परीक्षण वैधता का परीक्षण के उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। एक
अवैध परीक्षण कभी भी निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता। कोई परीक्षण
जितनी शुद्धता और सार्थकता से अपने उद्देश्यों का मापन करता है वह
परीक्षण उतना ही वैध होता है। अत: किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह
मात्रा है जिस सीमा तक वह उस वस्तु का मापन करता है जिसके लिए
उसका निर्माण किया गया है। कोई भी परीक्षण शत-प्रतिशत उद्देश्यों को पूरा
नहीं करता अर्थात् वह उस वस्तु का पूर्णरूपेण मापन नही कर पाता, जिसके
लिए उसका विकास किया जाता है। इस प्रकार यदि कोई परीक्षण उच्च
मात्रा में वही मापता है जिसे मापने के लिए उसका निर्माण किया गया है तो
उसे वैध परीक्षण कहेंगे।परीक्षण वैधता की परिभाषा
1. क्रानबेक (coronbach) के शब्दों मे ‘‘किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह सीमा है जिस सीमा तक वह, वही मापता है जिसके लिए उसका
निर्माण किया गया है।’’
2. फ्रीमैन (Freeman) के शब्दों में ‘‘वैधता का सूचकांक उस सीमा को व्यक्त करता है जहाँ तक परीक्षण उस तथ्य को मापता है जिसके मापन हेतु उसको बनाया गया है जबकि उसे किसी स्वीकृत कसौटी के सापेक्ष तौला जाता है।’’
3. गिलफोर्ड के अनुसार- ‘‘कोई परीक्षण उस सीमा तक वैध है जहाँ तक वह अपने उद्देश्य का मापन करता है।
1. विषयगत वैधता इस े पाठय् क्रम वैधता भी कहते है। इस प्रकार की वैधता उपलब्धि परीक्षण में देखी जाती हैं । यदि परीक्षण के प्रश्न या पद पाठयक्रम पर आधारित हो तथा प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम के प्रत्येक अंश से चुने गये हो तो वह परीक्षण वैध कहा जाता है। विषय वैधता स्थापित करने के लिए बाते महत्वपूर्ण है-
परीक्षण वैधता की परिभाषा
2. फ्रीमैन (Freeman) के शब्दों में ‘‘वैधता का सूचकांक उस सीमा को व्यक्त करता है जहाँ तक परीक्षण उस तथ्य को मापता है जिसके मापन हेतु उसको बनाया गया है जबकि उसे किसी स्वीकृत कसौटी के सापेक्ष तौला जाता है।’’
3. गिलफोर्ड के अनुसार- ‘‘कोई परीक्षण उस सीमा तक वैध है जहाँ तक वह अपने उद्देश्य का मापन करता है।
4. गैरेटे के शब्दों में ‘‘किसी परीक्षण या मापन उपकरण की वैधता इस
बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी शुद्धता से उस गुण का मापन करता
है। जिसके लिए उसे बनाया गया है।’’
क्रोनबैक ने वैधता कोचार भागों में विभाजित किया है-
परीक्षण वैधता के प्रकार
विभिन्न मापनविदो ने वैधता के भिन्न-भिन्न वर्गीकरण दिये हैं। कुछ प्रमुख वर्गीकरण है-क्रोनबैक ने वैधता कोचार भागों में विभाजित किया है-
- पूर्वकथनात्मक वैधता (Predictive Validity)
- विषयगत वैधता (Content Validity)
- समवर्ती वैधता (Concurrent Validity)
- संरचनात्मक वैधता (Construct Validity)
- संकार्यात्मक वैधता (Operational Validity)
- कार्यात्मक वैधता (Functional Validity)
- अवयवात्मक वैधता (Factorial Validity)
- रूप वैधता (Face Validity)
- रूप वैधता (Face Validity)
- विषयगत वैधता (Content Validity)
- अवयवात्मक वैधता (Factonial Validity)
- अनुभाविक वैधता (Empirical Validity)
- आन्तरिक वैधता (Internal Validity)
- सक्रियात्मक वैधता (Operational Validity)
- रूप वैधता (Face Validity)
- विषयगत वैधता (Content Validity)
- अवयवात्मक वैधता (Faetonial Validity)
- वाहय वैधता (External Validity)
- पूर्वकथनात्मक वैधता (Predictive Validity)
- संरचनात्मक वैधता (Construct Validity)
- समवर्ती वैधता (Concurrent Validity)
1. विषयगत वैधता इस े पाठय् क्रम वैधता भी कहते है। इस प्रकार की वैधता उपलब्धि परीक्षण में देखी जाती हैं । यदि परीक्षण के प्रश्न या पद पाठयक्रम पर आधारित हो तथा प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम के प्रत्येक अंश से चुने गये हो तो वह परीक्षण वैध कहा जाता है। विषय वैधता स्थापित करने के लिए बाते महत्वपूर्ण है-
- सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में से प्रश्न होने चाहिए,
- पाठ्यक्रम का कोई भाग छूटना नही चाहिए,
- पाठ्यक्रम के प्रत्येक भाग को उतना ही भार या महत्व मिलना चाहिए जितना आवश्यक हो
- प्रश्नों की भाषा एवं उसका कठिनाई स्तर छात्रों के स्तर के अनुकूल हो,
2. रूप वैधता - इस प्रकार की वैधता परीक्षण के
प्रश्नों के रूप को देखकर ही ज्ञात की जा सकती है। प्राय: उपलब्धि एवं
व्यक्तित्व में रूप वैधता ज्ञात की जाती हैं। इस प्रकार की वैधता केवल
परीक्षक पदों के रूप या प्रकृति को देखकर मालूम कर लेता है। उदाहरणार्थ
गणित के उपलब्धि परीक्षण के प्रश्नों की विषय-वस्तु, भाषा एवं रचना को
देखकर यह ज्ञात हो सकता है कि ये गणित से सम्बन्धित है या हीं। विज्ञान
के उपलब्धि परीक्षण के रूप को देखकर बताया जा सकता है कि ये विज्ञान
के ही परीक्षण है। इसमें विज्ञान सम्बन्धी तथ्यों, सम्प्रत्ययों सिद्धान्तों पर आध्
ाारित प्रश्न सम्मिलित किये जाते है। एनस्ेटसी के अनुसार- ‘‘रूप वैधता का तात्पर्य इस बात से नही है
कि परीक्षण द्वारा क्या मापन किया जाता है बल्कि इससे है कि परीक्षण किस
चीज का मापन करने वाला प्रतीत होता है।’’
3. तर्कसंगत वैधता - जब प्रश्न-पद उन्हीं
सम्बोधों या प्रत्ययो (concepts) या इकाइयों से सम्बन्धित हो जिन्हे मापन
करने का परीक्षण का उद्देश्य हो तो उसमें तर्कसंगत वैधता होती है। उदाहरणार्थ,
यदि गणित परीक्षण में उद्देश्य इकाइयों के सम्बोध का मापन करना है, न कि
समस्या हल करने की सामथ्र्य का, तो प्रश्न भी उसी प्रकार बनाने चाहिए, जैसे
‘‘यदि कमरे की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई क्रमश: 14 फीट, 10 फीट तथा
12 फीट हो, तो उसका आयतन-घन फीट होगा’’ इस प्रकार से विद्यार्थी की
समस्या को हल करने की योग्यता का पता चलता है क्योंकि इकाई ‘घन
फीट’ तो दी हुई हैं। पर यदि इकाई का मापन करना है तो निम्न प्रकार से
प्रश्न-रचना होनी चाहिए ‘यदि किसी कमरे की लम्बाई -चौड़ाई तथा ऊँचाई
क्रमश: 14 फीट, 10 फीट तथा 12 फीट है। तो इसका आयतन 1680 होगा।’’
4. कारक वैधता - पा्रय: बुद्धि एवं व्यक्तित्व
परीक्षणों में कारक वैधता ज्ञात की जाती है। ऐसे बुद्धि एवं व्यक्तित्व परीक्षण,
जहाँ विभिन्न गुणों योग्यताओं का मापन एक साथ होता है ऐसी स्थिति कारक
वैधता को कारक विश्लेषण द्वारा ज्ञात किया जाता है। किसी परीक्षण में जो
कारक या तत्व विद्यमान होता है, उस तत्व के मापन के लिए उस
परीक्षण का प्रयोग किया जाता है। दिये गये परीक्षण की वैधता कारक भार
से परिभाषित की जाती हैं। यह कारक भार, सम्पूर्ण परीक्षण का प्रत्येक
कारकों के साथ सह सम्बन्ध की गणना करके मालूम किया जाता हैं।
उदाहरणार्थ शब्द भण्डार परीक्षण, मौखिक कारक से .80 सहसम्बन्धित है
अत: .80 परीक्षण की कारक वैधता कही जायेगी।
5. पूर्व कथन वैधता - किसी परीक्षण में
पूर्व-कथन वैधता तब होती है जब इसके फलांक किसी भावी योग्यता या
सामथ्र्य के बारे में पूर्व कथन करें। पूर्व कथनात्मक वैधता ज्ञात करने के लिए
सर्वप्रथम परीक्षण का प्रशासन करके फलांक प्राप्त कर लेते है। कुछ समय
पश्चात् किसी कसौटी के आधार पर हम उसी पूर्व’परीक्षित समूह का मूल्यांकन
करते है और फलांक लिख लेते है। इन दोनों फलांकों की श्रेणियों में
सहसम्बन्ध ज्ञात कर लिया जाता है, जैसे- प्री-मेडीकल परीक्षा में प्राप्त
फलांकों का प्रवेश के बाद कक्षा में प्राप्त फलांकों से सहसम्बन्ध एवं विक्रेता
या लिपिक अभियोग्यता-परीक्षणों के फलांकों का भविष्य में विक्रय की मात्रा
या लिपिक-योग्यता से सह-सम्बन्ध। पूर्व-कथनात्मक वैधता
अभियोग्यता-परीक्षणों एवं व्यावसायिक चुनाव सम्बन्धी परीक्षणों में अत्यन्त
आवश्यक है।
6. समवर्ती वैधता - समवर्ती वैधता ज्ञात
करने के लिए सर्वप्रथम परीक्षण प्रशासित करके फलांक प्राप्त कर लेते है,
तत्पश्चात, किसी अन्य विधि या परीक्षण से योग्यता की जाँच करके फलांक
प्राप्त कर लेते है और फिर इन दोनों में सह-सम्बन्ध ज्ञात करते है। उदाहरण
के लिए किसी सामूहिक मानसिक परीक्षण की तुलना व्यक्तिगत मानसिक
परीक्षण से की जा सकती है। नये परीक्षणों की समवर्ती वैधता पूर्व-स्थापित
ख्याति प्राप्त परीक्षण से सह-सम्बन्ध निकालकर की जा सकती है। इसलिए
अनेक बुद्धि-परीक्षणों को स्टेनफोर्ड-बिने या वेश्लर बुद्धि परीक्षण से सह-सम्बिन्ध्
ात किया गया है। जब पूर्व-स्थापित परीक्षणों से सह-सम्बन्ध निकाला जाये
तो यह देख लेना चाहिए कि उनमें स्वयं उच्च वैधता हो।
7. अन्वय वैधता - अन्वय वैधता किसी
परीक्षण की वह सीमा है जिस सीमा तक वह किसी सैद्धान्तिक अन्वय या
शीलगुण का मापन करता है। इस प्रकार के अन्वय के उदाहरण बुद्धि,
शाब्दिक प्रवाह, चलने की गति तथा दुश्चिता आदि से है। अन्वय वैधता अश्चिाक विस्तश्त क्षेत्र पर केन्द्रित होने के कारण इसके लिए अनेक स्रोतों से सूचनाएँ
एकत्र करनी पड़ती है। किसी भी शील गुण की प्रकृति से सम्बन्धित तथा
उसके विकास को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों से सम्बन्धित प्रदत्त, इस
प्रकार की वैधता ज्ञात करने के लिए आवश्यक होते है।
जब एक परीक्षण निर्माता यह ज्ञात करना चाहता है कि किसी फलांक का मनोवैज्ञानिक अर्थ क्या है या किस कारण एक व्यक्ति कोई विशिष्ट फलांक प्राप्त करता है तो उसका अर्थ यह जानना होता है कि परीक्षण में योग्यता की व्याख्या किन सम्बोधों (Concepts) के आधार पर की जाती है। इस प्रकार के सैद्धान्तिक सम्बोधों को अन्वय (Construct) कहते है और इस प्रकार की व्याख्या के वैधकरण को अन्वय वैधकरण कहते है। अन्वय वैधता ज्ञात करने के लिए परीक्षण पर प्राप्त अंकों तथा अन्य गुणों के प्राप्तांकों के बीच सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। कारक विश्लेषण (Factor Analysis) नामक सांख्यिकीय विधि के द्वारा भी अन्वय वैधता स्थापित की जाती है।
जब एक परीक्षण निर्माता यह ज्ञात करना चाहता है कि किसी फलांक का मनोवैज्ञानिक अर्थ क्या है या किस कारण एक व्यक्ति कोई विशिष्ट फलांक प्राप्त करता है तो उसका अर्थ यह जानना होता है कि परीक्षण में योग्यता की व्याख्या किन सम्बोधों (Concepts) के आधार पर की जाती है। इस प्रकार के सैद्धान्तिक सम्बोधों को अन्वय (Construct) कहते है और इस प्रकार की व्याख्या के वैधकरण को अन्वय वैधकरण कहते है। अन्वय वैधता ज्ञात करने के लिए परीक्षण पर प्राप्त अंकों तथा अन्य गुणों के प्राप्तांकों के बीच सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। कारक विश्लेषण (Factor Analysis) नामक सांख्यिकीय विधि के द्वारा भी अन्वय वैधता स्थापित की जाती है।
परीक्षण वैधता स्थापित करने की विधियाँ
परीक्षण की वैधता ज्ञात करने की विधियों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है-- ताकिर्क विधियाँ (Rational Methods) या आन्तरिक कसौटी (Internal Criterion) पर आधारित विधियाँ
- सांख्यिकीय विधियाँ (Statistical methods) या वाह्य कसौटी (External Criterion) पर आधारित विधियाँ
2. सांख्यिकीय विधियां या बाह्म कसौटी पर आधारित
विधियाँ - किसी परीक्षण की वैधता ज्ञात करने के लिए सह-सम्बन्ध गुणाकं ,
टी-परीक्षण, कारक विश्लेषण, द्विपाँतिक सहसम्बन्ध, चतुवकोण्टिक सह-
सम्बन्ध, बहु सहसम्बन्ध जैसी सांख्यिकीय विधियों का भी प्रयोग किया जाता
हैं। इसके अन्तर्गत पूर्व कथित वैधता, समवर्ती वैधता, तथा कारक वैधता
सांख्यिकीय आधार पर ही स्थापित की जाती है। इन विधियों में किसी बाह्म
कसौटी के आधार पर वैधता गुणांक ज्ञात किया जाता है। इसलिए इस प्रकार
की वैधता को बाह्म कसौटी पर आधारित वैधता भी कहा जाता है।
परीक्षण वैधता को प्रभावित करने वाले कारक
1. अस्पष्ट निर्देश (Unclear Instruction)- परीक्षण के सम्बन्ध में यदि परीक्षार्थियों को स्पष्ट निर्देश नही दिये जाते है तो परीक्षण की वैधता कम हो जाती हैं। जैसे प्रश्नों के उत्तर किस तरह से देने है या समय सीमा क्या हो जैसी अन्य बातों को परीक्षार्थियों को ठीक ढंग से न मालूम होने के कारण परीक्षण की वैधता कम हो जाती है।2. अभिव्यक्ति का माध्यम (Medium of Expression)- यदि
परीक्षण परीक्षार्थियों की मातश् भाषा या उनके क्षेत्रीय भाषा में निर्मित किया
जाता है तो वे परीक्षण के प्रश्नों को ठीक प्रकार से समझकर उनका उत्तर दे
सकेगे जैसे हिन्दी भाषी छात्रों के लिए अंग्रेजी भाषा में बने गणित परीक्षण का
प्रयोग करने पर परीक्षण की वैधता अत्यन्त कम प्राप्त हो सकेगी।
3. प्रश्नों की भाषा एवम शब्दावली (language and Vocabulary
of Items)- परीक्षण यदि परीक्षार्थियों के लिए अत्यधिक क्लिष्ट शब्द तथा
साहित्यिक भाषा में होगा तो भी परीक्षण की वैधता कम प्राप्त हो सकेगी।
4. प्रश्नों का कठिनाई स्तर- परीक्षण में पय्रुक्त अत्यधिक सरल
व कठिन प्रश्नों से भी परीक्षण वैधता घट जाती हैं। इसके अतिरिक्त प्रारम्भ
में कठिन प्रश्नों के रखे जाने से भी छात्र अधिक समय उन पर लगा देते है।
5. प्रश्नों की वस्तुनिष्ठता- वस्तुनिष्ठ परीक्षणों की वैधता अधिक
होती है जबकि निबन्धात्मक परीक्षणों की वैधता कम पायी जाती है।
6. प्रकरणों का अवांछित भार- परीक्षण में यदि मापी जा रही
योग्यता की सभी विमाओं को परीक्षण में सम्मिलित नही किया गया है कुछ
को अंवाछित भार दे देने के कारण भी परीक्षण परिणामों की वैधता कम हो
जाती है।
7. मापन का उद्देश्य (Objective of Measurement) कोई भी
परीक्षण जिन निश्चित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर निर्मित किया जाता है
परीक्षण की वैधता उन्ही निश्चित उद्देश्यों के लिये हो वैध होती है। अन्य
उद्देश्यों लिये वह वैध नही होगा।
8. परीक्षण की लम्बाई (Length of the Test)- परीक्षण में प्रश्नों की संख्या बढ़ाने से न केवल विश्वसनीयता बढ़ती है अपितु वैधता भी बढ़
जाती है। किन्तु परीक्षण की लम्बाई बढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि
प्रश्नों के प्रकार रूप, विषय वस्तु कठिनाई स्तर आदि में कोई परिवर्तन नही
आना चाहिए, परीक्षण की लम्बाई तथा उसकी वैधता के सम्बन्ध को निम्न सूत्र
से व्यक्त किया जा सकता है। जहाँ-
rc1 = सहसम्बन्ध के रूप में मूल परीक्षण का निकष वैधता गुणांकrcn = सहम्बन्ध के रूप में संशोधित (n गुने) परीक्षण का निकष वैधतागुणांकr = मूल परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक
9. सांस्कृतिक प्रभाव- (Cultural Influencess)- किसी सामाजिक
आर्थिक स्तर, वर्ग रचना, शैक्षिक विभिन्नता आदि का छात्र की बुद्धि अभिक्षमता,
रूचि तथा अभिवृत्ति पर प्रभाव पड़ता है अत: एक सांस्कृतिक परिस्थिति में बना
परीक्षण दूसरी सांस्कृतिक परिस्थिति में रहने वाले परीक्षार्थियों या प्रयोज्यों के
लिए उपयुक्त नही होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक
तत्व परीक्षण-वैधता को प्रभावित करते है।
10. प्रतिक्रिया प्रवृत्ति (Response Sets)- प्रतिक्रिया प्रवृत्ति से
तात्पर्य छात्र की परीक्षण पर उत्तर देने की आदत से है। जैसे सहमति प्रवृत्ति
में व्यक्ति बिना सहमत हुए भी अधिकांश प्रश्नों पर हाँ, सत्य या सहमति पर
निशान लगाता है। उसी प्रकार अनिश्चय की प्रवश्त्ति वाला छात्र अधिकांशत:
अनिश्चितता, उदासीनता, आदि पर निशान लगाता है। परीक्षण प्राप्तांकों को
प्रभावित करके उनकी वैधता को कम कर देती है।
11. वैधता के मूल्य पर अधिक विश्वसनीयता- परीक्षण मे प्रश्नों
की संख्या बढ़ने से विश्वसनीयता बढ़ती है लेकिन इससे कभी-कभी वैधता में
कमी हो जाती है। इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि परीक्षण की
विश्वसनीयता बढ़ाते समय ऐसे ही प्रश्न जोड़े जाय जो परीक्षण की वैधता को
भी बढ़ा सकें।
Very good discription
ReplyDeleteBakwas 😆😆😆🤔🤗🤗
DeleteIski pdf mil sakti hai
ReplyDeleteAuthentic book se hoto plz?