लेखांकन क्या है लेखांकन के उद्देश्यों और महत्व का विस्तार से वर्णन करें?

व्यापारिक परिणामों को जानने के लिए लेखों का संग्रहण करने, वर्गीकृत करने तथा सारांश तैयार करने के कार्य को ही, लेखांकन कहा जाता हैं।

लाभ कमाने के लिए व्यवसाय किया जाता है। व्यवसाय चलाने के लिए कई प्रकार के लेन-देन करने पडते है। माल का क्रय-विक्रय किया जाता है। माल के क्रय-विक्रय में कई प्रकार के लेन-देन किये जाते है। माल को दुकान तक पहुंचाने के लिये किराया-भाडा चुकाया जाता है। जिस गोदाम में माल रखा जाता है, उसका किराया देना पडता है। माल को दुकान या गोदाम में लगवाने के लिये मजदूरों को मजदूरी दी जाती है। दुकान पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है। सरकार को माल पर कर दिया जाता है।

अनेक व्यवहारों का एक स्वरूप लेखांकन कहलाता है। इस लेन-देन को याद रखना सम्भव नहीं होता, जिसके कारण सभी व्यवहारों को लिखा जाना आवश्यक होता है। इस प्रकार लेखांकन एक कला है। जिसके द्वारा वित्तीय या आर्थिक लेन-देन को मुद्रा के रूप में लिखा जाता है। तथा उन्हें महत्त्वपूर्ण तरीकों से वर्गीकरण व सारांशित करके परिणाम या निष्कर्ष निकाले जाते है, जिन पुस्तकों में व्यवहारों को लिखा जाता है। उन पुस्तकों को लेखा पुस्तकें कहा जाता है। जो व्यक्ति इन लेन-देन को लेखा पुस्तकों में लिखता है। उन्हें वर्गीकृत करके परिणाम निकालता है। कि व्यापार में वित्तीय या आर्थिक स्थिति क्या है, व्यापार मे लेनदारी-देनदारीयाॅ क्या है, कितना लाभ-हानि हुआ है। तथा भविष्य में व्यापार की क्या स्थिति होगी। ये सभी प्रकार के परिणाम देने वाला व्यक्ति लेखाकार (Accountant) होता है।  

लेखांकन की परिभाषा

1. अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक एकाउण्टेण्ट्स की शब्दावली समिति ने लेखांकन को  परिभाषित किया हैं - “लेखांकन उन व्यवहारों को और घटनाओं को जो अंशत: वित्तीय प्रकृति की होती हैं, मुद्रा के रूप में अभिप्रायपूर्ण तरीके से लेखा करने, वर्गीकृत करने सारांश निकालने तथा उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला हैं।”

2. स्मिथ एवं एशबर्न के अनुसार - “लेखांकन मुख्यतया वित्तीय प्रकृति के व्यापारिक व्यवहारों और घटनाओं का अभिलेखन तथा वर्गीकरण करने का विज्ञान हैं और इन व्यवहारों और घटनाओं का अभिप्रायपूर्ण वित्तीय प्रकृति का सारांश निकालने, विश्लेषण करने तथा परिणामों को उन व्यक्तियों को जिन्हें निश्चित करना है या निर्णय लेना है, सम्प्रेषित करने की कला हैं।”

3. सरल शब्दों में - “लेखाकंन से तात्पर्य व्यापारिक व्यवहारों को वैज्ञानिक रीति से पुस्तकों में लिखने तथा किये गये लेखों को वर्गीकृत कर सारांश तैयार करने व परिणामों की व्याख्या करने की कला से हैं।”

लेखाकंन का कार्य आर्थिक इकाइयों के सम्बन्ध में मात्रात्मक सूचना प्रदान करना है जो मूल रूप से वित्तीय प्रकृति की होती है जो आथिर्क निर्णय लेने में उपयोगी होती है लेखांकन किसी संगठन की आर्थिक घटनाओं के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना को पहचानने, मापने, लेखा-जोखा करने एवं सम्पे्रषित करने की एक ऐसी प्रक्रिया हैं जो इस सूचना के उपयोगकर्ताओं को प्रेषित की जाती है । 

लेखांकन की विशेषताएं

  1. यह व्यावसायिक लेनदेन एवं घटनाओं को लिखने एवं वर्गीकृत करने की कला एवं विज्ञान है। लेखांकन विशुद्ध विज्ञान न होकर सामाजिक विज्ञान है।
  2. यह सेवा कार्यकलाप है।
  3. लेखांकन वित्तीय प्रकृति के लेनदेन का ही किया जाता है, जिन्हें मुद्रा रूप में मापा जा सके।
  4. लेखांकन में व्यवहारों की पहचान मापन, अभिलेखन, खतौनी एवं वर्गीकरण, सारांश लेखन, निर्वाचन एवं विश्लेषण तथा सम्प्रेषण की प्रकिया सम्मिलित होती है।
  5. लेखांकन परिमाणात्मक सूचना प्रदान करता है।
  6. यह निर्णयनकर्ता  को निर्णय लेने हेतु सूचना उपलब्ध करवाता है। अतः यह एक सूचना प्रणाली है।
  7. लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा जाता है, क्योंकि यह विभिन्न निर्णयकर्ताओ को वित्तीय विवरणों के रूप मे सूचना उपलब्ध कराता है।

लेखांकन के उद्देश्य

  1. समस्त आर्थिक व्यवहारों का लेखा जोखा रखाना।
  2. व्यवसाय की आर्थिक स्थिति की जानकारी करना।
  3. लाभ/ हानि का निर्धारण करना।
  4. व्यवसाय पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करना।
  5. व्यवसाय में हित रखने वाले पक्षकारो को सूचना उपलब्ध कराना।
अतः लेखांकन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक व्यवहारो का अभिलेखन कर निर्णयन हेतु उपयोगी सूचना उपलब्ध कराना है।

लेखांकन का क्षेत्र 

लेंखाकन के क्षेत्र में शामिल है-
  1. पुस्तपालन
  2. लेंखाकन 
  3. अंकेक्षण
1. पुस्तपालन - पुस्तपालन व्यावसायिक व्यवहारो को लेंखा पुस्तको में निश्चित विधि एवं सिद्वान्तो के अनुसार शुद्वता पूर्वक लिखने की कला एवं विज्ञान है। व्यापक दृष्टिकोण से लेंखाकन में ही पुस्तपालन सम्मिलित होता है लेकिन संकीर्ण दृष्टिकोण से जहाॅ पुस्तपालन समाप्त होता है, वहाॅ से लेंखाकन प्रारम्भ हो है और जहाॅ लेंखाकन समाप्त होता है वहाॅ से अंकेक्षण प्रारम्भ होता है।

पुस्तपालन का कार्य क्षेत्र-
  1. प्रारम्भिक लेखा करना- प्रारम्भिक लेखा जर्नल / सहायक बहियो में किया जाता है।
  2. खतौनी एवं वर्गीकरण करना- यह लेंखाकन की प्रधान पुस्तक खाता बही में किया जाता है।
  3. खातो के शेष निकालना।  
2. लेंखाकन - लेंखाकन के अन्तर्गत निम्नांकित कार्य सम्मिलित है-
  1. तलपट तैयार करना।
  2. आवश्यक समायोजन करना।
  3. अन्तिम खाते एवं सारांश तैयार करना, इनका विश्लेषण और निर्वचन करके लेंखाकन सूचनाओं को उपयोगकत्ताओं तक सम्प्रेषित करना।
3. अंकेक्षण - लेखों की विवेचनात्तमक जाॅच को अंकेक्षण कहा जाता है, जिसका उद्देश्य वित्तीय विवरणों का मूल्यांकन कर राय प्रकट करना होता है। 

विज्ञान, कला या दोनों

लेखांकन विज्ञान है या कला है, यह जानने के लिए पहले विज्ञान और कला का अर्थ जानते है। किसी ज्ञान के सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं नियमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते है तथा कार्य को सर्वोŸाम रूप से करने की विधि को अथवा विज्ञान द्वारा प्रतिपादित नियमों को क्रियान्वित करना कला है। इस रूप में लेखांकन के निश्चित नियम है जो सर्वमान्य सिद्धान्तो एवं अवधारणाओं पर आधारित है अतः यह विज्ञान है। 

इसी प्रकार लेखांकन मे भी लेखापाल लेखांकन के सिद्धान्तो का उपयोग उचित योग्यता एवं निपुणता से करता है अतः यह कला भी है। अर्थात लेखांकन विज्ञान और कला दोनो है।

लेखांकन की शाखाएँ

शताब्दियों से व्यवसाय की बदलती आवश्यकताओं के कारण लेखांकन की जो विशिष्ट शाखाएँ विकसित हुई वो इस प्रकार है :-

1. वित्तीय लेखांकन - इसका सम्बन्ध वित्तीय लेन-देनों के लेखा करने, उनके संक्षिप्तीकरण, निर्वाचन तथा परिणामों का उनके उपयोगकर्ताओं को सम्प्रेषण से है। इसमें एक अवधि विशेष (जो कि सामान्यत: एक वर्ष होता है) के अर्जित लाभ अथवा हानि का निर्धारण किया जाता है तथा लेखा अवधि की समाप्ति पर उस तिथि को वित्तीय स्थिति का निर्धारण किया जाता है। यह प्रबन्धकों एवं अन्य पक्षों को आवश्यक वित्तीय सूचना उपलब्ध कराता है। 

लेखांकन एवं वित्तीय लेखांकन शब्दों का समान अर्थ में ही उपयोग किया जाता है। इस समय तो हम वित्तीय लेखांकन पर ही ध्यान देंगे।

2. लागत लेखांकन - इसमें व्यावसायिक इकाई द्वारा निर्मित विभिन्न उत्पादों की लागत का निर्धारण करने के लिए खर्चो का विश्लेषण किया जाता है एवं कीमत का निर्धारण होता है। यह लागत का नियंत्रण करने में सहायता प्रदान करती है तथा प्रबन्धकों को निर्णय लेने के लिए लागत सम्बन्धित आवश्यक सूचना उपलब्ध कराती है।

3. प्रबन्धन लेखांकन - इसका सम्बन्ध कोष, लागत एवं लाभ आदि से सम्बन्धित सूचनाएँ देना है इससे प्रबन्धकों को निर्णय लेने तथा इसके निर्णयों एवं कार्यवाही के प्रभाव तथा विभिन्न विभागों के निष्पादन के मूल्यांकन में सहायक होता है।

4. कर लेखांकन - लेखांकन की इस शाखा का विकास आयकर, बिक्रीकर आदि जटिल कर कानूनों के कारण हुआ है। एक लेखाकार को विभिन्न कर अधिनियमों का पूरा ज्ञान होना चाहिए।

5. सामाजिक लेखांकन - लेखांकन की इस शाखा को सामाजिक रिपोटिर्ंग अथवा सामाजिक उत्तरदायित्व लेखांकन भी कहते है। यह व्यवसाय द्वारा समाज को पहुंचाए गए लाभ तथा उन पर आई लागत को उजागर करता है। सामाजिक लाभ में चिकित्सा, आवास, शिक्षा, जलपान, कोष आदि सामाजिक सुविधाएँ सम्मिलित होती है जबकि सामाजिक लागत में कर्मचारियों का शोषण, औद्योगिक अशांति, पर्यावरण प्रदूषण, अनुचित निलम्बन तथा उद्योगों को स्थापित करने से उत्पन्न सामाजिक बुराइयाँ शामिल है।

6. मानव संसाधन लेखांकन - इसका सम्बन्ध व्यवसाय के लिए मानव संसाधनों से है । मानव संसाधनों का मुद्रा के रूप में मूल्याँकन करने के लिए लेखांकन पद्धतियों का उपयोग किया जाता है इसीलिए यह संगठन में कार्यरत कर्मचारियों का लेखांकन है ।

7. राष्ट्रीय संसाधन लेखांकन - इसका अर्थ है पूरे राष्ट्र के संसाधनों का लेखांकन जैसे कि जल संसाधन, खनन, जंगल, आदि । सामान्यत: इसमें एकल व्यावसायिक इकाइयों का लेखांकन, नही किया जाता और न ही यह लेखांकन के सामान्य सिद्धांतों पर आधारित होता है । इसको अर्थशात्रियों ने विकसित किया है ।
आप वित्तीय लेखांकन के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे ।संबंधित समस्त सूचनाएँ आँकड़ों के रूप में लेखांकन द्वारा उपलब्ध करायी जाती है ।

लेखांकन के कार्य

लेखांकन का कार्य आर्थिक इकाइयों की सूचना उपलब्ध करना है जो मूलत: वित्तीय प्रकृति की होती हैं तथा जिसे आर्थिक निर्णय लेने में उपयोगी माना जाता हैं ।

1. विधिपूर्वक अभिलेखन करना-वित्तीय लेखांकन में व्यावसायिक लेन-देनों का विधिपूर्वक अभिलेखन किया जाता है, उनका वर्गीकरण किया जाता है तथा विभिन्न वित्तीय विवरणों के रूप में संक्षिप्तकरण किया जाता हैं ।

2. वित्तीय परिणामों को सम्प्रेषण-इसके माध्यम से शुद्ध लाभ (अथवा शुद्ध हानि) परिसम्पत्तियाँ उपयोगकर्ताओं देयताएँ आदि वित्तीय सूचनाओं का इच्छुक को सम्प्रेषण किया जाता हैं ।

3. वैधानिक दायित्वों की पूर्ति करना-विभिन्न अधिनियम जैसेकि कम्पनी अधिनियम, 1956, आयकर एवं विक्रय कर /वैट कर का अधिनियम में प्रावधान है जिनके अनुसार विभिन्न विवरणें को जमा करना आवश्यक है जैसे कि वार्षिक खाते, आयकर विवरणी, वैट आदि की विवरणी ।

4. दायित्व का निर्धारण-यह संगठन के विभिन्न विभागों के लाभ का निर्धारण करने में सहायक होता है । इससे विभागीय अध्यक्ष का दायित्व निश्चित किया जा सकता है ।

5. निर्णय लेना-यह उपयोगकर्ताओं को प्रासंगिक आँकड़े उपलब्ध कराता है जिनकी सहायता से वह व्यवसाय में पूँजी के निवेश तथा माल की उधार आपूर्ति करने अथवा ऋण देने के सम्बन्ध में उपयुक्त निर्णय ले सकते हैं ।

लेखांकन की सीमाएँ

1. लेखांकन सूचनाओं को मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता हैं: गैर मौद्रिक घटनाओं अथवा लेन-देनों को पूरी तरह से छोड़ दिया जाता हैं । 

2. स्थायी परिसम्पतियों का अभिलेखन मूल लागत पर किया जा सकता हैं : भवन, मशीन आदि परिसम्पत्तियों पर वास्तविक व्यय तथा उस पर आनुसंगिक व्यय का अभिलेखन किया जाता है। अत: मूल्य वृद्धि के लिए कोई प्रावधान नहीं होता। परिणामस्वरूप स्थिति विवरण व्यवसाय की सही स्थिति को नहीं बताता। 

3. लेखांकन सूचना कभी-कभी अनुमानों पर आधारित होती है : अनुमान कभी-कभी गलत भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए अवक्षरण निर्धारण के लिए सम्पत्ति के वास्तविक जीवन का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। 

4. लेखांकन सूचना को केवल लाभ के आधार पर प्रबन्धन निष्पादन को एकमात्र परीक्षण के रूप में प्रयुक्त नहीं की जा सकती : एक वर्ष के लाभ को कुछ व्यय जैसे कि विज्ञापन, अनुसंधान , विकास अवक्षयण आदि व्ययों को दिखाकर सरलता से हेर-फेर किया जा सकता है अर्थात् दिखाने की संभावना होती हैं। 

5. लेखांकन सूचनाएं निष्पक्ष नहीं होती : लेखाकार आय का निर्धारण व्यय पर आगम के आधिक्य के रूप में करते हैं । लेकिन वह व्यवसाय के लाभ को ज्ञात करने के लिए आगम आय एवं व्यय की चुनी हुई मदों को ध्यान में रखते है । वह इसमें सामाजिक लागत जैसे कि जल, ध्वनि एवं वायु प्रदूषण को सम्माहित नहीं करते । वह स्टाक अथवा अवक्षयण के मूल्याँकन की विभिन्न पद्धतियों को अपनाते है ।

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