पूंजी बजटन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ

पूंजी बजटन का आशय के विभिन्न स्रोतों से पूंजी प्राप्त करने के लिए बजट बनाने से नहीं है, बल्कि यह एक विनियोजन निर्णय है। इसलिए कि पूंजी बजटन पूंजी के दीर्घकालीन नियोजन से सम्बन्धित एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत पूंजीगत विनियोग की भावी लाभोत्पादकता का अध्ययन करना, उसकी पूंजी लागत की गणना करके अर्जन और लागत की तुलना करना तथा अन्त में उस विनियोग के करने अथवा न करने के बारे में अन्तिम निर्णय लेना सम्मिलित है। इस प्रकार पूंजी बजटन से आशय पूंजी व्यय विकल्पों के उद्भव, मूल्यांकन, चयन तथा अनुवर्तन की सम्पूर्ण प्रक्रिया से है। 

पूंजी बजटन की परिभाषा 

प्रो. इन्द्र मोहन पाण्डे के अनुसार, पूंजी बजटन निर्णय भावी लाभों के अपेक्षित प्रवाहों की प्रत्याशा में संस्था द्वारा अपने चालू कोषों को दीर्घकालीन क्रियाओं में मुआवजा पूर्व क विनियाेिजत करने के निर्णय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। 

आर.एमलिन्च के शब्दों में, ‘‘पूंजी बजटन में संस्था की दीर्घकालीन लाभप्रदता (विनियोग पर प्रत्याय) को अधिकतम करने के उद्देश्य से पूंजी के विस्तार का नियोजन सम्मिलित है।

पूंजी बजटन की विशेषताएँ

विभिन्न निर्णयन में पूंजी बजटन के निर्णय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते है, क्योंकि ये आने वाले अनेक वर्षो के लिए संस्था की परिचालन कुशलता एवं लाभप्रदता को प्रभावित करते है। पूंजी बजटन निर्णयों का विशेष महत्व इनकी विशेषताओं के कारण है जिनका विवेचन नीचे किया गया हैं -

1. दीर्घकालीन प्रभाव - सम्भवत: पूंजी व्यय निर्णयों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इनका संस्था कीभावी लाभदायकता और लागत संरचना पर प्रभाव है। ये संस्था की वृद्धि दर एवं दिशा को प्रभावित करते है। एक उचित निर्णय विस्मयकारी प्रत्यय दे सकता है; जबकि गलत विनियोग निर्णय संस्था के अस्तित्व को ही खतरे में डाल सकता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि पूंजी व्यय निर्णय संस्था के भाग्य को तय करते है।

2. जोखिम से सम्बंद्ध - कोषों के दीर्घकालीन विनियोग में अनेक प्रकार की जोखिमें निहित होतीहै। एक विनियोग प्रस्ताव के फलस्वरूप संस्था के औसत लाभों में तो वृद्धि होती है किन्तु साथ ही उसकी अर्जनों बार-बार उच्चावचन भी होते है। ऐसा निरन्तर शोध एवं तकनीकी विकास के कारण ग्राहकों की रूचि एवं फैशन में परिवर्तन की वजह से होता है। परियोजना की अवधि जितनीदीर्घ होगी, जोखिम एवं अनिश्चितता उतनी ही अधिक होगी।

3. कोषों का वृहत आकार - पूंजी व्यय निर्णयों में स्थायी सम्पतियों की अवाप्ति अथवा कुछ विशाल परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु अधिक कोषों की आवश्यकता होती है। यह सर्वविदित है कि अधिकांश संस्थाएं ऐसे अधिक कोष उपलब्ध नहीं करा सकती क्योंकि उनके पूंजीसंसाधन सीमित होते है। इसलिए यह आवश्यक है कि वृहत्पूंजी कोषों का विनियोग पूर्ण मूल्यांकन के बाद ही लाभप्रद परियोजनाओं हमें करना चाहिए।

4. अप्रत्यावर्ती निर्णय - पूंजी बजटन निर्णय अप्रत्यावर्ती होते है तथा विनियोजित राशि वापस वसूल नहीं की जा सकती। यह इस कारण है कि पुरानी पूंजी सम्पतियों के लिए न तो कोर्इ बाजार होता है तथा न ही इन सम्पतियों को अन्य किसी लाभदायक विकल्प में परिवर्तित किया जा सकता हैं। केवल एक ही उपाय है कि इनको गहरी हानि पर निस्तारण किया जाये। इसलिए ऐसे निर्णय परियोजना की बारीकी से विस्तृत जांच एवं मूल्यांकन करने के पश्चात् ही लिये जाने चाहिए।

5. सर्वाधिक कठिन निर्णय - पूंजी बजटन निर्णय लेना एक दुष्कर कार्य है, क्योंकि इनका मूल्यांकन संस्था की भावी घटनाओं एवं क्रियाओं की अनिश्चितता पर निर्भर करता है। इसी तरह किसी विशेष विनियोग निर्णय के भावी लाभों एवं लागतों का मुद्रा एवं परिमाण में सही अनुमान लगाना भी कठिन होता है, क्योंकि ये लाभ एवं लागतें आर्थिक, राजनीतिक तथा तकनीकी कारणों से प्रभावित होते है। अत: ये निर्णय लेना उतना आसान नहीं है।

6. संस्था की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति पर प्रभाव - पूंजी बजटन निर्णय संस्था के भावी लाभों एवं लागतों का निर्धारण करते है जो कि अन्तत: संस्था की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को प्रभवित करते है। उदाहरणार्थ, यदि एक संस्था अपने संयंत्र का आधुनिकरण करने के निर्णय में देरी करती है, अथवा सही तरीके से नही लेती है तो वह प्रतिस्पर्धात्मकता खो देगी। इसलिए पूंजी बजटन निर्णय संस्था की प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता एवं शक्ति को प्रभावित करते है।

7. लागत संरचना पर प्रभाव - पूंजी बजटन निर्णयों के परिणामस्वरूप एक संस्था को एक बहुत बड़ी राशि स्थायी व्ययों यथा पर्यवेक्षण व्यय, बीमा, भवन किराया, पूंजी पर ब्याज आदि के रूप में भी वाहन करनी पड़ती है। यदि परियोजना भविष्य में असफल हो जाती है अथवा अपेक्षित लाभों से कम लाभ अर्जित करती है, तो संस्था को इन स्थायी व्ययों का भार वहन करना होगा जो कि अन्तत: संस्था की लाभदायकता को प्रभावित करेगी।
पूंजी बजटन के उद्देश्य

8. अंशधारियों की सम्पदा अधिकतम करना : वित्तीय प्रबन्ध का मूल उद्देश्य अंशधारियों की सम्पदा को अधिकतम करना है। इसलिए पूंजी बजटन का उद्देश्य उन दीर्घकालीन विनियोजन परियोजनाओ का चयन करना है जो दीर्घकाल में अंशधारियों की सम्पादा को अधिकतम कर सके। पूंजी बजटन निर्णय अंशधारियों एवं संस्था के हितों को संरक्षण देते है क्योंकि ये स्थायी सम्पतियों में अति विनियोग या न्यून विनियोग का परिहार करते है। 

9. प्रस्तावित पूंजी व्ययों का मूल्यांकन : इस बजट की सहायता से बजट अवधि में संस्था द्वारा विभिन्न सम्पतियों के लिए किये जाने वाले व्ययों का मूल्यांकन किया जाता है। ऐसा करने से प्रत्येक व्यय की सार्थकता आंकी जा सकती है। 

10. प्राथमिकता निर्धारित करना : प्राथमिकता निर्धारित करने का आशय विभिन्न परियोजनाओं को उनकी लाभप्रदता के क्रम में विन्यासित करना है। पूंजी बजट द्वारा ऐसी विभिन्न पूंजी-परियोजनाओं में प्राथमिकता निर्धारित की जाती है। तत्पश्चात् प्रबन्ध इनमें सबसे अधिक लाभप्रद योजना का चुनाव कर लेता है। 

11. लागत नियंत्रण : पूंजी व्यय कितना किया जाये और कब किया जाये, यह निर्धारित करने से पूर्व लागत-लाभ तुलना की जाती है। व्यवसाय का यह निरन्तर प्रयास रहता है कि जितनी लागत निर्धारित की गर्इ है उससे अधिक न हो। यदि कहीं विचरण होते है तो सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है तथा उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही निश्चित कर दी जाती है। इस प्रकार लागत पर स्वत: ही नियंत्रण हो जाता है। 

12. पूंजी व्ययों पर नियंत्रण : अन्य व्यावसायिक बजटों की भांति पूंजी बजट का भी एक प्रमुख उद्देश्य संस्था के विभिन्न विभागों द्वारा कियेजाने वाले पूंजी व्ययों को नियत्रिंत करना है। इसमें वास्तविक व्ययों की पूर्व-निर्धारित व्ययों से तुना करके इन पर प्रभावकारी नियंत्रण रखा जा सकता है। 

13. पूंजी व्ययों के लिये वित्त की व्यवस्था : पूंजी बजट बनाने से विभिन्न सम्पतियों पर भविष्य में किये जाने वाले व्ययों की पूर्व जानकारी मिल जाती है जिससे संस्था के प्रबन्धक समय पर उस राशि के लिए उचित व्यवस्था कर सकते है।

14. भूतकालीन निर्णयों का विश्लेषण : पूंजी बजट की सहायता से गत अवधि में किये गये व्ययों का विश्लेषण किया जाता है जिससे यह जाना जा सकता है कि वे निर्णय किस सीमा तक सही थे। 

15. स्थायी सम्पतियों का मूल्यांकन : बजट अवधि के अंत में बनाये जाने वाले चिठ्ठे के लिए स्थायी सम्पतियों के मूल्यांकन समंक पूंजी बजट से उपलब्ध हो जाते है। इससे प्रक्षेपित चिठ्ठा आसानी से बनाया जा सकता है। 

16. पूंजी संरचना नियोजन : किसी परियोजना द्वारा अर्जित अधिकर पूंजी लागत पर निर्भर करता है जो कि पूंजी लागत संस्था की पूंजी संरचना पर निर्भर है। इस प्रकार पूंजी संरचना नियोजन भी स्वत: ही हो जाता है।

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