नौकरी का अर्थ, परिभाषा, महत्व एवं प्रकार

एक व्यक्ति के द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी व्यवसाय या औद्योगिक प्रतिष्ठान या शासकीय संस्थाओं में अथवा दूसरे व्यक्ति के लिए किसी प्रतिफल के बदले में कार्य करना नौकरी कहलाता हैं। यह प्रतिफल मौद्रिक (नकद) या वस्तु के रूप में हो सकता है। नौकरी में दो पक्ष होते हैं पहला पक्ष नियोक्ता अर्थात मालिक एवं दूसरा पक्ष नौकर अर्थात कर्मचारी कहलाता है। नौकरी के अन्तर्गत कर्मचारी नियोक्ता के द्वारा दिये गये निर्देशों एवं आदेशों के अनुसार कार्य करना है एवं तीसरे पक्ष के प्राप्ति कर्मचारी द्वारा किये गये कार्य के लिए नियोक्ता उत्तरदायी होता है न कर्मचारी। 

नौकरी को दो भागो में बांटा जा सकता है जिन व्यक्तियों को नियोक्ता के लिए कार्य करने के प्रतिफल में पारिश्रमिक प्रतिदिन या प्रति सप्ताह दिया जाता हैं ऐसे पारिश्रमिक को मजदूरी कहा जाता है एवं कार्य करने वाले व्यक्ति को मजदूर कहा जाता है। जबकि जिन व्यक्तियों को नियोक्ता द्वारा मासिक दर से पारिश्रमिक दिया जाता है उन्हें कर्मचारी तथा पारिश्रमिक राशि को वेतन की श्रेणी में रखा जाता है।

सरकारी विभागों, कार्यालयों, संस्थानों में सार्वजनिक कार्य करने वाले अधिकारी और कर्मचारी पाये जाते है। गैर सरकारी तथा अर्द्धसरकारी क्षेत्रों में भी वेतन लेकर कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या बहुत अधिक है। नौकरी व्यवसाय में व्यक्ति को उसकी शैक्षणिक योग्यता, क्षमता, कुशलता, ज्ञान और पूर्व अनुभव के आधार पर पद एवं वेतन प्राप्त होता है और कुशल कार्य करने पर पद एवं वेतन में भी वृद्धि होती जाती है।

नौकरी की विशेषताएं

  1. दो पक्ष- नौकरी संबंधी कार्य में दो पक्ष होते हैं पहला पक्ष नियोक्ता एवं दूसरा पक्ष कर्मचारी कहलाता हैं । 
  2. अनुबंध- नौकरी के लिए कर्मचारी एवं नियोक्ता के बीच अनुबंध होना अनिवार्य होता है इसी अनुबंध के आधार पर कर्मचारी के लिए कार्य करने की दशा, नियम शर्तें वेतन व कार्य अवधि तय होता है। 
  3. सहमति- नियोक्ता एवं कर्मचारी द्धारा जो अनुबंध किये जाते हैं उसमे दोनो की स्वतंत्र एवं परस्पर सहमति होनी चाहिए। 
  4. उत्तरदायी- नियोक्ता द्धारा दिये गये निर्देशो एवं आदेशो तथा शर्तो के आधार पर कर्मचारी द्धारा किये गये प्रत्येक कार्य के लिए तीसरे पक्ष के प्रति नियोक्ता उत्तरदायी होता है न कि कर्मचारी। 
  5. परस्पर निर्भर- नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनो ही एक दूसरे पर परस्पर निर्भर रहते है। एक पक्ष के बिना दूसरे पक्ष का अस्तित्व नहीं रहता। 
  6. पारिश्रमिक- नौकरी के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारी को पारिश्रमिक दिया जाता है यह पारिश्रमिक नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनो के द्धारा अनुबंध से निर्धारित होता है।

नौकरी का महत्व

नौकरी से व्यक्ति अपना एवं अपने परिवार के भरण पोषण के लिए आय कमाता है। नौकरी से लाभ निम्नलिखित हैं:-
  1. नौकरी से केवल नियमित एवं निरंतर आय ही प्राप्त नहीं होती अपितु इसके साथ अन्य दूसरे लाभ जैसे आवास और चिकित्सा की सुविधायें, यात्रा सम्बन्धी रियायतें, ऋण व अग्रिम बीमा, वृद्धावस्था पेंशन तथा सेवानिवृत्ति की अन्य सुविधाएं मिलती हैं।
  2. नौकरी से कर्मचारी की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती हैं। 
  3. नौकरी को जीवनवृति के रूप में अपनाया जा सकता हैं और व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्रो मे नाम कमा सकते हैं। उदाहरण के लिए नामी वैज्ञानिक बनने के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप एक प्रयोगशाला के स्वामी हों, तथापि कोई भी व्यक्ति बड़ी प्रयोगशाला में नौकरी प्राप्त कर अपनी जीवनवृत्ति को शुरू कर सकता हैं। 
  4. स्वरोजगार की तुलना मे नौकरी मे बहुत कम जोखिम निहित होता है नौकरी में भूमि, भवन, आदि मे निवेश की कोई आवश्यकता नहीं है। 
  5. व्यवसाय या पेशा शुरू कर स्वरोजगार पाने की योग्यता सभी में नहीं होती है सामान्यत: नौकरी को अधिकांश लोगों ने धन्धे के रूप में अपना रखा है। 
  6. नौकरी करते हुए कर्मचारी को सामाजिक सेवा का अवसर प्राप्त हो जाता हैं जैसे:- डॉक्टर के द्धारा विभिन्न रोगो के निवारण का नि:शुल्क शिविर आयोजन, शिक्षक के द्धारा समाज के लोगो को परामर्श देने का कार्य करना।

नौकरी के प्रकार

वर्तमान समय में उपलब्ध नौकरियो के स्त्रोत को तकनीकी एवं शासकीय दो भागो में वर्गीकृत किया जा सकता हैं:-

1. तकनीकी नौकरियां - नौकरियां जिनमें कार्य निष्पादन के लिए किसी भी प्रकार के तकनीकी योग्यता एवं कौशल की आवश्यकता होती है। उन्हें तकनीकी नौकरियां कहते है। जैसे मोटर गैरेज मे एक मेकैनिक, रेडिमेड कपड़ा बनाने वाली फर्म मे टेलर्स, दवाई बनाने वाली कंपनी मे कैमिस्ट होटल में हलवाई, कार्यालय के कार उपयोग हेतु कार ड्राइवर आदि सभी संगठनों के तकनीकी कर्मचारी कहे जाते हैं। इस प्रकार के कर्मचारियों को अपने कार्य संबंधित तकनीकी ज्ञान, प्रशिक्षण एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। इसके बिना ये व्यक्ति कार्य नहीं कर सकते हैं। इन तकनीकी योग्यताओं के साथ साथ शैक्षणिक योग्यता को भी महत्व दिया जाता हैं। यदि व्यक्ति में वांछित शैक्षणिक योग्यता न भी हो तो उन्हें कार्य पर रखा जाता है। 

ठीक इसी प्रकार कुछ संस्थाओं एवं फर्मो में तकनीकी योग्यता वाले व्यक्ति न मिलने पर निर्धारित शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्तियों का चुनाव करके संस्था द्वारा तकनीकी ज्ञान एवं कौशल प्राप्त करने हेतु प्रशिक्षण संस्थान भेजा जाता है एवं प्रशिक्षण की अवधि में उन्हे छात्रवृित्त्ा के रूप कुछ राशि मासिक प्रदान की जाती है जैसे:- राष्ट्रीय रक्षा एकेडेमी के कडैट, सेना के सिपाही एवं नौ सेना के नाविक आदि हेतु तकनीकी नौकरियों संबंधी जानकारियां नीचे सूची पर दी गई है -


नौकरियांनियोक्ता अतिरिक्त योग्यता/प्रशिक्षण
कम्प्यटुर आपरटेर कायार्लय व्यावसायिक संगठन/ दुकानेंसरकारीसंगठनकम्प्यूटर ट्रेनिंग , डी. टी. पी.
कार्य कम्प्यटूर प्रोग्रामर सॉफ्टवेयर कंपनियां/सलाहकार,सॉफ्टवेयर पैकेज और कम्प्यूटर  प्रोग्रामरमिगं  आदि
प्रयोगशाला पुस्तकालय सहायक सहायक शैक्षिक संस्थाए विज्ञान की पृष्ठभूमि आवश्यक है
शैक्षिक संस्थाएसावर्जनिक पुस्तकालय और सचूना विज्ञान में पुस्तकालय सर्टिफिकेट कोर्स
फिटर, मैकेनिक फैक्ट्री बड़े कायार्लय,व्यावसायिक संबंधित क्षत्रे में आवश्यक ट्रेनिंग बिजली मिस्त्री, परिसर,

2. शासकीय नौकरियां -  इस प्रकार की नौकरियां शासकीय कार्यालयों शासकीय शिक्षण संस्थान में उपलब्ध रहती हैं शासकीय कार्यालयो में रोकड़िया, लेखापाल, स्टोरकीपर निजी सहायक विक्रयकर्ता के पद नौकरियों के लिए उपलब्ध होते हैं तथा शिक्षण संस्थानो में शिक्षक तथा शिक्षाकर्मी के पद उपलब्ध होते हैं। 

नीचे दी गई तालिका में सेकेण्डरी या सीनियर सेकेण्डरी के बाद उपलब्ध विभिन्न कुछ शासकीय नौकरियां संकेत स्वरूप दी गई है-

नौकरी के वर्ग शैक्षिक आवश्यकतायोग्यता आयु
1. सरकारी कार्यालयों में लिपिकीय नौकरी : निम्न श्रेणी लिपिक, उच्च श्रेणी लिपिक, लेखा सहायक सेकेंडरी/सीनियर सेकेंडरी 18-25 वर्ष
2. रेलवे : बुकिंग क्लर्क, लेखा क्लर्क,गुड्स, क्लर्क,ट्रेन सहायक, आदिसेकेंडरी/सीनियर सेकेंडरी एसएससी 18-32 वर्ष
3. बैंक : क्लर्क तथा रोकड़िया क्लर्क तथा टाइपिस्ट सेकेंडरी/सीनियर सेकेंडरी एसएससी और आरआरबी माध्यम से18-26 वर्ष
4. कार्यालय/स्टोर/दुकान: सकेडेंरी/सीनियर/सकेडे री18- वर्ष

उपर्युक्त सभी नौकरी हेतु वर्तमान समय में कम्प्यूटर पर कार्य करने का अनुभव या डिप्लोमा भी मांगा जाने लगा है।

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