विपणन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, कार्य, महत्व

विपणन का अर्थ

पहले के समय में जब विपणन की अवधारणा नहीं थी, तब सिर्फ बाजार में होने वाले क्रय-विक्रय को ही विपणन माना जाता था। सबसे पहले वस्तु विनिमय ही किया जाता था जब मुद्रा प्रचलित नहीं थी। जैसे:- अनाज के बदले वस्त्र खरीदना, लकडि़यों के बदले में सब्जियाँ खरीदना। 

पहले के समय में उपभोक्ता अपनी आवश्यकताओं की वस्तुएँ स्वयं ही उत्पादित कर लेता था जितना उत्पादन हुआ उसका उपभोग कर लिया जाता था। जिस वस्तु का उत्पादन उपभोक्ता नहीं कर पा रहा था उसे उस व्यक्ति से लेने लगे, जो उसका उत्पादन स्वयं के लिए करता चला आ रहा था। इस तरह माँग बढ़ने से उत्पादन बढ़ा, सर्वप्रथम वस्तु विनिमय उसके बाद मुद्रा का प्रचलन बढ़ने पर मौद्रिक विनिमय प्रारंभ हुआ और विपणन प्रक्रिया प्रारंभ हुई।

विपणन का अर्थ

विपणन का अर्थ वस्तुओं के क्रय एवं विक्रय से लगाया जाता है लेकिन विपणन विशेषज्ञ इसका अर्थ वस्तुओं के क्रय एवं विक्रय तक सीमित नहीं करते बल्कि क्रय एवं विक्रय से पूर्व एवं पश्चात की क्रियाओं को भी इसका अंग मानते हैं। कुछ विद्वान तो क्रय एवं विक्रय के अतिरिक्त सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने को भी विपणन का एक प्रमुख कार्य मानकर विपणन का अर्थ लगाते हैं।

विपणन एक सामाजिक प्रक्रिया है जहाँ लोग मुद्रा अथवा कोई वस्तु जो उसके लिए महत्वपूर्ण हो, के बदले वस्तुओं एवं सेवाओं का आदान प्रदान करते हैं। कोई भी वस्तु जो किसी दूसरे के लिए कीमती है, उसका विपणन किया जा सकता है। 
  1. भौतिक उत्पाद - टी.वी., सेल फोन आदि। 
  2. सेवाएं - विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों का चुनाव 
  3. व्यक्ति - विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों का चुनाव 
  4. स्थान - ‘आगरा’ ताजमहल आदि।  

विपणन की परिभाषा

विपणन की परिभाषाएँ  है:-

व्हीलर के अनुसार:-’’विपणन उन समस्त साधनों एवं क्रियाओं से सम्बन्धित है जिनसे वस्तुएँ एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचती है’’

पायले के अनुसार:-’’विपणन में क्रय एवं विक्रय दोनों ही क्रियाएँ सम्मिलित होती है।’’

अमेरिकन मार्केटिग एसोसिएशन के अनुसार:-’’विपणन उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन करना है जो उत्पादक से उपभोक्ता की बीच वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह का नियमन करती है।’’

फिलिप कोटलर के अनुसार-’’विपणन वह मावनीय क्रिया है जो विनिमय प्रकियाओं के द्वारा आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती है।

हैन्सन के शब्दों में-’’विपणन उपभोक्ता की आवश्यकताओं को खोजने एवं उनको वस्तुओं तथा सेवाओं में परिवर्तित करने की क्रिया है।

विलियम जे. स्टेन्टन के शब्दों में:-’’विपणन उन समस्त आपसी प्रभावकारी व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली है जो विद्यमान एवं भावी ग्राहकों की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाले उत्पादों तथा सेवाओं का नियोजन करने, मूल्य निर्धारण करने, प्रचार-प्रसार करने तथा वितरण करने के लिए की जाती है।’’

कण्डिक स्टिल तथा गोवोनी के मतानुसार-’’विपणन वह प्रबन्धकीय प्रक्रिया है जिसके द्वारा उत्पादों का बाजारों से मिलान किया जाता है तथा उसी के अनुरूप स्वामित्व का हस्तान्तरण किया जाता है’’।

विपणन की विशेषताएं

  1. विपणन को एक मानवीय क्रिया इसलिए कहा गया है कि विपणन का कार्य मनुष्यों द्वारा मनुष्यों के लिए किया जाता है। आज विपणन कार्य में यंत्रो का उपयोग भी किया जाने लगा है लेकिन उनका संचालन मानव द्वारा ही किया जाता है अत: विपणन एक मानवीय क्रिया है।
  2. विपणन एक आर्थिक क्रिया इसलिए है कि यह लाभ के लिए की जाती है लेकिन इसके साथ यह एक सामाजिक क्रिया भी है क्योंकि यह कार्य समाज के भीतर रहकर एवं समाज के लिए ही किया जाता है। अत: विपणन एक सामाजिक-आर्थिक क्रिया है।
  3. विनिमय का अर्थ है लेन-देन। इसके लिए बिना विपणन क्रिया संभव नहीं है अत:विनिमय को ही विपणन का आधार माना गया है। विपणन उत्पादक एवं उपभोक्ता के मध्य मूल्य के बदले वस्तु या सेवा के आदान प्रदान की एक क्रिया है।  
  4. विपणन एक सृजनात्मक क्रिया है। विपणन उत्पादों में विभिन्न प्रकार की उपयोगिताओं का सृजन करता है जिससे उत्पाद मूल्यवान हो जाता है। 
  5. उपभोक्ता विपणन का केन्द्र बिन्दु है, अत: विपणन की सारी क्रियाएँ उपभोक्ता की आवश्यकता, रूचि, फैशन आदि को ध्यान में रखकर ही की जाती है इसलिए विपणन को उपभोक्ताप्रधान प्रक्रिया कहा गया है। विपणन का प्रारंभ उपभोक्ता की इच्छा एवं आवश्यकता की जानकारी से होता है तथा उपभोक्ता की इच्छा एवं आवश्यकता की सन्तुष्टि के साथ विपणन क्रिया सम्पé हो जाती है।
  6. चाहे आप किसी भी धर्म या संस्कृति को मानने वाले हो, किसी भी देश या काल में निवास कर रहे हो बिना विपणन के आपका कार्य नहीं चलेगा क्योंकि विपणन कार्य सर्वत्र किया जाता है। यहॉ तक कि बिना विपणन के सम्पूर्ण समाज और सभ्यताओं के कार्य अधुरे रह जायेगें। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन एक सार्वभौमिक क्रिया है।
  7. विक्रय में विक्रेता उपभोक्ता को वस्तु बेचकर संतुष्ट हो जाता है तथा इस बात पर कोई ध्यान नही देता है कि उपभोक्ता को उस वस्तु से संतुष्टि प्राप्त होगी या नही जबकि विपणन में उत्पाद का निर्माण ही उपभोक्ता की आवश्यकता एवं इच्छा को ध्यान में रखकर किया जाता है। अत: यहॉ यह कहा जा सकता है कि विपणन विक्रय से बिल्कुल अलग है।
  8. विपणन कार्य कभी बन्द नही होता यह सैदेव चलता रहता है। विपणनकर्ता हमेशा बदलती हुई ग्राहक की रूचियों, फैशन, पसंद आदि पर ध्यान देता रहता है जिससे उत्पाद को ग्राहक के लिए ओर अधिक उपयोगी बनाया जा सके। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन एक गतिशील प्रकिया है।

विपणन के कार्य

विपणन कार्य उपभोक्ता से प्रारंभ होता है तथा उपभोक्ता की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के पश्चात समाप्त होता है।  सूचनाओं को एकत्रित करना तथा विश्लेषण करना। ग्राहक क्या खरीदना चाहता है? कब खरीदना चाहता है। कितनी मात्रा में कहाँ खरीदना चाहता है। इस हेतु बाजार अनुसंधान एवं विपणन अनुसंधान के कार्य करके यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि ग्राहक किस प्रकार का उत्पाद पसंद करेंगे। 

इस कार्य में उत्पाद के रंग, रूप, आकार, डिजायन, किस्म, पेकेजिंग, लेबलिंग आदि पर ध्यान दिया जाता है ताकि उत्पाद उपभोक्ता की आवश्यकता एवं पसंद पर खरा उतर सकें।

उत्पादको को उत्पादन कार्य हेतु कच्चामाल क्रय करना पड़ता है, मध्यस्थों को छोटे फुटकर व्यापारियोंकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्माताओं से माल क्रय करना होता है।  संकलन के अन्तर्गत विपणनकर्ता अनेक स्त्रोतो से माल के हिस्से-पुर्जे एकत्र करता है तथा उन्हे आपस में जोड़कर किसी नये उत्पाद का निर्माण करता है। सामान्यत: मोटरसाइकिल निर्माता उसके कुछ आवश्यक हिस्से पुर्जे बाजार से एकत्रित कर मोटरसाइकिल तैयार करते है। इसका कारण यह है कि सभी आवश्यक हिस्सों-पुर्जो का निर्माण एक निर्माता के द्वारा न तो संभव है ओर न ही यह लाभप्रद होता है। 

इस कार्य में विपणनकर्ता माल ग्राहकों को हस्तान्तरित करता है। इसके लिए मूल्य-सूचियाँ बनाना, विक्रय शर्तें निर्धारित करना, विक्रय-कर्ताओं की नियुक्ति तथा मध्यस्थों की नियुक्ति जैसे कार्य आवश्यक हो जाते है। 

विपणनकर्ता को इसके लिए उपयुक्त परिवहन माध्यम का चयन, परिवहन मार्ग का निर्धारण, परिवहन बीमा, परिवहन सुरक्षा आदि कार्य करने पड़ते है।  यह कार्य माल को समय उपयोगिता प्रदान करता है इसके अन्तर्गत विपणन कर्ता माल का उस समय संग्रह कर लेते है जब माल की पूर्ति मांग की तुलना में ज्यादा होती है ताकि बाद में मांग अधिक होने पर मांग को पूरा किया जा सके। बाजार में उत्पाद की पूर्ति बिना किसी बाधा के लगातार की जा सके इसके लिए स्टाक का एक निश्चित स्तर बनाया जाना आवश्यक है। उत्पाद की मांग की स्थिति को देखकर स्टाक स्तर में कमी-वृद्धि की जा सकती है।

विपणनकर्ता इसके लिए विज्ञापन, प्रचार एवं प्रसार, विक्रयकर्ता, विपणन अनुसंधान आदि साधनों का सहारा लेता है एवं अपने वर्तमान एवं भावी ग्राहकों के साथ सम्पर्क स्थापित करता है ताकि अपना संदेश ग्राहकों को पहुंचाने के साथ ही ग्राहकों की शिकायत एवं सुझावों की भी जानकारी ली जा सकें। धन व्यवसाय का जीवन रक्त है, धन की आवश्यकता कच्चा माल, यंत्र एवं उपकरण खरीदने एवं आवश्यक खर्चो की पूर्ति के लिए पड़ती है। वित्त की पूर्ति स्वयं के साधनों से, बैकों तथा वित्तीय संस्थानों से ऋण लेकर की जा सकती है। 

विपणन कर्ता को माल के विपणन में अनेक जोखिमों का सामना करना पड़ता है जैसे माल के नष्ट होने, मांग के कम होने, माल के अप्रचलित होने जैसी अनेक जोखिम हो सकती है। इनमें से कुछ जोखिमों का बीमा कराकर उन्हे कम किया जा सकता है तथा जिनका बीमा संभव नहीं होता है, उन्हे विपणनकर्ता को वहन करना होता है। 

सामान्यत: पैकिंग परिवहन या माल को लाने-ले जाने में सुविधा या सुरक्षा के लिए की जाती है जबकि पैकेजिंग द्वारा वस्तुओं के रंगरूप की सुरक्षा की जाती है। इसके साथ ही वस्तु को आकर्षण बनाने के लिए भी पैकेजिंग का सहारा लिया जाता है। वस्तु को कम मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए भी पैकेजिंग का सहारा लिया जाता है। विक्रय पश्चात सेवा में सेवायें सम्मिलित हैं :- 
  1. वस्तु के उपयोग के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना 
  2. वस्तु के खराब होने पर मरम्मत की सुविधा प्रदान करना 
  3. वारंटी की अवधी में वस्तु के खराब होने पर बदलने की सुविधा प्रदान करना आदि।

विपणन का महत्व

विपणन के महत्व को इन भागो में विभाजित किया जा सकता है।

विपणन का व्यवसायियों के लिए महत्व 

1. अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए- प्रभावी विपणन से माल की मांग बढ़ती है तथा मांग बढ़ने से व्यवसायी के लाभ में वृद्धि होती है। अत: अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए विपणन आवश्यक है। 

2. उत्पाद का निर्माण - बाजार अनुसंधान के माध्यम से बदलती हुई परिस्थितियों में उपभोक्ता के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है तथा उपभोक्ता की आवश्यकता एवं पसंद का पता लगाया जाता है तथा उपभोक्ता की आवश्यकता एवं पसंद के अनुरूप नवीन उत्पादों का निर्माण किया जाता है। अत: विपणन ही नवीन उत्पादों का जनक हैं। 

3. प्रतिस्पर्धा जीतने के लिए - जैसा कि हम जानते है कि आज एक ही वस्तु के अनेक उत्पादक/विपणनकर्ता है तथा इनके मध्य माल के विपणन के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा विद्यमान होती है। प्रभावी विपणन व्यूह रचना के माध्यम से इन परिस्थितियों में विजय प्राप्त की जा सकती है। अत: प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करने हेतु विपणन आवश्यक हैं। 

4. बदलती हुई परिस्थितियों का सामना करने के लिए - आज उपभोक्ता की रूचि एवं फैशन निरन्तर परिवर्तन का विषय है। इस परिवर्तन के दौर का सामना करने के लिए विपणनकर्ता को सदैव सतर्क रहकर बाजार की स्थितियों को देखना होता है तथा उसी के अनुरूप अपनी विपणन की व्यवस्था करनी होती है। अत: बदलती हुई परिस्थितियों का सामना करने के लिए विपणन आवश्यक है। 

5. व्यापारिक प्रतिष्ठा में वृद्धि  के लिएजब ग्राहकों को उनकी आवश्यकता एवं पसंद के अनुसार उत्पाद मिलते है तो ग्राहक की नजर में संस्था अच्छी छवि बनती है तथा ग्राहक पुन: उसी संस्था का माल क्रय करता है। इस प्रकार उपभोक्ता की संतुष्टि तथा सामाजिक दायित्व का निर्वाह संस्था की ख्याति में वृद्धि करते है। 

6. सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए - प्रभावी विपणन व्यवस्था उपभोक्ता एवं व्यवसायी के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण साधन है। विपणन अनुसंधान, विज्ञापन, प्रचार आदि साधनों से सूचनाओं का आदान प्रदान होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहायक हैं।

विपणन का उपभोक्ता के लिए महत्व 

1. उच्च जीवन-स्तर प्रदान करना - विपणन बहुउपयोगी एवं आरामदायक वस्तुओं एवं सेवाओं की पहुंच उपभोक्ता तक संभव बनाता है जिससे उपभोक्ता के स्तर में वृद्धि होती है और उसके जीवन स्तर में सुधार होता है। 
2. सूचनात्मक - विपणन द्वारा विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ उपभोक्ता तक पहुंचायी जाती है, जैसे नवीन उत्पाद की जानकारी, वस्तु के उपयोग के बारे में जानकारी आदि जो उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण होती है। अत: यह कहना ठीक होगा कि विपणन सूचनात्मक होता है।

3. वस्तुओं का तुलनात्मक अध्ययन - प्रभावी विपणन व्यवस्था उपभोक्ता को विभिन्न उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर प्रदान करती हैं उपभोक्ता उत्पाद के गुण-दोष, उपयोगिता, कीमत आदि का अध्ययन कर अपने लिए सर्वश्रेष्ठ उत्पाद का चयन कर सकता है। 

4. आवश्यकताओं की पूर्ति - विपणन अनुसंधान द्वारा उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं का निर्धारण किया जाता है तथा उसी के अनुसार उत्पाद का उत्पादन कर ग्राहक की आवश्यकताओं का संतुष्ट करने का प्रयास किया जाता है। 

5. उचित मूल्य पर वस्तुओं की उपलब्धि - आज का युग प्रतियोगिता का युग है। एक ही वस्तु अनेक उत्पादकों द्वारा उत्पादित की जाती है। सभी उत्पादक अपने स्तर पर प्रभावी विपणन व्यवस्था स्थापित करते हैं जिससे उपभोक्ता तक उत्पाद उचित मूल्य पर पहुंचता है। 

6. समय पर वस्तुओं की उपलब्धि - प्रभावी विपणन व्यवस्था द्वारा वस्तुओं की आपूर्ति हर समय सुनिश्चित की जाती है जिससे उपभोक्ता को समय पर वस्तु उपलब्ध हो जाती है। 

7. यथास्थान वस्तुओं की उपलब्धि - प्रभावी विपणन व्यवस्था द्वारा विपणनकर्ता उपभोक्ता के बिलकुल पास जाकर वस्तुओं की उपलब्धि कराने में सक्षम हो गया है। आवश्यक वस्तुएॅ उपभोक्ता के घर तक पहुंचायी जाती है। अत: यह कहना उचित ही हैं कि यथा स्थान वस्तुओं की उपलब्धि के लिए विपणन आवश्यक है। 

8. विक्रय उपरान्त सेवा - आज विक्रय पश्चात सेवा का बड़ा महत्व है। प्रभावकारी विपणन में इस सेवा पर बड़ा ध्यान दिया जाता है। टिकाऊ वस्तुओं पर ग्राहकों को एक निश्चित समय के लिए वारंटी प्रदान की जाती है। वस्तुओं की मरम्मत की सुविधा प्रदान की जाती है। 

9. उपभोक्ता के ज्ञान में वृद्धि - विज्ञापन एवं प्रसार के माध्यम द्वारा विपणनकर्ता उपभोक्ता के ज्ञान में वृद्धि करता है जिससे उपभोक्ता विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम हो जाता है। 

विपणन का समाज के लिए महत्व 

1. समाज के जीवन स्तर में सुधार - विपणन समाज को उच्च जीवन स्तर प्रदान करता है। प्रभावी विपणन के माध्यम से उपभोक्ता को आरामदायक और आवश्यकता वाले उत्पाद उपलब्ध कराये जाते है जिससे सम्पूर्ण समाज के जीवन स्तर में सुधार होता है। 

2. रोजगार के अवसरों का सृजन - प्रभावी विपणन व्यवस्था से बहुत बड़ी संख्या में थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, विज्ञापन, प्रचार, बाजार अनुसंधान आदि कार्यों में व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध होते है। अत: यह कहना उचित ही हैं कि विपणन रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। 

विपणन का अर्थव्यवस्था के लिए महत्व 

विपणन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विपणन का महत्व है-

1. राष्ट्रीय साधनों का सदुपयोग - प्रभावी विपणन व्यवस्था इस बात को सुनिश्चित करती है कि उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाये जिसकी उपभोक्ताओं को आवश्यकता है। परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय साधन व्यर्थ नहीं जाते, उनका सदुपयोग होता है।

2. सरकारी आय का साधन - विपणन सरकारी आय का साधन है क्योंकि प्रभावी विपणन व्यवस्था से उत्पादकों की आय में वृद्धि होती है जिससे सरकार को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से राजस्व की प्राप्ति होती है। 

3. कृषि एवं आवश्यक सहायक उद्योगों का विकास - विपणन के माध्यम से कृषि जन्य प्रदार्थो से अनेक प्रकार के उत्पाद तैयार किये जाते हैं जिससे कृषि एवं सहायक उद्योगों का विकास संभव हो पाता है।

4. प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि - प्रभावी विपणन व्यवस्था अधिक उत्पादन एवं उपभोग को संभव बनाती है, रोजगार के अवसरों का सृजन करती है जिससे प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है जो अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। 

5. विदेशी मुद्रा का अर्जन - प्रभावी विपणन व्यवस्था उत्पाद के प्रचलन एवं उसकी ख्याति बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उत्पाद की बढ़ी हुई ख्याति विदेशों में उत्पाद के विक्रय को संभव बनाती है जिससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। 
इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन सिर्फ व्यवसायियों एवं उपभोक्ताओं के लिए ही महत्व नहीं रखता बल्कि सम्पूर्ण समाज एवं अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।

5 Comments

  1. बीमा और बीमा के तत्व और विपणन से संबंधित pdf फाइल या बुक मिल सकता है क्या

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