संपूर्ण न्यायव्यवस्था तीन स्तरों में विभाजित है। सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय है, इसके नीचे उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे सत्र न्यायालय स्थापित है। सर्वोच्च न्यायालय कानून का सर्वोत्तम न्यायालय है। भारत का उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या अधिनियम 1985 के द्वारा
वर्तमान में न्यायाधीशों की संख्या कुल 26 है जिसमें 01 मुख्य न्यायाधीश एवं 25
अन्य न्यायाधीश होते है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है,
नियुक्ति करने से पूर्व वह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों एवं उच्च न्यायालयों के
मुख्य न्यायाधीशों से परामर्श ले सकता है। जिनसे परामर्श लेना आवश्यक समउच्चतम
न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के परामर्श पर करता
है।
संविधान के द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किये जाने की
व्यवस्था है परंतु व्यवहार में इन नियुक्तियों का निर्णय प्रधानमंत्री द्वारा लिया जाता
है और राष्ट्रपति उसके परामर्श से कार्य करता है।
संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रहते है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएं
संविधान के अनुच्छेद 124(3) के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश
के लिये निम्नांकित योग्यताएँ अपेक्षित है सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति के लिए कुछ योग्यताएं निर्धारित की गयी है। ये योग्यताएं इस प्रकार है:-
- वह व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिये,
- वह किसी उच्च न्यायालय में पाँच वर्ष तक कार्य किया हो, या
- वह किसी उच्च न्यायालय में दस वर्ष तक वकालत की हो। या फिर
- वह राष्ट्रपति की राय में एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित विधिवेत्ता हो।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन एवं भत्ता
न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते संसद द्वारा निश्चित किये जाते है। उच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 33,000.00 (तैतीस हजार) मासिक वेतन एवं
1250.00 रुपये (बारह सौ पचास) मासिक भत्ता एवं अन्य न्यायाधीशों को 30,000.
00 (तीस हजार) मासिक एवं 750 (सात सौ पचास) रूपये मासिक भत्ता प्राप्त होता
है। इसके अलावा निशुल्क आवास आने जान के लिये वाहन एवं 150 लीटर पेट्रोल की सुविधा भी मिलती है।
सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार
संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि उसके बनाये कानून भारत में सभी न्यायालयों पर लागू होंगे। सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को चार वर्गों में विभाजित किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
- सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार
- सर्वोच्च न्यायालय के परामर्शवादी क्षेत्राधिकार तथा
- सर्वोच्च न्यायालय के पुनरावलोकन संबंधी क्षेत्राधिकार।
1. सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि ये मुकदमे सीधे उच्चतम न्यायालय में लाए जा सकते है और इन्हें पहले किसी छोटे न्यायालय में ले जाने की आवश्यकता नहीं है। प्रारंभिक क्षेत्राधिकार को दो भागो में विभाजित किया जा सकता है- 1. संघ तथा राज्यों से संबंधित 2. मौलिक अधिकारों से संबंधित ।1. संघ तथा राज्यो से संबंधित विवाद - इसमें वे विवाद आते हैं जिनका निर्णय केवल उच्चतम न्यायालय ही कर
सकता है जैसे-
- भारत सरकार (केन्द्र सरकार) तथा एक या अधिक राज्यों के बीच का विवाद।
- एक पक्ष केन्द्र सरकार और एक या कुछ राज्यों का हो तथा दूसरा पक्ष एक या अनेक राज्यों का हो।
- दो या दो से अधिक राज्यों के वैध अधिकार के प्रश्न का विवाद।
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेखी- यदि
किसी व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार करती है तो उसे सामान्यत: 24 घटें के
भीतर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
2. परमादेश लेख -
इसके अन्तर्गत न्यायालय
किसी व्यक्ति या संस्था को काम करने का आदेश देती है।
3. प्रतिषेध लेख -
यह परमादेश लेख का विपरीत है परमादेश में काम करने का आदेश दिया
जाता है जबकि प्रतिषेध लेख जारी कर काम करने के लिये मना किया
जाता है।
4. उत्प्रेषण लेख -
यदि
अधीनस्थ न्यायालय में कोई मामला विचाराधीन है और उच्च स्तर का
न्यायालय यह समझता है कि प्रकरण महत्वपूर्ण है। अतएव उसे स्वयं उस
प्रकरण पर सुनवाई करना चाहिए तो वह उच्च स्तर का न्यायालय अपने
अधीनस्थ न्यायालय के लिये यह लेख जारी करते हुए उस प्रकरण के बारे
में सम्पूर्ण दस्तावेज आदि अपने पास मगा लेता है और प्रकरण पर स्वयं
सुनवाई करता है।
5. अधिकार पृच्छा लेख- इसके
अनुसार न्यायालय किसी व्यक्ति को एक पद ग्रहण करने से रोकने के लिये
एक निषेध आज्ञा जारी कर सकता है और उक्त पद के रिक्त होने की तब
तक के लिये घोषणा कर सकता है जब तक कि न्यायालय द्वारा कोई निर्णय
न हो जाय। आदेश का तात्पर्य है कि ‘‘ आप इस पद पर किस अधिकार से
पदस्थ हैं।’’
इस प्रकार उच्चतम न्यायालय नागरिको के मौलिक अधिकारों की रक्षा
करता है।
2. सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार
उच्चतम न्यायालय देश का अंतिम अपीलीय न्यायालय है उच्चतम न्यायालय
को उच्च न्यायालयो के विरूद्ध चार प्रकार की अपीलें सुनने की शक्ति
प्राप्त है।
1. संवैधानिक अपीलें - संवैधानिक मामले न तो दीवानी झगडे होते है और न ही फौजदारी
अपराध। यह ऐसा मुकदमा है जिसके कारण संविधान की भिन्न भिन्न प्रकार
से व्याख्या करना होता है विशेषकर मौलिक अधिकारो से सबंधित व्याख्या
अथवा अर्थ निकालना ऐसे मामलों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में केवल
तभी हो सकती है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला
संवैधानिक मामलो से संबंधित है।
2. दीवानी अपीलें - संपत्ति विवाह धन समझौते या किसी सेवा संबंधी झगडो के मामले
दीवानी मुकदमें कहलाती है। यदि किसी दीवानी मामलो में लाके महत्व का
कोई ऐसा प्रमुख कानूनी बिन्दु है जिसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा
वांछित है तो उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में
अपील की जा सकती है। 1972 के 30 वें संशोधन के अनुसार धनराशि (बीस
हजार से अधिक की राशि का विवाद) का बंधन हटा दिया गया है अर्थात
दीवानी अपील के लिये कोई निम्नतम राशि निर्धारित नहीं है।
3. फौजदारी अपीलें - संविधान के अनुच्छेद 134 के अनुसार उच्च न्यायालयों के निणर्य के
विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में उन फौजदारी विवादो की अपील की जा
सकती है। जबकि-
- यदि कोई उच्च न्यायालय निचली अदालत द्वारा दोषमुक्त घोषित किए गए व्यक्ति को मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे व्यक्ति को इस निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार है।
- यदि कोई उच्च न्यायालय किसी निचली अदालत से किसी मुकदमे को अपने यहां मंगा ले और उस व्यक्ति को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। ऐसी स्थिति में भी अधिकार स्वरूप और उच्च न्यायालय से बिना किसी प्रमाणपत्र के अपील दायर की जा सकती है।
- उपरोक्त दो स्थितियों के अतिरिक्त भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है यदि कोई उच्च न्यायालय यह प्रमाणपत्र दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है।
3. सर्वोच्च न्यायालय के परामर्शदायी क्षेत्राधिकार
संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार सर्वोच्च
न्यायालय को परामर्श देने का अधिकार है यदि उससे परामर्श मांगा जाए। मंत्रणा
संबंधी अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत राष्टप्ति किसी भी कानून संबंधी अथवा लोक महत्व
के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांग सकता है। परंतु सर्वोच्च न्यायालय
परामर्श देने के लिये बाध्य नहीं है। दूसरी ओर यदि परामर्श या मत भेज दिया जाए
तो उसे मानना या ना मानना राष्टप्रति के लिये भी बाध्यकारी नही है।
आज तक
जब भी सर्वोच्च न्यायालय ने कोई परामर्श दिया है राष्ट्रपति ने उसे सदैव स्वीकार
किया है।
4. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन संबंधी अधिकार
यदि संसद द्वारा बनाया गया कोई कानून या कार्यपालिका द्वारा किया गया
कोई कार्य अथवा कोई आदेश संविधान के विरूद्ध है तो सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक
पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग करते हुए ऐसे कानून कार्य अथवा आदेश को
अवैध घोषित कर देता है।
इसी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के कारण सर्वोच्च
न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा जाता है।
5. सर्वोच्च न्यायालय के अन्य अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय को उपर्युक्त अधिकारों के अलावा अन्य अधिकार भी प्राप्त है।
- वह अपने अधीनस्थ न्यायालयों के कार्य की जांच कर सकता है।
- उसे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की नियुक्ति और सेवा शर्तें निर्धारित करने के अतिरिक्त उनके पदोन्नति एवं उनको पदच्युत करने की शक्ति भी प्राप्त है।
- न्यायालय की अवमानना करने वाले किसी भी व्यक्ति को दण्डित करने की शक्ति भी उच्चतम न्यायालय को प्राप्त है।
- उसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लाके सभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री सहित भारतीय संघ के अन्य पदाधिकारियों के चुनाव में उत्पन्न विवादों में भी निर्णय देने का अधिकार प्राप्त है।
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