नेतृत्व क्या है, नेतृत्व के प्रकारों का वर्णन

नेतृत्व क्या है

नेतृत्व की उत्पत्ति किस प्रकार होती है। इस संबंध में कई विचारधारायें हैं। वंशपरम्परा परम्परा सिद्धांत को मानने वाले विद्वानों का विचार है कि समाज में कुछ लोग ऐसे होते है। जो जन्मजात पैदा इसी या जन्म जात योग्यता नेतृत्व का लेकर पैदा होते हैं। दूसरी ओर कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि नेता की उत्पत्ति परिस्थिति विशेष होती है और लोग उसे नेता मान लेते हैं।

नेतृत्व क्या है

नेतृत्व क्षमता वह गुण है जो अन्य व्यक्ति की क्रियाओं को निर्देशित करता है व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रभावित करने की योग्यता है। प्रारम्भ में माना जाता रहा है कि किसी नेता में कुछ विषेश गुण होते है जिनके कारण वह नेतृत्व कर पाता है।  प्रारम्भ में आम धारणा थी कि बुद्धिमानी, प्रखर कल्पना, काम के प्रति लगातार आग्रह, सन्तुलित मन आदि कुछ गुण नेता में होने आवश्यक है जिस व्यक्ति में यह गुण पाये जाते है वह नेतृत्व कर सकता है और यदि उसे प्रशिक्षित कर दिया जाये तो वह व्यक्ति और भी प्रभावी नेतृत्व दे सकता है। 

नेतृत्व के साथ इन गुणों का धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है।
  1. अगुवाई  करना
  2. सामाजिक कार्य में लगे रहना 
  3. परिस्थितियों के अनुरूप ढलना 
  4. ख्याति 
  5. निर्णय शक्ति 
  6. लोकप्रियता 
  7. आत्मविश्वास 
  8. सहयोग करना 
  9. दूर दृष्टि 
  10. दायित्व निर्वाह

नेतृत्व की परिभाषा

जॉर्ज आर. टेरी ने नेतृत्व को उस योग्यता के रूप में परिभाषित किया है जो उद्देश्यों के लिए स्वेच्छा से कार्य करने हेतु प्रभावित करता है।

लिंविग्स्टन के अनुसार नेतृत्व से आशय उस योग्यता से है जो अन्य लोगों में एक सामाजिक उद्देश्य का अनुसरण करने की इच्छा जाग्रत करती है।
 
मूरे नेतृत्व को एक ऐसी योग्यता मानते हैं जो व्यक्तियों को नेता द्वारा अपेक्षित विधि के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।

जॉन जी. ग्लोवर नेतृत्व को प्रबन्ध का वह महत्वपूर्ण पक्ष मानते है। जो उस योग्यता, सृजनशीलता, पहल शक्ति तथा सहानुभूति को व्यक्त करता है जिसकी सहायता से संगठन प्रक्रिया में मनोबल का निर्माण करके लोगों का विश्वास, सहयोग एवं कार्य करने की तत्परता प्राप्त की जाती है।

ऑर्डवे टीड के अनुसार, “नेतृत्व उन गुणों के संयोग का नाम है जिनको रखने पर कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से काम लेने के योग्य होता है, विशेषकर उसके प्रभाव द्वारा अन्य लोग स्वेच्छा से कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं।”

जार्ज आर. टैरी के अनुसार- “नेतृत्व शक्तियों को पारस्परिक उद्देश्यों के लिए स्वैच्छिक प्रयत्न करने हेतु प्रभावित करने की योग्यता है।” नेतृत्व का अर्थ है अधीनस्थ को निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति की दिषा में सार्थक ढ़ंग से प्रेरित करना। नेतृत्व प्रबन्ध का एक भाग है। अच्छा नेतृत्व एक ऐसी शक्ति है जो संस्था तथा कर्मचारियों की सुप्त क्षमताओं को जागृत कर देता है और उन्हें एक दिषा में समन्वित तथा प्रशस्त करके चमत्कारिक परिणामों को प्राप्त करने में मदद करता है। सामान्यता नेतृत्व की यह अभिव्यक्ति चुनौती पूर्ण परिस्थितियों में अधिक दृष्टिगोचर होती है।
    उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि नेतृत्व एक दी हुई स्थिति में लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में किसी व्यक्ति या समूह के प्रयासों को प्रभावित करने की प्रक्रिया है।

    नेतृत्व के प्रकार

    नेतृत्व को उसकी प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है-

    1. जनतंत्रीय नेता 

    जनतंत्रीय नेता वह है जो अपने समूह से परामर्श तथा नीतियों एवं विधियों के निर्धारण में उनके सहयोग से कार्य करता है। यह वहीं करता है जो उसका समूह चाहता है। 

    2. निरंकुश नेता 

    ऐसा नेता समस्त अधिकार एवं निर्णयों को स्वयं अपने में केन्द्रित कर लेता है।

    3. निर्बाधवादी नेता 

    यह वह नेता होता है जो अपने समूह को अधिकतर अपने भरोसे छोड़ देता है। समूह के सदस्य स्वयं अपने लक्ष्य निर्धारित करते है और अपनी समस्याओं को सुलझाते है। वे स्वयं को प्रशिक्षित करते है और स्वयं ही अपने को अभिप्रेरित करते है। नेता का कार्य तो एक सम्पर्क कड़ी का रहता है। वह उन्हें कार्य करने के लिए केवल आवश्यक सूचना और साधन प्रदान करता है। अधिक कुछ नहीं करता।

    4. संस्थात्मक नेता 

    यह वह नेता होता है जिसे अपने पद के प्रभाव से उच्च स्थिति प्राप्त होती है तथा वे अपने अनुयायियों को हर सम्भव तरीकों से सहयोग प्रदान करते है।

    5. व्यक्तिगत नेता 

    व्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर होती है। ऐसा नेता किसी कार्य के निष्पादन के सम्बन्ध में निर्देश एवं अभिप्रेरणा स्वयं अपने मुख द्वारा अथवा व्यक्तिगत रूप से देता है। इस प्रकार का नेता अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है क्योंकि अपने अनुयायियों से इनका निजी एवं सीधा सम्बन्ध रहता है। 

    इसमें नेता के बौद्धिक ज्ञान का विषेश महत्व होता है।

    6. अव्यक्तिगत नेता 

    अव्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना प्रत्यक्ष रूप से नेताओं तथा उप-नेताओं के अधीन कर्मचारियों के माध्यम से होती है। इसमें मौखिक बातों के स्थान पर लिखित बातें होती है। आजकल इस प्रकार का नेतृत्व प्राय: सभी उपक्रमों में विद्यमान है।

    7. क्रियात्मक नेता 

    यह वह नेता होता है जो अपनी योग्यता, कुशलता, अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर अपने अनुयायियों का विश्वास प्राप्त करता है एवं उनका मार्गदर्शन करता है अनुयायी नेता के निर्देशन एवं सलाह के आधार पर ही क्रियाओं का निर्धारण एवं निष्पादन करते है।

    नेतृत्व के गुण

    किसी कार्य की सफलता या असफलता नेतृत्व की किस्म पर निर्भर करती है। इसलिए एक नेता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है।
    1. निर्णायकता 
    2. स्फूर्ति एवं सहिष्णुता 
    3. आत्मविश्वास 
    4. अनुभूति 
    5. उत्तरदायित्व 
    6. मानसिक क्षमता 
    7. योग्यता एवं तकनीकी सामर्थ्य
    8. साहस 
    9. प्रेरित करने की योग्यता

    एक सफल नेता के गुण

    एक अच्छे नेता में आत्मज्ञान पर आधारित आत्मविश्वास होना चाहिए। इस गुण के व्यक्तियों के विश्वास को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेगा। एक अच्छे नेता में स्फूर्ति , शक्ति, चेतना और सजगता का मिश्रण होना आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा ही वह अधीनस्थ एवं अनुयायियों को तैयार करने के लिए सक्षम हो पाता है। यह गुण उसके अनुभव एवं ज्ञान में वृद्धि करता है और उसका व्यक्तिगत प्रभाव होता है। एक सफल नेता के गुण है- 
    1. सम्मान 
    2. अन्य लोगों के लिए स्नेह 
    3. हास्य 
    4. प्रभावशीलता 
    5. लोगों को समझने की शक्ति 
    6. सिखाने की योग्यता 
    7. शुभचिन्ता 
    8. रूचि 
    9. वैयक्तिक चाल-चलन 
    एक अच्छा नेता समय समय पर अपने आचरण की परीक्षा करता रहता है।

    नेतृत्व की विशेषताएं 

    1. अनुयायिओं को एकत्रित करना - बिना अनुयायियों के नेतृत्व की कल्पना करना कठिन है। वास्तव में, बिना समूह के नेतृत्व का कोई अस्तित्व ही नहीं है, क्योंकि नेता या नायक केवल अनुवावियों अथवा समूह पर ही अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है। नेतृत्व का उद्देश्य अपने चारों ओर अपने अनुयायियों अथवा व्यक्तियों के समूह को एकत्र करना तथा उन्हें किसी हुई निर्धारित सामूहिक उद्देश्य के प्रति निष्ठावान बनाये रखता है।

    2. अचारण एवं व्यवहार को प्रभावित करना -नेतृत्व, प्रभाव के विचार की अपेक्षा करता है, क्योंकि बिना प्रभाव के नेतृत्व की कल्पना नहीं की जा सकती। नेतृत्व की सम्पूर्ण अवधारणा अब व्यक्तियों के एक-दूसरे के प्रभाव पर केन्द्रित है। लोक प्रशासन में नेतृत्व की भूमिका का सार ही यह है कि कोई अधिषाशी किस सीमा तक अपने सहयोगी अधिशासियों के आचरण का या व्यवहार को अपेक्षित दिशा में प्रभावित कर सकता है। परन्तु इस सम्बन्ध में यह ध्यान रहे कि अन्य व्यक्तियों के आचरण को प्रभावित करने से आशय उनसे अनुचित रूप से कार्य लेने से नहीं है। उसका कार्य अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को निर्देशन देना तथा उन्हें एक ऐसे ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करनाहै ताकि उनमें समझदार स्वहित वाली प्रतिक्रिया स्वत: जाग्रत हो सके। 

    3. पारम्परिक सम्बन्ध : मेरी पार्कर फौले ने नेता तथा अनुयायियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध को नेतृत्व की प्रमुख विशेषता माना है नेता वह नहीं है जो दूसरों की इच्छा को निर्धारित करता है, परन्तु वह है जो यह जानता है कि दूसरों की इच्छाओं को किस प्रकार अन्तर-सम्बन्धित किया जाय कि उनमें एक साथ मिलकर कार्य करने की प्रेरणा स्वत: जाग्रत हो सके। इस प्रकार एक नेता न केवल अपने समूह को प्रभावित करता है वरन् वह स्वयं भी अपने समूह द्वारा प्रभावित होता है।

    16 Comments

    1. बहुत ही सहायक और उपयोगी सिद्ध हुआ! कोटिशः धन्यवाद!

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    2. Replies
      1. रूपान्तरणकारी नेतृत्व के विषय के उपर ज्ञान प्रदान करें

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    3. आगे के टॉपिक्स क्यों डिलीट कर दिए

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    4. Netritva ko prabhavit Karne wale kya Karan hai

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    5. Thank you so much...

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    6. Thank you so much

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