अनुक्रम
इस में हम आपको उन कानूनों के विषय में बतायेगें जिनका की मुख्य रूप से
संस्था वाले ज्ञान रखते है एवं जिनके माध्यम से वे जनहित सुनिश्चित करते है। यहॉ
विभिन्न प्रकार के अधिकारों , कानूनों एवं अधिनियमों की विस्तृत चर्चा की गयी है
जिसके अध्ययन के पश्चात आप यह जान सकेगें कि गैर सरकारी संगठन किस प्रकार
से कार्य कर इन कानूनों का सहारा लेकर जनहित की रक्षा करते है तथा वे कौन से
ऐसे कानून है जो मुख्य रूप से जनहित सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करते हैं।
इस अधिनियम के तहत, प्रत्येक महिला कर्मचारी जिसने अपने प्रत्याषित प्रसव से तुरंत पहले बारह महीनों के दौरान कम से कम 80 दिन काम किया हो वह निम्न मैटर्निटी बैनिफिट प्राप्त करने की अधिकारी है-(i) 12 सप्ताह की अवधि के लिए मैटर्निटी छुट्टी जो कि प्रसव से पहले या बाद में ली जा सकती है, और (ii) औसत दैनिक वेतन की दर पर, अपनी वास्तविक अनुपस्थिति की अवधि के लिए मैटर्निटी वैनिफिट। इसके अतिरिक्त, एक महिला कर्मचारी, गर्भपात, चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति ट्यूबैक्टोमी आपरेषन, गर्भ धारण, डिलिवरी, बच्चे का समय-पूर्व जन्म, मिसकैरिज, चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति, या ट्यूबेक्टोमी आपरेषन से सम्बंधित रोकग के होने पर भी मैटर्निटी बैनिफिट प्राप्त करने का अधिकार रखती है। महिला कर्मचारी, जो मैटर्निटी बैनिफिट की अधिकारी है, उसको 250 रूपये का मेडिकल बोनस भी दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक महिला जब बच्चे के जन्म के बाद डयूटी पर वापिस आती है, जो बच्चे के 15 महीने की आयु प्राप्त करने तक उसको 15 मिनट के दो नर्सिग बेक्र भी दिए जाएंगें। अधिनियम के तहत नियोक्ता को निम्नलिखित का करना जरूरी है:
प्रसवपूर्ण जाँच तकनीक नियमन और रोकथाम अधिनियम, 1994 : इस अधिनियम में प्रसव से पहले गर्भ में लिंग की जाँच और उसका निर्धारण करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की तकनीक, जिसमें अल्ट्रासाउंड भी शामिल है, को नियमित करने के लिए प्रावधान है और सिर्फ लिंग के आधार पर लड़की पैदा होने की संभावना पर गर्भ को गिराने वाले डाक्टरों के लिए दण्ड की व्यवस्था भी निर्धारित की गई है। फिर भी, इस तरह के नियमों के कुख्यात उल्लंघन, अधिकांश मामलों में बिना दण्ड पाये ही रह जाते हैं। यह अधिनियम, लिंग का पहले चयन करने की धीरे-धीरे बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने में असमर्थ साबित हुआ है।
(a) कोई व्यक्ति जो उसकी पुलिस चौकी के इलाके की सीमाओं में घूमता फिरता हुआ नजर आये और जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने के कारण हों, कि वह मानसिक तौर पर रोगी है और अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता; और
(b) कोई व्यक्ति जो उसकी पुलिस चौकी की सीमाओं है जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने के कारण हों िक वह मानसिक रोगी होने के करण खतरनाक हो सकता है
इस प्रकार रोक के रखे गए व्यक्ति को 24 घंटों के भीतर मजिस्टेट्र के समक्ष पेश किया जाएगा। मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति की समझ बूझ की जाँच करेगा और चिकित्सा अधिकारी से उसकी जाँच करायेगा और आवश्यक पूछताछ करेगा। मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को अन्तरंग रोगी के रूप में इलाज कराने के लिए किसी मानस रोग अस्पताल या नर्सिग होग में दाखिल करने का आदेश जारी कर सकता है।
इसके अतिरिक्त अगर किसी व्यक्ति को किन्हीं कारणों से यह विश्वास हो जाता है कि अमुक व्यक्ति मानसिक रोगी है, और वह उचित देखभाल और नियंत्रण में नहीं है, या उसके रिश्तेदार उसके साथ दुव्र्यवहार करते है या उस की परवाह नहीं करते, तो वह ऐसे व्यक्ति के बारे में अपने इलाके के मजिस्ट्रेट को, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह इलाका आता है, इसकी रिपोर्ट कर सकता है।
(a) कोई भी व्यक्ति जो:
(a) स्वत: या किसी पीड़ित व्यक्ति या उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत की गई याचिका पर निम्न शिकायतों की जाँच करना- ;
(c) राज्य सरकार के नियंत्रण में किसी जेल या अन्य संस्थान जहां लोगों को उपचार, सुधार या सुरक्षा के लिए रोका या बन्धक रखा जाता है, राज्य सरकार को सूचित करके उनमें रखे गए व्यक्तियों के जीवन के हालात का अध्ययन करने के लिए उन स्ािानों पर जाकर निरीक्षण करना और उन पर अपनी सिफारिशें देना;
(d) मानवाधिकार की रक्षा करने के निमित संविधान या यथा समय लागू किसी कानून में किए गए सुरक्षा उपायों पर पुनर्विचार करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपाय सुझाना;
(e) मानवाधिकारों के उपभोग में रोड़ा अटकाने वाले कारणों, जिनमें आतंकवाद की कार्रवाई भी शामिल है, पर पुनर्विचार करना और उनके उपचार के लिए उपयुक्त उपायों की सिफारिशें करना;
(f) मानवाधिकारों पर किए करारों और अन्य अन्तर्राश्ट्रीय दस्तावेजों का अध््रययन करना और उनके प्रभावकारी कार्यपालन के लिए सिफारिशें करना;
(g) मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान करना या उसे प्रचारित करना; ऋऋऋ प्रकाशनों, मीडिया, सम्मेलनों और अन्य उपलब्ध साधनों के जरिये समाज के विभिन्न अंगों में मानवाधिकार सम्बंधित जानकारी फेलाना और मानवाधिकार की रक्षा के लिए जो सुरक्षा प्रबंध उपलब्ध हैं, उनके प्रति जागरूकता प्रचारित करना;
(h) मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयत्नों को प्रोत्साहित करना।
(i) और कोई भी ऐसी कार्रवाईयां करना जो मानवाधिकारों को बढ़ाने के लिए वह आवश्यक समझे।
अधिनियम में पशुओं के साथ नृशंसता का व्यवािर करने पर दण्ड की व्यवस्था है। अपने पशुओं को कोड़े लगाना, ठोकर मारना, दौड़ा-दौड़ा कर थकाना, अधिक भार लादना, घोर यंत्रणा देना, पशु से ऐसी मेहनत का काम कराना जिसके लिए वह योग्य न हो, पशु को घातक ओशधी या कोई पदार्थ खिलाना, पशु को ऐसे ढ़ंग से भेजना या ले जाना जिससे उसको अनावश्यक पीड़ा हो, पशु को अनुपयुक्त आकार के पिंजरे में रखना या बन्द करना, पर्याप्त खाना या पानी या रहने की जगह न देना आदि नृशंसता कहे जाते हैं।
नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछुत को समाप्त कर दिया गया है और इसकी किसी भी रूप में अपनाने की मनाही है। इस सत्यनिश्ठ बचनबद्धता को लागू करने के लिए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 बनाया गया है।
‘छुआछूत’ की परिभाषा किसी भी कानून में नहीं की गई है। इसमें कठोर भारतीय जाति प्राथा के अन्तर्गत स्वीकृत रूढ़ि, रिवाज शामिल हैं, जिनके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को हिन्दू मन्दिरों सार्वजनिक स्थानों, गलियों, सार्वनिक वाहनों, भोजनालयों, शिक्षा संस्थानों, आदि में प्रवेश से वंचित रखा गया था।
यह अधिनियम ‘छुआछुत’ के आधार पर निम्न रिवाजों पर रोक लगाता है:- जैसे कि मन्दिर में प्रवेश और पूजा अर्चनका करने, दुकानों और भोजनालयों में जाने, कोई पेशे या व्यापार करने, पानी के स्रोतों, सार्वजनिक स्थलों और आवासीय स्थानों, सार्वजनिक परिवहन, अस्पताल, शिक्षा संस्थानों का प्रयोग करने, आवासीय स्थानों का निर्माण और उनमें रहने, धार्मिक संस्कार कराने, आभूषणों और सुन्दर वस्तुओं को धारण करने आदि को रोकने में जोर जबरदस्ती करना।
इस प्रकार, छुआछुत के आधार पर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति को कूड़ा कर्कट उठाने, या सफाई के लिए झाडू लगाने, किसी शव को उठाके ले जाने, किसी जानवर की खाल खीचने या इसी तरह का कोई अन्य काम करने के लिए मजबूर करना इस अधिनियम के तहत निशिद्ध है और दण्डनीय है। इसक साथ ही, अगर कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी भी तरह छुआछुत या इसके किसी भी रूप में व्यवहार करने पर उपदेश देता है, या ऐतिहासिक, आध्यात्मिक या धार्मिक आधार पर, या जाति प्रथा के आधार पर या किसी पर अन्य आधार या कारणों से छुआछुत के व्यवहार को सही ठहराता है तो वह दण्डनीय है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निषेध) अधिनियम, 1989 : इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर नृशंसता का व्यवहार करने पर रोक लगाने, और इस प्रकार के अपराधों की सुनावाई के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने और इस अपराधों से पीड़ित लोगों को राहत और पुनर्वास करने की व्यवस्था की गई है। अधिनियम की धारा 3 में किसी गैर SC|ST व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले नृशंसता के व्यवहार, जिसके लिये सजा हो सकती है, की सूची में निम्लिखित शामिल हैं:-
बाल कल्याण
भारत के संविधान में बाल कल्याण से सम्बंधित विभिन्न संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार है:-- अनुच्छेद 24 : चौदह वर्ष से कम आयु का कोई भी बालक किसी फैक्टरी या खान या खतरनाक रोजगार में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 39 (e): कर्मचारियों, पुरूर्षो और महिलाओं, के स्वास्थय और शक्ति, और बच्चों की नाजुक उम्र का दुरूपयोग नहीं किया जाएगा और नागरिकों का उनकी आर्थिक मजबूरी के कारण अनुचित लाभ उठाकर, उनकी आयु और शक्ति के लिए उनुपयुक्त उप-व्यवसायों में लगाने में जबरदस्ती नहीं की जाएगी।
- अनुच्छेद39 (f): बच्चों को स्वस्थ ढंग से, और स्वतंत्रता और सम्मान के वातावरण में विकास करने के अवसर और सुविधाएं दी जाएंगी, और सुविधाएं दी जाएंगी, और उनके बचपन और युवावस्था को शोषण से तथा नैतिक और भौतिक उपेक्षा से बचाया जाएगा।
- अनुच्छेद 41: शासन अपनी आर्थिक सामथ्र्य और विकास की सीमाओं के अन्तर्गत, काम करने के अधिकार, शिक्षा पाने के अधिकार, और बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और अपंगता और जरूरतमंदों की आवश्यकताओं के अन्य मामलो में सार्वजनिक सहायता उपलब्ध कराने के प्रभावकारी इंतजाम करेगा।
- अनुच्छेद 45: शासन संविधान के लागू होने से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बच्चों को उनके चौदह वर्ष की आयु पूर्ण होने तक, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयत्न करेगा।
- अनुच्छेद 47: शासन अपने लोगों के पोशण के स्तर को बढ़ाने और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने और जनता के स्वास्थ्य में सुधार लाने को उसके प्राथमिक कत्र्तव्य समझेगा और विशेष रूपसे शासन मदिरापान और नशीली दवाईयों के प्रयोग, सिवाये औशधी के रूप में निषेध की पूरी कोशिश करेगा। शासन की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि बच्चों का दुरूपयोग न किया जाए और नागरिकों काम करने के लिए मजबूर न किया जाए।
बाल मजदूरी (निषेध और विनियम) अधिनियम, 1986
यह अधिनियम बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए लागू किया गया था। यह कानून यह प्रावधान करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को फैक्टरियों में खतनाक काम करने से दूर रखा जाए। इसमें 18 उद्योगों की एक सूची तैयार की गई हे जो खतरनाक है। क्योंकि वे स्पष्ट रूप् से बच्चों के लिए हानिकारक है। इनमें बीड़ी बनाना, कालीन बुनना, सीमेंट उत्पादन, माचिस, विस्फोटक पदार्थ और पटाखे आदि शामिल हैं। इस अधिनियम के अनुसार अन्य स्थापनाओं में काम करने वाले बच्चों के लिए काम का समय (घंटे), काम की अवधि साप्ताहिक छुट्टियों आदि को भी नियंत्रित किया गया है। एन0 जी0 ओ0 के कार्यकर्ताओं को अवश्य ही सरकारी कर्मचारियों के साथ सहयोग करना चाहिए, और बच्चों कोखतरनाक काम की परिस्थितियों से हटाने के लिए सृजनात्मक तरीके ढ़ूँढने चाहिए। ग्रास रूट स्तर पर लोगों को बाल मजदूरी को समाप्त करने और बाल मजदूरों के पुनर्वास के लिए स्वयं काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।हिन्दू दत्तक और संरक्षण अधिनियम, 1956
इस अधिनियम के प्रावधानों (धारा 20) के तहत, एक हिन्दू व्यक्ति (पुरूष/स्त्री) अपने जीवन काल में अपने वैध/अवैध बच्चों के भरण-पोशण के प्रति बाध्य है। एक वैध/अवैधय बच्चा जब तक नाबालिग (18 वर्ष से कम आयु का) होता है तब तक अपने पिता या माता से भरण-पोशण (संरक्षण) की मांग कर सकता है। ‘भरण-पोशण’ (संरक्षण) की परिभाषा में खाद्य सामग्री, वस्त्र रिहायष, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल और उपचार शामिल है। अविवाहित पुत्री के मामले में, उसके विवाह पर होने वाला उपयुक्त खर्च भी इसमें शामिल है।भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875
इस अधिनियम में यह व्यवस्था दी गई है कि भारत का प्रत्येक निवासी, निम्नलिखित मामलें को छोड़कर, 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर वयस्क (बालिग) हो जाता है:- वे व्यक्ति जिनके बारे में या जिनकी सम्पत्ति या दोनों के बारे में अभिभावक नियुक्त किया गया हो,
- वे व्यक्ति जिनकी सम्पत्ति के बारे में देख-रेख की जिम्मेदारी किसी अभिभावकों के न्यायालय ने ली हो, इन मामलों में 21 वर्ष पूरे होने पर ही व्यक्ति बालिग माना जाएगा।
किशोरों के लिए न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम, 2000
इस अधिनियम में किशोरों के विकास की जरूरतों को पूरा कर उन्हें समुचित देखभाल, सुरक्षा और सद्वयवहार प्रदान करने, बच्चों के सर्वोत्तम हित में मुद्दों पर विचार और निर्णय करते समय बाल-मित्रवत-रास्ता अपनाने और विभिन्न संस्थानों के जरिये उनके पुनर्वास का प्रावधान है। अधिनियम एक किशोर या बच्चे, जिसने 18 वर्ष पूरे न किये हों, की देखभाल और सुरक्षा के लिये है। कानून से संघर्श में एक किशोर वह होता हैं जिस पर कोई अपराध करने का आरोप हो। इस अधिनियम में एन0 जी0 ओ0 की भूमिका इस प्रकार है:-- कानून से संघर्श कर रहे अल्प वयसकों के अस्थायी आवास के लिए निरीक्षण गृह स्थापित करना जिनमें उन्हें उनके विरूद्ध चल रही जाँच के दौरान रखा जाए,
- कानून के संघर्श कर रहे अल्प वयस्कों के आवास और पुनर्वास के लिए विशेष गृह स्थापित करना,
- अल्प वयस्क न्याय बोर्ड के समक्ष वयस्क पर एक सामाजिक जाँच रिपोर्ट पेश करना ताकि बोर्ड उस पर यथोचित आदेश पारित करे,
- बाल कल्याण समिति के समक्ष किसी बच्चें को पेश करना जिसे देखभाल और सुरक्षा की जरूरत हो,
- किसी जाँच के चलते जिन बच्चों को देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है, और बाद में उनकी देखभाल उपचार, शिक्षा, प्रशिक्षण विकास और पुनर्वास के लिए बाल गृह स्थापित करना,
- जिन बच्चों को तुरन्त सहायता की आवश्यकता है उनके लिए आश्रय गृह स्थापित करना जो उनके लिए ड्राप-इन सेंटर का काम करेंगे,
- गोद लेने, पालन पोशण देखभाल, प्रायोजन और बच्चे को किसी परिचर्या संगठन में भेजकर, बाल गृह या विशेष गृह में रह रहे बच्चों के पुनर्वास और सामाजिक जुड़ाव की व्यवस्था करना, 8. बच्चों या अल्प वयस्कों के बाल गृह या विशेष गृह छोड़ने के बाद उनकी देखभाल के उद्देश्य से परिचर्या संगठन स्थापित करना ताकि वे ईमानदार, मेहनतकश और उपयोगी जीवन बिता सकें।
- किसी अल्प वयस्क या बच्चे पर प्रहार या नृशंसता का व्यवहार,
- किसी बच्चे को काम पर रखना या उसका प्रयोग करना या उससे भीख मांगने का काम कराना,
- किसी अल्प वयस्क या बच्चे को मादक शराब या कोई नारकोटिक ड्रग या साइकोट्रापिक वस्तु देना या देने के लिए मजबूर करना,
- किसी खतनाक नौकरी पर लगाने के लिए, किसी अल्प वयस्क या बच्चे का दुरूपयोग करना, उसे बंधक रखना और उसकी कमाई राशि उसे न देना या उस राशि को अपने लिए प्रयोग में लाना।
बाल विवाह निरोध अधिनियम, 1929
इस अधिनियम में बाल विवाह सम्पन्न करने का निरोध है। ‘बाल विवाह’ एक ऐसा विवाह है जिसमें पुरूष ने 21 वर्ष की आयु पूरी न की हो और /या महिला ने 18 वर्ष की आयु पूरी न की हो । इस अधिनियम में निम्नलिखित के लिए दण्ड का प्रावधान है:- पुरूष वयस्क जो बाल विवाह का सम्बंध बनाता है,
- व्यक्ति जो बाल विवाह करवाता है या उसका निर्देश देता है, और
- नाबालिग बच्चे के मात-पिता या संरक्षक जो बाल विवाह कराते है।
महिला कल्याण
प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961 : मैटर्निटी बैनिफिट एक्ट, 1961 का उद्देश्य शिशु जन्म के पूर्व तथा जन्म के पश्चात् के कुछ समय-काल में महिला कर्मचारियों के रोजगार को नियंत्रित करना और मैटर्निटी और कुछ अन्य लाभों की व्यवस्था करना हैं। या वह होने है। इस अधिनियम के दायरे में, सभी फैक्टरियां, खाने, बागान, घुड़सवारी कलाबाजी और अन्य कर्तब के प्रदर्शन में कार्यरत संस्थापनाएं और दुकान और संस्थापनाएँ आती हैं जहां एक वर्ष के दौरान किसी एक समय पर 10 या इससे अधिक व्यक्ति काम पर रखे गए हों। (सिवाय उन के जो ESI Act बज के दायरे में आते हैं)।इस अधिनियम के तहत, प्रत्येक महिला कर्मचारी जिसने अपने प्रत्याषित प्रसव से तुरंत पहले बारह महीनों के दौरान कम से कम 80 दिन काम किया हो वह निम्न मैटर्निटी बैनिफिट प्राप्त करने की अधिकारी है-(i) 12 सप्ताह की अवधि के लिए मैटर्निटी छुट्टी जो कि प्रसव से पहले या बाद में ली जा सकती है, और (ii) औसत दैनिक वेतन की दर पर, अपनी वास्तविक अनुपस्थिति की अवधि के लिए मैटर्निटी वैनिफिट। इसके अतिरिक्त, एक महिला कर्मचारी, गर्भपात, चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति ट्यूबैक्टोमी आपरेषन, गर्भ धारण, डिलिवरी, बच्चे का समय-पूर्व जन्म, मिसकैरिज, चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति, या ट्यूबेक्टोमी आपरेषन से सम्बंधित रोकग के होने पर भी मैटर्निटी बैनिफिट प्राप्त करने का अधिकार रखती है। महिला कर्मचारी, जो मैटर्निटी बैनिफिट की अधिकारी है, उसको 250 रूपये का मेडिकल बोनस भी दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक महिला जब बच्चे के जन्म के बाद डयूटी पर वापिस आती है, जो बच्चे के 15 महीने की आयु प्राप्त करने तक उसको 15 मिनट के दो नर्सिग बेक्र भी दिए जाएंगें। अधिनियम के तहत नियोक्ता को निम्नलिखित का करना जरूरी है:
- मैटर्निटी बैनिफिट और मेडिकल बोनस का भुगतान,
- नर्सिग ब्रेक देना,
- महिला कर्मचारी को उसकी डिलिवरी, या मिसकैरिज या चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति की तारीख के तुरन्त बाद 6 सप्ताह की अवधि तक काम पर नहीं रखना,
- किसी गर्भवती महिला कर्मचारी से कोई श्रम-साध्य काम जिसमें लम्बे समय तक खड़ा रहना पड़े या कोई ऐसा काम जो उसके गर्भावस्था पर विपरीत प्रभाव डाले, या मिसकैरिज का कारण बने या उसकी सेहत पर बुरा असर डोले, या मिसकैरिज का कारण बने या उसकी सेहत पर बुरा असर डाले, संभावित डिलिवरी से पहले के छह हफ्ते से एक मास पूर्व और उक्त छह हफ्ते के दौरान नहीं करवाना,
- मैटर्निटी छटु ट् ी के दौरान उस गर्भवती महिला कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकालना या नौकरी से बर्खास्त नहीं करना।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
इस अधिनियम में पुरूषों और महिला कर्मचारियों को एक ही काम पर या समान प्रकार के काम पर रखने पर एक बराबर पारिश्रमिक देने की व्यवस्था है। और साथ ही रोजगार के मामले में लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव बरतने पर रोक है। यह अधिनियम लगभग सभी तरह की संस्थापनाओं पर लागू होता है।दहेज निषेध अधिनियम, 1961
इस अधिनियम में दहेज देने या लेने पर प्रतिबंध लगाया गया है। दहेज का अर्थ है कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति (security) जो विवाह से पूर्व या विवाह के पष्चात, सीधे या परोक्ष रूप में, “ाादी से सम्बंधित किसी एक पार्टी (या वर/वधु माँ-बाप या किसी अन्य व्यक्ति) द्वारा किसी दूसरी पार्टी (या वर/वधु के माँ-बाप या किसी अन्य व्यक्ति) को दी गई हो या देना स्वीकार किया गया हो। इस अधिनियम में निम्नलिखित के लिए दण्ड का प्रावधान है:-- दहेज देना या लेना या दहेज देने या लेने के प्रेरित करन,
- किसी दुल्हन या दुल्हे के माँ-बाप, रिश्तेदारों या संरक्षक से दहेज की मांग करना,
- पिंट्र मीडिया में विज्ञापन के जरिये दहेज देने की पेशकश करना,
- दहेज की पेशकश करने वाले किसी विज्ञापन को छापना, प्रकाशित करना या वितरित करना,
- दुल्हन के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए गए दहेज को दुल्हन को हस्तांतरित न करना। दहेज देने और लेने सम्बंधित कोई भी करार रद्द माना जायेगा। अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि दुल्हन के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा प्राप्त दहेज की वस्तु अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक दुल्हन को हस्तांतरित कर दी जाएगी, और जब तक वह हस्तान्तरित नही की जाती, उसको दुल्हन के हित के लिए, धरोहर के रूप में रखा जाएगा।
सती प्रथा (निषेध) अधिनियम, 1987
यह अधिनियम सती होने से रोकने और सती प्रथा का गुणगान करने और उससे सम्बंधित मामलों के संबंध में बनाया गया है। अधिनियम की धारा 2(c) में ‘सती’ की परिभाषा में निम्नलिखित व्यक्ति को जिन्दा अग्नि में जलाना या जमीन में गाड़ दिया जाना, आता है-- विधवा को उसके मृतक पति, या उसके किसी रिश्तेदार, या उसके पति से या उस रिश्तेदार से जुड़ी किसी वस्तु, पदार्थ या मद के साथ; या
- किसी स्त्री को उसके किसी रिश्तेदार के शव के साथ,चाहे यह जलना या जमीन में गाड़ना उस विधवा या उस स्त्री की अपनी मर्जी से किया जा रहा हो या अन्यथा हो।
(a) कोई व्यक्ति जो सती होने की कोशिश करता है के लिए प्रेरित करता है या
निम्नलिखित कार्रवाई के द्वारा सती होने की कोशिश करता है या सती होने के
लिए कोई कार्रवाई करता है
(b) कोई व्यक्ति, जो सती होने के लिए प्रेरित करता है या निम्नलिखित कार्रवाई के
द्वारा सती होने के कोशिश के लिए उकसाता है:-
- किसी विधवा या किसी स्त्री को उसके मृतक पति के शव या उसके किसी रिश्तेदार के शव के साथ आग में जलने या जिन्दा जमीन में गाड़ने के लिए राजी करना
- किसी विधवा या स्त्री को यह विश्वास दिलाना कि सती होने का परिणाम यह होगा कि उसको, या उसके मृतक पति को, या रिश्तेदार को, आध्यात्मिक लाभ पहुँचेगा, या उसके परिवार का इससे कल्याण होगा,
- किसी विधवा या स्त्री को सती होने के फैसले पर अडिग या हठी रहने के लिए प्रोत्साहित करना और इस प्रकार उसको सती होने के लिए उकसाना,
- सती होने सम्बंधित किसी जुलूस में भाग लेना या किसी विधवा या किसी स्त्री को सती होने के अपने निर्णय लेने में सहायता देते हुए उसे उसके मृतक पति या रिश्तेदार के शव के साथ शमशान भूमि या कब्रिस्तान में ले जाना,
- जिस स्थान पर सती कांड हो रहा हो, वहाँ उस कार्यवाई में सक्रिय भाग लेना या उससे सम्बंधित किसी संस्कार में भाग लेना,
- किसी विधवा या स्त्री को उसके अग्नि में जलने या जिन्दा जमीन मे गाड़ने से बचाने में बाधा डालना और रूकावट पैदा करना
- अगर सती होने के लिए किसी महिला को बचाने के लिए पुलिस अपनी ड्यूटी निभाते हुए कोई कदम उठाती है तो उसमें बाधा डालना और दखल देना,
इस अधिनियम के तहत गठित विशेष अदालतें, घटना के तथ्यों की शिकायत प्राप्त होने
या
उन तथ्यों पर पुलिस की रिपोर्ट प्राप्त होने पर अपराध का संज्ञान करेंगी।
व्यभिचार (निषेध) अधिनियम, 1986
इस अधिनियम के अन्तर्गत यौन शोषण और महिलाओं और बच्चों का दुरूप्योग रोकने और देह-व्यापार के शिकार व्यक्तियों तथा चारित्रिक खतरे में खतरे में पड़े व्यक्तियों को बचाने और उनके पुनर्वास के बारे में प्रावधान किया गया है।
इस अधिनियम में ‘वेश्यावृत्ति’ की परिभाषा में, यौन शोषण या किन्हीं व्यक्तियों का
व्यापारिक उद्देश्य के लिए दुरूपयोग करना बताया गया है। इस प्रकार वेश्यावृत्ति
सिर्फ किसी महिला का अपनी देह किराये पर देने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि किसी
पुरूष या बच्चो का यौन शोषण या व्यापारिक उद्देश्य के लिए दुरूपयोग भी इसमें
शामिल है।
इस अधिनियम में बच्चे की परिभाषा में वह व्यक्ति आता है जिसने 16 वर्ष की आयु पूरी
नहीं की है। नाबालिग वह व्यक्ति है जो सोलह (16) साल का गया है लेकिन 18 वर्ष
की आयु पूरी नहीं की है। नाबालिग वह व्यक्ति है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली
है। यह आयु-भेद बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि नाबालिग के साथ दुव्र्यवहार के मामले में
दण्ड ज्यादा सख्त है बनिस्पत बालिगों के मामले में।
वेश्यावृत्ति पर कानूनन रोक नहीं है। यदि वेश्या18 वर्ष की आयु से ऊपर है, और वह
“ाान्तिपूर्वक और स्वेच्छा से किसी से यौन संबन्ध बनाती है, उसके कार्यकलाप
सार्वजनिक स्थानों और अधिसूचित इलाकों के दायरे मे बाहर है यह कानून के विरूद्ध
नहीं है। तथापि, वेश्यावृत्ति निम्नलिखित मामलों में गैर-कानूनी है: जैसे कि (i)
वेश्यावृत्ति चलाना, (ii) वेश्यालय चलाने में किसी को किसी को उकसाना, (iii)
वेश्यावृत्ति की कमाई पर जीना, (iv) वेश्यावृत्ति के लिए किसी व्यक्ति को लाना और
उसे उकसाना, (v) जहाँ वेश्यावृत्ति का व्यापार चल रहा है, उस स्थान पर किसी
व्यक्ति को बन्धन रखना, (vi) सार्वजनिक स्थानों पर या उसके दायरे में वेश्यावृत्ति
चलाना, (vii) सार्वजनिक स्थानों पर वेश्यावृत्ति के लिए उकसाना, (viii) वेश्यावृत्ति के
उद्देश्य के लिए फुसलाना और भड़काना, (ix) अपनी परिरक्षा में आये हुए किसी व्यक्ति
का शील भंग करना।
इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए विशेष पुलिस, अवैध देह व्यापार पुलिस अधिकारियों
और विशेष आदालतों की नियुक्ति की गई है। इनके अतिरिक्त इस कानून में पा्र वधान
है कि गैर-सरकारी सलाहकार निकायों की सेवाओं का लाभ उठाया जाए जिसमें इलाके
के अधिक से अधिक पाँच समाज सेवक शामिल हों । ये समाज सेवक और सामाजिक
संगठन, विशेष पुलिस अधिकारियों को सलाह देंगे और मजिस्ट्रेटों को रक्षित पीड़ित
व्यक्तियों की आयु, चरित्र और पूर्व वृत्तान्त जानने में सहायता करेंगे और उन लोगों के
पुनर्वास और उन्हें सुरक्षित गृहों या सुधारक संस्थानों में रखने की व्यवस्था करेंगे।
महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन (निषेध) अधिनियम,1986
इस अधिनियम के अन्तर्गत, विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखों, चित्रों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन के निषेध और उनसे सम्बंधित मामलों के लिए प्रावधान है। अधिनियम की धारा (ब) में ‘महिला के अश्लील प्रदर्शन’ की परिभाषा में किसी महिला के शरीर, उसकी फिगर, उसके जिस्म के किसी भी भाग को किसी ऐसे तरीके से पेश करना जो महिलाओं को अश्लील, या अपमानजनक या अवमानित करता है या जनता के चरित्र, या आचार को भ्रश्ट दूशित करता हो या क्षति पहुँचाता हो, शामिल है। किसी भी उल्लंघन के लिए जुर्माना और कारावास हो सकता हैचिकित्सकीय गर्भ समापन अधिनियम, 1971
इस अधिनियम में प्रत्यक्ष रूप से गर्भपात के सम्बंध में चयन के अधिकार का प्रावधान है। धारा 4 के तहत, चिकित्सा द्वारा गर्भ गिराने का कार्य सिर्फ उन परिस्थितियों में किया जाता है जब माँ के जीवन को बचाना हो, या गर्भ धारण किसी बलात्कार के कारण हो, या भ्रूण असामान्य प्रतीत होता हो, या गर्भावस्था को जारी रखना मानसिक तनाव का कारण हो सकता है। इस अधिनियम के तहत गर्भपात सरकार द्वारा। अनुमोदित स्थान या अस्पताल में कराया जा सकता है, और वह भी किसी प्राशिक्षित मेडिकल प्रैक्टिषनर द्वारा। यह सुविधा पर्याप्त रूप में ग्रामीण या किसी दूरदराज के इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं है तथा इस बारे में अक्सर सम्बंधित पुरूष ही चयन करता है कि गर्भ गिराया जाए या नहीं।प्रसवपूर्ण जाँच तकनीक नियमन और रोकथाम अधिनियम, 1994 : इस अधिनियम में प्रसव से पहले गर्भ में लिंग की जाँच और उसका निर्धारण करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की तकनीक, जिसमें अल्ट्रासाउंड भी शामिल है, को नियमित करने के लिए प्रावधान है और सिर्फ लिंग के आधार पर लड़की पैदा होने की संभावना पर गर्भ को गिराने वाले डाक्टरों के लिए दण्ड की व्यवस्था भी निर्धारित की गई है। फिर भी, इस तरह के नियमों के कुख्यात उल्लंघन, अधिकांश मामलों में बिना दण्ड पाये ही रह जाते हैं। यह अधिनियम, लिंग का पहले चयन करने की धीरे-धीरे बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने में असमर्थ साबित हुआ है।
वृद्ध लोग
हिन्दू दत्तक ग्रहण और संरक्षण अधिनियम 1956 : इस अधिनियम की धारा 20 के अनुसार प्रत्येक हिन्दू व्यक्ति का यह कर्त्त्ाव्य है कि अपने बूढ़े या असहाय माता-पिता की देखभाल करे, ऐसी हालत में अवश्य हीख् जब वे अपनी आय या अपनी सम्पत्ति से अपना भरण-पोशण करने में असमर्थ हों। ‘माँ-बाप’ शब्द में वह सौतेली माँ भी आती है जिसका कोई अपना बच्चा न हो। देखभाल में भोजन, कपउे, आवास, शिक्षा और चिकित्सा सहायता और उपचार आदि सभी शामिल हैं। पालन-पोशण करने के लिए रकम का निर्णय अदालत द्वारा उनकी स्थिति एवं प्रतिश्ठा, माता-पिता की उपयुक्त आवश्यकताओं, उनकी सम्पत्ति का मूल्य और उससे प्राप्त होने वाली आय आदि को ध्यान में रखकर किया जाएगा।आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 की धारा 125 एक जुड़ीशियल मजिस्ट्रट को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह पत्नी, बच्चों, या माँ-बा पके लिए, जो अपना भरण-पोशण करने में असमर्थ हों, के पालन-पोशण करने के निमित आदेश जारी करे। इस प्रावधान के तहत, दी जाने वाली राहत दीवानी प्रकार की है तथा आपराधिक प्रक्रिया इसलिये अपनायी जाती है ताकि बेसहारा पत्नी और बच्चे या माँ-बाप को सड़क पर न डाल दिया जाए। यह आदेश बेटों को दिया जा सकता है, बशर्ते उनके पार भरण-पोशण की रकम देने के लिए पर्याप्त साधन हो भरण-पोशण भत्ते के रूप में अधिक से अधिक 500 रूपये प्रति माह की रकम का फैसला दिया जा सकता है।मानसिक तौर पर रोगी व्यक्ति
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 : इस अधिनियम में मानसिक तौर पर रोगी व्यक्तियों के इलाज और उनकी देखभाल की व्यवस्था करने, उनकी सम्पत्ति और मामलों तथा इससे संबंधित मामलों के लिए प्रावधान है।इस अधिनियम के तहत, पुलिस चौकी का इंचार्ज प्रत्येक अधिकारी(थानेदार)निम्नलिखित को सुरक्षा प्रदान करने के अधिकार रखता है:-(a) कोई व्यक्ति जो उसकी पुलिस चौकी के इलाके की सीमाओं में घूमता फिरता हुआ नजर आये और जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने के कारण हों, कि वह मानसिक तौर पर रोगी है और अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता; और
(b) कोई व्यक्ति जो उसकी पुलिस चौकी की सीमाओं है जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने के कारण हों िक वह मानसिक रोगी होने के करण खतरनाक हो सकता है
इस प्रकार रोक के रखे गए व्यक्ति को 24 घंटों के भीतर मजिस्टेट्र के समक्ष पेश किया जाएगा। मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति की समझ बूझ की जाँच करेगा और चिकित्सा अधिकारी से उसकी जाँच करायेगा और आवश्यक पूछताछ करेगा। मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को अन्तरंग रोगी के रूप में इलाज कराने के लिए किसी मानस रोग अस्पताल या नर्सिग होग में दाखिल करने का आदेश जारी कर सकता है।
इसके अतिरिक्त अगर किसी व्यक्ति को किन्हीं कारणों से यह विश्वास हो जाता है कि अमुक व्यक्ति मानसिक रोगी है, और वह उचित देखभाल और नियंत्रण में नहीं है, या उसके रिश्तेदार उसके साथ दुव्र्यवहार करते है या उस की परवाह नहीं करते, तो वह ऐसे व्यक्ति के बारे में अपने इलाके के मजिस्ट्रेट को, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह इलाका आता है, इसकी रिपोर्ट कर सकता है।
उपभोक्ता अधिकार
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का उद्देश्य है उपभोक्ताओं के हितों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना और उपभोक्ताओं के विवादों और उनसे सम्बंधित मामलों का समाधान करना। यह अधिनियम सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है, सिवाय उनको छोड़कर जिनहें केन्द्रीय सरकार ने अधिसूचित किया हुआ है। इस अधिनियम के तहत दी गई परिभाषा के अनुसार ‘उपभोक्ता’ का अर्थ है:-(a) कोई भी व्यक्ति जो:
- कोई वस्तुएं खरीदता है, या
- कोई सेवा प्रापत करता है, या उसका उपयोग करता है, उसका पूर्ण भुगतान करके या किष्तों में या hire purchase आधार
- जो वस्तुएं या सेवाएं जीवन या सम्पत्ति के लिए घातक हों, उनकी मार्केटिंग के खिलाफ उपभोक्ता की सुरक्षा का अधिकार;
- वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति (potency) शुद्धता, मानक और मूल्य जैसी भी स्थिति हो, की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार ताकि अनुचित व्यापारिक प्राथाओं के विरूद्ध उसको बचाया जाए और रक्षा की जाए;
- जहाँ भी संभव हो, वह विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं को प्रतियोगी मूल्यों पर प्राप्त करें, इस आश्वासन का अधिकर:
- यथोचित फोरम पर सुनवाई और उपभोक्ताओं के हितों के प्रति उपयुक्त ध्यान दिया जाएगा, इस आश्वासन का अधिकार ;
- (a) अनुचित व्यापारिक पद्धतियों, या (b) प्रतिबंधी व्यापारिक पद्धतियों, या (c) धोखाधड़ी द्वारा शोषण, के खिलाफ उसकी क्षतिपूर्ति की मांग करने का अधिकार, और
- उभोक्ता को शिक्षित करने का अधिकार।
- उपभोक्ता द्वारा स्वयं; या
- किसी मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ द्वारा; या
- केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा; या
- एक या एक से अधिक उपभोक्ताओं द्वारा, अगर उनके समान हित हों, या
- उपभोक्ता की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि द्वारा। यह शिकायत, अगर मुआवजे की रकम की मांग 20 लाख रूपये से अधिक न हो तो डिस्ट्रिक्ट फोरम के समक्ष (जिला स्तर स्थापित) या जब मुआवजे की रकम की मांग 20 लाख रूपये से अधिक हो लेकिन 1 करोड़ रूपये से अधिक न हो, तो राज्य आयोग (राज्य स्तर पर स्थापित) के समक्ष और अन्य मामलो में राष्ट्रीय आयोग के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है। उपर्युक्त प्राधिकारी अगर शिकायत के संबंध में संतुष्ट हों तो दूसरी पार्टी को उपयुक्त आदेश दे सकते हैं जिसमें पीड़ित पार्टी को मुआवजा और खर्च देना शामिल होगा।
खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम, 1954
इस अधिनियम का उद्देश्य है खाद्य सामग्री में मिलावट को रोकने के लिए प्रावधान बनाना। खाद्य सामग्री का अर्थ है कोई वस्तु जो मानव के खाने या पीने के रूप में उपयोग में लाई जाती है, सिवाय दवाइयों और पानी के और इसमें वह वस्तु भी शामिल है जो सामान्यत: मानव खाद्य सामग्री बनाने और तैयार करने में प्रयोग में लाई जाती है, जैसे कि सुगंध पैदा करने वाले पदार्थ, मसाले और केन्द्र सरकार द्वारा घोशित अन्य चीजें। खाद्य सामग्री की वस्तु को निम्नलिखित में मिलावट किया गया माना जाएगा:- यदि विक्रेता द्वारा बेची गई वस्तु खरीदार की मांग के मुताबिक या जैसा उसे होना चाहिए, उस प्रकृति, वस्तु तत्व या गुणवत्ता की नहीं है;
- यदि वस्तु में कोई ऐसा तत्व हो जो उसकी गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालता हो, या उसको तैयार करने का तरीका उसकी प्रकृति, वस्तु तत्व या गुणवत्ता पर घातक प्रभाव डालता हो;
- यदि वस्तु को पूर्णतया या आंशिक रूप से किसी घटिया या सस्ती चीज से बदल दिया गया हो, या वस्तु के किसी के घटक तत्व को पूर्णतया या आंशिक रूप से निकाल लिया गया हों, जिसके कारण उस वस्तु की प्रकृति, वस्तु तत्व या गुणवत्ता पर घातक प्रभाव पडता हो;
- यदि वस्तु को अस्वच्छ परिस्थितियों में तैयार या पैक किया गया हो या रखा गया हो जिससे वह दूशित या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन गई हो;
- यदि वस्तु पूर्ण या आंशिक रूप से किसी गंदे, सड़े हुए, घृणित, बदबूदार, गले हुए या रोगी पशु या सब्जी के तत्व से बनी हो या उस पर मच्छर भिनभिनाते हों या वह अन्यथा मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो;
- यदि वस्तु किसी रोगी पशु से प्राप्त की गई हो;
- यदि वस्तु में कोई जहरीला या अन्य ऐसा तत्व हो जो स्वास्थ्य के लिए घातक हो; यदि वस्तु का कन्टेनर किसी जहरीले या घातक विशैले तत्व से बना हो, जिससे उसमें रखी वस्तुएं स्वास्थ्य के लिए घातक हों;
- यदि वस्तु में प्रतिबंधित रंग तत्व या परिरक्षण तत्व हो, या कोई स्वीकृत रंग तत्व या परिरक्षण तत्व निर्धारित सीमा से अधिक हो;
- यदि वस्तु क गुणवत्ता या शुद्धता निर्धारित मानक (स्टैंडर्ड) से नीचे के स्तर की हो, या उसके घटक निर्धारित औसत में न हों, भले ही उनका सेहत पर घातक प्रभाव पड़े या न पड़े।
इस अधिनियम में निषेध है:-
(1) कोई मिलावटी खाद्य पदार्थ, या कोई गलत ब्रांड का खाद्य पदार्थ आयात करना
या आयात लाइसेंस के तहत लाइसेंस की शर्तो के अनुसार पूरी न उतरने वाली
खाद्य वस्तुओं का आयात करना या अधिनियम या उसके तहत बने नियमों के
विरूद्ध कोई खाद्य तैयार करन,
(2) निम्नलिखित का उत्पादन, भंडारण, बिक्री या वितरण-
- कोई मिलावटी खाद्य पदार्थ,
- कोई गलत ब्रांड (misbranded) का खाद्य पदार्थ,
- लाइसेंस के तहत बेची जाने वाली खाद्य सामग्री जो उस लाइसेंस की शर्तो को पूरा न करती हो,
- कोई ऐसा खाद्य पदार्थ जो अधिनियम या उसके तहत बने नियमों की अवहेलना करता हो।
- कोई ऐसा खाद्य पदार्थ जो अधिनियम या उसके तहत बने नियमों की अवहेलना करता हो। इनके अतिरिक्त, नियमों में कुछ ऐसे निषेध और प्रतिबन्ध भी हैं जिनका पालन किया जाना जरूरी है। किसी खाद्य पदार्थ का खरीदार या एक मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ, किसी खाद्य पदार्थ का निर्धारित शुल्क का भुगतान करके पब्लिक अनेलिस्ट से उसका परीक्षण करा सकता है, लेकिन खरीदते समय विक्रेता को इस कार्रवाई के सम्बंध में सूचित कर देना होगा। यदि खाद्य वस्तु मिलावटी पाई जाती है तो खरीदार या संघ द्वारा भुगतान किया गया शुल्क वापस कर दिया जाएगा।
औशध और जादुई दवाएं (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954: इस अधिनियम का
उद्देश्य है कुछ मामलों में औशधों के विज्ञापनों पर नियंत्रण रखना, और कुछ उद्देश्यों
के लिए तथाकथित जादुई असर करने वाली दवाइयों के विज्ञापनों का निषेध करना,
और उनसे सम्बन्धित मामलों के लिए प्रावधान करना। अधिनियम में विज्ञापन छापने या प्रकाशित करने पर रोक लगाई गई है:-
- मिसकैरिज, गर्भ रोकने, योन शक्ति बढाने, मासिक धर्म की अनियमितता को ठीक करने, और विशिष्ट बीमारियों की पहचान, उपचार, शमन, इलाज या रोकथाम करने के निमित किसी औरशध के प्रयोग के लिए परामर्श देने या फुसलाने वाले विज्ञापन;
- किसी औशध के बारे में भ्रांत धारण पेश करने या झूठे दावे करने या अन्यथा मिथ्या कहने या गुमराह करने वाले विज्ञापन
- किसी जादुई दवाई जिसके बारे में दावा किया जाए कि वह उपर्युक्त क्लाज (a)में विनिर्दिश्ट किसी उद्देश्य के लिए प्रभावकारी है को संदभिर्त करने वाले विज्ञापन।
- वह व्यक्ति स्वयं अनिवार्य वसतुऐं अधिनियम, 1955 या इसी प्रकार के किसी अन्य कानून के तहत दण्डनीय अपराध करता है, या अपराध करने के लिए किसी व्यक्ति को भड़काता है; या
- वह किसी अनिवार्य वस्तु में व्यापार करता है; जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपरोक्त अधिनियम या कानून के प्रावधान को विफल करते हों।
यह अधिनियम मानव अंगों के व्यापार का निषेध करता है, जैसे कि-
- किसी मानव अंग की सप्लाई के लिए कोई भुगतान करना या प्राप्त करना;
- पैसों के लिए मानव अंग सप्लाई करने के लिए राजी किसी व्यक्ति की तलाश करना;
- पैसों के लिए कोई मानव अंग सप्लाई करने की पेशकश करना;
- मानव अंग की सप्लाई करने के लिए रकम की अदायगी के प्रबंध के लिए पहल करना या बातचीत करना;
- किसी ऐसे व्यक्तियों के समूह, भले ही वह कोई सोसाइटी, फर्म या कम्पनी हो, जिसकी गतिविधियां में उपरोक्त क्लाज में बताए गए प्रबंध के लिए पहल करना या बातचीत करना शामिल हों, के प्रबंधन या नियंत्रण में भाग लेना और (अप) ऐसे विज्ञापन का प्रकाशन या वितरण करना जो
- लोगों को पैसों के लिए मानव अंग सप्लाई करने का आºवान करें,
- पैसों के बदले मानव अंग सप्लाई करने की पेशकश करें;
- यह संकेत दे कि विज्ञापनदाता, उपरोक्त में बताए गए प्रबंध के लिए पहल करने या बातचीत करने के लिए तैयार है।
मानवाधिकार मानव
अधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1993 : मानवाधिकार की परिभाषा धारा 2 (क) के अन्तर्गत की गई है। इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिश्ठा से सम्बंधित अधिकार जो संविधान द्वारा गारंटी किये गए हैं या अन्तरार्श् टीय प्रतिज्ञा पत्रों में धारित किए गए हैं और भारत की अदालतों द्वारा लागू किए जा सकते हैं। अधिनियम के तहत देश में मानव अधिकारों के लिए अदालतें स्थापित की गयी हैं। आयोग निम्नलिखित कार्य कार्य करेंगे:(a) स्वत: या किसी पीड़ित व्यक्ति या उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत की गई याचिका पर निम्न शिकायतों की जाँच करना- ;
- किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा मानवाधिकार का उल्लंघन करने या उल्लंघन करने के लिए उकसाना; या
- ऐसे उल्लंघन को रोकने में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा लापरवाही बरतना;
(c) राज्य सरकार के नियंत्रण में किसी जेल या अन्य संस्थान जहां लोगों को उपचार, सुधार या सुरक्षा के लिए रोका या बन्धक रखा जाता है, राज्य सरकार को सूचित करके उनमें रखे गए व्यक्तियों के जीवन के हालात का अध्ययन करने के लिए उन स्ािानों पर जाकर निरीक्षण करना और उन पर अपनी सिफारिशें देना;
(d) मानवाधिकार की रक्षा करने के निमित संविधान या यथा समय लागू किसी कानून में किए गए सुरक्षा उपायों पर पुनर्विचार करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपाय सुझाना;
(e) मानवाधिकारों के उपभोग में रोड़ा अटकाने वाले कारणों, जिनमें आतंकवाद की कार्रवाई भी शामिल है, पर पुनर्विचार करना और उनके उपचार के लिए उपयुक्त उपायों की सिफारिशें करना;
(f) मानवाधिकारों पर किए करारों और अन्य अन्तर्राश्ट्रीय दस्तावेजों का अध््रययन करना और उनके प्रभावकारी कार्यपालन के लिए सिफारिशें करना;
(g) मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान करना या उसे प्रचारित करना; ऋऋऋ प्रकाशनों, मीडिया, सम्मेलनों और अन्य उपलब्ध साधनों के जरिये समाज के विभिन्न अंगों में मानवाधिकार सम्बंधित जानकारी फेलाना और मानवाधिकार की रक्षा के लिए जो सुरक्षा प्रबंध उपलब्ध हैं, उनके प्रति जागरूकता प्रचारित करना;
(h) मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयत्नों को प्रोत्साहित करना।
(i) और कोई भी ऐसी कार्रवाईयां करना जो मानवाधिकारों को बढ़ाने के लिए वह आवश्यक समझे।
नशीले पदार्थ और ड्रग्स
नशीली दवाएँ और सायकोट्रापिक तत्व अधिनियम, 1985 : यह अधिनियम किसी भी नशीली दवा (स्वापक, निद्रा लाने वाली औशधि) या सायकोट्रापिक तत्व (मनोविकृति पैदा करने वाला पदार्थ) के उगाने, उत्पादन, पास रखने बेचने, खरीदने, परिवहन, भंडारण, इस्तेमाल, उपभोग, आयात, निर्यात या वाहनान्तरण की कार्रवाई का निषेध करता है, सिर्फ चिकित्सा या विज्ञान के स्वीकृति उद्देश्यों को छोड़कर। ऊपर बताई गई कार्रवाईयों के अतिरिक्त नशीली दवाओं और सयाकोट्रापिक तत्वों के अवैध व्यापार में निम्नलिखित शामिल हैं:- नशीली दवाओं और सायकोट्रापिक पदार्थो की गतिविधियों में भाग लेना;
- उपर्युक्त किसी भी कार्रवाई का प्रबंध या उसके लिए किसी स्थान को किराये पर देना;
- उपरोक्त किसी भी कार्रवाई के लिए, सीधे या परोक्ष रूप से धन लगाना;
- उपरोक्त कार्रवाईयों को आगे और बढ़ाने या उनमें मदद करने के लिए उकसाना या शड़यंत्र रचना; और
- उपरोक्त कार्रवाईयों में संलग्न व्यक्तियों को आश्रय देना। यद्यपि इस अधिनियम के अन्तर्गत, अपराधियों के लिए कड़े दण्ड/सजा निर्धारित की गई हैं तो भी जो लोग इसके आदी (व्यसनी) हैं वे अगर स्वेच्छाने या से आदत छुड़ाने या व्यसन-मुक्त होने के लिए किसी अस्पताल या स्वयंसेवी संगठन से इलाज कराने के लिए तैयार हों तो उन्हें दण्ड/सजा से छूट दी जा सकती है।
पशुओं के साथ नृशंसता का व्यवहार
पशुओं के साथ नृषंस व्यवहार रोकथाम अधिनियम,1985:इस अधिनियम में पशुओं को अनावश्यक पीड़ा देने और कष्ट देने को रोकने के लिए प्रावधान है। जिस व्यक्ति के पशुओं की देखभाल करने या नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी है, उसका कत्र्तव्य है कि वह उस पशु को ठीक ठाक रखने और उसे किसी प्रकार के कष्ट या प्रहार से बचाने के लिए सभी उपयुक्त कदम उठाए।अधिनियम में पशुओं के साथ नृशंसता का व्यवािर करने पर दण्ड की व्यवस्था है। अपने पशुओं को कोड़े लगाना, ठोकर मारना, दौड़ा-दौड़ा कर थकाना, अधिक भार लादना, घोर यंत्रणा देना, पशु से ऐसी मेहनत का काम कराना जिसके लिए वह योग्य न हो, पशु को घातक ओशधी या कोई पदार्थ खिलाना, पशु को ऐसे ढ़ंग से भेजना या ले जाना जिससे उसको अनावश्यक पीड़ा हो, पशु को अनुपयुक्त आकार के पिंजरे में रखना या बन्द करना, पर्याप्त खाना या पानी या रहने की जगह न देना आदि नृशंसता कहे जाते हैं।
वन्य जीवन और पर्यावरण
वन्य जीवन (सुरक्षा) अधिनियम,1972 : इस अधिनियम का उद्देश्य, जंगली जानवरों, पक्षियों और पौघों को सुरक्षा प्रदान करना है। यह वन्य पशुओं या पशु-जन्य वस्तुओं, या विनिर्दिश्ट पौधों या उसके किसी भाग या उससे व्युत्पन्न चीजों के परिवहन पर प्रतिबन्ध लगाता हैं। यह काम सिर्फ चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन या अन्य प्राधिकृत अधिकारी की अनुमति लेकर ही किया जा सकता है। यह अधिनियम निम्नलिखित को भी निषेध करता है:- किसी तरीके से व्यापार करना:
- अनुसूचित पशु से बनी वस्तुओं का निर्माता या व्यापारी, या
- आयातित हाथी दन्त या उससे बनी वस्तुओं का व्यापारी या ऐसी वस्तुओं का नर्माता या
- अनुसूचित पशुओं या ऐसे पशुओं के अंगों के संबंध में चर्म प्रसाधक (चर्म में भूसा भर कर जीव का रूप देने वाला), या
- अनुसूचित पशु से व्युत्पन्न या का व्यापारी, या
- बंधक पशुओं जो की अनुसूचित पशु हो, का व्यापारी या
- किसी अनुसूचित पशु से व्यत्पन्न मांस का व्यापारी, या
- कोई उद्योग संक्रिया या प्रक्रिया चला/कर रहे व्यक्ति द्वारा, पर्यावरण को प्रदूशित करने वाला तत्व छोड़ना या निर्धारित मानक से अधिक मात्रा में छोड़ने की अनुमति देना,
- किसी खतरनाक तत्व को धारण करना या किसी से धारण करना या किसी से धारण करवाना, सिवाय उन परिस्थितियों को छोड़कर जब निर्धारित प्रक्रिया अपनाई गई हो और निर्धारित सुरक्षा के उपाय अपनाए गए हों।
नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछुत को समाप्त कर दिया गया है और इसकी किसी भी रूप में अपनाने की मनाही है। इस सत्यनिश्ठ बचनबद्धता को लागू करने के लिए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 बनाया गया है।
‘छुआछूत’ की परिभाषा किसी भी कानून में नहीं की गई है। इसमें कठोर भारतीय जाति प्राथा के अन्तर्गत स्वीकृत रूढ़ि, रिवाज शामिल हैं, जिनके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को हिन्दू मन्दिरों सार्वजनिक स्थानों, गलियों, सार्वनिक वाहनों, भोजनालयों, शिक्षा संस्थानों, आदि में प्रवेश से वंचित रखा गया था।
यह अधिनियम ‘छुआछुत’ के आधार पर निम्न रिवाजों पर रोक लगाता है:- जैसे कि मन्दिर में प्रवेश और पूजा अर्चनका करने, दुकानों और भोजनालयों में जाने, कोई पेशे या व्यापार करने, पानी के स्रोतों, सार्वजनिक स्थलों और आवासीय स्थानों, सार्वजनिक परिवहन, अस्पताल, शिक्षा संस्थानों का प्रयोग करने, आवासीय स्थानों का निर्माण और उनमें रहने, धार्मिक संस्कार कराने, आभूषणों और सुन्दर वस्तुओं को धारण करने आदि को रोकने में जोर जबरदस्ती करना।
इस प्रकार, छुआछुत के आधार पर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति को कूड़ा कर्कट उठाने, या सफाई के लिए झाडू लगाने, किसी शव को उठाके ले जाने, किसी जानवर की खाल खीचने या इसी तरह का कोई अन्य काम करने के लिए मजबूर करना इस अधिनियम के तहत निशिद्ध है और दण्डनीय है। इसक साथ ही, अगर कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी भी तरह छुआछुत या इसके किसी भी रूप में व्यवहार करने पर उपदेश देता है, या ऐतिहासिक, आध्यात्मिक या धार्मिक आधार पर, या जाति प्रथा के आधार पर या किसी पर अन्य आधार या कारणों से छुआछुत के व्यवहार को सही ठहराता है तो वह दण्डनीय है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निषेध) अधिनियम, 1989 : इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर नृशंसता का व्यवहार करने पर रोक लगाने, और इस प्रकार के अपराधों की सुनावाई के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने और इस अपराधों से पीड़ित लोगों को राहत और पुनर्वास करने की व्यवस्था की गई है। अधिनियम की धारा 3 में किसी गैर SC|ST व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले नृशंसता के व्यवहार, जिसके लिये सजा हो सकती है, की सूची में निम्लिखित शामिल हैं:-
- किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को खराब या घृणित वस्तु खाने या पीने के लिए मजबूर करना;
- अनुसूचित जाति या किसी अनुसूचित जनजाति के सदस्य को चोट पहुँचाने, अपमान करने या खिजाने, परेषान करने के लिए उसके परिसर या पड़ोस में मल मूत्र, कूड़ा कर्कट, शव या किसी अन्य घृणित तत्व का ढ़ेर लगाना;
- किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जाति जनजाति के सदस्य के जबरदस्ती कपड़े उतारना, या उसको नग्न करके, या मुँह या जिस्म पर कालिख पोत कर, खुले आम परेड़ कराना या मानव सम्मान को ठेस पहुँचो वाला अन्य कोई काम करना;
- किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य की भूमि, या उसे अलाट की गई या सक्षम प्राधिकारी द्वारा अलाट किये जाने के लिए अधिसूचित भूमि को अवैध तरीके से कब्जा करना या उस पर खेती करना या उसको अलाट की गई जमीन को अपने नाम हस्तान्तरित करा लेना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी जमीन या परिसर से अवैध तरीके से बेदखल करना या किसी भूमि, स्ािान या पानी का प्रयोग करने में बाधा डालना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को बेगार करने या इसी तरह की कोई लेबर या बंधुआ मजदूर का काम करने के लिए मजबूर करना या प्रलोभन देना, सिवाय उन अनिवार्य सेवाओं के जो सरकार द्वारा समाज सेवा के रूप में उसको सौंपी गई हों:
- अनुसूचत जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को जबरदस्ती या डरा धमका कर वोट देने से रोकना, या किसी एक खास व्यक्ति को वोट देने के लिए मजबूर करना या कानून के विरूद्ध किसी भी तरीके से वोट के लिए कहना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के खिलाफ झूठा, दुर्भावपूर्ण या कश्ठप्रद मुकदमा या अपराधिक कानूनी कार्रवाई करना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति सदस्य के सम्बंध मे झूठी या ओछी जानकारी किसी सरकारी कर्मचारी को देना और उसके परिणामस्वरूप उस सरकारी कर्मचारी द्वारा उसऋष्रु+ष्ऋ व्यक्ति को चोट पहँुचाने या परेषान करने के कानून के तहत उसे मिली शक्ति का प्रयोग करवाना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक स्थान पर जानबूझकर बेइज्जत करना या परेषान करना ताकि उसको नीचा दिखाया जाए;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला पर उसका अपमान या बलात्कार की नीयत से प्रहार करना या उसके खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला की इच्छा शक्ति पर हावी होने की स्थिति में होते हुए, इस स्थिति का इस्तेमाल करके उसका यौन शोषण करना, जिसके लिए अन्यथा वह राजी न हो;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा साधारणतया प्रयोग में लाये जाने वाले पानी के झरने, जलाषय या किसी अन्य स्रोत के जल को दूशित करना या गंदला करना ताकि वह सामान्य प्रयोग के लिए पूर्णतया उपयोगी न रहे;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को किसी सार्वजनिक स्थल जाने के लिए मना करना या उस सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकने जहाँ जनसामान्य के अन्य सदस्यों या किसी एक वर्ग के लोगों का उसे प्रयोग करने का अधिकार हो;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपना घर गाँव या आवास का अन्य स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करना या ऐसी किसी कार्रवाई में भाग लेना;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी अपराधा जो तत्काल कानून के मुताबिक मृत्यु दण्डनीय अपराध हो, में फंसाने की नीयत से झूठे सबूत पेश करने या जालसाजी करने पर, उस व्यक्ति को आजीवन कारावास और जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है, ऐसे झूठे या जालसाजी के सबूत के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का कोई निर्दोश सदस्य अपराधी घोशित करके सूली पर चढ़ा दिया जाता है, तो जो व्यक्ति वह झूठा सबूत पेश करता है या जालसाजी करता है तो उसको मृत्यु दण्ड दिया जाएगा;
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी अपराधा जिसके लिए मृत्यदण्ड की जगह सात साल या इससे अधिक के कारावास की सजा दी जा सकती है, में फंसाने की नियत से झूठे सबूत पेश करने या जालसाजी करने पर, ऐसे व्यक्ति को कारावास जो छ: महीने से कम नहीं होगा, लेकिन सात साल या उससे अधिक हो सकता है और जुर्मान के दण्ड का भागी होगा;
- अगर कोई व्यक्ति अग्नि या विस्फोटक पदार्थ के द्वारा कोई ऐसी “ारारत करता है, यह जानते हुए और मंषा रखकर कि उससे वह किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य की सम्पत्ति को हानि पहुँचाएगा, तो वह कम से कम छ: महीने और अधिकतम सात वर्ष के कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा;
- अगर कोई व्यक्ति अग्नि या विस्फोटक पदार्थ के द्वारा कोई ऐसी शरारत करता है, यह जानते हुए और मंषा रखकर कि उससे कोई ऐसी इमारत ध्वस्त या नश्ट हो जाएगी जिसका सामान्यतया उपयोग पूजा पाठ के लिए या मनुष्यों के आवास के लिए या सम्पत्ति रखने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा किया जाता है, तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा;
- अगर भारतीय दंड संहिता (1860 का 45)के तहत किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरूद्ध कोई ऐसा अपराध करता है जो दस वर्ष या इससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय हो इस आधार पर कि वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, या वह सम्पत्ति ऐसे सदस्य की है, तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा;
- जानबूझकर या कुछ कारणों से यह विश्वास रखते हुए कि इस अध्याय के तहत कोई अपराध किया गया है उस अपराध के सबूत को नश्ट करता है ताकि कानून सजा न दे सके या कोई जानकारी देता है जो कि वह जानता है कि झूठी है, तो वह उस अपराध के लिए दिए जाने वाल दण्ड का भागी होगा;
- एक सरकारी कर्मचारी होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करता है।
कैदी
कारागृह अधिनियम,1894 : इस अधिनियम का उद्देश्य है कैदियों के लिए उपयुक्त और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना। या अधिनियम मांग करता है:-- निम्नलिखित के कारावास में पृथक स्थान की व्यवस्था की जाए:-
- पुरूष और महिला कैदियों के लिए अलग-अलग,
- 21 वर्ष से कम आयु के पुरूष कैदियों के लिए, अन्य पुरूष कैदियों से अग,
- छीवानी कैदियों के लिए आपराधिक कैदियों से अलग, गैर सजायाफता अपराधिक कैदियों के लिए सजायफता आपराधिक कैदियों से अलग।
- एक दीवनी कैदी या गैर-सजायफता आपराधिक कैदी को अपना रख-रखाव स्वयं करने की अनुमति दी जाए और वह अपने लिए भोजन, कपड़े, बिस्तार या अन्य आवश्यक वस्तुएं निजी स्रोतों से खरीद, सके,
- एक दीवानी कैदि या गैर-सजायफता अपराधिक कैदी अगर निजी स्रोतों से आवश्यक कपड़े और बिस्तर की व्यवस्था नहीं कर सकते तो उन्हें इन वस्तुओं की आपूर्ति की जाए,
- छीवानी कैदियों को अपना व्यापार या पेशा रखने की इजाजत दी जाए;
- बीमार कैदियों के लिए किसी मेडिकल सबार्डिनेट द्वारा या अस्पताल में आवश्यक औशधियों और चिकित्सा की व्यवस्था की जाए। इसके अतिरिक्त, बंधक अधिनियम 1900 की यह मांग है कि उन्मादी (पागल) कैदियों को किसी पागलखाने या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर रखा जाए।
निर्धनों के लिए कानूनी सहायता
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 रू इस अधिनियम में बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल स्थापित करने की व्यवस्था है जो प्राथमिक तौर पर भारत में कार्यरत वकीलों की कार्यवाही को नियमित करे और भारत में कानून के व्यवसाय के विकास और उत्थान का काम करें। इस क्षेत्र में बार काउंसिलों को कुछ खास सामाजिक जिम्मेदारियां भी सौंपी गई उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि:-- कानून के विषयों पर प्रसिद्ध विधि-वेताओं के सहयोग से सेमिनार का आयोजन करे और सीधे बातचीत की व्यवस्था करे और कानूनी सहायता की व्यवस्था करें,
- निर्धनों के लिए विनिर्दिश्ट तरीके में कानूनी सहायता की व्यवस्था करें, निम्नलिखित के लिए फंड स्थापित करें:-
- दरिद्र, विकलांग या अन्य एडवोकेटों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के संचालन के लिए वित्तीय सहायता देना;
- कानूनी सहायता और परामर्ष प्रदान करना इस संदर्भ में बने नियमों के अनुसार;
- कानूनी पुस्तकालयों की स्थापना करना;
- एक या एक से अधिक कानूनी सहायता समितियां गठित करें।
सार्वजनिक सम्पत्ति
सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान से रोकथाम अधिनियम, 1984 :जो व्यक्ति सार्वजनिक सम्पत्ति के संबंध में कोई शरारती कार्रवाई करता है, वह दण्ड का भागी होगा। सार्वजनिक सम्पत्ति उस चल या अचल सम्पत्ति को कहते हैं, जो निम्नलिखित की मिल्कीयत हो या उसके कब्जे में हो या उसके नियंत्रण में हो-- केन्द्रीय सरकार;
- राज्य सरकार;
- कोई स्थानीय प्राधिकरण;
- कोई वैधानिक निगम;
- कोई सरकारी कम्पनी; या
- कोई अधिसूचित संस्थान, फर्म या उद्यम।
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