आहार आयोजन किसे कहते हैं आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले तत्व?

आहार आयोजन किसे कहते हैं

पोषण के सिद्धान्तों को मानते हुए परिवार की आवश्यकता, समय व धन के अनुसार कल्पना करके भोजन प्रस्तुत करता है। आहार आयोजन द्वारा गृहिणी अपने परिवार को सन्तुलित आहार प्रदान कर सकती है और आहार आयोजन का मुख्य उद्देश्य भी यही है। 

आहार नियोजन एक कला है। कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया भोजन हर व्यक्ति के लिए आनंददायक होता है चाहे उसका सेवन गृह में किया गया हो या बाहर। परिवार के प्रत्येक सदस्य की आयु एवं कार्य तथा रुचि भिन्न-भिन्न होती है। एक कुषल गृहिणी इन बातों को ध्यान में रखकर अपनी योग्यता तथा पाक ज्ञान से परिवार के प्रत्येक सदस्य को उसकी पसन्द का भोजन देकर खुश कर सकती है। 

“भोजन निर्माण से पूर्व परिवार के सभी सदस्यों को आवश्यकतानुसार पौष्टिक, रूचिकर एवं समयानुसार भोजन की योजना बनाना ही आहार आयोजन कहलाता है।”

आहार आयोजन के चरण

आहार आयोजन के महत्वपूर्ण चरण इस प्रकार हैं : 
  1. पारिवारिक सदस्यों की पौष्टिक आवश्यकताएँ ज्ञात करना - परिवार के लिए आहार आयोजित करते समय गृहणी को सर्वप्रथम भारतीय चिकित्सा अनुसंधान समिति द्वारा विभिन्न आयु, लिंग व प्रतिदिन की आहार तालिका बनाने के लिए पूरे दिन को एक इकाई के रूप में रख लेना आवश्यक होता है। जैसे- सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और रात्रि का भोजन। सभी की आहार तालिका एक साथ बनानी चाहिए। प्रत्येक भोजन के समय में सभी पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में उपस्थित रहने चाहिए।
  2. यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक समय के भोजन में बेसिक फूड गाइड या पाँच भोज्य वर्गों में दिये गये प्रत्येक वर्ग का समावेश हो।
  3. आहार में ऐसे भोज्य पदार्थों का उपयोग करना चाहिए जो कि तृप्तिदायक भोज्य पदार्थ नहीं है तो व्यक्ति को भोजन रुचिकर नहीं लगेगा।
  4. भोजन में कुछ ऐसे भोज्य पदार्थ जो कि छिलके या रेशे से युक्त हो, अवश्य ही रखने चाहिए। उदाहरण- सुबह के नाश्ता में दलिया, दोपहर के खाने में साबुत, चना या लोबिया, रात्रि में मैथी की सब्जी।
  5. आहार में प्रतिदिन एक-दो बार कच्चे फल, सब्जियाँ आदि का उपयोग करना चाहिए।

आहार आयोजन के सिद्धांत

प्रत्येक गृहिणी चाहती है कि उसके द्वारा पकाया गया भोजन घर के सदस्यों की केवल भूख ही शांत न करें अपितु उन्हें मानसिक संतुष्टि भी प्रदान करें। इसके लिये तालिका बनाते समय कुछ सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है, जो कि है-

1. पोषण सिद्धांत के अनुसार- आहार आयोजन करते समय गृहणी को पोषण के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए आहार आयोजन करना चाहिये अर्थात् आहार आयु के अनुसार, आवश्यकता के अनुसार तथा आहार में प्रत्येक भोज्य समूह के खाद्य पदार्थों का उपयोग होना चाहिये।

2. परिवार के अनुकूल आहार- भिन्न-भिन्न दो परिवारों के सदस्यों की रूचियाँ तथा आवश्यकता एक दूसरे से अलग-अलग होती है। अत: आहार, परिवार की आवश्यकताओं के अनुकूल होना चाहिये। जैसे उच्च रक्त चाप वाले व्यक्ति के लिये बिना नमक की दाल निकाल कर बाद में नमक डालना। भिन्न-भिन्न परिवारों में एक दिन में खाये जाने वाले आहार की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती है। उसी के अनुसार पोषक तत्वों की पूर्ति होनी चाहिये। जैसे कहीं दो बार नाश्ता और दो बार भोजन, जबकि कुछ परिवारों में केवल भोजन ही दो बार किया जाता है। 

3. आहार में नवीनता लाना- एक प्रकार के भोजन से व्यक्ति का मन ऊब जाता है। चाहे वह कितना ही पौष्टिक आहार क्यों न हो। इसलिये गृहणी भिन्न-भिन्न तरीकों, भिन्न-भिन्न रंगों, सुगंध तथा बनावट का प्रयोग करके भोजन में प्रतिदिन नवीनता लाने की कोशिश करना चाहिये। 

4. तृप्ति दायकता- वह आहार जिसे खाने से संतोष और तृप्ति का एहसास होता है। अर्थात् एक आहार लेने के बाद दूसरे आहार के समय ही भूख लगे अर्थात् दो आहारों के अंतर को देखते हुए ही आहार का आयोजन करना चाहिये। जैसे दोपहर के नाश्ते और रात के भोजन में अधिक अंतर होने पर प्रोटीन युक्त और वसा युक्त नाश्ता तृप्तिदायक होगा। 

5. समय शक्ति एवं धन की बचत- समयानुसार, विवेकपूर्ण निर्णय द्वारा समय, शक्ति और धन सभी की बचत संभव है। उदाहरण- छोला बनाने के लिये पूर्व से चने को भिगा देने से और फिर पकाने से तीनों की बचत संभव है। 

आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले तत्व

आहार आयोजन के सिद्धातों से परिचित होने के बावजूद ग्रहणी परिवार के सभी सदस्यों के अनुसार भोजन का आयोजन नहीं कर पाती। क्योंकि आहार आयोजन को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं-

1. आर्थिक कारक- गृहणी भोज्य पदार्थों का चुनाव अपने आय के अनुसार ही कर सकती है। चाहे कोर्इ भोज्य पदार्थ उसके परिवार के सदस्य के लिये कितना ही आवश्यक क्यों न हो, किन्तु यदि वह उसकी आय सीमा में नहीं है तो वह उसका उपयोग नहीं कर पाती। उदाहरण- गरीब गृहणी जानते हुए भी बच्चों के लिये दूध और दालों का समावेश नहीं कर पाती। 

2. परिवार का आकार व संरचना- यदि परिवार बड़ा है या संयुक्त परिवार है तो गृहणी चाहकर भी प्रत्येक सदस्य की आवश्यकतानुसार आहार का आयोजन नहीं कर पाती।

3. मौसम- आहार आयोजन मौसम द्वारा भी प्रभावित होता है। जैसे कुछ भोज्य पदार्थ कुछ खास मौसम में ही उपलब्ध हो पाते हैं। जैसे गर्मी में हरी मटर या हरा चना का उपलब्ध न होना। अच्छी गाजर का न मिलना। अत: गृहणी को मौसमी भोज्य पदाथोर्ं का उपयोग ही करना चाहिये। सर्दी में खरबूज, तरबूज नहीं मिलते। 

4. खाद्य स्वीकृति- व्यक्ति की पसंद, नापसंद, धार्मिक व सामाजिक रीति-रिवाज आदि कुछ ऐसे कारक हैं। जो कि व्यक्ति को भोजन के प्रति स्वीकृति व अस्वीकृति को प्रभावित करते हैं। जैसे परिवारों में लहसुन व प्याज का उपयोग वर्जित है। लाभदायक होने के बावजूद गृहणी इनका उपयोग आहार आयोजन में नहीं कर सकती। 

5. भोजन संबंधी आदतें- भोजन संबंधी आदतें भी आहार आयोजन को प्रभावित करती हैं। जिसके कारण गृहणी सभी सदस्यों को उनकी आवश्यकतानुसार आहार प्रदान नहीं कर पाती। जैसे- बच्चों द्वारा हरी सब्जियाँ, दूध और दाल आदि का पसंद न किया जाना। 

6. परिवार की जीवन-शैली- प्रत्येक परिवार की जीवन-शैली भिन्न-भिन्न होती है। अत: परिवार में खाये जाने वाले आहारों की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती है। जिससे आहार आयोजन प्रभावित होता है। 

7.  साधनों की उपलब्धता- गृहणी के पास यदि समय, शक्ति बचत के साधन हो तो गृहणी कम समय में कर्इ तरह के व्यंजन तैयार करके आहार आयोजन में भिन्नता ला सकती है अन्यथा नहीं। 

8. भोजन संबंधी अवधारणायें- कभी-कभी परिवारों में भोजन संबंधी गलत अवधारणायें होने से भी आहार आयोजन प्रभावित होता है। जैसे- सर्दी में संतरा, अमरूद, सीताफल खाने से सर्दी का होना। 

आहार आयोजन का महत्व

गृहिणी के लिये आहार का आयोजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह इसके द्वारा परिवार के लिये लक्ष्य प्राप्त कर सकती है-

1. संतुलित भोजन की प्राप्ति- पूर्व में आयु, लिंग, व्यवसाय के अनुसार आहार का आयोजन करने से सभी सदस्यों को संतुलित भोजन प्राप्त हो जाता है।

2. समय शक्ति और धन की बचत- समयानुसार पूर्व में आहार निर्माण की योजना बना लेने से समय, शक्ति एवं धन की बचत हो जाती है। उदाहरण- आलू और अरवी को एक साथ उबालना, राजमा को 6 घंटे पहले भिगो देना।

3. आहार में भिन्नता- आहार आयोजन के द्वारा हम पहले से निश्चित करके भोजन में विभिन्नता का समावेश कर सकते हैं। जैसे- दोपहर में राजमा की सब्जी बनायी हो तो रात में आलू गोभी की सब्जी बनायी जा सकती है।

4. खाद्य बजट पर नियंत्रण- आहार का आयोजन करने से गृहणी बजट पर नियंत्रण रख सकती है। जैसे- हफ्ते में एक दिन पनीर रख सकते हैं। बाकी दिन सस्ती सब्जियों को उपयोग करना।

5. आकर्षक एवं स्वादिष्ट आहार- आहार आयोजन आकर्षक एवं स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति होती है।

6. बचे हुए खाद्य पदार्थों का सदुपयोग- आहार द्वारा बचे हुए खाद्य पदाथोर्ं का सदुपयोग किया जा सकता है। जैसे- रात की बची भाजी या दाल का पराठे बनाकर उपयोग करना।

7. व्यक्तिगत रूचियों का ध्यान - आहार आयोजन से सदस्यों की व्यक्तिगत रूचि के खाद्य पदाथोर्ं को किसी न किसी आहार में शामिल किया जा सकता है। 

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