राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) - Official Language Act 1963

संविधान के अनुच्छेद 343(3) के अनुसार संसद को यह शक्ति प्रदान की गई थी कि वह अधिनियम पारित करके 26 जनवरी, 1965 के बाद भी विनिर्दिष्ट सरकारी कार्य में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रख सकती है। इस शक्ति का उपयोग करके राजभाषा अधिनियम 1963 पारित किया गया, जिसे बाद में 1967 में संशोधित किया गया। राजभाषा अधिनियम, 1963 है।

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राजभाषा अधिनियम 1963

राजभाषा अधिनियम 1963 (राजभाषा संशोधन अधिनियम सं. 1967 द्वारा 1967 में संशोधित) उन भाषाओं का, जो संघ के राजकीय प्रयोजनों, संसद में कार्य के संव्यवहार, केन्द्रीय और राज्य अधिनियमों और उच्च न्यायालयों में कतिपय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जा सकेंगी, उपबन्ध करने के लिए अधिनियम भारत गणराज्य के चौदहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

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राजभाषा अधिनियम 1963 का संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ

  1. यह अधिनियम राजभाषा अधिनियम, 1963 कहा जा सकेगा। 
  2. धारा 3, जनवरी, 1965 के 26वें दिन को प्रवृत्त होगी और इस अधिनियम के शेष उपबंध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करें और इस अधिनियम के विभिन्न उपबंधों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी। 

परिभाषाएँ

इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

1. ‘नियत दिन’ से, धारा 3 के सम्बन्ध में जनवरी, 1965 का 26वाँ दिन अभिप्रेत है और इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के सम्बन्ध में वह दिन अभिप्रेत है जिस दिन को वह उपबंध प्रवृत्त होता है;

2. ‘हिन्दी’ से वह हिन्दी अभिप्रेत है, जिसकी लिपि देवनागरी है।

3. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए और संसद में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा का रहना-

1. संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की कालावधि की समाप्ति हो जाने पर भी, हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा, नियत दिन से ही- 
  • संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए जिनके लिए वह उस दिन से ठीक पहले प्रयोग में लाई जाती थी; तथा 
  • संसद में कार्य के संव्यवहार के लिए; प्रयोग में लाई जाती रह सकेगी : परन्तु संघ और किसी ऐसे राज्य के बीच, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग में लाई जाएगी, परन्तु यह और कि जहाँ किसी ऐसे राज्य के, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है और किसी अन्य राज्य के जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, बीच पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी को प्रयोग में लाया जाता है, वहाँ हिन्दी में ऐसे पत्रादि के साथ-साथ उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में भेजा जाएगा : परन्तु यह और भी कि इस उपधारा की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी ऐसे राज्य को, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, संघ के साथ या किसी ऐसे राज्य के साथ, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है, या किसी अन्य राज्य के साथ, उसकी सहमति से, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी को प्रयोग में लाने से निवारित करती है, और ऐसे किसी मामले में उस राज्य के साथ पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग बाध्यकर न होगा। 
2. उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहाँ पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी या अंग्रेजी भाषा- 
  • केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और दूसरे मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के बीच, 
  • केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के बीच; 
  • केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के और किसी अन्य ऐसे निगम या कम्पनी या कार्यालय के बीच; प्रयोग में लाई जाती है, वहाँ उस तारीख तक, जब तक पूर्वोक्त सम्बन्धित मंत्रालय, विभाग, कार्यालय या निगम या कम्पनी का कर्मचारीवृद हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता, ऐसे पत्रादि का अनुवाद, यथास्थिति, अंग्रेजी भाषा या हिन्दी में भी दिया जाएगा। 
3. उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा दोनों ही- 
  • संकल्पों, साधारण आदेशों, नियमों, अधिसूचनाओं, प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदनों या प्रेस विज्ञप्तियों के लिए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निकाले जाते हैं या किए जाते हैं, 
  • संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखे गए प्रशासनिक तथा अन्य प्रतिवेदनों और राजकीय कागज-पत्रों के लिए, 
  • केन्द्रीय सरकार या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या उसकी ओर से या केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निष्पादित संविदाओं और करारों के लिए तथा निकाली गई अनुज्ञप्तियों, अनुज्ञापत्रों, सूचनाओं और निविदा-प्ररूपों के लिए, प्रयोग में लाई जाएगी। 
उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि केन्द्रीय सरकार धारा 8 के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा उस भाषा या उन भाषाओं का उपबंध कर सकेगी जिसे या जिन्हें संघ के राजकीय प्रयोजन के लिए, जिसके अन्तर्गत किसी मंत्रालय, विभाग, अनुभाग या कार्यालय का कार्यकरण है, प्रयोग में लाया जाना है और ऐसे नियम बनाने में राजकीय कार्य के शीघ्रता और दक्षता के साथ निपटारे का तथा जन साधारण के हितों का सम्यक् ध्यान रखा जाएगा और इस प्रकार बनाए गए नियम विशिष्टतया यह सुनिश्चित करेंगे कि जो व्यक्ति संघ के कार्यकलाप के सम्बन्ध में सेवा कर रहे हैं और जो या तो हिन्दी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण हैं वे प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें और यह भी कि केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं हैं, उनका कोई अहित नहीं होता है

उपधारा (1) के खंड (क) के उपबन्ध और उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), के उपबन्ध तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक उनमें वर्णित प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधान-मण्डलों द्वारा, जिन्होंने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है; संकल्प पारित नहीं कर दिए जाते और जब तक पूर्वोक्त संकल्पों पर विचार कर लेने के पश्चात ऐसी समाप्ति के लिए संसद के हर एक सदन द्वारा संकल्प पारित नहीं कर दिया जाता। 
1. राजभाषा के सम्बन्ध में समिति-
  1. जिस तारीख को धारा 3 प्रवृत्त होती है उससे दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात्, राजभाषा के सम्बन्ध में एक समिति, इस विषय का संकल्प संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी से प्रस्तावित और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने पर, गठित की जाएगी।
  2. इस समिति में तीस सदस्य होंगे जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य सभा के सदस्य होंगे, जो क्रमश: लोक सभा के सदस्यों तथा राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे। 
  3. इस समिति का कर्तव्य होगा कि वह संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करें और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करें और राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद के हर एक सदन के समक्ष रखवाएगा और सभी राज्य सरकारों को भिजवाएगा। 
  4. राष्ट्रपति उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर और उस पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत अभिव्यक्त किए हों तो उन पर विचार करने के पश्चात् उस समस्त प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा : (परन्तु इस प्रकार निकाले गए निदेश धारा 3 के उपबन्धों से असंगत नहीं होंगे।) 
2. केन्द्रीय अधिनियमों आदि का प्राधिकृत हिन्दी अनुवाद-

1. नियत दिन को और उसके पश्चात शासकीय राजपत्र में राष्ट्रपति के प्राधिकार से प्रकाशित- 
    • किसी केन्द्रीय अधिनियम का या राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किसी अध्यादेश का, अथवा 
    • संविधान के अधीन या किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन निकाले गए किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि का हिन्दी में अनुवाद उसका हिन्दी में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा। 
2. नियत दिन से ही उन सब विधेयकों के, जो संसद के किसी भी सदन में पुर:स्थापित किए जाने हों और उन सब संशोधनों के, जो उनके सम्बन्ध में संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जाने हों, अंग्रेजी भाषा के प्राधिकृत पाठ के साथ-साथ उनका हिन्दी में अनुवाद भी होगा जो ऐसी रीति से प्राधिकृत किया जाएगा, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाए।
3. कतिपय दशाओं में राज्य अधिनियमों का प्राधिकृत हिन्दी अनुवाद- जहाँ किसी राज्य के विधान-मंडल ने उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में प्रयोग के लिए हिन्दी से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहाँ, संविधान के अनुच्छेद 348 के खण्ड (3) द्वारा अपेक्षित अंग्रेजी भाषा में उसके अनुवाद के अतिरिक्त, उसका हिन्दी में अनुवाद उस राज्य के शासकीय राजपत्र में, उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से, नियत दिन को या उसके पश्चात् प्रकाशित किया जा सकेगा और ऐसी दशा में ऐसे किसी अधिनियम या अध्यादेश का हिन्दी में अनुवाद हिन्दी भाषा में उसका प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।

4. उच्च न्यायालयों के निर्णयों, आदि में हिन्दी या अन्य राजभाषा का वैकल्पिक प्रयोग- नियत दिन से ही या तत्पश्चात् किसी भी दिन से किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहाँ कोई निर्णय, डिक्री या आदेश (अंग्रेजी भाषा से भिन्न) ऐसी किसी भाषा में पारित किया या दिया जाता है, वहाँ उसके साथ-साथ उच्च न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।

5. नियम बनाने की शक्ति-
  1. केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।
  2. इस धारा के अधीन बनाया गया हर नियम, बनाए जाने के पश्चात यथासमय शीघ्र, संसद के हर एक सदन के समक्ष, उस समय जब वह सत्र में हो, कुल मिलाकर तीस दिन की कालावधि के लिए, जो एक सत्र में या दो क्रमवर्ती सत्रों में समाविष्ट हो सकेगी, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के, जिसमें वह ऐसे रखा गया हो, या ठीक पश्चात्वर्ती सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई उपान्तर करने के लिए सहमत हो जाएँ या दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात यथास्थिति, वह नियम ऐसे उपान्तरित रूप में ही प्रभावशाली होगा या उसका कोई भी प्रभाव न होगा, किन्तु इस प्रकार कि ऐसा कोई उपान्तर या बातिलकरण उस नियम के अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा।
6. कतिपय उपबन्धों का जम्मू-कश्मीर को लागू न होना- धारा 6 और धारा 7 के उपबन्ध जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू न होंगे।

राजभाषा अधिनियम 1963 के अन्तर्गत की गई व्यवस्था

संशोधित राजभाषा अधिनियम 1963 के अन्तर्गत की गई व्यवस्था इस प्रकार है :
  1. अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार (क) संघ के उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए जिनके लिए 26 जनवरी, 1965 के तत्काल-पूर्व अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा था और (ख) संसद में कार्य निष्पादन के लिए 26 जनवरी, 1965 के बाद भी हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जा सकेगा। 
  2. केन्द्र सरकार और हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले किसी राज्य के बीच पत्राचार अंग्रेजी में होगा, बशर्ते उस राज्य ने उसके लिए हिन्दी का प्रयोग करना स्वीकार न किया हो। इसी प्रकार हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें भी ऐसे राज्यों की सरकारों के साथ अंग्रेजी में पत्राचार करेंगी और यदि वे ऐसे राज्यों को कोई पत्र हिन्दी में भेजती हैं तो साथ में उनका अंग्रेजी अनुवाद भी भेजेंगी। पारस्परिक समझौते से यदि कोई दो राज्य आपसी पत्राचार में हिन्दी का प्रयोग करें तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। 
  3. केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों आदि के बीच पत्र व्यवहार के लिए निर्धारित अनुपात में हिन्दी का प्रयोग किया जाएगा लेकिन ‘ग’ क्षेत्र में जब तक सम्बन्धित कार्यालयों आदि के कर्मचारी हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त न कर लें, तब तक पत्रादि का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाता रहेगा। 
  4. अधिनियम की धारा 3(3) के अनुसार निम्नलिखित कागज-पत्रों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अनिवार्य है : संकल्प 2. सामान्य आदेश 3. नियम 4. अधिसूचनाएँ 5. प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट 6. प्रेस विज्ञप्तियाँ 7. संसद के किसी सदन या दोनों सदनों के समक्ष रखी जाने वाली प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट, सरकारी कागज-पत्र 8. संविदाएँ 9. करार 10. अनुज्ञप्तियाँ 11. अनुज्ञापत्र 12. टेंडर नोटिस और 13. टेंडर फार्म 
  5. धारा 3(4) के अनुसार, अधिनियम के अधीन नियम बनाते समय यह सुनिश्चित कर लेना होगा कि केन्द्रीय सरकार का कोई कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में से किसी एक ही भाषा में प्रवीण होने पर भी अपना सरकारी कामकाज प्रभावी ढंग से कर सके और केवल इस आधार पर कि वह दोनों भाषाओं में प्रवीण नहीं, उसका कोई अहित न हो। 
  6. अधिनियम की धारा 3(5) के रूप में यह उपबंध किया गया है कि उपर्युक्त विभिन्न कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने सम्बन्धी व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान-मण्डल अंग्रेजी का प्रयोग समाप्त करने के लिए आवश्यक संकल्प पारित न करें और इन संकल्पों पर विचार करने के बाद संसद का प्रत्येक सदन भी इसी आशय का संकल्प पारित कर दे।
  7. अधिनियम की धारा 4 में 26 जनवरी, 1975 के बाद एक संसदीय राजभाषा समिति के गठन का उपबंध है। इस समिति में 20 लोक सभा सदस्य और 10 राज्य सभा सदस्य होंगे। यह समिति संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की जाँच करेगी। अपनी सिफारिशों सहित अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करेगी। समिति का वर्ष 1976 में गठन कर दिया गया था और यह इस समय भी कार्य कर रही है। समिति ने दिनांक 12.3.1992 को अपने प्रतिवेदन का पाँचवाँ खण्ड राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत किया। इसे राज्य सभा तथा लोक सभा के पटल पर क्रमश: दिनांक 9.3.1994 और 17.3.1994 को प्रस्तुत किया गया। अधिनियम की धारा 7 के अनुसार किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा किए गए अथवा पारित किए गए किसी निर्णय, डिक्री अथवा आदेश के लिए अंग्रेजी भाषा के अलावा, हिन्दी अथवा राज्य की राजभाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकता है। तथापि, यदि कोई निर्णय, डिक्री या आदेश अंग्रेजी से भिन्न किसी भाषा में दिया गया या पारित किया जाता है तो उसके साथ-साथ सम्बन्धित उच्च न्यायालय के प्राधिकार से अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी दिया जाएगा। (अब तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के राज्यपालों ने अपने-अपने उच्च न्यायालयों में उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए हिन्दी के प्रयोग की अनुमति दे ही है।) 
इस प्रकार राजभाषा अधिनियम 1963 में यह व्यवस्था की गई कि सन् 1965 के बाद हिन्दी ही संघ की राजभाषा होगी। किन्तु अंग्रेजी का प्रयोग करने की छूट तब तक बनी रहेगी जब तक कि हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान-मंडल अंग्रेजी का प्रयोग समाप्त करने के लिए संकल्प न पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करने के बाद संसद के दोनों सदन इस सम्बन्ध में संकल्प पारित न कर दें। 

इस व्यवस्था के अनुसार आज हर कर्मचारी को अपना कामकाज हिन्दी अथवा अंग्रेजी दोनों में करने की छूट है। किन्तु कुछ कामों के लिए हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अनिवार्य है, इसमें एक तरफ पत्रादि हैं जिनमें पत्राचार तथा फाइलों का काम शामिल है और दूसरी तरफ सरकार की ओर से निकलने वाले आदेश और नियम आदि आम जनता के उपयोग के लिए हैं। आम जनता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यह व्यवस्था की गई है कि आम आदमी के उपयोग के सारे कागज-पत्र द्विभाषी रूप में हों। 

इस बात का उल्लेख राजभाषा अधिनियम की उपधारा 3(3) में किया गया है।

राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) 

राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(3) के अंतर्गत 14 दस्तावेज आते हैं, जिन्हें अनिवार्यतः हिंदी व अंग्रेजी में एक साथ तैयार, निष्पादित एवं जारी किया जाना चाहिए -
  1. धारा 3(3) के अंतर्गत आने वाले दस्तावेज दृ सामान्य आदेश (General Orders) : सामान्य आदेशों से अभिप्राय है ऐसे आदेश, अनुदेश, निर्णय, पत्र, ज्ञापन, नोटिस, परिपत्र जो कर्मचारियों के समूह के लिए हों। 
  2. संकल्प (Resolution)
  3. नियम (Rule)
  4. प्रेस विज्ञप्ति (Press Communiques)
  5. सूचना (Notice)
  6. निविदा प्ररूप (Tender Forms)
  7. संविदा (Contract)
  8. करार (Agreement)
  9. अनुज्ञप्ति (Licence)
  10. अनुज्ञा पत्र (Permit)
  11. अधिसूचना (Notification)
  12. प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदन (Administrative or other reports)
  13. संसद के प्रस्तुति हेतु प्रशासनिक और अन्य प्रतिवेदन (AdministrativeAnd other reports to be laid in parliament)
  14. संसद में प्रस्तुति हेतु राजकीय कागजात (Official papers to be laid in parliament)

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