मिलावट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा भोज्य पदार्थों की प्रकृति गुणवत्ता तथा पौष्टिकता में बदलाव आ पाता है। यह मिलावट उपज फसल काटने के समय संग्रहित करते समय, परिवाहन और वितरण करते समय किसी भी समय हो सकती है। ‘खाद्य पदार्थ में कोई मिलता जुलता पदार्थ मिलाने अथवा उसमें से कोई तत्व निकालने या उसमें कोई हानि कारिक तत्व मिलाने से खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता में परिवर्ततन लाना मिलावट कहलाता है।’’
आहार मिलावटी कब होता है?
खाद्य पदार्थों में दिन प्रतिदिन बढ़ती हुइ मिलावटों को देखते हुए भारत सरकार ने 1954 में खाद्य मिलावट निषेध अधिनियम बनाया। अधिनिमय को 1955 जून में लागू किया गया। सन् 1968, 1973 तथा 1978-79 में इसे संशोधित किया गया। पी.एफ.ए. के अनुसार निम्न अवस्थाओं में खाद्य पदार्थों को मिलावटी समझा जायेगा।- यदि भोज्य पदार्थ अपने असली रूप, गुण और आकार वाला न हो।
- भोज्य पदार्थ में घटिया या सस्ता खाद्य पदार्थ मिला दिया गया हो अथवा स्वत: ही मिला हो।
- यदि उसके निर्माण के समय उसकी प्रकृति तथा गुणवत्ता को हानि पँहुची हो।
- उसमे से कोई पोषक तत्व आंशिक या पूर्णत: निकाल दिया गया हो जैसे दूध में से क्रीम।
- यदि अस्वस्थ परिस्थितियाँ में तैयार एंव पैक किया गया हो।
- यदि खाद्य पदार्थ में सड़ा गला पदार्थ, घुन या कीड़े आदि हो।
- स्वास्थ के लिये हानिकारक विषैले तत्वो की मिलावट।
- यदि खाद्य ऐसे पैकिंग में रखा गया हो जिससे सामाग्री विषैली अथवा हानिप्रद हो गयी हो।
- वर्जित संरक्षित रंगो का निर्धारित मात्रा से अधिक प्रयोग।
- खाद्य पदार्थो में उपस्थित तत्व की न्यूनतम मात्रा नियमो के अनुसार न हो।
मिलावट के कारण
- अधिक लाभ की इच्छा- हर व्यापारी को अधिक लाभ कमाने की तीव्र इच्छा होती है जिसके कारण वह घटिया पदार्थ मिलाकर भोज्य पदार्थ की मात्रा बढ़ाकर अधिक बिक्री के लिए प्रस्तुत करता है।
- बाजार में अधिक प्रतियोगिता- वर्तमान समय प्रतियोगिता का समय है जिससे व्यापारी वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान न देकर उसे आकर्षक दिखाकर अधिक बिक्री के लिए प्रस्तुत करता है।
- विज्ञापन का युग- वर्तमान समय में जो व्यापारी अपनी वस्तु का जितने आकर्षक तरीके से और नामी व्यक्तियो से विज्ञापन प्रस्तुत करता है उस वस्तु का विक्रय उतना ही अधिक होता है। अत: इस व्यय को व्यापारी वस्तु की गुणवत्ता घटा कर पूरा करता है।
- अधिक माँग- कुछ खास अवसरो पर विशेष खाद्य पदार्थो की माँग बढ़ जाती है। ऐसे अवसरों पर प्राय: व्यापारी उपभोक्ता की कमजोरी का फायदा उठाकर मिलावट करते है। जैसे-त्यौहारो पर मैदा आदि की माँग बढ़ना।
- अज्ञानतावश मिलावट- कई बार खेतो में खरपतवार उग जाते हैं। जिनके बीज अनजाने में भोज्य पदार्थ में मिल जाते है।
मिलावट का हानिकारक प्रभाव
1. कुपोषण- मिलावट के कारण व्यक्ति जिन पोशक तत्वो को लेना चाहता है, नही ले पाता है। जिससे कुपोषण हो जाता है। उदाहरण- पानी मिला दूध बच्चो को देने से पर्याप्त प्रोटीन नही मिल पाती।2. वृद्धि और विकास में कमी-
बच्चो को मिलावटी भोज्य पदार्थो के कारण वृद्धि और विकास के लिये पर्याप्त
पोषक तत्व नही मिल पाता।
उदाहरण- दूध से क्रीम निकाल लेने पर वसा कम हो जाती है जिससे पर्याप्त
ऊर्जा नही मिल पाती।
3. विभिन्न रोगो को आमंत्रण-
मिलावटी भोज्य पदार्थो का उपयोग करने से अनेक रोग के लक्षण दिखाई
देते है।
- लेथाईरज्म- इस बीमारी में शुरूआत मे घुटने के जोड़ो व टाँगो में ऐठन होती है। जाँघो तथा टखने में दर्द रहता है। और इन लक्षणो के 10-30 दिनो में नीचे के अंगो को पक्षाघात हो जाता है। व्यक्ति चलने योग्य नही रहता । यह बीमारी 5 से 45 वर्ष के व्यक्ति को प्रभावित करती है। कारण- 1 चने और अरहर की दाल में तथा बेसन मे केसरी या तिवड़ा, दाल की मिलावट। इसमें Beta N-oxyl Amino Alanine नामक विषैला तत्व पाया जाता है।
- कैंसर- वजिर्त विषैले रगं जैसे लेडक्रामेट , मैटोनिलयलो मैलाकाईट ग्रीन आदि का अधिक उपयोग कैसर की सम्भावना को बढ़ा देता है।
- ड्राप्सी- सरसो के तेल में आरजीमान तेल की मिलावट होने पर इसका उपयोग करने से ड्राप्सी नामक रोग होता है। जिसमें पूरे शरीर में एडीमा पाया जाता है। यकृत और हद्धय बढ़ जाता है।
- ग्लूकोमा- ग्लूकोमा अर्थात् अन्धापन यह एल्कोहल में मिथाइल एल्कोहल की मिलावट के कारण देखा जाता है।
- आंत्र शोध व वमन- फफूँदी को रोकने के लिये खनिज का तेल का लेप खाद्य पदार्थो जैसे दालो आदि पर किया जाता है। जिससे अधिक उपयोग से वमन व आंत्र शोध की शिकायत पायी जाती है। तेल में भी इस तेल की मिलावट की जाती है।
- रक्त हीनता- वर्जित रंगो का अधिक प्रयोग से रक्त हीनता देखी जाती है। वाँझपन तथा नपुंसकता - वर्जित रंगो के अधिक प्रयोग से स्त्रियों में बाँझपन तथा पुरुषों में नपुसंकता देखी जाती है।
5. अधिक मूल्य का भुगतान-
उपभोक्ता को खाद्य पदार्थ का उचित मूल्य देने पर भी घटिया पदार्थ प्राप्त होता
है।
6. निम्न गुणवता वाले पदार्थ की प्राप्ति-
मिलावट से व्यक्ति को शुद्ध वस्तु प्राप्त न होकर निम्न गुणवता वाली वस्तु प्राप्त
होती है।
- मिट्टी, रेत, कंकड- इन पदार्थो को अनाजो, दालो और मसालो में उनकी मात्रा बढ़ाने के लिये Beta - N- Oxyl Amino Alanine प्रयोग किया जाता है। कुप्रभाव- कंकड से कभी-कभी दाँत टूटने का भय, संदूषित मिट्टी से भोज्य विषाक्तता हो सकती है ।
- केसरी दाल- इस दाल की मिलावट चने की दाल एवं अरहर की दाल में की जाती है। केसरी दाल में नामक हानिकारक तत्व पाया जाता है। जिसके कारण लैथाइरिज्म नामक रोग पाया जाता है।
- चाक औैर टाल्क पाउडर- गेहूँ के आटे में इन पदार्थो को मिलावट की जाती है। ये पदार्थ पाचन संस्थान पर कुप्रभाव डालते है।
- खनिज तेल- इसकी मिलावट खाने के तेल में की जाती है। दालो, काली मिर्च आदि पर फँफूदी से बचाने के लिए खनिज तेल की पालिश की जाती है यह खनिज तेल विटामिन। और कैरोटिन के अवशोषण को रोकता हैं।
- आरजीमोन के बीज- ये बीज सरसो के बीज में मिलाये जाते है। इन बीजो में दो विषाक्त एल्केलोइड पाये जाते है। (i) सैनग्यमेरिन एवं (2) डाईहाइड्रो सैनग्यमेरिन खाद्य तेल में 1: आरजोमिन की मिलावट होने पर ड्रॉप्सी नामक रोग हो जाता है।
- पानी- दूध एवं दही की मात्रा बढ़ाने के लिए पानी की मिलावट की जाती है।
- चीनी - शुद्ध की मात्रा बढ़ाने के लिए चीनी का प्रयोग किया जाता है।
- सस्ते एवं बेकार बीज - जीरे में घास के बीज, काली मिर्च में पपीते के बीज, कॉफी या कोको में भुने हुए इमली के बीज आदि की मिलावट की जाती है।
- पेड़ की छाल एवं पत्तियाँ - दाल चीनी में किसी भी पेड़ की छाल अच्छी चाय में पुरानी चाय की पत्ती सुखाकर, नारियल के बालो को रंगकर, केसर में मिलावट की जाती है।
- मैदा, अखरोट, टोपिओका - इसकी मिलावट दूध, खोवा, बर्फी एवं आइसक्रीम आदि में की जाती है।
- वर्जित रंग - आइसक्रीम, मिठाई एवं सब्जियो, दालो तथा मसालो को आर्कषक बनाने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। जैसे लैड-क्रोमेट मैटेनिल यलो आदि। इसके अधिक प्रयोग से कैसर की संभावना रहती है।
- घुन लगा अनाज तथा दाले- अच्छे अनाज तथा दालो में घुन लगी दाल एवं अनाज मिला देने से वे भी उसी मूल्य में बिक जाता है।
- एल्युमिनियम वर्क- मिठाइयो में चाँदी के वर्क के स्थान पर एल्यूमिनियम के वर्क का प्रयोग किया जाता है। इससे पाचन क्रिया पर प्रभाव पड़ता है।
- खाद्य पदार्थो की पैकिंग- पैकिंग के लिये सस्ते पदार्थो जैसे P.V.C. P.F.O. प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। जो कि अम्लयुक्त एवं वसायुक्त खाद्य पदार्थो के साथ रासायनिक क्रिया करके उसे विषक्त कर देते है।
- लोहे का चूरा - सूजी और चाय की पत्ती का वजन बढ़ाने के लिये लोहे के चूरे का प्रयोग किया जाता है।
मिलावट से बचने के उपाय
- विश्वसनीय दुकान से खरीदी - जो दुकान विश्वयनीय हो जिसकी बिक्री अधिक होती हो वही से सामान खरीदे। खराब होने पर वापस भी कर सके।
- उच्च स्तर की सामाग्री की खरीदी - सदैव उच्च स्तर की सामाग्री खरीदे। थोड़े कम मूल्य के चक्कर में घटिया वस्तु न खरीदे। खरीदते समय मानक चिन्ह अवश्य देखे।
- पैकबंद वस्तुओ की खरीदी - खुले भोज्य पदार्थो में मिलावट की सम्भावना अधिक होती है। इसलिए पैकबंद भोज्य पदार्थ ही खरीदे।
- लेबल की जाँच - भोज्य पदार्थ खरीदते समय लेबल अवश्य देखे कि उस पर सभी जानकारी दी गयी है। या नही। उसके खराब होने की तिथि अवश्य देखे।
- खड़े मसालो का उपयोग - मसालो का उपयोग रोजमर्रा में होता है और इन्ही से मिलावट अधिक की जाती है। इसलिए खड़े मसालो को पिसवाकर उपयोग में लाना चाहिए।
- गुणवत्ता के लिये सजगता - भोज्य पदार्थ में मिलावट आशंका होते ही सम्बन्धित अधिकारियों को सूचित करना चाहिए।
- भ्रामक विज्ञापनो से सतर्क - कभी किसी वस्तु का विज्ञापन बहुत ही आर्कषक ठंग से प्रस्तुत किया जाता है। किन्तु पदार्थ की गुणवत्ता वैसी नही रहती।
- शुद्धता की पहचान - ग्रहणी को शुद्ध वस्तुओ की पहचान होनी चाहिए।
- सामान्य परीक्षणो की जानकारी - गृहणी को मिलावट की जाँच करने के लिये घरेलू स्तर पर परीक्षणो की जानकारी होनी चाहिए।
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