असहयोग आन्दोलन के बाद लगभग 8 वर्ष तक देश के राजनीतिक जीवन में शिथिलता रही
। काँग्रेस ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया, केवल स्वराज्य पार्टी ने विधायिकाओं
में पहुँचकर अपनी असहयोग नीति को कार्यान्वित किया और जब जहाँ अवसर मिला संविधान में
गतिरोध उत्पन्न किया । इस बीच कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं जिसने एक जन आन्दोलन- सविनय
अवज्ञा आन्दोलन को जन्म दिया जो 1930 से 1934 ई. तक चला ।
1929 ई. में लाहौर के काँग्रेस अधिवेशन में काँग्रेस कार्यकारणी ने गाँधीजी को यह अधिकार दिया कि वह सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करें। तद्नुसार 1930 में साबरमती आश्रम में कांग्रेस कार्यकारणी की बैठक हुई। इसमें एक बार पुन: यह सुनिश्चित किया गया कि गाँधीजी जब चाहें जैसे चाहें सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करें।
इस आन्दोलन में पहली बार बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया जिसमें मजदूर और किसानों से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक थे । (1) इन आन्दोलनकारियों की विशेषता थी कि सरकार के सारे अत्याचारों के बावजूद उन्होंने अहिंसा को नहीं त्यागा जिससे भारतीयों में आत्मबल की वृद्धि हुई । (2) इस आन्दोलन में कर बंदी का भी प्रावधान था । जिससे किसानों में राजनीतिक चेतना एवं अधिकारों की माँग के लिए संघर्ष करने की क्षमता का विकास हुआ । (3) इस आन्दोलन ने काँग्रेस की कमजोरियों को भी स्पष्ट कर दिया । (4) इस आन्दोलन के माध्यम से गाँधी जी ने एक सौम्य तथा निष्क्रिय राष्ट्र को शताब्दियों की निद्रा से जगा दिया था
सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के मुख्य कारण
सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के मुख्य कारण थे।- साइमन कमीशन के बहिष्कार आंदोलन के दौरान जनता के उत्साह को देखकर यह लगने लगा अब एक आंदोलन आवश्यक है।
- सरकार ने मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अस्वीकार कर दी थी इससे असंतोष व्याप्त था।
- चौरी-चौरा कांड (1922) को एकाएक रोकने से निराशा फैली थी, उस निराशा को दूर करने भी यह आंदोलन आवश्यक प्रतीत हो रहा था।
- 1929 की आर्थिक मंदी भी एक कारण थी।
- क्रांतिकारी आंदोलन को देखते हुए गांधीजी को डर था कि कहीं समस्त देश हिंसक आंदोलन की ओर न बढ़ जाए, अत: उन्होंने नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाना आवश्यक समझा।
- देश में साम्प्रदायिकता की आग भी फैल रही थी इसे रोकने भी आंदोलन आवश्यक था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि
दिसम्बर, 1928 ई. में कलकत्ता में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ । उसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया तथा सरकार को यह अल्टीमेटम दिया गया कि 31 दिसम्बर तक नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया तो अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन चलाया जाएगा ।कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन
नेहरू रिपोर्ट में औपनिवेशिक स्वराज्य के लक्ष्य का उल्लेख किया गया था, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया । परिणामस्वरूप 1929 ई. में लाहौर में रावी नदी के तट पर कांग्रेस का ऐतिहासिक अधिवेशन हुआ ।लाहौर अधिवेशन के महत्वपूर्ण निर्णय
- कांग्रेस विधान में पहली बार ‘स्वराज्य’ शब्द का अर्थपूर्णता किया गया ।
- नेहरू रिपोर्ट में वर्णित सभी योजनाओं को समाप्त कर दिया गया ।
- सभी कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता अपनी सम्पूर्ण शक्ति भारत की पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करने की दिशा में लगाये ।
- सभी कांग्रेसी अथवा स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेने वाले लोग भविष्य में होने वाले चुनावों मे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग नहीं लेंगे तथा वर्तमान में जो कौंसिलों के सदस्य हैं वे अपनी सदस्यता से त्याग-पत्र दे देंगे ।
- महासमिति को यह अधिकार दिया गया कि ब्रिटिश सरकार से यथासम्भव स्वेच्छापूर्वक किसी भी प्रकार का सहयागे न करे और आवश्यकता पड़ने पर ‘सविनय अवज्ञा’ और ‘चकबन्दी’ कार्यक्रम आरम्भ करें ।
- 26 जनवरी को प्रतिवर्ष स्वाधीनता दिवस मनाया जाय ।
- पूर्ण स्वराज्य की स्थापना हेतु ब्रिटिश सरकार से कोई समझौता न किया जाय । लाहौर अधिवेशन के इन निर्णयों से 26 जनवरी को भारत के कोने-कोने में स्वाधीनता दिवस मनाया गया ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का माँग पत्र (गाँधीजी की ग्यारह मांगे)-
- सम्पूर्ण मद्य-निषेध ।
- विनिमय की दर घटाकर एक शिलिंग चार पेन्स रख दी जाय ।
- जमीन का लगान आधा कर दिया जाये और उस पर कौंसिल का नियंत्रण रहे ।
- नमक कर को समाप्त कर दिया जाय ।
- सेना के खर्च में कम-से-कम पचास प्रतिशत की कमी हो ।
- बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों का वेतन आधार कर दिया जाय ।
- विदेशी कपड़ों के आयात पर निषेद कर दिया जाय ।
- भारतीय समुद्र तट केवल भारतीय जहाजों के लिए सुरक्षित रहे ।
- सभी राजनीतिक बन्दी छोड़ दिये जायें, सभी राजनीतिक मामले उठा लिये जायें और निर्वासित भारतीयों को देश में वापस आने दिया जाय ।
- गुप्तचर पुलिस को उठा लिया जाय या उस पर जनता का नियन्त्रण रहे ।
- आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने के परवाने दिये जायें ।
आंदोलन प्रारम्भ होना-
12 मार्च, 1930 ई. को प्रात: 6 बजकर 30 मिनट में गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ने के उद्देश्य से अपने चुने हुए 79 साथियों को लेकर गुजरात के समुद्र तट पर स्थित दाण्डी नामक गांव को प्रस्थान किया और 6 अप्रैल को उन्होंने दाण्डी समुद्र तट पर स्वयं नमक कानून का उललंघर कर सत्याग्रह का श्रीगणेश किया । दाण्डी यात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसकी तुलना ‘नेपोलियन के पेरिस मार्च’ और ‘मुुसोलिनी के रोम मार्च से की है । गाँधीजी के इस कार्य से देशभर में अपूर्व उत्साह आरै जोश की लहर फैल गई । स्थान-स्थान पर नमक बनाकर ब्रिटिश कानून की धज्जियाँ उड़ाई गयीं । मध्य पद्रेश में ‘जंगल कानून’ और कलकत्ता में ‘सेडीशन कानून’ का उल्लंघन किया गया । सर्वत्र हड़तालों और प्रदर्शनों की धूम मच गई । जगह-जगह सार्वजनिक सभाएं हुई ।कलकत्ता,
मद्रास, पटना, करांची, दिल्ली, नागपुर और पेशावर आदि स्थानों में प्रदर्शनों और हड़तालों का
अत्यधिक जोर था । सैकड़ों सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरियां छोड़ दीं, अनेक विधायकों ने
कौंसिलों से त्याग पत्र दे दिये । महिलाओं ने शराब और अफीम की दुकानों पर धरने दिये तथा
उनके गुण्डों की मार सही । विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई । नवयुवकों ने सरकारी स्कूलों
और कॉलेजों को त्याग कर राष्ट्रीय शिक्षा को अपनाया । कहीं-कहीं किसानों ने लगान देना बंद
कर दिया । बम्बई में अंग्रेज व्यापारियों की मिलें बंद हो गई ।
गांधीजी के आव्हान पर लोगों ने
जाति-भेद व छुआछूत को समाज से समाप्त कर देने का बीड़ा उठाया । समस्त सरकारी कार्य ठप्प
हो गये । जून, 1930 ई. तक सारा देश विद्रोह के पथ पर चलता हुआ दिखाई दे रहा था ।
मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने इस आंदोलन में पूर्ण तटस्थता की नीति
का पालन किया, परन्तु सीमा प्रान्त में राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व
में ‘खुुदाई खिदमतगार’ ने आरै ‘जमीयत उल-उलेमेमेमाए हिन्द’ के हजारों अनुयायियों ने इस
आंदोलन में भाग लिया ।
सरकार का दमन-चक्र-
सरकार ने देशव्यापी आन्दाले न के दमन के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी । कांग्रेस गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दी गई । आंदोलन आरम्भ भी नहीं होने पाया था कि उससे पहले ही हजारों स्वयसंसेवक किसी नकिसी बहाने जेलों में डाल दिये गये । सुुभाषचन्द्र बोसेस को एक वर्ष के लिए कारागार में भेज दिया गया । गांधीजी की दाण्डी यात्रा के बाद तो सरकार ने आंदोलन को निर्ममतापूर्वक कुचलना शुरू किया । पुलस ने लाठी-गोली चलाना अपना दैनिक कार्य बना लिया । कलकत्ता और पेशावर आदि स्थानों में स्वयंसेवकों की टोली पर गोलियों और बमों की वर्षा की गई, परनतु जनता के उत्साह के कारण आंदोलन थमने का नाम ही नहीं लेता था ।5 मई को सरकार ने गांधीजी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, जवाहरलाल
नेहरू, डॉं. राजेन्द्र प्रसाद आदि नेताओं सहित हजारों लोगों को बन्दी बना लिया । 1931 ई. के
प्रारंभ में लगभग 90,000 व्यक्ति जेलों में बंद थे ओर सरकार ने 67 समाचार-पत्रों का प्रकाशन बन्द
कर दिया । महिलाओं के साथ भी इसी प्रकार की कठोरता का बर्ताव किया गया । बोरदस में
पुलिस ने 21 जनवरी, 1931 ई. को औरतों को गिराकर अपने बूटों से उनके सीने कुचलकर आखिरी
नरक के दर्शन कराये । करबन्दी आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने सम्पत्ति को बलात्
ग्रहण और कुर्क किया, जिससे कई गांव बिलकुल उजड़ गये ।
गांधी-इरविन समझौता-
जब सरकार सख्ती से आंदोलन का दमन नहीं कर पायी तो उसने समझौते के लिए हाथ बढ़ाया । तेज बहादुर सप्रू और डॉं. जयकर आदि ने समझौते का प्रयत्न किया । अत: जनवरी, 1931 ई. में गांधीजी और कुछ मान्य नेताओं को कारावास से मुक्त कर दिया गया । इसी वर्ष 5 मार्च का े ‘गाध्ंधी-इरविन समझौतैता’ हअु ा जिसके अन्तर्गत आंदोलन समाप्त कर दिया गया । इन समझौतों में कुछ शर्ते थीं, जिनके अनुसार सरकार ने यह स्वीकार किया, कि वह सभी अध्यादेशों व मुकदमों को वापस ले लेगी तथा अहिंसात्मक आंदोलन करने वाली सभी कैदियों को रिहा कर देगी । समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों को बिना कर दिये नमक बनाने की अनुमति दी गयी ।सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रम
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रमों में विनय के साथ गलत कानूनों की अवज्ञा करना था। नमक कानून से भारतीय असंतुष्ट थे अत: प्रत्येक ग्राम में नमक कानून तोड़कर नमक बनाया गया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल जाना छोड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी त्याग दी। शराब, अफीम एवं विदेशी कपड़ों की दुकानों में स्त्रियों ने धरना दिया। जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। जनता ने सभी प्रकार के गलत करों को न देने का फैसला किया।सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति
यह प्रथम ऐसा आंदोलन था जिसमें प्रथम बार महिलाओं ने भारी संख्या में सशक्त भागीदारी अंकित की। शराब की दुकानों पर धरना दिया। दिल्ली में ही धरना देने के कारण 1600 स्त्रियों को कैद किया गया। भारत में जगह-जगह नमक कानून तोड़ा गया एवं विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। खान अब्दुल गफ्फार खां ‘सीमान्त गांधी’ के नेतृत्व में उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त में ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संगठन की स्थापना की गई। यह संगठन ‘लाल कुर्ती’ के नाम से प्रख्यात हुआ। नागालैण्ड की 13 वष्र्ाीय रानी गोडिनल्यू ने विद्रोह का झण्डा उठाया। उसे 1932 में आजीवन कारावास की सजा दी गई। इस प्रकार समस्त भारत में आंदोलन का तीव्रता के साथ प्रसार हुआ। लगभग 90,000 से अधिक सत्याग्रही एवं प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार हुए।सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव
तीव्र एवं देशव्यापी आंदोलन ने एक ओर समस्त भारत में राष्ट्रीय चेतना एवं उत्साह का संचार किया तो दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार चिन्तातुर हुई। वायसराय लार्ड इरविन एवं ब्रिट्रिश सरकार ने समस्या के समाधान हेतु विभिन्न राजनीतिक दलों से वार्ता हेतु गोलमेज सम्मेलन बुलाने का फैसला किया।सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व
सविनय अवज्ञा आंदोलन के अत्यन्त व्यापक व दूरगामी प्रभाव हुए जो हैं-- इस आंदोलन में पहली बार बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया, जिसमें मजदूर व किसानों से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक थे ।
- इस आंदोलन में करबन्दी को प्रोत्साहन दिये जाने के फलस्वरूप किसानों में भी राजनीतिक चेतना एवं अधिकारों की मांग के लिए संघर्ष करने की क्षमता का विकास हुआ ।
- इस आंदोलन के फलस्वरूप जनता में निर्भयता, स्वावलंबन और बलिदान के गुण उत्पन्न हो गये जो स्वतंत्रता की नींव हैं ।
- जनता ने अब समझ लिया कि युगों से देश के दु:खों के निवारण के लिए दूसरों का मुख ताकना एक भ्रम था, अब अंग्रेजों के वायदों और सद्भावना में भारतीय जनता का विश्वास नहीं रहा। अब जनता के सारे वर्ग स्वतंत्रता चाहने लगे थे ।
- इस आंदोलन में कांग्रेस की कमजोरियों को भी स्पष्ट कर दिया । कांग्रेस के पास भविष्य के लिये आर्थिक, सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण वह भारतीय जनता में व्याप्त रोष का पूर्णतया उपयोग न सकी ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का अंत
जब सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे वेग के साथ आगे बढ़ रहा था तभी इंग्लैण्ड के
प्रधानमंत्री रेम्जे मैकडोनल्ड ने भारत की साम्प्रदायिक समस्या का हल निकालने के लिए हरिजनों को
भी पृथक निर्वाचन का अधिकार देने की घोषणा 16 अगस्त 1932 ई. कर दी । गाँधी जी ने इसके
विरोध में 20 सितम्बर को आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया किन्तु अंत में पूना समझौता द्वारा कुछ
संशोधन के साथ संयुक्त निर्वाचन का सिद्धांत मान्य हुआ । गाँधी जी ने 7 अप्रैल 1934 ई. को
सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कर दिया ।
Very useful
ReplyDeleteVery useful
ReplyDeleteNice and very nice
ReplyDeleteverryyyy nicceeee
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteAnswer nahi mil Raha hai sab ulta pulta diya hai
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Deleteकृपया यहाँ पढ़े सविनय अवज्ञा आंदोलन
Deletenot very useful but little useful
ReplyDeleteVery nice
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