पत्रकारिता के विविध आयाम, हिन्दी पत्रकारिता के विविध आयाम, पत्रकारिता के विविध आयाम कौन-कौन से हैं

'पत्रकारिता' शब्द का जन्म संस्कृत भाषा के 'पत्र' शब्द में 'कृ' (करना) धातु, जिन + ताल् + ट्राप प्रत्ययों के योग से हुआ है। जिसका आशय है पत्र - पत्रकाओं के लिए समाचार और लेख आदि लिखना । उर्दू में पत्रकारिता को 'खबरनवीसी' कहते हैं । खबरनवीसी या पत्रकारिता के लिए अंग्रेज़ी में शब्द इस्तेमाल किया गया- 'जर्नलिज्म', जिसकी व्युत्पति फ्रांसीसी भाषा के 'जर्नल' शब्द से हुई और इसका शाब्दिक अर्थ है 'एक दिन' और 'समाचार पत्र' । 
विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिया के अनुसार रोज़ाना के कार्यकलापों एवं गतिविधियों, सरकारी बैठकों का विवरण 'जर्नल' में निहित रहता था। सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में 'पीरियाडिकल' के स्थान पर लैटिन शब्द 'डियूरनल' एवं 'जर्नल' शब्दों के प्रयोग हुए। तत्पश्चात् बीसवीं शताब्दी में गम्भीर समालोचना और विद्वतापूर्व प्रकाशन को इसके अन्तर्गत माना गया। समाचार पत्रों एवं समय पर प्रकाशित पत्रिकाओं के संपादन एवं लेखन और तत्संबंधी कार्यों को पत्रकारिता के अन्तर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन- प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है। समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन, चाहे वह रेडियो हो या दूरदर्शन इसी के अन्तर्गत् समहित हैं।

पारिभाषिक दृष्टिकोण से पत्रकारिता को देखा जाये तो डॉ. रामप्रकाश एवं डॉ. सुधीन्द्र कुमार के अनुसार जनसूचना, जनसंचार, जनरंजन अथवा जन साधारण तक समाचार-विचार, संप्रेषण हेतु संचालित माध्यमों (समाचार पत्र / पत्रिका/ आकाशवाणी / दूरदर्शन आदि) के संपादन, मुद्रण, प्रकाशन, संयोजन, प्रसारण आदि की विधा या कला 'पत्रकारिता' है। 

डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र मानते हैं कि "पत्रकारिता वह विधा है, जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्त्तव्यों और उद्देश्यों का विवेचन किया जाता है। जो अपने युग और अपने संबंध में लिखा जाय, वही पत्रकारिता है।" 

भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास

भारत में समाचार पत्रों का प्रारम्भ कलकत्ता से माना जाता है। इसके दो कारण थे- पहला- सन् 1755 में कलकत्ता में छपाई का प्रारम्भ होना, दूसरा- सन् 1777 में 'जेम्स' आगस्टन हिकी' द्वारा कलकत्ता जेल के ऋणों हेतु प्रेस की स्थापना करना । "29 जनवरी सन् 1780 को 'जेम्स हिकी' ने 'बंगाल गजट' या 'केलकटटा जनरल एडवरटाइज़र' नामक पत्र की शुरूआत कर भरतीय पत्रकारिता की नींव रखी। 8 जिसमें जॉन कम्पनी के प्रशासन और भारत में बसे तत्कालीन अंग्रेज़ महाप्रभुओं की भ्रष्टता का पर्दाफाश हिकी द्वारा किया गया। 12 इंच लम्बा, 8 इंच चौड़ा और दोनों ओर तीन कॉलमों की छपाई वाला दो पृष्ठों का मामूली सा पत्र था- 'बंगाल गजट' । अनेक कमियों और अतिरेक भरे लेखन के बाद भी यह मानना होगा कि भारत में प्रेस को जन्म देने का श्रेय 'हिकी' को ही है। 'बंगाल गज़ट' की प्रतियां कलकत्ता की नेशनल लाइब्रेरी में उपलब्ध है।

दूसरा पत्र 'पीटर रीड' का 'इंडियन गज़ट' है जो सन् 1780 में निकला। इसमें ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों संबंधी सूचनाएँ छपा करती थीं। यह पत्र लगातार 50 वर्षों तक छपता रहा और कभी भी सरकार के विरूद्ध नहीं गया। मद्रास में सन् 1785से 'मेडरॉस करियर' और बम्बई में सन् 1789 से 'बाम्बे हेराल्ड' से पत्रकारिता का श्री गणेश हुआ ।

पत्रकारिता के विविध आयाम

पत्रकारिता के विविध आयाम, हिन्दी पत्रकारिता के विविध आयाम, पत्रकारिता के विविध आयाम कौन-कौन से हैं, पत्रकारिता के नए आयाम को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है।

1. रेडियो पत्रकारिता 

भारत में 1936 से रेडियो का नियमित प्रसारण शुरू हुआ। आज भारत के कोने-कोने में देश की लगभग 97 प्रतिशत जनसंख्या रेडियो सुन पा रही है। रेडियो मुख्य रूप से सूचना तथा समाचार, शिक्षा, मनोरंजन और विज्ञापन प्रसारण का कार्य करता है। अब संचार क्रांति ने तो इसे और भी विस्तृत बना दिया है। FM चैनलों ने तो इसके स्वरूप ही बदल दिए हैं। साथ ही मोबाइल के आविष्कार ने इसे और भी नए मुकाम तक पहुंचा दिया है। अब रेडियो हर मोबाइल के साथ होने से इसका प्रयागे करने वालों की संख्या भी बढ़ी है क्योंकि रेडियो जनसंचार का एक ऐसा माध्यम है कि एक ही समय में स्थान और दूरी को लाघंकर विश्व के कोने-कोने तक पहुंच जाता है। 

रेडियो का सबसे बड़ा गुण है कि इसे सुनते हुए दूसरे काम भी किए जा सकते हैं। रेडियो समाचार ने जहां दिन प्रतिदिन घटित घटनाओं की तुरंत जानकारी का कार्यभार संभाल रखा है वहीं श्रोताओं के विभिन्न वर्गों के लिए विविध कार्यक्रमों की मदद से सूचना और शिक्षा दी जाती है। खास बात यह है कि यह हर वर्ग जोड़े रखने में यह एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरकर सामने आया है।

2. इलेक्ट्रानिक मीडिया 

भारत में आजादी के बाद साक्षरता और लोगों में क्रय शक्ति बढ़ने के साथ ही अन्य वस्तुओं की तरह मीडिया के बाजार की भी मांग बढ़ी है। नतीजा यह हुआ कि बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए हर तरह के मीडिया का फैलाव हो रहा है। इसमें सरकारी टेलीविजन एवं रेडियो के अलावा निजी क्षेत्र में भी निवेश हो रहा है। इसके अलावा सेटेलाईट टेलीविजन और इंटरनेट ने दो कदम और आगे बढ़कर मीडिया को फैलाने में सहयोग किया है। समाचार पत्र में भी पूंजी निवेश के कारण इसका भी विस्तार हो रहा है। 

इसमें सबसे खास बात यह रही कि चाहे वह शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र भारत में इलेक्ट्रोनिक मीडिया पिछले 15-20 वर्षों में घर घर में पहुँच गया है। शहरों और कस्बो में केबिल टीवी से सैकड़ों चैनल दिखाए जाते हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत के कम से कम 80 प्रतिशत परिवारों के पास अपने टेलीविजन सेट हैं और मेट्रो शहरों में रहने वाले दो तिहाई लोगों ने अपने घरों में केबिल कनेक्शन लगा रखे हैं। 

अब तो सेट टाप बाक्स के जरिए बिना केबिल के टीवी चल रहे हैं। इसके साथ ही शहर से दूर-दराज के क्षेत्रो में भी लगातार डीटीएच-डायरेक्ट टु हामे सर्विस का विस्तार हो रहा है। 

3. वेब पत्रकारिता 

वेब पत्रकारिता आज समाचार पत्र-पत्रिका का एक बेहतर विकल्प बन चुका है। न्यू मीडिया, आनलाइन मीडिया, साइबर जर्नलिज्म और वेब जर्नलिज्म जैसे कई नामों से वबे पत्रकारिता को जाना जाता है। वबे पत्रकारिता प्रिंट और ब्राडकास्टिंग मीडिया का मिला-जुला रूप है। यह टेक्स्ट, पिक्चर्स, आडियो और वीडियो के जरिये स्क्रीन पर हमारे सामने है। माउस के सिर्फ एक क्लिक से किसी भी खबर या सूचना को पढ़ा जा सकता है। 

यह सुविधा 24 घंटे और सातों दिन उपलब्ध होती है जिसके लिए किसी प्रकार का मूल्य नहीं चुकाना पड़ता।

वेब पत्रकारिता का एक स्पष्ट उदाहरण बनकर उभरा है विकीलीक्स। विकीलीक्स ने खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में वेब पत्रकारिता का जमकर उपयोग किया है। खोजी पत्रकारिता अब तक राष्ट्रीय स्तर पर होती थी लेकिन विकीलीक्स ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग किया व अपनी रिपोर्टों से खुलासे कर पूरी दुनिया में हलचल मचा दी।

भारत में वबे पत्रकारिता को लगभग एक दशक बीत चुका है। हाल ही में आए ताजा आंकड़ों के अनुसार इंटरनेट के उपयोग के मामले में भारत तीसरे पायदान पर आ चुका है। आधुनिक तकनीक के जरिये इंटरनेट की पहुंच घर-घर तक हो गई है। युवाओं में इसका प्रभाव अधिक दिखाई देता है। परिवार के साथ बैठकर हिदीं खबरिया चैनलों को देखने की बजाए अब युवा इंटरनेट पर वेब पोर्टल से सूचना या आनलाइन समाचार देखना पसंद करते हैं। समाचार चैनलों पर किसी सूचना या खबर के निकल जाने पर उसके दोबारा आने की कोई गारंटी नहीं होती, लेकिन वहीं वेब पत्रकारिता के आने से ऐसी कोई समस्या नहीं रह गई है। जब चाहे किसी भी समाचार चैनल की वेबसाइट या वेब पत्रिका खोलकर पढ़ा जा सकता है।

लगभग सभी बड़े छोटे समाचार पत्रों ने अपने ई-पेपर यानी इटंरनेट संस्करण निकाले हुए हैं। भारत में 1995 में सबसे पहले चेन्नई से प्रकाशित होने वाले ‘हिंदू’ ने अपना ई-संस्करण निकाला। 1998 तक आते-आते लगभग 48 समाचार पत्रों ने भी अपने ई संस्करण निकाल।े आज वबे पत्रकारिता ने पाठकों के सामने ढेरों विकल्प रख दिए हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में जागरण, हिन्दुस्तान, भास्कर, नवभारत, डेली एक्सप्रेस, इकोनामिक टाइम्स और टाइम्स आफ इंडिया जैसे सभी पत्रों के ई-संस्करण मौजूद हैं।

भारत में समाचार सेवा देने के लिए गूगल न्यूज, याहू, एमएसएन, एनडीटीवी, बीबीसी हिंदी, जागरण, भड़ास फार मीडिया, ब्लाग प्रहरी, मीडिया मंच, प्रवक्ता, और प्रभासाक्षी प्रमुख वेबसाइट हैं जो अपनी समाचार सेवा देते हैं।

वेब पत्रकारिता का बढ़ता विस्तार देख यह समझना सहज ही होगा कि इससे कितने लोगों को राजे गार मिल रहा है। मीडिया के विस्तार ने वबे डेवलपरो एवं वेब पत्रकारो की मांग को बढ़ा दिया है। वबे पत्रकारिता किसी अखबार को प्रकाशित करने और किसी चैनल को प्रसारित करने से अधिक सस्ता माध्यम है। चैनल अपनी वेबसाइट बनाकर उन पर बे्रकिंग न्यूज, स्टोरी, आर्टिकल, रिपोर्ट, वीडियो या साक्षात्कार को अपलोड और अपडेट करते रहते हैं। 

आज सभी प्रमुख चैनलो  (आईबीएन, स्टार, आजतक आदि) और अखबारों ने अपनी वेबसाइट बनाई हुई हैं। इनके लिए पत्रकारों की नियुक्ति भी अलग से की जाती है। सूचनाओं का डाकघर कही जाने वाली संवाद समितियां जैसे पीटीआई, यूएनआई, एएफपी और रायटर आदि अपने समाचार तथा अन्य सभी सेवाएं आनलाइन देती हैं।

संदर्भ -
  1. पत्रकारिता संदर्भ कोश डॉ. रामप्रकाश एवं डॉ सुधीन्द्र कुमार, वाणी : प्रकाशन, नयी दिल्ली, सन् 1994 पृ. सं. 52
  2. हिन्दी पत्रकारिता : कृष्ण बिहारी मिश्र, भरतीय ज्ञानपीठ, सन् 2000 ई. पृ. 70 संपादन कला एवं प्रूफ पठन : डॉ. हरिमोहन, तक्षशिला प्रकाशन, दरियागंज, दिल्ली, सन् 1990, पृ. 121
  3. हिन्दी पत्रकारिता : विविध आयाम, डॉ वेद प्रताप वैदिक, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1976 पृ. 29
  4. हिन्दी पत्रकारिता और गद्य शैली का विकास : डॉ. गंगानारायण त्रिपाठी, शांति प्रकाशन, इलाहाबाद, 1991 ई., पृ. 10
  5. पत्रकारिता एवं प्रेस विधि : डॉ. बंसती लाल बावेल, सुविधा लॉ हाउस, भोपाल, 1996, पृ. 03
  6. हिन्दी पत्रकारिता का विकास : एन. सी. पंत राधा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली सन् 1994, पृ. 22

1 Comments

  1. Myself xyz of the heritage school.....it's useless yrrrr:(

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