पूंजीवाद (पूंजीवादी अर्थव्यवस्था) क्या है पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ ?

आधुनिक पूंजीवाद का जन्म यूरोप में 18वीं सदी में हुआ जब उद्योगों में मशीनों का प्रयोग होने लगा और मशीनों को चलाने के लिए मानव एवं पशु शक्ति के स्थान पर जड़-शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा। पश्चिमी देशों एवं विश्व के कई अन्य देशों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रचलन पाया जाता है। 

पूंजीवाद को पारिभाषित करते हुए आगबर्न एवं निमकाॅफ लिखते हैं, ‘‘पूंजीवादी से तात्पर्य उस व्यवस्था से है जिसमें पूँजी का अर्थ मुद्रा से लगाया जाता है कितु जो वास्तव में उत्पादन के साधनों को पूंजी के रूप में अपने में सम्मिलित किए हुए होती है।’’ 

पूंजीवाद क्या है ?

पूंजीवाद एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था है जिसमें व्यापार, उद्योग और उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व और नियंत्रण होता है। इस व्यवस्था में मुख्य लक्ष्य बाजार अर्थव्यवस्था के जरिए लाभ कमाना होता है। आधुनिकता की दृष्टि के जरिए पूँजीपति वर्ग अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करता है। आधुनिकता की प्रक्रिया जिसे मैक्स वेबर युक्तीकरण (Rationalization) कहते हैं, ही वह दृष्टि है जिसने पूंजीवाद को बढ़ावा दिया है। 

पूंजीवाद से आधुनिकता का अभिन्न संबंध है। आधुनिकता ने पूंजीवाद का प्रसार और प्रचार किया है। आधुनिकता के आधार पर ही पूंजीवाद का महल खड़ा हुआ है। आर्थिक संवृद्धि और भौतिक उन्नति का रास्ता पूंजीवाद के माध्यम से संभव हुआ है। पूंजीवाद को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देखा जाता हैं जो वैयक्तिक अधिकारों पर आधारित है। 

मूलत: यह स्वतंत्रता के अधिकार को केन्द्र में रखता है। इस व्यवस्था में लोकतंत्र राजनीतिक प्रणाली के रूप कार्य करती है। राज्य का आर्थिक क्रियाओं में, उत्पादन, व्यापार आदि से संबंध नहीं होता है। इस व्यवस्था में मनुष्य को जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जहाँ यह मान्यता है कि वह एक विवेकशील प्राणी है और अपने लिए अच्छे-बुरे, सही-गलत का फैसला खुद ले सकता है। ऐसी व्यवस्था में शोषण की संभावना बनी रहती है। जहाँ एक वर्ग दूसरे कमजोर वर्ग का शोषण करता है, जिससे इस व्यवस्था में भारी विषमता और असमानता भी देखी जाती हैं। इस व्यवस्था में राज्य की भूमिका प्राय: लोक कल्याणकारी के रूप में दिखाई पड़ती है। जिसके माध्यम से वह पूंजीवाद से उपजी विषमता को दूर करने का प्रयास करता है।

पूंजीवाद शब्द उस सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था के लिए प्रयोग होता है जिसमें कि अधिकांश विश्व आज रह रहा है। यह आम तौर से धारणा रही है कि, यदि हमेशा नहीं तो यह मानव इतिहास में अधिकांश समय रहा है। पर यह सत्य है कि, पूंजीवाद अभी कुछ शताब्दियों से ही विश्व में आया है। पूंजीवाद की शुरूआत ब्रिटिश पूंजीवादी क्रांति से मानी जाती है। (इग्लैण्ड का गृहयुद्ध, 1639-48) जब इग्लैण्ड के तानाशाही राजतंत्र-चाल्र्स प्रथम का सिर काट कर अंत कर बांस पर लटका कर, इग्लैण्ड में इसका अंत कर दिया गया था। इस घटना को, पूंजीवादी व्यवस्था की शुरूआत माना जाता है।

पूंजीवाद का असली चेहरा ऊपर की जगमगाती शान-शौकत एवं तड़क-भड़क और समान अवसरों की मीठी-मीठी लफ्फाजी की आड़ में दिखाई नहीं पड़ता। इन सब बातों की बजह से पूंजीवादी व्यवस्था के कारण उत्पन्न अनेक प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होता। इस व्यवस्था का मुख्य गुण है - असमानता, शोषण, भेदभाव, सामाजिक अन्याय, भूख, गरीबी, बेरोजगारी और युद्धों का होना। इस व्यवस्था में जो अन्न उगाता है वह भूखा है, जो कपड़ा बुनता है वह नंगा है, जो मकान बनाता है, वह बेघर है।

पूंजीवादी प्रणाली के ये भीतरी अंतर्विरोध उसकी सर्वाधिक विकट और लगातार बिगड़ती हुई सामाजिक और आर्थिक व्याधियों को जन्म देती है। ये व्याधियां बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, अपराध, बारंबार दोहराए जाने वाले आर्थिक संकट, भविष्य की अनिश्चितता का भय आदि।

पूंजीवाद की उत्पत्ति 

पूंजीवादी, सामंतवाद के खण्डहरों में अंकुरित और सामंती समाज के ध्वंसावशेषों से उत्पन्न व्यवस्था है। अपने प्रारंभिक विकास के साथ-साथ इसने सामंतवाद को भीतर से खोखला करके नए, पूंजीवादी आर्थिक, सामाजिक संबंधों के लिए आधार तैयार किया। यह प्रक्रिया कोई संयोग नहीं था, क्योंकि सामंती व्यवस्था और पूंजीवाद दोनों में एक समानता है कि, दोनों ही उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व तथा मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित है।

सामंती व्यवस्था मुख्य रूप से भूसंपत्ति पर आधारित था एवं आत्म निर्भर था। लेकिन व्यापार-व्यवसाय के विकास के कारण व्यापारी वर्ग पैदा हुआ, जो समृद्ध था एवं नई-नई तकनीक के आविष्कारों से प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञों की जरूरत पड़ने लगी, अत: पूंजीवाद का विकास होने लगा- मुद्रा का लेन-देन, व्यापारिक केन्द्रों-नगरों का विकास फैक्टरियों, कारखानों का विकास किसनों का नगरों की ओर पलायन, उत्पादन में बेशुमार वृद्धि आदि ने सामंती अर्थव्यवस्था को अंदर से खोखला कर धीरे-धीरे नष्ट कर दिया। यह प्रणाली नए विकसित समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ थी, क्योंकि यह व्यवस्था सड़ चुकी थी और क्रांतियों के द्वारा इसे उखाड़ फेंका गया। यह भी वैज्ञानिक सत्य है कि, जिस वर्ग के हाथ में उत्पादन के साधन होते हैं- वहीं सत्ता में रहता है और अपने वर्ग हित में सत्ता का उपयोग करता है। अत: अब क्रांतियों द्वारा सामंतों को सत्ता से बाहर कर पूंजीवाद उसमें आए और अपने वर्ग हितों के लिए कायदे-कानून और संविधान बनाए।

पूंजीपति वर्ग अपने झंण्डों में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व के नारे अंकित कर सत्ता में आया। लेकिन जल्द ही समानता, स्वतंत्रता महज एक चालू लब्ज रह गए, मात्र शोषण के तरीके बदले और कुछ नहीं। भूतपूर्व भूदास किसान मजदूरों में परिवर्तित हो गए।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की निम्नांकित विशेषताएँ हैं- 
  1. बड़ी मात्रा में उत्पादन-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की जाती है। जिनमें विशाल मात्रा में तीव्र गति से उत्पादन होता है। बड़ी मात्रा में उत्पादन होने पर ही पूंजीपति को लाभ होता है।
  2. अधिकाधिक लाभ-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है और उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो अधिक मुनाफा दें। 
  3. एकाधिकार-पूंजीवादी व्यवस्था में उद्योगों एवं उत्पादित माल पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का एकाधिकार होता है। अतः वे वस्तुओं को मनमाने भाव पर बेचते हैं। इससे पूंजी का कुछ ही लोगों के हाथ में केंद्रीकरण हो जाता है। 
  4. प्रतियोगिता-खुली आर्थिक प्रतियोगिता पूंजीवाद की विशेषता है। इससे उत्पादन बढ़ता है, किंतु जब ‘गला काट प्रतियोगिता’ होती है तो छोटे-छोटे उत्पादक बड़े उत्पादकों के समक्ष टिक नहीं सकते। उन्हें अपना नोट उत्पादन बंद करना होता है। वे या तो बेकार हो जाते हैं या श्रमिकों के रूप में काम करने लगते हैं।
  5. शोषण-पूंजीवाद अर्थव्यवस्था में पूंजीपति श्रमिकों को कम-से-कम देना चाहता है और स्वयं अधिकाधिक प्राप्त करना चाहता है। अतः वह श्रमिकों का शोषण करता है। 
  6. व्यक्तिगत संपत्ति-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत संपत्ति पर व्यक्ति का पूर्ण अधिकार होता है जिसका उपयोग वह मनमाने ढंग से करता है। 
  7. बैंक-पूंजीवादी व्यवस्था में मुद्रा की व्यवस्था एवं लेन-देन हेतु बैंक व्यवस्था पायी जाती है। 
  8. द्रव्य एवं साख-वस्तुओं के विनिमय के लिए पूंजीवाद में द्रव्य एवं साख की व्यवस्था की जाती है। मुद्रा धातु की एवं कागज की भी हो सकती है। 
  9. श्रम-विभाजन-फैक्टरी प्रणाली से उत्पादन करने के लिए काम को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट दिया जाता है, इससे श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण को प्रोत्साहन मिलता है। 
  10. वर्ग-संघर्ष-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में हमें प्रमुख रूप से दो वर्ग-पूंजीपति एवं श्रमिक वर्ग दिखाई देते हैं। दोनों वर्ग अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन बनाते एवं संघर्ष करते हैं। श्रमिक संगठनों द्वारा श्रमिक लोग तोड़-फोड़, हड़ताल, घेराव आदि के द्वारा अपनी वेतन वृद्धि , बोनस, काम के घंटे कम कराने एवं अन्य सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए पूंजीपतियों से संघर्ष करते हैं। 
इन विशेषताओं के अतिरिक्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में ठेका प्रणाली, स्वतंत्र समझौता, श्रम संघों का निर्माण, होल्डग कंपनियों एवं सहकारी समितियों द्वारा कार्य करना आदि पाया जाता है जिनका उल्लेख हम पहले कर चुके हैं।

1 Comments

  1. Best of read on study for us...
    Very easily words
    Good job

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