प्रबंधकीय प्रतिवेदन का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, सिद्धान्त

प्रबंध हेतु प्रतिवेदन या प्रबंधकीय प्रतिवेदन प्रणाली प्रबंधकीय लेखाविधि का एक महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी संस्था से सम्बन्धित सभी अधिकारियों के समक्ष भिन्न-भिन्न प्रकार की सूचनाओं को प्रस्तुत किया जाता है जिनके आधार पर ही वे उचित व सही निर्णय लेते हैं और नीति निर्धारण करते हैं। यह कार्य प्रतिवेदनों एवं अन्य विवरण पत्रों के आधार पर ही किया जाता है। अत: प्रबंध लेखापाल का यह कर्तव्य हो जाता है वह व्यवसाय के संचालन एवं अन्य सूचनाओं से सम्बन्धित तथ्यों एवं आंकड़ों को सही समय पर सम्बन्धित अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने की क्रिया को ही प्रबंध हेतु प्रतिवेदन कहा जाता है। इसकी प्रभावशाली व्यवस्था के अभाव में प्रबंध के लिये लेखा- विधि का कोई महत्व नहीं रह जाता है।

प्रबंधकीय प्रतिवेदन का अर्थ 

प्रबंधकीय प्रतिवेदन प्रणाली संवहन वह प्रक्रिया है जिसमें सूचनायें एकत्रित कर रखी जाती है और संस्था के नियोजन, निर्देशन, निर्णयन तथा नियंत्रण आदि जैसे प्रबंधकीय कार्यों के लिये उपलब्ध करायी जाती है। वस्तुत: ‘प्रतिवेदन’ एक ऐसी प्रणाली है जिसमें प्रतिवेदनों के द्वारा सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को निरन्तर प्रदान की जाती है। इस प्रकार ‘प्रतिवेदन’ प्रबंध हेतु आवश्यक सूचनाओं को प्रेषित करने की एक विधि है। सही एवं उचित तैयार किया गया प्रतिवेदन पाने वाले के ज्ञान में अभिवृद्धि करता है। प्रतिवेदन का शाब्दिक अर्थ सूचनाओं को सम्प्रेषित करना है। 

प्रबंधकीय प्रतिवेदन की परिभाषा 

हॉम स्ट्रीट एवं वैट्टी के अनुसार, ‘‘प्रतिवेदन प्रबंध को निर्णयन कार्य में सहायता देने हेतु व्यवसाय के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को शोध अथवा वस्तुस्थिति से सम्बन्धित सूचना देने का लिखित संवहन है।’’

आई0सी0एम0ए0 लन्दन के अनुसार, ‘‘प्रतिवेदन प्रणाली एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें परिभाषित समंक साधनों का उपयोग करने वाले उत्तरदायी लोगों को सहायता पहुँचाने के लिए संकलित, संश्लेषित एवं सम्प्रेषित किये जाते हैं।’’ इस प्रकार ये प्रतिवेदन सामान्यत: साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक या वार्षिक जैसी आवश्यकता हो, प्रेषित किये जाते है।

प्रबंधकीय प्रतिवेदन के उद्देश्य 

  1. प्रतिवेदन प्रणाली का सर्वप्रथम उद्देश्य लेखा - सूचनाओं को सम्बन्धित अधिकारियों तथा उच्च प्रबंधकों तक पहुंचाना होता है। ये सूचनायें आर्थिक चिट्ठा, लाभ-हानि खाता, कोष प्रवाह विवरण, रोकड़-प्रवाह विवरण आदि के रूप में हो सकती है। 
  2. प्रतिवेदन की सहायता से विभिन्न योजनाओं में सर्वश्रेष्ठ योजना का चुनाव सम्भव हो पाता है जैसे-बनाओ या खरीदो का निर्णय, किराये या खरीदो का निर्णय आदि इसके उदाहरण है। 
  3. विभिन्न प्रकार के लेखों के विश्लेषण के द्वारा संस्था के लाभ को बढ़ाया नहीं जा सकता फिर भी प्रबंध के लिये आवश्यक हल निकालने में सहायता प्रदान करते हैं जिससे क्रियाशीलन लाभदायक हो सके।
  4. प्रतिवेदनों से प्रबंधकों के अलावा व्यवसाय के अन्य पक्षों जैसे-वित्तीय संस्थाओं, सरकार, कर अधिकारियों, स्कन्ध विपणि आदि को महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती है। 
  5. नियंत्रण प्रतिवेदन का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है। प्रतिवेदनों से कर्मचारियों की क्षमता का माप सम्भव होता है। यह लागत को नियंत्रित करने में काफी मदद करता है। प्रतिवेदन की सहायता से प्रबंधक गलत एवं अनिष्टकारी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रख सकते हैं। 
  6. प्रतिवेदनों की सहायता से प्रबंधकीय क्षमता के निष्पादन का मूल्यांकन किया जा सकता है साथ ही प्रबंधकीय क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। 
  7. व्यावसायिक परिवर्तनों की स्थिति में इसका सामना करने में प्रतिवेदनों से महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त कर काफी सहायता मिलती है। 
  8. व्यवसायिक प्रतिवेदनों से व्यवसाय के परिणामों का विश्लेषण किया जा सकता है। व्यवसाय के भूतकालीन परिणामों तथा वर्तमान परिस्थितियों को देखकर प्रबंधक भविष्य के लिये नियोजन कर सकता है। 
  9. प्रतिवेदनों के आधार पर विभिन्न विभागों की क्रियाओं में समन्वय स्थापित किया जा सकता है। 
  10. प्रतिवेदनों के माध्यम से ग्राहकों, अंशधारियों एवं सरकार से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। 

प्रबंधकीय प्रतिवेदन के सिद्धान्त 

 प्रतिवेदन उन अनेक ऐसी सूचनाओं का संक्षिप्त विवरण होते हैं जो कि प्रबंधकों को अपने निर्णयों के लिये आवश्यक होते हैं। अत: इनको तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये-
  1. उचित शीर्षक : प्रत्येक प्रतिवदेन का इसके अन्तर्निहित विषयों की प्रकृति को दर्शाता हुआ एक उचित शीर्षक होना चाहिये जिससे कि यह पता चल सके कि यह कहाँ से आरम्भ किया गया है, किस अवधि का है और किस व्यक्ति के लिए तैयार किया गया है। 
  2. सरलता : प्रतिवेदन सरल, स्पष्ट और बोधगम्य भाषा में तैयार किये जायें ताकि उनके प्रयोगकर्ता उनका सही उपयोग कर सकें। जहाँ तक हो सके प्रतिवेदनों में लेखा-विधि की तकनीकी भाषा का प्रयोग न किया जाय। 
  3. तर्कसंगत क्रम : प्रतिवेदन में सूचनाओं को तर्कसगंत क्रम में प्रस्तुत किया जाना चाहिये। 
  4. संक्षिप्तता : प्रतिवेदन अनावश्यक रूप से बडा़ न होकर संक्षिप्त, विशिष्ट व सही होना चाहिये। अनावश्यक व असम्बद्ध सूचनाओं को प्रतिवेदन में नहीं दिया जाय। प्रतिवेदन के सहायक तथ्यों या आंकड़ों को परिशिष्ट के रूप में दिया जाना चाहिये। 
  5. स्पष्टता : प्रतिवेदन में दी गयी सूचनायें स्पष्ट होनी चाहिये जिससे कि इसको पढ़ने वाला इससे कोई गलत निष्कर्ष न निकाल सके। 
  6. सम्बद्धता : प्रतिवेदन में सभी स्तर के प्रबंधकों को केवल वे ही सूचनायें प्रस्तुत की जायें जो कि उनके लिये आवश्यक और उपयोगी हों। 
  7. तत्परता : प्रतिवेदन की तैयारी व उसके प्रस्तुतीकरण में शीघ्रता लायी जाये। कार्य सम्पादन के तुरन्त बाद ही प्रतिवेदन का कार्य पूरा हो जाना चाहिये। इसमें देरी से कार्यवाही का समय निकल जाता है तथा इनकी तैयारी का उद्देश्य ही विफल हो जाता है। 
  8. तुल्यता और एकरूपता : प्रतिवेदन में पिछले निष्पादनों से तुलना करना सम्भव होना चाहिये जिससे प्रवृत्ति और सम्बन्ध का पता लग सके। इसके लिये विभिन्न अवधियों के प्रतिवेदनों में एकरूपता होनी चाहिये। 
  9. अपवाद का सिद्धान्त : प्रतिवेदन में सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण में ‘अपवाद के सिद्धान्त’ का पालन किया जाय अर्थात् इसमें केवल वे ही तथ्य दर्शाये जायें जोकि सामान्य या योजना से भिन्न हों। 
  10. अनुकूलनीयता : प्रतिवेदन का प्रारूप व विषय-वस्तु इसके तैयार करने के उद्देश्य व इसके प्रयोगकर्ता प्रबंधक के दृष्टिकोण व रूचि के अनुरूप होना चाहिये किन्तु एक ही प्रबंधक को प्रस्तुत किये जाने वाले एक ही विषय के विभिन्न अवधियों के प्रतिवेदनों में एकरूपता होनी चाहिये। 
  11. शुद्धता : प्रतिवेदन में दी गई सूचनायें शुद्ध व सही हों अन्यथा प्रबंध का इन प्रतिवेदनों से विश्वास ही उठ जायेगा। प्रतिवेदन में शुद्धता लाने के प्रयत्न में सूचना की स्पष्टता, शीघ्रता व लागत पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये। 
  12. नियन्त्रणीय और अनियन्त्रणीय तथ्यों में स्पष्ट-भेद : प्रत्येक प्रतिवेदन में नियन्त्रणीय और अनियंत्रणीय तथ्यों का वर्णन पृथक्-पृथक् होना चाहिये जिससे उत्तरदायित्वों का सही निर्धारण किया जा सके। 
  13. लागत : प्रतिवेदन प्रणाली से मिलन े वाला लाभ उसमें निहित लागत के अनुरूप होना चाहिये। यद्यपि इस प्रणाली के लाभ का मौद्रिक मूल्यों में आकलन करना सम्भव नहीं है, किन्तु यह प्रयास करना चाहिये कि प्रतिवेदन प्रणाली मितव्ययी हो।

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