापार और वाणिज्य में माहिर थे। मुख्य फसलें गेहूं, जौ, राई, तिल और मटर थीं। लोथल और रंगपुर में धान मिलें हैं। कालीबंगन में हल की लीक के निशान मिले हैं। उनसे पता चलता है कि वे हल का इस्तेमाल करते थे। फसल काटने के लिए हसुआ का इस्तेमाल होता था। सिंचाई के कई तरीकों का इस्तेमाल होता था। लोगों को कपास और रूई की जानकारी थी। गाय, बकरी, भेड़, सांड, कुत्ते, बिल्ली, ऊंट और गधे जैसे जानवरों को पालतू बनाया जा चुका था। लोग अनाज, मछली, मांस, दूध, अंडे और फल खाते थे। ज्यादातर तांबा और कांस्य के बने औजार और हथियार इस्तेमाल किए जाते थे। जेवरात सोना, चांदी, कीमती पत्थरों, रत्नों, शंख और हाथी के दांत के बने होते थे। दस्तकारों में कुम्हार, बुनकर, राजमिस्त्राी, बढ़ई, लोहार, सूनार, शिल्पकार, संग-तराश, ईंट बनाने वाले और ठठरे शामिल थे। 

वाणिज्य और व्यापार भी महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों में शामिल थे। स्थानीय व्यापार के साथ व्यापार भी चलता था। अनेक साक्ष्य इंगित करते हैं कि मेसोपोटामिया के साथ हड़प्पावासियों के संबंध थे। वे सोना, रांगा, तांबा जैसी धातुओं का और अनेक प्रकार के रत्नों को आयात करते थे निर्यात में कृषि उत्पाद, सूती सामान, बर्तन, जेवतरात, हाथी के दांत की बनी चीजें और दस्तकारी सामान शामिल थे। हड़प्पा की मिट्टी की बनी मुहरों का इस्तेमाल संभवत: वाणिज्यिक उद्देश्यों था। समाज वर्गो में विभाजित था। नगर-दुर्ग की मौजदूगी शासक वर्ग के अस्तित्व की और इशारा है। इसमें संभवत: पुरोहित भी शामिल थे। समाज में उनके अलावा सौदागर, दस्तकार और आम लोग लेकिन हमें इस बारे में ठीक-ठीक पता नहीं है।

हड़प्पा सभ्यता की धर्म और संस्कृति

मातृदेवियां हड़प्पावासियों के बीच बेहद लोकप्रिय प्रतीत होती हैं। मातृदेवियों की मिट्टी की बनी मूर्तियां मिली हैं। मोहेंजो-दड़ों में एक पुरूष-देवता भी मिला है, जिसे शिव (पशुपति) का अािदरूप कहा गया है। उसे एक मुहर पर पशुओं से घिरे योग की मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। लिंग पूजा, वृक्ष और जड़ात्मवाद भी प्रचलन में थे। विभिन्न स्थलों पर मिले ताबील और जंतर आत्माओं तथा पर उनके विश्वास की ओर इशारा करते हैं। हड़प्पा-वासियों ने उच्च स्तरीय तकनीकी की चीजें हासिल की थी। उन्हें नागर-अभियांित्राकी, चिकित्सा मापतोल और स्वच्छता की जानकारी थी। वे भी जानते थे। वे एक लिपि का प्रयोग करते थे, जिसे अभी तक नहीं समझा जा सका है।

हड़प्पा सभ्यता का अंत कैसे हुआ

आपको हैरानी होगी कि हड़प्पा सभ्यता का अंत कैसे हुआ। इस संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं।
  1. कुछ विद्वानों का सुझाव है कि बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने इस सभ्यता को खत्म किया होगा। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भूकंप के परिणामस्वरूप सिंधु नदी के निचले मैदानी, बाढ़ वाले क्षेत्रों का स्तर ऊंचा उठ गया होगा। इससे समुद्र की तरफ जाने को नदी के तल मार्ग में रुकावट आ गई होगी, जिससे मोहनजोदड़ो नगर डूब गया होगा। परन्तु इससे केवल मोहनजोदड़ो के खत्म होने का उल्लेख मिलता है न कि पूरी सभ्यता का।
  2. कुछ विद्वानों के मतानुसार घग्गर-हाकरा नदी के मार्ग में परिवर्तन आने के कारण शुष्क बंजर धरती बढ़ती गई होगी, जिसकी वजह से पतन हुआ। इस सिद्धांत के अनुसार 2000 ई.पू. के आसपास बंजरता की परिस्थिति बढ़ती गई, इससे कषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ा होगा, जिससे इसका लोप हुआ।
  3. पतन के कारणों में, आर्यों के आक्रमण के सिद्धांत का भी उल्लेख किया गया है, लेकिन आंकड़ों के आलोचनात्मक व गंभीर विश्लेषण के आधार पर अब इस मत को पूरी तरह नकार दिया गया है।
इस प्रकार कोई भी एक अकेला ऐसा कारण नहीं है, जिससे संपूर्ण सभ्यता के विनाश का पता लग सके। ज्यादा से ज्यादा इनसे सिर्फ कुछ शिष्ट स्थलों या क्षेत्रों के नष्ट होने के संबंध में ही पता चल सकता है। अत: प्रत्येक सिद्धांत की आलोचना हुई। फिर भी, पुरातात्विक साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन अचानक नहीं हुआ, बल्कि धीरे-धीरे हुआ और अंत में ये सभ्यता अन्य सभ्यताओं में घुलती- मिलती चली गई।

हड़प्पा सभ्यता के पतन के मुख्य कारण

इस बात के ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है कि सिन्धु घाटी का वैभवशाली सभ्यता का विनाश कैसे हुआ ? खुदाई के दौरान मिले तथ्यों से ही विद्वानों ने इसके विनाश के कुछ कारण अनुमानों के आधार पर निकाले है 

1. बाह्यआक्रमण:- कुछ विद्वानों का विचार है  कि किसी बाहरी आक्रमणकारी बर्बर जाति द्वारा सिन्धु घाटी के शान्तिपिय्र लोगो  को युद्ध में पराजय दी गयी और भयंकर नरसंहार द्वारा नष्ट कर दिया गया । मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त बहुसंख्या में मानव अस्थिपंजर इस कारण की ओर इंगित करते है । कुछ लोगों का विचार है कि आर्यो द्वारा सिन्धु सभ्यता को नष्ट किया गया ।

2. प्राकृतिक प्रकोप से:- कुछ विद्वानों का विचार है कि भयंकर वर्षा, महामारी अथवा लम्बे समय तक जल का अभाव या अकाल अथवा भूकम्प ने इस सभ्यता को नष्ट कर दिया ।

3. भौगोलिक परिवर्तन से:- कुछ विद्वानों का मत है  कि सिन्धु नदी के अचानक मार्ग बदलने, भारी बाढ़ अथवा क्षेत्र की जलवायु में आये अचानक परिवर्तन से सिन्धु सभ्यता का समूल विनाश हो गया । खुदाई के दौरान मिली रेत की मोटी पर्त से ऐसे अनुमान निकाले गये है ।

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