पूंजी लागत का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, वर्गीकरण

पूंजी की लागत एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जिसे अनेक अर्थो में प्रयुक्त किया जाता है। पूंजी प्रदाता या विनियोक्ता के दृष्टिकोण से यह उस त्याग का पुरस्कार है जिसको वह वर्तमान उपभोग को स्थगित करके भविष्य में विनियोग के बदले प्राप्त करने की इच्छा रखता है। उपयोगकर्ता के दृष्टिकोण से पूंजी की लागत पूंजी का उपभोग करने के बदले दिया गया मूल्य है। तकनीकी दृष्टिकोण से पूजीं की लागत वह न्यनतम प्रत्याय दर है जो विनियोक्ताओं को सन्तुष्ट करने एवं उपयोगकर्ता को अपने व्यवसाय को बनाये रखने के लिये विनियोगों पर अर्जित करनी चाहिये।

पूंजी की लागत की परिभाषा

सोलोमन इजरा - पूंजी की लागत अपेक्षित अर्जनों की न्यूनतम दर या पूंजी व्ययों की विच्छेद पर है। 

मिल्टन एच. स्पेन्सर - पूंजी की लागत वह न्यूनतम प्रत्याय दर होती है, जिसे एक फर्म किसी विनियोग को करते मय एक शर्त के रूप में आवश्यक मानती है।
 
हन्ट, विवलियम तथा डोनाल्डसन - इसे (पूंजी की लागत ) उस दर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो प्राप्त् शुद्ध राशि पर अवश्य ही अर्जित की जानी चाहिये ताकि देय होने पर लागत व्यायों की पूर्ति की जा सके।
 
एम.जे.गार्डन - पूंजी की लागत वह प्रत्याय दर है जो कि एक कम्पनी को अपना मूल्य बनाये रखने के लिये विनियोग पर अर्जित करनी चाहिये।
 
डब्ल्यू जी. लवेलियन - एक फर्म की तथाकथित पूंजी की लागत जिसे सामान्यतया वार्षिक प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है-सरल रूप वें वह प्रत्याय दर है जो उस फर्म की सम्पतियों को अपना विनियोग औचित्य प्रदर्शित करने के लिये अर्जित करना चाहिये।
 
हम्पटन जॉन जे - पूंजी की लागत एक ऐसी प्रत्याय दर है जो एक संस्था अपने मूल्य में वृद्धि करने के लिये विनियोग पर चाहती है। निष्कर्ष के रूप में पूंजी की लागत वह न्यूनतम प्रत्याय दर है जो किसी संस्था को ऋणप्रदाताओं को उनके त्याग की लागत का भुगतान करने व अपने समता अंशों के बााजार मूल्य में वृद्धि करने अथवा बनाये रखने के लिये अपने विनियोगों पर अवश्य प्राप्त करनी चाहिये।

पूंजी की लागत की विशेषताएँ

1. पूंजी की न्यूनतम प्रत्याय दर- पूंजी की एक ऐसी न्यूनतम प्रत्यय दर है जो किसी संस्था को अपने विनियोग पर प्राप्त करनी चाहिये, जिससे प्राप्त कोषों की लागतों का भुगतान किया जा सके। 

2. लागत नहीं होना - पूंजी की लागत वास्तव में कोई लागत नहीं है, वरन एक प्रत्यय दर है जो किसी संस्था को विनियोग पर प्राप्त करनी चाहिये। 

3. व्यावसायिक एवं वित्तीय जोखिम का पुरस्कार- पूंजी की लागत मुख्यत: व्यावसायिक एवं वित्तीय जोखिम के बदले मिलने वाला पुरस्कार है व्यावसायिक जोखिम बिक्री की मात्रा व वित्तीय जोखिम पूंजी संरचना पर निर्भर करती है।

पूंजी की लागत का वर्गीकरण

1. पारम्परिक लागत एवं भावी लागत - पारम्परिक लागत वह लागत होती है जिस पर भूतकालीन लेखांकन व्यवस्था में लेखों को लिपिबद्ध किया जाता है। भावी लागत वह लागत होती है जिसका पूर्वानुमान भविष्य के वर्षों के लिए किया जाता है।

2. विशिष्ट लागत एवं संयुक्त लागत - पूँजी के विभिन्न उपलब्ध वित्तीय स्रोतों को पृथक रूप से विशिष्ट लागत कहा जाता है जैसे समता अंशपूँजी, पूर्वाधिकारी अंश पूँजी एवं ऋण पत्रादि संयुक्त लागत संगठन में विनियोजित समग्र पूँजी की संयुक्त लागत होती है, इसके अन्तर्गत समस्त पूँजी लागत को सम्मिलित किया जाता है। संयुक्त लागत को सम्पूर्ण पूँजी साधनों की औसत पूँजी लागत होने के कारण भारित लागत भी कहा जाता है। पूँजी व्यय सम्बन्धी निर्णयन में भारित लागत का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

3. औसत लागत तथा सीमान्त लागत  - संगठन में विनियोजित समस्त प्रकार की पूँजी में प्रत्येक स्रोत की लागत का भारित औसत, औसत लागत कहलाती है। संगठन की पूँजी संरचना में प्रत्येक स्रोत का अनुपात भार होता है उसी के आधार पर औसत लागत की गणना की जाती है। सीमान्त लागत वह लागत होती है जिसे संगठन द्वारा नये कोषों के माध्यम से जुटाया जाता है। यह नवीन कोषों से एकत्रित पूँजी की औसत लागत होती है, विनियोग सम्बन्धी निर्णयन में सीमान्त लागत का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

4. स्पष्ट लागत एवं अन्र्तनिहित लागत  - स्पष्ट लागत उस छूट की दर को कहते हैं जो रोकड़ आगमनों के वर्तमान मूल्य को रोकड़ निर्गमन (Cash outlaws) के वर्तमान मूल्य को समतुल्य करती है। व्यावहारिक तौर पर यह आन्तरिक प्रत्याय दर होती है। अन्र्तनिहित लागत वह प्रत्याय दर होती है जो किसी विशिष्ट विनियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने हेतु परित्यक्त अवसरों की लागत होती है इस लागत का आविर्भाव तब होता है जब संस्था उगाहे गये कोषों के वैकल्पिक प्रयोग पर विचार करती है। इसे अवसर लागत (Opportunity cost) भी कहा जाता है।

पूंजी की लागत का महत्व 

परम्परा विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्धन के क्षेत्र में पूंजी की लागत अवधारणा को कोई महत्व नहीं दिया गया। क्योंकि इस अवधारणा में कोषों के संग्रहण पर अधिक बल दिया गया। न कि कोषों के समुचित उपयोग पर। किन्तु आधुनिक विचारधारा पूँजी की लागत अवधारणा को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान देती है। वर्तमान वैष्वीकरण (Globalisation) एवं मुक्तिकरण (Liberalisation) के परिवेष में विश्व समुदाय के साथ प्रतिस्पर्धा हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि पूंजी की लागत अवधारणा को मात्र सैद्धान्तिक अध्ययन हेतु स्वीकार न करके अपितु व्यावहारिक धरातल पर लागत नियंत्रण, लाभ अधिकतमीकरण एवं धन अधिकतमीकरण हेतु प्रयोग में लाया जाय। पूंजी की लागत अवधारणा की सार्थकता का विवेचन निम्नलिखित “ाीर्शक के अन्तर्गत किया जा सकता है। 

1. पूंजी व्यय सम्बन्धी निर्णयन में सहायक - पूंजी व्यय सम्बन्धी निर्णयन में पूंजी की लागत अवधारणा महत्वपूर्ण होती है। वस्तुत: किसी भी विनियोग प्रस्ताव की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति का आधार विनियोग की लागत होती है। वस्तुत: विनियोग की प्रत्याशित आय एवं पूंजी की लागत के मध्य अन्र्तसम्बन्ध होता है। यदि विनियोग से प्रत्याषित आय का वर्तमान मूल्य विनियोग की लागत (पूंजी की लागत) के समतुल्य अथवा अधिक हो तो वह विनियोग प्रस्ताव स्वीकार्य होगा, किन्तु यदि विनियोग से प्रत्याशित आय का वर्तमान मूल्य विनियोग की लागत से कम हो तो वह विनियोग प्रस्ताव अस्वीकार्य होगा। 

2. वित्तीय निर्णयन में सहायक - संगठन के अन्तगर्त प्रबन्धकों को अनेक प्रकार की वित्तीय निर्णयन लेने होते हैं जैसे लाभांश निर्णयन, कार्यशील पूँजी नीति सम्बन्धी निर्णयन, लाभों के पुर्नविनियोग सम्बन्धी निर्णयन आदि, प्रबन्ध द्वारा इन बिन्दुओं पर निर्णय लेने से पूर्व पूंजी की लागत को ध्यान में रखा जाता है। 

3. संगठन हेतु पूंजी संरचना का निर्धारण - वस्ततु : विभिन्न स्रोतों से प्राप्य पूंजी की मात्रा का निर्धारण संगठन की अनुकूलतम पूंजी संरचना हेतु आवश्यक होता है। विभिन्न विकल्पों में से अनुकूल विकल्प के चयन का आधार मात्र पूंजी की लागत होती है। अपेक्षाकृत कम लागत वाली पूंजी का चयन संगठन के हित में होता है। 

4. पूंजी मिलान का निर्धारण - पूंजी मिलान दर वह दर है जिसके माध्यम से बाजार में उपलब्ध विभिन्न विनियोग विकल्पों के आर्थिक मूल्य का मूल्यांकन सहजता से किया जा सकता है। पूंजी मिलान दर का निर्धारण करने हेतु पूंजी की लागत का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। अनुकूलतम पूंजी ढॉंचे के निर्धारण हेतु वित्तीय प्रबन्धक को पूंजी की लागत को न्यूनतम करने एवं संगठन की प्रत्यय दर को अधिकतम करने हेतु प्रभावी कदम उठाने चाहिये। 

वित्तीय निर्णय में पूंजी की लागत की भूमिका 

परम्परागत विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय निर्णयन में पूंजी की लागत का कोई स्थान नहीं था किन्तु नवीन विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय निर्णयन में पूंजी की लागत का महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुत: फर्म द्वारा लिये गये विनियोग सम्बन्धी निर्णयों में पूंजी की लागत का गहरा प्रभाव पड़ता है। वित्तीय निर्णयन में पूंजी की लागत की भूमिका निम्नलिखित रूप में स्वीकार की गयी है।

1. पूंजी बजटिग सम्बन्धी निर्णयन - पूंजी बजटिगं सम्बन्धी निर्णयों में पूंजी की लागत की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। वस्तुत: किसी भी फर्म की पूंजी की औसत लागत प्रत्यय की उस न्यूनतम दर अथवा मिलान बिन्दु की सूचक है जिससे कम दर पर पूंजी निवेश के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं दी जा सकती। किसी परियोजना में विनियोग सम्बन्धी निर्णय विनियोग के शुद्ध वर्तमान मूल्य के धनात्मक होने पर ही लिया जाता है। वस्तुत: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पूंजी की लागत अवधारणा वित्तीय निर्णय के मापदण्ड स्वरूप अत्यन्त उपयोगी हो चुकी है। 

2. पूंजी ढाँचे के आयोजन सम्बन्धी निर्णय - प्रत्येक औद्योगिक संगठन द्वारा संगठन के हित में अनुकूलतम पूंजी ढाँचे की संरचना का प्रयत्न किया जाता है। संगठन की कार्यक्षमता के समुचित विदोहन हेतु एवं पूंजी लागत को न्यूनतम करने हेतु अंश पूंजी तथा ऋण पूंजी का अनुकूलतम मिश्रण (Optimum mix) तैयार करने का प्रयत्न किया जाता है। जिससे संगठन की पूंजी की औसत लागत को न्यूनतम रखते हुए अंश पूंजी तथा ऋण पूंजी का अनुकूलतम मिश्रण तैयार करने का प्रयत्न किया जाता है। जिससे संगठन की पूंजी की औसत लागत को न्यूनतम रखते हुए अंशों के बाजार मूल्य को अधिकतम रखा जा सके। 

3. अन्य वित्तीय निर्णयन - अन्य वित्तीय निणर्यों के अन्तर्गत पूंजी की लागत अवधारणा का प्रमुख बिन्दु पूंजी होती है। इसके माध्यम से कार्यशील पूंजी का प्रबन्ध अत्यन्त सुचारु रूप से किया जा सकता है। लाभांश एवं प्रतिधारण नीतियों के निर्धारण में भी पूंजी की लागत का सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी होता है। इसके अतिरिक्त यह सिद्धान्त फर्म की वित्तीय कार्य निष्पत्ति के मूल्यांकन में प्रभावी भूमिका का निर्वहन करता है।

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