पार्षद अन्तर्नियम में कम्पनी के आन्तरिक प्रबंध से संबंधित नियम होते हैं। ‘पार्षद अंतर्नियम कंपनी के पार्षद सीमानियम के अधीन बनाये गये नियमन तथा उपनियम है जिनमें कंपनी के आन्तरिक मामलों को नियंत्रित एवं नियमित किया जा सकता है।
2. लार्ड केन्र्स के अनुसार- ‘‘अतंनिर्यम पाषर्द सीमानियम के अधीन कार्य करता है और सीमानियम को चार्टर के रूप में स्वीकार्य करता है।’’
पार्षद अंतर्नियम क्या है
कंपनी का पार्षद सीमानियम कंपनी के कार्यक्रम व उदृदेश्यों को निर्धारित
करता है, परंतु इन उद्देश्यों की पूर्ति किन नियमों के अधीन की जायेगी, इसका
निर्धारण पार्षद अंतर्नियम द्वारा किया जाता है। यह कंपनी का दूसरा महत्वपूर्ण
प्रलेख होता है। इसमें कंपनी के विभिन्न पक्षकारों, जैसे- अंशधारियों एवं
ऋणपत्रधारियों के अधिकार, कर्तव्य, अंशो का निर्गमन, हस्तांतरण आदि से
संबंधित नियम एवं उपनियम शामिल होते है।
पार्षद अंतर्नियम की परिभाषा
1. कपंनी अधिनियम 1956 की धारा (2) के अनुसार- ‘‘पार्षद अंतर्नियम से आशय कंपनी के उस अंतर्नियम से है, जो मूल रूप से बनाया गया है या जिसे पूर्व के किसी अधिनियम के अनुसार समय-समय पर परिवर्तित किया गया है।’’2. लार्ड केन्र्स के अनुसार- ‘‘अतंनिर्यम पाषर्द सीमानियम के अधीन कार्य करता है और सीमानियम को चार्टर के रूप में स्वीकार्य करता है।’’
पार्षद अंतर्नियम की विशेषताएं
- पार्षद अंतर्नियम कंपनी अधिनियम एवं पार्षद सीमानियम दोनो के अधीन होता है।
- यह कंपनी का दूसरा महत्वपूर्ण प्रलेख है जिसे कंपनी के समामेलन के समय कंपनी रजिस्ट्रार के कार्यालय में जमा कराना होता है।
- इसमें पार्षद सीमानियम में उल्लेखित उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा कंपन की आन्तरिक प्रबन्ध व्यवस्था को चलाने के लिये नियमों एव उपनियमों का समावेश होता है।
- यह कंपनी के सदस्यों तथा संचालक मण्डल के पारस्परिक सम्बंधों, अधिकारों, कर्तव्यों एवं दायित्वों को परिभाषित करता है।
- पार्षद अंतर्नियम या सारणी ‘अ’ को स्वीकार किये बिना कंपनी का समामेलन नहीं हो सकता।
- यह कंपनी के सदस्यों के आपसी व्यवहार को तया करता है, जिससे सभी सदस्य नियमानुसार कार्य करते है।
- यह कंपनी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये अनिवार्य होता है।
- यह कम्पनी के प्रबन्ध व संचालक में सहायक होता है।
- यह कंपनी के कार्यो का नियमन करता है।
पार्षद अंतर्नियम की विषय वस्तु
पार्षद अंतर्नियम कंपनी की आंतरिक प्रबंध व्यवस्था से संबंधित नियम व उपनियम होते है, अत: इसमें उन सब बातों का उल्लेख होना चाहिए जो कंपनी द्वारा निर्धारित किये गये उद्देश्यों को प्राप्त करने एवं कंपनी की आंतरिक प्रबंध व्यवस्था को कुशलता पूर्वक चलाने के लिये आवश्यक है। एक कंपनी के पार्षद अंतर्नियम में मुख्य रूप से निम्न बातों का समावेश होना चाहिए-- कंपनी अधिनियम की प्रथन अनुसूची सारणी ‘अ’ किस सीमा तक लागू होगी।
- कंपनी के अंदर व बाहर के व्यक्तियों के साथ किये गये अनुबंध का विवरण
- अश्ं ा पूंजी की कुल राशि व उसका विभिन्न प्रकार के अंशों में विभाजन
- अंशो के वितरण करने की विधि
- याचना की राशि एवं याचन राशि प्राप्ति की विधि
- अंश प्रमाण पत्र जारी करने की विधि
- अभिगोपकों के कमीशन का भुगतान करने की विधि
- प्रारंभिक अनुबंधों का पुष्टिकरण करने की विधि
- ऋण लेने संबंधी नियम 10. अंश हस्तांतरण करने की विधि
- अंशो का हरण व उनके पुन: निर्गमन की विधि
- अंश पूंजी के पुनसंगठन की विधि
- कंपनी की सभाओं का आयोजन
- सदस्यों का अधिकार व उनका मताधिकार
- संचालकों व प्रबंध अभिकर्ताओं की नियुक्ति व उनके अधिकार
- कार्यालय के संगठन संबंधी नियम
- लाभांश की घोषणा व उसकी भुगतान की विधि
- हिसाब किताब व पुस्तकों में लेखे रखने की विधि
- अंकेक्षक की नियुक्ति व उसके पारिश्रमिक का निर्धारण
- कंपनी के सदस्यों का विभिन्न सूचनायें देने की विधि
- कंपनी की सार्वमुद्रा व उसके उपयोग से संबंधित नियम
- न्यूनतम अभिदान राशि
- कंपनी के लाभों के पूंजीकरण की विधि
- कंपनी के समापन के नियम
पार्षद अंतर्नियमों का प्रभाव
पार्षद अंतर्नियम कंपनी को सदस्यों के प्रति व सदस्यों को कंपनी के प्रति तथा सदस्यों को एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध करते है। यह एक प्रकार का करार होता है जो कंपनी को सदस्यों से व सदस्यों को कंपनी से बांध देता है।पार्षद अंतर्नियम में परिवर्तन
पार्षद अंतर्नियम में सीमानियम की तुलना में सरलता से परिवर्तन किया जा सकता है। पार्षद अंतर्नियम में परिवर्तन अंशधारियों की साधारण सभा में विशेष प्रस्ताव पास करके किया जा सकता है। इस परिवर्तन कीसूचना निर्धारित अवधि में रजिस्ट्रार को देना अनिवार्य होता है। पार्षद अंतर्नियम के अधीन होते है तथा इसके नियम व उपनियम उसी में निहित होते है। अत: इसमें कोर्इ भी ऐसा परिवर्तन नहीं किया जा सकता जो पार्षद सीमानियम अथवा कंपनी के विरूद्ध हों।पार्षद सीमा नियम एवं पार्षद अंतर्नियम में अंतर
यद्यपि दोतों ही प्रलेख कम्पनी का व्यवहार प्रारम्भ करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं फिर भी दोनों में कुछ आधारभूत अन्तर हैं -- पार्षद सीमानियम कम्पनी का चार्टर होता है और कम्पनी तथा बाहरी जगत में सम्बन्ध स्थापित करता है जबकि अन्तर्नियम सहायक प्रलेख होता है तथा कम्पनी अैर सदस्यों में सम्बन्ध स्थापित करता है।
- सीमानियम उद्देश्यों की विवेचना करता है तथा कार्यक्षेत्र का निर्धारण करता है जबकि अन्तर्नियम कम्पनी के आन्तरिक प्रबन्ध के लिए बनाया जाता है।
- पार्षद सीमानियम एक महत्त्वपूर्ण प्रलेख होने के नाते इसमें परिवर्तन करना आसान नहीं जबकि अन्तर्नियम सहायक प्रलेख होने की वजह से विशेष प्रस्ताव पास करके परिवर्तित किया जा सकता है।
- समामेलन के लिए सीमानियम की रजिस्ट्रार के सुपूर्दगी सभी कम्पानियों के लिए अनिवार्या ह। जबकि अंशों द्वारा सीमीत कम्पनी के लिए अन्तर्नियम की सुपुर्दगी अनिवार्य नहीं ह। तथा उसी स्थिति में ज्ंइसम । लागू हो जाती जै।
- पार्षद् सीमानियम के विरुद्ध किए गए कार्य पूर्णस्वरूप से व्यर्थ होते हैं जोकित अन्तर्नियम के विरुद्ध किए गए कार्यो की पुष्टि की जा सकती ह। यदि वह कार्य सीमानियम के अन्तर्गत हो।
- यदि कोई अनुबन्ध सीमानियम के विरुद्ध कम्पानी के साथ कर लिया गया ह। जो कम्पनी को उस अनुबन्ध को पूरा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता लेकिन यदि अनूबन्ध अन्तर्नियम के अवरुद्ध है तो उसके पूरा करने के लिए कम्पनी को बाध्य किया जा सकता है।
Nice answer in this question
ReplyDeleteThanks for good information
ReplyDeleteIts was really useful information for me
ReplyDeleteNYC☺️
ReplyDeleteNice
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