औद्योगिक क्रांति पहले इंग्लैण्ड में ही क्यों हुई? औद्योगिक क्रांति के कुछ महत्त्वपूर्ण कारणों का वर्णन।

औद्योगिक क्रांति का अर्थ यह है कि उद्योगों की प्राचीन, परम्परागत और धीमी गति को छोड़कर नये, वैज्ञानिक तथा तेजी से उत्पादन करने वाले यंत्रों व मशीनों का प्रयोग। घरों में तथा घरेलू उद्योगों में हाथ से बनने वाली वस्तुएँ इस परिवर्तन के कारण बड़े-बड़े कारखानों में तथा मशीनों से बनने लगीं। इस क्रांति ने ऐसे यंत्रों, मशीनों और विधियों को जन्म दिया जिनकी सहायता से वस्तुएँ सरलता से, थोड़े व्यक्तियों की सहायता से अपेक्षाकृत अच्छी और बड़े पैमाने पर बनने लगीं। इसके लिए वैज्ञानिक आविष्कार हुए, नए यंत्र बनाए गये और उत्पादन तथा कार्य की नई विधियों को अपनाया गया। 

एक लेखक का कहना है कि, उत्पादन के साधनों में परिवर्तन हो जाना ही औद्योगिक क्रांति है। एक अन्य विद्वान ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की औद्योगिक क्रांति परिवर्तन की उस अवस्था की द्योतक है जिसके कारण प्राचीन काल के सीमित गृह-उद्योगों के बदले भाप-शक्ति की सहायता से बड़े-बड़े कारखानों में बड़ी मात्रा में उत्पादन होने लगा। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि उत्पादन, आवागमन तथा संचार-परिवहन के नवीन यांत्रिक साधनों का अभ्युदय ही औद्योगिक क्रांति है।

औद्योगिक क्रांति
शुरुआती स्पिनिंग मशीन

औद्योगिक क्रांति पहले इंग्लैण्ड में ही क्यों हुई?

इस प्रक्रिया का जन्म यूरोप के अनेक देशों में हुआ किन्तु इंग्लैण्ड इसमें अग्रणी रहा। इंग्लैण्ड दो दृष्टियों से अग्रणी रहा। एक तो यहाँ सबसे अधिक विकास हुआ और दूसरे यहाँ सबसे पहले विकास हुआ। यूरोप के अन्य देशों जैसे बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी और रूस में विकास देर से आरंभ हुआ और विकास की गति भी बड़ी धीमी रही। यहाँ हम उन कारणों का अध्ययन करेंगे, जिनके बल पर औद्योगिक क्रांति में इंग्लैण्ड अग्रणी रहा।

1. अठारहवीं शताब्दी के अन्त तक इंग्लैण्ड के विदेशी व्यापार में उन्नति हो चुकी थी। अतएव नवीन आविष्कारों के लाभ उठाने के लिए धन विद्यमान था।

2. आविष्कारों से उत्पादन बढ़ता था जिसे देश में तथा विदेश में बेचने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य में बड़े-बड़े इलाके थे।

3. इंग्लैण्ड के पास व्यापारी जहाजी बेड़े थे जिनसे बने हुए माल को ले जाने तथा कच्चा माल लाने की सुविधएँ थीं। इसके अलावा इंग्लैण्ड में कुशल नाविकों तथा अच्छे बंदरगाहों की कमी नहीं थी।

4. इंग्लैण्ड का व्यापार बढ़ने और उपनिवेशों की स्थापना से इंग्लैण्ड के व्यापारी अधिक-से-अधिक माल बेचकर लाभ कमाने की दृष्टि से अध्किाध्कि उत्पादन करने के इच्छुक थे। उत्पादन कार्यों में लगाने के लिए उनके पास पर्याप्त धन भी था जिसे इस कार्य में लगाकर और अधिक लाभ कमाया जा सकता था।

5. व्यावसायिक क्रांति से पहले कृषि में भी ऐसी फेरबदल हो गई थी जिससे सस्ते मजदूर मिल रहे थे। 

6. इंग्लैण्ड में लोहा और कोयला समीप-समीप मिलते थे। मशीनों को बनाने के लिए और कारखानों को चलाने के लिए ये दोनों आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध थीं।

7. भारत एवं अन्य पूर्वी देशों से जो सुन्दर कपड़ा आदि इंग्लैण्ड में पहुँच रहा था, उसे देखकर इंग्लैण्डवासियों में भी अच्छी से अच्छी किस्म के कपड़े बनाने की भावना को प्रोत्साहन मिल रहा था।

औद्योगिक क्रांति के परिणाम व प्रभाव

1. आर्थिक उत्पत्ति में वृद्धि इंग्लैण्ड और यूरोप में आर्थिक उत्पत्ति व मुद्रण व्यवसाय में भी बड़ी उéति हुई। इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप, समस्त संसार आर्थिक दृष्टि से एक इकाई बन गया। न केवल वस्त्र-व्यवसाय में ही, वरन् अन्य व्यवसायों में भी मशीन के प्रयागे ने उनकी उत्पत्ति में भारी वृद्धि कर दी गयी। यांि त्रक शक्ति और मशीन के उपयागे के कारण मदु ्रण-व्यवसाय में बड़ी उéति हुई। कारखानों के लिए कच्चा माल संसार के कोने-कोने से प्राप्त किया जाने लगा और सारा संसार प्रत्येक देश के पक्के माल के विक्रय का एक बाजार बन गया।

2. गृह-व्यवसाय का अंत और विशाल कारखानों का प्रारंभ- नये-नये आविष्कारों और मशीनों के कारण पुराने उद्यागे -धंधे और गृह-व्यवसाय ठप्प होते गये व उनके स्थान पर फैक्टरियाँ खोली जाने लगीं, जिनमें कारीगर की अपेक्षा मशीनों का अधिक महत्व था। इसके कारण श्रम-विभाग का भी बहुत विकास हुआ। कारीगर अब स्वतंत्र उत्पादक न रहकर मजदूरी प्राप्त करने वाला श्रमिक बन गया।

3. पूँजीपतियों का प्रभाव - खेतीबाड़ी में मौलिक परिवर्तन होने के कारण जीविका-रहित किसान और कारीगर नये-नये कारखानों में थाडे ़ी मज़दूर व शाचेनीय वातावरण में रहकर भी काम करने के लिए विवश हुए। अत: धनलोलुप तथा स्वाथ्र्ाी उद्योगपतियों ने श्रमिकों का शोषण कर अपने कारखानों से अतुल धन-उपार्जन किया और इंग्लैण्ड को मशीन का उत्पादक बना दिया। कम मजदूरी, लंबी श्रमावधि और निम्न जीवर-स्तर के कारण श्रमिकों का असंतोष बढ़ा और उसने उग्र रूप धारण कर लिया। श्रमिक दल के नेताओं ने नयी माँगे और नयी शासन व सामाजिक व्यवस्थाओं और नये सामाजिक तथा राजनीतिकवादियों का सृजन किया, जिनके परिणामस्वरूप संसार के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में विविध परिवर्तन होने लगे। 

समाजवाद, माक्र्सवाद व साम्यवाद, अराजतकतावाद, श्रमिक संस्थाओं का विकास एवं नवीन विचारधाराएँ इसी नवीन औद्योगिक व्यवस्था के परिणाम है। औद्योगिक और व्यावसायिक क्रांति ने आर्थिक उत्पादकों को दो श्रेणियों में विभक्त कर दिया, अर्थात् पूँजीपति व मजदूर। पूँजीपतियों व मजदूरों का पारस्परिक संघर्ष व्यावसायिक उन्नति का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम है।

4. व्यावसायिक नगरों का विकास- बड़े-बड़े कारखानों के विकास के कारण बड़े व्यावसायिक नगरों की स्थापना होने लगी और आबादी बढ़ने लगी। व्यावसायिक नगरों का विकास औद्योगिक क्रांति का महत्वपूर्ण परिणाम है।

5. नया श्रेणी-भेद -औद्योगिक क्रांति के कारण नया श्रेणी-भेद उत्पé हुआ। कारखानों के मालिक पूंजीपतियों का महत्व अत्यधिक बढ़ गया। अब समाज में दो मुख्य श्रेणियाँ बन गयीं-पूंजीपति ओर मजदूर। सामाजिक दृष्टि से स्वतंत्र होते हुए भी मजदूरों की स्थिति गुलामों से अच्छी नहीं थी। धीरे-धीरे एक तीसरे श्रेणी ‘शिक्षित मध्य-वर्ग’ का विकास होने लगा व समाज व राजनीति में इसका प्रभाव बढ़ने लगा।

6. पारिवारिक जीवन पर प्रभाव- आरंभ में औद्योगिक व व्यावसायिक क्रांति में पारिवारिक जीवन की सुख-शांति को नष्ट कर दिया, स्त्रियों और बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य पर भी इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। पूंजीपतियों ने हर संभव उपाय द्वारा गरीबों का शोषण किया व समाज में गरीब और अमीर का भेदभाव निरंतर बढ़ता ही गया।

7. वैयक्तिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का विकास - इस युग में पूंजीपतियों की मनमानी का किसी भी प्रकार से विरोध कर सकना सुगम नहीं था, क्येांकि एक ओर तो एकतंत्र, स्वेच्छाचारी शासक विद्यमान थे क्योंकि लोकतंत्र शासन का भलीभाँति विकास नहीं हुआ था, और दूसरी ओर, इस समय के विचारक ‘वैयक्तिक स्वतंत्रता’ के सिद्धांत के अनुयायी थे। परिणामस्वरूप कारखानों और मजदूरों की दशा बड़ी शोचनीय हो गयी। कालांतर में ‘वैयक्तिक स्वतंत्रता’ के सिद्धांत के विरूद्ध भी प्रतिक्रिया आरंभ हुई, कारखानों पर सरकारी नियंत्रण व सर्वसाधारण-जनता के हितार्थ नियंत्रण के लिए आंदोलन होने लगे, जिनके परिणामस्वरूप मजदूरों और कारखानों की दशा में सुधार के लिए कानून व सुधार प्रारंभ हुए।

8. व्यापार का विस्तार - औद्योगिक क्रांति के कारण व्यापार का भी अत्यधिक विस्तार हुआ। इस नवीन व्यवस्था ने विश्व व्यापार पर भी काफी प्रभाव डाला। अब औद्योगिक देशांे के व्यापार का उद्देश्य य निर्यात की दृष्टि से विविध प्रकार के पक्के माल का निर्यात और आयात की दृष्टि से कच्चे माल और खाद्य पदाथोर् का आयात बन गया। नये व्यापार की सेवा के लिए बड़े-बड़े जहाज, विस्तृत बंदरगाह व यातायात की अधिकाधिक सुगमताएँ होने लगीं। इसी प्रकार उसके लिए अर्थ-प्रबंधन, बीमा, विनिमय तथा क्रय-विक्रय के नये साधनों और व्यवस्थाओं का विकास हुआ। अत: धीरे-धीरे उत्पादन, व्यापार विनिमय, यातायात और अर्थ प्रबंधन की समस्त व्यवस्थाएँ बदल गयीं।

इनमें संदेह नहीं कि औद्योगिक क्रांति के प्रभाव और परिणाम अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के थे। कालांतर में प्रत्येक देश में श्रमिक संघर्षों के फलस्वरूप अथवा प्रशासनों के सुधार प्रयास द्वारा श्रमिकों का जीवन-स्तर बहुत ऊँचा हो गया जो उस परिविर्द्धत राष्ट्रीय आय का ही फल है, जिसे औद्योगिक क्रांति ने ही संभव किया। आज के समृद्ध देशों में जनसाधारण को जो सामान्य सुगमताएँ प्राप्त है ये सब औद्योगिक क्रांति की ही देन है।

औद्योगिक क्रांति के कारण

औद्योगिक क्रांति के अनेक कारण थे। कुछ महत्त्वपूर्ण कारणों का वर्णन नीचे किया जाता है- 

1. उपनिवेशों की स्थापनाः भौगोलिक खोजो ने यूरोप के देशों को अपने उपनिवेश बसाने की प्रेरणा दी। इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन और हाॅलैण्ड ने संसार के कोने-कोने में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये थे। ये उपनिवेश उपरोक्त देशों से बहुत दूर और परस्पर भी काफी दूरी पर स्थित थे। इन उपनिवेशों पर इन देशों का शासन दृढ़ता से स्थापित हो और इनका पूर्ण लाभ मिले इसके लिए आवागमन के अच्छे और जल्दी चलने वाले साधनों की बड़ी आवश्यकता थी। अतः जिन देशों के उपनिवेश स्थापित हो गये थे, वे आवागमन के द्रुतगामी तथा अच्छे साधन ढूँढ़ने के लिए प्रयत्नशील थे।

2. वस्तुओं की माँग में वृद्धि: यूरोप के देशों का व्यापार काफी तेजी से बढ़ रहा था। वे यूरोप और पूर्व के देशों के साथ खूब व्यापार करते व लाभ कमाते थे। उपनिवेशों की स्थापना के बाद वे अपना माल उपनिवेशों में भी बेचने लगे। इस प्रकार उनके माल की माँग बराबर बढ़ रही थी। व्यापारी लोग अधिक-से-अधिक उत्पादन करके अधिक-से-अध्कि माल बेचना चाहते थे किन्तु पुरानी गृह-उद्योग प्रणाली से उत्पादन अधिक नहीं हो सकता था। बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों से उत्पादन होना आवश्यक था। अतः कारखाने खोलने और कारखानों के लिए मशीनों के आविष्कार की बड़ी आवश्यकता थी।

3. कच्चे माल की व्यवस्था: यूरोप के देशों में बड़े कारखानों और बड़े पैमाने के उत्पादन के लिए पर्याप्त कच्चा माल उपलब्ध नहीं था किन्तु उपनिवेश बसने के बाद इन देशों को अपने उपनिवेशों से पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल मिलने लगा। कच्चे काल का सर्वोत्तम प्रयोग तभी हो सकता था, जब उससे बड़े पैमाने पर वस्तुएँ बनाई जायें, तथा उन्हें दुनिया के बाजार में व उपनिवेशों में बेचा जाये।

4. सस्ते मजदूर: यूरोप के अनेक देशों में विशेषकर इंग्लैण्ड में कृषि प्रणाली में काफी परिवर्तन हो गया। इस परिवर्तन के फलस्वरूप कृषि का काम सुधरे ढंग व छोटी-मोटी मशीनों से होने लगे। खेतों की चकबंदी, जमींदारों द्वारा जमीन की खरीद और चरागाह की भूमि को खेती के काम में लाने के फलस्वरूप देहात में रहने वाले बहुत से लोग बाध्य होकर शहरों में आ गए। इन लोगों को कोई-न-कोई रोजगार चाहिए था और वे थोड़ी मजदूरी पर भी काम करने को प्रस्तुत थे। उद्योगों के लिए सच्चे मजदूर उपलब्ध थे, अतः उद्योग धंधे व कारखाने स्थापित करने का प्रोत्साहन मिला।

5. कोयले और लोहे की उपलब्धि: नई मशीनों व नये यंत्रों के लिए लोहे की आवश्यकता होती है। कारखाने की मशीनों को चलाने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। यह शक्ति कोयले से प्राप्त हो सकती है। इंग्लैण्ड में लोहे और कोयले की खानें मिल गयीं। संयोग से ये खानें नजदीक-नजदीक थीं। अतः कारखाने खोलने की प्रेरणा मिली।


6. पूंजी की उपलब्धि: पिछली दो-तीन शताब्दियों से यूरोप के लोगों ने अपना व्यापार काफी बढ़ा लिया था। पूर्व के देशों के साथ व्यापार करके उन्होंने काफी धन कमाया था। इस कारण उनके पास पूंजी की कमी नहीं थी व्यापार को बढ़ाने के लिए तैयार ही नहीं बल्कि उत्सुक भी थे।

7. वैज्ञानिक उन्नति: पुनर्जागरण और धर्म-सुधर आंदोलन के बाद यूरोप में बौद्धिक विकास का युग आरंभ हो गया था। नवीन आविष्कार व खोज के कार्य होने लगे थे। कई प्रकार के यंत्र बने, भाप की शक्ति का पता लगाया गया, भौतिक विज्ञान व रसायन शास्त्र में भी नवीन खोजें की गयीं। इन सबने मनुष्य को अवसर दिया कि वह इनका प्रयोग करके अपनी सभ्यता को आगे बढ़ाये। वैज्ञानिक उन्नति ने यूरोपवासियों में भौतिक उन्नति की आकांक्षा पैदा की। अतः वैज्ञानिक खोजों का प्रयोग उद्योगों के लिए किये जाने की सम्भावना का पता लगाया गया।

8. उपयुक्त अवसरः जब सामान बेचने के लिए समुचित बड़े-बड़े बाजार हों, वस्तुओं की माँग बढ़ रही हो, सस्ते मजदूर मिल सकते हों, कारखानों के लिए मशीनों व यंत्रों की खोज हो सकती हो, चालक शक्ति का ज्ञान हो चुका हो, कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में मिल सकता हो और व्यापार-उद्योग लगाने के लिए पूंजीपतियों के पास पूंजी व उस पूँजी को उद्योगों में लगाने की इच्छा हो, तो फिर नये-नये कारखानों व उद्योगों का विकास होना अनिवार्य था।

इन्हीं कारणों से यूरोप में उद्योगों की क्रांति हुई। इस क्रांति में इंग्लैण्ड ने अन्य देशों को पछाड़ दिया। 

औद्योगिक क्रांति के प्रभाव

वैसे औद्योगिक क्रांति इंग्लैण्ड में हुई किन्तु इसके प्रभाव बड़े व्यापक हुए। इस क्रांति ने विश्व की सभ्यता का कायाकल्प कर दिया।

1. उद्योगों तथा व्यापार में इंग्लैण्ड विश्व का अगुआ- सबसे पहले इंग्लैण्ड ही में औद्योगिक क्रांति हुई थी। नई मशीनें, लोहा, कोयला भाँति-भाँति के आविष्कार तथा पूँजी आदि अनेक साधन इंग्लैण्ड में मौजूद थे अतः इंग्लैण्ड शीघ्र ही उन्नति कर गया। इंग्लैण्ड में बनी हुई वस्तुओं को बेचने के लिए अमेरिका, ब्रिटिश उपनिवेश तथा यूरोप के कितने ही देश थे। ब्रिटेन को अपने उपनिवेशों तथा अमेरिका से कच्चा माल भी मिल सकता था। इस प्रकार व्यावसायिक क्रांति के फलस्वरूप इंग्लैण्ड यूरोप तथा विश्व का अगुआ बन गया।

2. इंग्लैण्ड की राष्ट्रीय आय में वृद्धि- औद्योगिक क्रांति से इंग्लैण्ड का उत्पादन और उसके फलस्वरूप उसका व्यापार-वाणिज्य बहुत बढ़ गया। सारे संसार में उसका माल बिकने लगा। खूब धन -सम्पत्ति के आने से इंग्लैण्ड की राष्ट्रीय आय बहुत बढ़ गई। इसी व्यापारिक आय और उससे प्राप्त अटूट धन के बल पर इंग्लैण्ड ने नेपोलियन से लड़ने के लिए यूरोप के देशों के चार बार संघ बनाये और इन संघों की लड़ाई का खर्च स्वयं दिया। इतना ही नहीं अमेरिका की स्वतंत्राता के बाद अमेरिका इंग्लैण्ड के हाथ से निकल गया था किन्तु औद्योगिक क्रांति ने अमेरिका के स्वतंत्र होने से इंग्लैण्ड की हुई क्षति को पूर्ण कर दिया।

3. इंग्लैण्ड की जनता के रहन-सहन का स्तर उँचा हो गया- राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से इंग्लैण्ड के निवासियों के रहन-सहन का स्तर उँचा हो गया। उन्हें जीवन में आराम की अनेक वस्तुएँ मिलने लगीं। साधारण जनता के पास भी अपेक्षाकृत अधिक सुविधाएँ प्राप्त करने के साधन उपलब्ध हो गये।

4. पूँजीवाद का जन्म- इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति होने से पहले बड़े-बड़े भूमिपति ही समृद्ध और धनवान थे। किन्तु औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप व्यापारी वर्ग अत्यधिक समृद्ध और धनवान हो गया। इस प्रकार इंग्लैण्ड में पूँजीवाद का उदय हुआ। इंग्लैण्ड के सामाजिक व राजनैतिक जीवन में इस नए पूँजीपति वर्ग का प्रभाव व प्रभुत्व बढ़ने लगा। 

5. जनसंख्या में  वृद्धि- देश की आबादी बढ़ गई। अठारहवीं शताब्दी के बीच में इंग्लैण्ड की जनसंख्या 70 लाख थी तथा अगले 60 वर्षों में 1 करोड़ 80 लाख हो गई। उन्नीसवीं शताब्दी के बीच में आबादी 2 करोड़ से भी उपर हो गई। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा में उन्नति हो जाने से भी आबादी बढ़ी। 6. यातायात के साधनों में विकास- औद्योगिक क्रांति से पहले इंग्लैण्ड में सड़कों आदि की दशा बहुत बुरी थी। थोड़ी दूर यात्रा में भी कई दिन लग जाते थे। औद्योगिक उन्नति के कारण यातायात के साधनों का भारी विकास हुआ सड़के, नहरें, रेले तथा भाप के जहाज बने तथा तार आदि संदेश-वाहनों का विकास हुआ। डाक की व्यवस्था भी हो गयी।

7. खेती पर प्रभाव- आविष्कारों का प्रभाव कृषि पर भी पड़ा। कृषि में मशीनों का प्रयोग होने लगा। कृषकों को अब कपड़े बुनने का काम नहीं मिलता था, अतएव वे कृषि की उपज बढ़ाने पर बाध्य हो गए। कृषि-क्रांति तथा औद्योगिक क्रांति ने एक-दूसरे को बढ़ावा दिया। 


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