रूस जापान युद्ध इसी चुनौती का परिणाम था। रूस और जापान के बीच कई क्षेत्रों पर प्रभुत्व जमाने के लिए घोर तनातीन चल रही थी। इसमें मंचूरिया और कोरिया को लेकर दोनों में घोर मतभेद उत्पन्न हो गया था और इन्ही समस्याओं के कारण दोनों के बीच युद्ध छिड़ा।
रूस जापान युद्ध के कारण
1. रूस की विस्तारवादी नीति
1894-95 ई. के चीन-जापान युद्ध में विजय के फलस्वरूप चीन के मामले में जापान की रूचि अत्यधिक बढ़ गई। उधर चीन की निर्बलता का प्रदर्शन हुआ, जिसने पश्चिमी देशों को चीन की लूट-खसोट की और प्रेरित किया। इस कार्य में सबसे अधिक अग्रसर रूस था, जो किसी-न-किसी बहाने तीव्र गति से चीन में प्रसार पर तुला था।रूस की इस लोलुपता से जापान को बड़ी आशंका
हुइ्र। ऐसी स्थिति में अपने नए मित्र ब्रिटेन की शक्ति और प्रतिष्ठा से आश्वस्त होकर उसने रूस को
चुनौती दी।
2. मंचूरिया का प्रश्न
सर्वप्रथम मंचूरिया की समस्या ने रूस तथा जपान में एक-दूसरे के प्रति घृणा की भावना को जन्म दिया, जिसका अंतिम परिणाम युद्ध के रूप में हुआ। चीन का उत्तरी प्रदेश मंचूरिया कहलाता है। आर्थिक साधनों की दृष्टि से यह क्षत्रे बहुत संपन्न है। कोयला, लोहा और सोना यहाँ प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। ऐसे क्षेत्र पर प्रभुत्व स्थापन के लिए रूस और जापान के बीच संघर्ष होना स्वाभाविक था। रूस इस प्रदेश को अपने प्रभावक्षेत्र में लाना चाहता था और इसके लिए उसके पास कई तरह की योजनाएँ थीं।1894 ई. के बाद रूस ने चीन का पक्ष लिया था और जापान पर प्रभाव डालकर
लियाओतुंग प्रदेश से जापानी अधिकार हटाने के लिए जापान को बाध्य किया। कुछ समय बाद रूस
और चीन में एक संधि हुई इसके अनुसार रूस को मंचूरिया में ब्लाडीवोस्टोक तक एक हजार मील लंबी
रेल-लाइन बिछाने का अधिकार प्राप्त हुआ। पोर्ट आर्थर और उसके समीप का प्रदेश पच्चीस वर्ष के
लिए रूस को पट्टे पर मिला और यहाँ रूसी सरकार अपने जंगी जहाज सुरक्षित रखने के लिए
किलाबंदी शुरू कर चुकी थी। पोर्ट आर्थर प्रशांत महासागर में रूस का सबसे बड़ा सैनिक अड्डा बन
चुका था, इस कारण इस क्षेत्र में रूस की शक्ति बहुत दृढ़ हो गई थी।
मंचूरिया में रेलवे लाइन के
निर्माण के लिए दो कंपनियों का संगठन किया गया था, जिन पर रूस का नियंत्रण था। इन कंपनियों
के वित्तीय प्रबन्ध हेतु एक बैंक की स्थापना की गई थी, उस पर भी रूस का ही नियंत्रण था। रेल
लाइनों के निर्माण के लिए बहुत-से रूसी मंचूरिया में आ रहे थे।
इन लाइनों की रक्षा के लिए रूस की
एक विशाल सेना भी इस प्रदेश में रहने लगी थी।
मंचूरिया में रूस के बढ़ते प्रभाव से जापान बहुत अधिक चिंतित हो रहा था। वह नहीं चाहता था कि इस क्षेत्र पर रूस का नियंत्रण स्थापित हो जाए। जापान स्वयं मंचूरिया पर अपना अधिकार कायम करना चाहता था। जापानी साम्राज्य के विस्तार के लिए यह बड़ा ही उपयुक्त स्थान था। चीन-जापान युद्ध के बाद जापान के लियाओतुंग प्रदेश पर अपना जो अधिकार कायम किया था, उसके पीछे यही स्वार्थ छिपा हुआ था। लेकिन, रूस के विरोध के कारण जापान को शिमोनोसेकी की संधि में संशोधन स्वीकार कर इस क्षेत्र पर से अपना आधिपत्य उठाना पड़ा था।
मंचूरिया में रूस के बढ़ते प्रभाव से जापान बहुत अधिक चिंतित हो रहा था। वह नहीं चाहता था कि इस क्षेत्र पर रूस का नियंत्रण स्थापित हो जाए। जापान स्वयं मंचूरिया पर अपना अधिकार कायम करना चाहता था। जापानी साम्राज्य के विस्तार के लिए यह बड़ा ही उपयुक्त स्थान था। चीन-जापान युद्ध के बाद जापान के लियाओतुंग प्रदेश पर अपना जो अधिकार कायम किया था, उसके पीछे यही स्वार्थ छिपा हुआ था। लेकिन, रूस के विरोध के कारण जापान को शिमोनोसेकी की संधि में संशोधन स्वीकार कर इस क्षेत्र पर से अपना आधिपत्य उठाना पड़ा था।
अतएव, रूस और जापान के बीच
मंचूरिया पर प्रभुत्व स्थापन की बात को लेकर युद्ध अवश्यंभावी प्रतीत हो रहा था।
3. कोरिया में रूस-जापान की मुठभेड़
रूस और जापान के संघर्ष का दूसरा क्षेत्र कोरिया था। चीन-जापान युद्ध के बाद कोरिया पर जापान का प्रभुत्व कायम हो सका था। लेकिन, रूस के हस्तक्षेप से जापान की प्रभुता बहुत हद तक सीमित हो गई। फिर भी जापान ने अपने प्रयास जारी रखे और कोरिया पर अपना पूरा नियंत्रण कायम करने की कोशिश में जुटा रहा। कोरिया का राजा जापानियों के इन प्रयासों का विरोध कर रहा था।ऐसी परिस्थिति में जापानी सैनिकों ने राजमहल पर हमला कर दिया लेकिन, राजा भाग निकला और
रूस की सेना ने उसे बचा लिया। इस पर जापान रूस से बड़ा नाराज हुआ।
1902-03 ई. में रूस ने कोरिया में अपनी कार्यवाही और तेज कर दी। उसने यालू के मुहाने पर एक कोरियाई बंदरगाह पर कब्जा कर लिया, उत्तरी कोरिया के बंदरगाहों से मंचूरिया के सैनिक अड्डों तक सड़कें बना ली तथा तार की लाइनें डाल ली और सीओल से याहू तक रेल की पटरी बिछाने का ठेका लेने की कोशिश की। जापान ने इसका विरोध किया और जुलाई, 1903 ई. में रूस से दूसरी संधि का प्रस्ताव किया, जिसके अनुसार चीन और कोरिया की प्रादेशिक अखण्डता का आश्वासन तथा रूस से उन्मुक्त द्वार की नीति पर चलने का वादा माँगा। साथ ही, वह भी प्रस्ताव किया गया कि उक्त संधि द्वारा मंचूरिया में रूस के हित तथा कोरिया में जापान के विशेष स्वार्थों की रखा की जाए। किंतु, रूस ने इन्हें को मानने से इनकार कर दिया। यह बातचीत जनवरी, 1904 ई. तक चलती रही।
1902-03 ई. में रूस ने कोरिया में अपनी कार्यवाही और तेज कर दी। उसने यालू के मुहाने पर एक कोरियाई बंदरगाह पर कब्जा कर लिया, उत्तरी कोरिया के बंदरगाहों से मंचूरिया के सैनिक अड्डों तक सड़कें बना ली तथा तार की लाइनें डाल ली और सीओल से याहू तक रेल की पटरी बिछाने का ठेका लेने की कोशिश की। जापान ने इसका विरोध किया और जुलाई, 1903 ई. में रूस से दूसरी संधि का प्रस्ताव किया, जिसके अनुसार चीन और कोरिया की प्रादेशिक अखण्डता का आश्वासन तथा रूस से उन्मुक्त द्वार की नीति पर चलने का वादा माँगा। साथ ही, वह भी प्रस्ताव किया गया कि उक्त संधि द्वारा मंचूरिया में रूस के हित तथा कोरिया में जापान के विशेष स्वार्थों की रखा की जाए। किंतु, रूस ने इन्हें को मानने से इनकार कर दिया। यह बातचीत जनवरी, 1904 ई. तक चलती रही।
12 जनवरी
को जापानी सम्राट् ने आखिरी शर्ते रखी कि यदि रूस, चीन की प्रादेशिक अखण्डता मान ले और मंचूरिया में जापान तथा अन्य देशों के वैद्य कार्यों में बाधा न डाले और कोरिया के जापानी हितों में
हस्तक्षेप न करे तो जापान मंचूरिया को अपने प्रभाव क्षेत्र से बाहर समझने को तैयार है।
जब इनका
कोई संतोषजनक उत्तर न आया और रूसी फौजें बराकर पूर्व की ओर जमा होती रहीं तो युद्ध
अवश्यंभावी हो गया।
रूस जापान युद्ध की घटनाएँ
इस युद्ध की विशेषता यह थी कि एक पूर्वी शक्ति द्वारा एक महान यूरोपीय शक्ति की पराजय हुई। मई, 1904 ई. में दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जापानियों ने अक्टूबर में दस दिनों तक शा-हो में भयंकर रक्तपात किया। पोर्ट आर्थर लंबे समय तक जापान के घेरे में पड़ा रहा। फरवरी, 1905 ई. में मुकदेन का कठिन युद्ध हुआ। अंत मे, जापानी सफल हुए और रूस को मुकदेन छोड़ना पड़ा।मंचूरिया ने भी जापान का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। मुकदेन की विजय के पश्चात स्थल पर कोई युद्ध
नहीं हुआ, क्योंकि जापान का साधन कम हो गये थे और रूस की हिम्मत पस्त हो चुकी थी।
रूस और जापान के युद्ध का निर्णायक मोर्चा समुद्री युद्ध था। इसमें अठारह हजार रूसी
नाविकों में से बारह हजार की जाने गई। जापान के केवल एक सौ छत्तीस आदमी मारे गए। रूसियों
की सैन्यशक्ति चकनाचूर हो गई।
तत्पश्चात अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट की मध्यस्थ्ता से दोनों पक्षों के
मध्य संधि हो गई। इसे पोर्ट्समाउथ की संधि कहते हैं।
पोर्ट्समाउथ की संधि -
5 सितंबर, 1905 ई को पोर्ट्समाउथ में हुई संधि के अनुसार बातें तय की गई -
- कोरिया में जापान के प्रमुख राजनीतिक, सैनिक और आर्थिक हितों को मान्यता दी गई।
- मंचूरिया को रूस और जापान दोनों ने खाली करना स्वीकार कर लिया।
- रूस ने जापान को लियाओतुंग प्रायद्वीप का पट्टा सौंप दिया और वहाँ की रेलों और खानों का अधिकार दे दिया।
- रूस ने जापान को साखालिन का आधा दक्षिणी भाग दे दिया।
- रूस ने जापान को इन द्वीपों के उत्तर और पश्चिम के समुद में मछली पकड़ने का हक दे दिया।
- रूस और जापान दोनों ने एक-दूसरे को युद्धबंदियों का खर्चा देना मान लिया और इससे जापान को करीब दो करोड़ डालर का लाभ हुआ।
- रूस और जापान दोनों को मंचूरिया में हथियारबंद रेलवे रक्षक रखने का अधिकार मिला।
- रूस और जापान दोनों ने साखालिन द्वीप को किलेबंदी न करने पर मंचूरिया की रेलवे को सैनिक काम में न लाने की पाबंदी स्वीकार कर ली।
- रूस और जापान दोनों ने पट्टे की भूमि को छोड़कर मंचूरिया में चीनी प्रभुत्व का सम्मान करने का वचन दिया और वहाम के द्वार सभी देशों के खुले रहने पर सहमति दी।
रूस जापान युद्ध के परिणाम
रूस की पराजय से जापानी साम्राज्यवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया। पूर्वी एशिया की राजनीतिक में वह एक कदम और आगे बढ़ गया। रूस-जापान युद्ध में जापान की विजय से जापान को चीनी क्षेत्र में घुस जाने का अच्छा अवसर मिल गया। जबकि पूर्वी एशिया में रूस का विस्तार रूक गया। मंचूरिया पर उसका नाम-मात्र का अधिकार रहा। युद्ध में जापान ने सिद्ध कर दिया कि वह संसार का एक शक्तिशाली राष्ट्र है।इसी आधार पर उसने ब्रिटेन से अनुरोध किया कि आंग्ल-जापानी
संधि में ऐसे संशोधन किए जाएँ, जिससे जापान को कुछ अधिक लाभ हो। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह
थी कि कोरिया पर से रूस के प्रभाव का अंत हो गया। अब जापान कोरिया में अपनी इच्छानुसार काम
कर सकता था। अवसर पाकर 1910 ई. में उसने कोरिया को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया।
इस
प्रकार, कोरिया को जापानी साम्राज्य में सम्मिलित करने के कार्य में रूस-जापान युद्ध का बड़ा यागे दान
रहा। समूचे संसार में, विशेषकर पूर्वी एशिया में, जापान की ख्याति बढ़ गई।
जापान का उत्साह बहुत
बढ़ा और युद्ध में विजय के उपरांत उसने उग्र साम्राज्यवादी नीति अपनायी, जिसके फलस्वरूप उसका
विशाल साम्राज्य कायम हुआ।
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रूस जापान युद्ध