अधिगम असमर्थता के कारण और प्रकार

अधिगम विकृति का संबंध सीखने में होने वाली अक्षमता से होता है यह अक्षमता कई प्रकार के कौशलों एवं संज्ञानात्मक विकास से संबंधित हो सकती है। जब किसी बालक को अन्य हमउम्र बालकों की तुलना में पढ़ाई लिखाई अथवा गणित आदि विषयों में पिछड़ा हुआ पाया जाता है। और उसका यह पिछड़ना सामान्य नहीं होता बल्कि उसके इस पिछड़ने को सार्थक रूप से निम्नस्तरीय प्रदर्शन की श्रेणी में रखा जा सकता है तब यह कहा जाता है कि बालक में अधिगम विकृति (लर्निंग डिस्आर्डर ) की समस्या उत्पन्न हो गयी है। और यह समस्या, समस्या के विभिन्न प्रकारों में से एक मनोवैज्ञानिक प्रकार के अन्तर्गत आती है। 

लर्निंग डिस्आर्डर को निर्धारित करने से पूर्व इसे कई कसौटियों पर कसा जाता है जैसे कि बालक का बुद्धि परीक्षण पर प्राप्त बुद्धिलब्धि प्राप्तांक, उम्र, एवं शिक्षा की सुविधा एवं स्तर आदि। इसे एक विशिष्ट विकृति की संज्ञा दी जाती है।

अधिगम असमर्थता के अन्तर्गत अधिगम विकृति, संचार विकृति, तथा समन्वय से संबंद्ध पेशीय कौशल विकृति को एक साथ रखा जाता है क्योंकि इन तीनों में बालक अपने बौद्धिक स्तर के अनुरूप विशिष्ट शैक्षिक या भाषा अथवा पेशीय क्षेत्र में विकसित होने में असमर्थ रहता है।

अधिगम असमर्थता के प्रकार

नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अधिगम असमर्थता तीन प्रकार की होती है।
  1. अधिगम विकृतियॉं 
  2. संचार विकृतियॉं 
  3. पेशीय कौशल विकृतियॉं

1. अधिगम विकृतियॉं 

 प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक नेविड, राथुस एवं ग्रीन (2014) अपनी पुस्तक ‘एबनॉरमल साइकोलॉजी इन ए चैलेंजिंग वल्र्ड’ में अमेरिका के नेल्सन रॉकफेलर के बारे में लिखते हैं कि नेल्सन अमेरिका के उपराष्ट्रपति रहे हैं एवं उससे पूर्व वे अमेरिका के न्यूयार्क स्टेट के गवर्नर पद पर भी रहे हैं, उनके जीवन में वे बड़े ही दिलचस्प मोड़ से गुजर चुके हैं। वे बहुत ही प्रतिभाशाली थे तथा उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। दुनिया के सबसे अच्छे शिक्षकों के उपलब्ध होने के बाद भी उन्हें पाठन में बड़ी ही परेशानी होती थी। वास्तव में रॉकफेलर डिस्लेक्सिया नामक बीमारी से ग्रस्त थे जो कि एक अधिगम विकृति कहलाती थी। इसे कई बार अधिगम असमर्थता भी सीधे सीधे कह दिया जाता है क्योंकि यह बहुत ही आम बीमारी है एवं अधिगम विकृति के 80 प्रतिशत व्यक्तियों में यह पायी जाती है। 

डिस्लेक्सिया के मरीजों में पढ़ने हेतु अपेक्षित बौद्धिक योग्यता होने के बावजूद उन्हें पाठ्य सामग्री का पाठन करने अथवा पाठ दोहराने में कठिनाई होती है। अधिगम विकृति एक ऐसी विकृति है जो कि दीर्घस्थायी होती है एवं व्यक्ति के विकास को उसकी वयस्कावस्था में भी अच्छे से प्रभावित करती है। अधिगम विकृति से ग्रस्त बच्चों का औसत बुद्धि एवं आयु होने के बावजूद स्कूल में निम्नस्तरीय प्रदर्शन रहता है। उनके माता पिता इस समस्या को समझ नहीं पाते एवं अधिकांशत: इसे बच्चों की असफलता माना जाता है। 

ऐसे बच्चों में आगे चलकर निम्न आत्मसम्मान जैसी अन्य मनोवैज्ञानिक समस्यायें जन्म ले लेती हैं। इनमें ADHD से ग्रस्त होने की संभावना भी काफी बढ़ी चढ़ी होती है। डायग्नोस्टिक स्टेटिस्टिकल मैनुअल के आधार पर अधिगम विकृति के तीन प्रकार निर्धारित किए हैं-
  1. पठन विकृति 
  2. गणित विकृति
  3. लेखन अभिव्यक्ति की विकृति
1. पठन विकृति - पठन-पाठन में होने वाली विकृति को पठन विकृति की संज्ञा दी जाती है। इसे डी.एस.एम-4 में डिस्लेक्सिया कहा गया है। हालांकि डी.एस.एम.-5 में डिस्लेक्सिया शब्द का प्रयोग पठन विकृति हेतु नहीं किया गया है परन्तु यह आज भी मनोवैज्ञानिकों, क्लीनिशियन तथा शिक्षकों के बीच में अत्यधिक प्रचलित है। इस तरह की विकृति में बच्चों को पाठ पढ़ने में बड़ी ही कठिनाई होती है। ऐसे बच्चें प्राय: पाठ को रूक रूक कर पढ़ते हैं इससे उनके पाठन गति धीमी होती है तथा इसके साथ ही उन्हें मूल शब्दों को पहचानने एवं पढ़े गये शब्दों के अर्थ को समझने में भी कठिनाई होती है। 

मनोवैज्ञानिक रटर एवं उनके सहयोगियों (2004) के अनुसार स्कूली उम्र के लगभग 4 प्रतिशत बच्चों में डिस्लेक्सिया की समस्या होती है एवं यह लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा ज्यादा पायी जाती है।

डिस्लेक्सिया से ग्रस्त बच्चे पाठ को बहुत ही कठिनता से एवं धीरे-धीरे पढ़ते हैं तथा जब वे जल्दी जल्दी अथवा ऊॅंची आवाज में पढ़ने की कोशिश करते हैं तो शब्दों को तोड़-मरोड़कर पढ़ते हैं, इसमें कई बार वाक्य के बीच के शब्द उनसे छूट जाते हैं एवं कई बार वे उन्हें गलत भी पढ़ जाते हैं तथा कभी कभी तो उनकी जगह पर दूसरे शब्दों का उच्चारण कर बैठते हैं। उन्हें शब्दों में बीच अक्षर विभाजन में भी समस्या हो सकती है कई बार तो वे अक्षरों के संयोजन को समझने में भी दिक्कत महसूस करते हैं। 

परिणामस्वरूप वे शब्द का समुचित स्वर में पाठन नहीं कर पाते हैं। कभी कभी उनमें कुछ अक्षरों को उल्टा प्रत्यक्षित करने की समस्या भी होती है जैसे कि अंग्रेजी के अक्षर W को M के रूप में प्रत्यक्षित करना। 

इसके अलावा उन्में अक्षरों की दिशा पलटने की भी समस्या होती है जैसे कि b को d के रूप में पढ़ना। डिस्लेक्सिया अधिकांशत: 6-7 वर्ष की उम्र में पहचान में आता है। इसे बच्चों की ग्रेड 2 कक्षा से भी जोड़कर देखा जाता है। डिस्लेक्सिया से ग्रस्त बच्चों व किशोरों में डिप्रेशन, निम्नआत्ममूल्य एवं ADHD विकसित होने का खतरा काफी ज्यादा होता है।

ऑंचलिक एवं देशीय भाषाओं के अनुसार डिस्लेिक्या की दर विभिन्न देशों में क्षेत्रों में भिन्न पायी जाती है। अंग्रेजी एवं फ्रेंच बोलने वाले देशों में जहॉं कि भाषा में अलग अलग प्रकार की स्पेलिंग का उच्चारण एक समान प्रतीत होने वाले स्वरों से किया जाता है डिस्लेक्सिया के रोगियों की संख्या काफी अधिक है। वहीं इटली में इसका विपरीत होने की वजह से डिस्लेक्सिया की दर कम है।

2. गणित विकृति - गणित विकृति की पहचान तब होती है जब बच्चों की बौद्धिक क्षमता की तुलना में बच्चों का अंकगणितीय प्रदर्शन काफी निम्नस्तरीय होता है। तथा उसकी शैक्षिक उपलबिधयॉं उससे प्रभावित होती हैं। ऐसे बच्चों में लिखित समस्याओं को गणितीय संकेतों में कूटबद्ध करने में भी परेशानी होती है जिससे उनमें भाषाई कौशल से संबंधित कठिनाई भी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे बच्चों में संख्यात्मक संकेतों (numerical symbols) को समझने में भी समस्या हो सकती है। ऐसे बच्चों में मूल गणितीय संक्रियाओं को सम्पादित करने में भी कठिनाई हो सकती है जैसे कि जोड़-घटा एवं गुणा-भाग। यह समस्या वैसे तो छ: वर्ष की आयु से ही प्रारम्भ हो सकती है परन्तु बच्चे के कक्षा दो या तीन में पहुचने पर ही इसकी समुचित पहचान हो पाती है। यह लड़के एवं लड़कियों में समान रूप से पायी जाती है।

3. लेखन अभिव्यक्ति में विकृति - इस विकृति की पहचान बच्चों द्वारा उनके द्वारा लिखे गये कार्य में होने वाली स्पेलिंग, व्याकरण, एवं पन्क्चुएशन में होने वाली त्रुटियों के माध्यम से की जाती है। जब बच्चा अपनी बौद्धिक क्षमता एवं आयु के स्तर से कहीं निम्नस्तर पर अत्यधिक त्रुटियॉं करता है तो इसे लेखन अभिव्यक्ति में विकृति की संज्ञा दी जाती है। ऐसे बच्चे वाक्यों को लिखने में काफी त्रुटियॉं करते हैं एवं वाक्यों को पैराग्राफ में ठीक से समायोजित भी नहीं कर पाते हैं। अधिकांशत: सात वर्ष की उम्र में अथवा कक्षा-2 में इस विकृति की पहचान हो जाती है। कुछ केसेज जो कि माइल्डर केसेज कहे जा सकते हैं में इनकी पहचान 10 वर्ष की उम्र अथवा पांचवी कक्षा में पहुचते पहुचते हो जाती है।

2. संचार विकृतियॉं 

भाषा को, समझने एवं इस्तेमाल करने में तथा स्पष्ट रूप से तथा धाराप्रवाह बोलने में होने वाली विकृति को संचार विकृति कहा जाता है। दैनिक जीवन में भाषा एवं भाषण की अत्यधिक महत्ता होने की वजह से यह विकृति जीवन में व्यक्ति की सफलता को उसके स्कूल जीवन, कार्यस्थल एवं सामाजिक परिस्थितियों को काफी गंभीर रूप से प्रभावित करती है। यह विकृति कई प्रकार की होती है। आइये इनके बारे में जानें।

1. भाषा विकृति - भाषा विकृति में बोलचाल की भाषा को उत्पन्न कर पाने की क्षमता में विकृति एवं बोलचाल की भाषा को समझ पाने की क्षमता में विकृति को सम्मिलिति किया गया है। इसके अन्तर्गत एक बालक में उसकी उम्र विशेष के परिप्रेक्ष्य में शब्दकोष के विकास का धीमा होना, वाक्य विन्यास में गड़बड़ी, शब्दों के प्रत्याह्वान में कठिनाई एवं उपयुक्त लम्बाई तथा जटिल वाक्यों को निर्मित कर पाने में परेशानी जैसी विशिष्ट विकृतियॉं शामिल हैं। इसके अलावा इस विकृति से ग्रस्त बच्चों में शब्दों के उपयुक्त उच्चारण में भी कमी पायी जाती है जिसे स्पीच साउुंड डिस्आर्डर कहा जाता है।

भाषा विकृति से ग्रस्त बच्चों में वाक्यों अथवा शब्दों को अर्थ को न समझ पाने की समस्यायें भी पायी जाती हैं। कुछ केसेज में ऐसे बच्चे कुछ विशेष प्रकार के शब्दों को समझने में संघर्ष करते पाये जाते हैं उदाहरण के लिए ऐसे शब्द जो पदार्थ अथवा वस्तु की मात्रा में अन्तर को अभिव्यक्त करते हैं जैसे कि large, big or huge । या फिर ऐसे शब्द जो कि लम्बाई, चौड़ाई, ऊॅंचाई, अथवा दूरी या निकटता को अभिव्यक्त करते हैं जैसे कि दूर (far) अथवा पास (near) । ये हमेशा वाक्यों को छोटा कर देते हैं। श्रव्य सूचनाओं को संसाधित करने में भी कठिनाई महसूस करते हैं।

2. भाषण आवाज विकृति - इस विकृति को ध्वनिक विकृति (phonological disorder) भी कहा जाता है। वैसे बच्चों को जो उपयुक्त उम्र तथा संभाषण प्रक्रम में किसी प्रकार का दोष न होने के बावजूद शब्दों अथवा वाक्यों को सही सही ढंग से बोल या उच्चारित नहीं कर पाते हैं उन्हें भाषण-आवाज विकृति या ध्वनिक विकृति का रोगी माना जाता है। ऐसे बच्चों की भाषा में बोले गये शब्दों में अस्पष्टता होती है, ये शब्दों का प्रतिस्थापन करते हैं अर्थात् बोले जाने वाले शब्द के स्थान पर कोई अन्य शब्द बोल देते हैं। कई बार ये वाक्यों में से कुछ शब्दों को छोड़कर वाक्य बोलते हैं जिससे उनकी बातचीत एक बहुत छोटे बच्चे की बातचीत के समान हो जाती है। 

कुछ विशेष प्रकार के शब्द जिनका बहुत बढ़िया उच्चारण साधारण बच्चे नर्सरी, अथवा केजी की कक्षा में पहुचने से पूर्व ही भली भॉंति कर पाते हैं इस विकृति से ग्रस्त बच्चे उन शब्दों जैसे कि ch, f, l, r, sh एवं th की ध्वनियों का स्पष्ट उच्चारण करने में त्रुटियॉं करते हैं। जिन बच्चों में यह विकृति ज्यादा गंभीर होती है वे तो b, d, t, m, n, एवं h का भी उच्चारण ठीक से नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार के बच्चों को यदि स्पीच थेरेपी प्रदान की जाती है तो सामान्यतया 8 वर्ष की उम्र से पहले ही यह समस्या दूर हो जाती है।

3. चाइल्डहुड-ऑनसेट-फ्लूयेन्सी विकृति -  इस विकृति को हकलाना विकृति (Stuttering) भी कहा जाता है। डी.एस.एम.-4 में इसे हकलाना विकृति के रूप में ही अभिव्यक्त किया जाता था। डी.एस.एम-5 के संस्करण में इसे चाइल्डहुड-ऑनसेट-फ्लूयेन्सी विकृति के नाम से वर्गीकृत किया गया है। 

इस विकृति से ग्रस्त बच्चे अपने बोलचाल के सामान्य प्रवाह तथा बोलने में लगने वाले समय के पैटर्निंग में परेशानी का अनुभव करते हैं। वे किसी अक्षर अथवा शब्द को कभी-कभी दोहरा देते हैं, या कभी उसे लम्बे समय तक खींचकर बोलते हैं, या कभी शब्द को बीच में ही बोल देते हैं, एक शब्द के भीतर एक अक्षर बोल कर रूक जाते हैं और फिर पुन: बोलते हैं, आवाज को अवरूद्ध कर देते हैं तथा अन्य कठिन शब्दों की जगह पर दूसरे शब्द बोलने लगते हैं, या फिर यदि मूल शब्दों को बोलते समय काफी तनाव का अनुभव करते हैं। एक ही पद में पूरा शब्द बोल देते हैं, आदि आदि। 

लगभग 1 प्रतिशत बच्चों में हकलाने की विकृति पायी जाती है इनमें 75 प्रतिशत लड़के होते हैं। हकलाने की समस्या प्राय: दो से सात वर्ष की उम्र में प्रारम्भ होती है और इनमें जसे तकरीबन 75 प्रतिशत बच्चे बिना उपचार के ही 15-16 वर्ष की उम्र तक आते आते अपने आप ही ठीक हो जाते हैं।

4. सामाजिक संचार विकृति -  सामाजिक संचार विकृति डी.एस.एम-5 में संचार विकृति के अन्तर्गत सम्मिलित की गयी एक नये प्रकार की विकृति है जो कि इससे पूर्व डी.एस.एम. के किसी अन्य पूर्व संस्करण में वर्गीकृत नहीं की गयी थी। इस विकृति की डायग्नोसिस किसी बालक के संबंध में तब की जाती है जब कि कोई बच्चा जीवन की स्वाभाविक परिस्थितियों जैसे कि, स्कूल, घर, खेल आदि में अन्य व्यक्तियों के साथ शाब्दिक अथवा अशाब्दिक रूप से दूसरे लोगों के साथ बातचीत नहीं कर पाता है एवं यह लम्बे समय से एवं स्पष्ट रूप में चल रहा होता है। इन बच्चों में बातचीत को लम्बे समय तक करने में कठिनाई होती है तथा वे कभी कभी बच्चों के समूह में होने पर अपनी इस कठिनाई के चलते चुप रह जाते हैं। उन्हें बोलचाल एवं लिखने वाली भाषा दोनों को ही सीखने में कठिनाई होती है। 

इस प्रकार की समस्या होने के बावजूद उनकी अन्य भाषाई एवं मानसिक योग्यता में औसत रूप से कोई भी कमी दृष्टिगोचर नहीं होती है जिससे कि कहा जा सके कि भाषा के ज्ञान के औसत से निम्नस्तर का होने एवं मानसिक योग्यता का औसत से निम्नस्तर होने की कमी के कारण वे बोलचाल में पिछड़े हुए हैं। हालॉंकि बोलचाल की यह सामाजिक अक्षमता जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी सफलता एवं उन्नति को गंभीर रूप से प्रभावित अवश्य करती है।

3. पेशीय कौशल विकृतियॉं

इसे विकासात्मक समन्वय विकृति (developmental coordination disordrer) भी कहा जाता है। इस प्रकार की डायग्नोसिस तब की जाती है जब कि बच्चों में पेशीय समन्वय (motor coordination) में कोई ऐसा दोष हो जिसकी व्याख्या मानसिक दुर्बलता या किसी ज्ञात फिजियोलॉजिकल डिस्आर्डर के रूप में नहीं की जा सकती है। इस प्रकार की विकृति होने पर बच्चे को अपनी कमीज के बटन लगाने में परेशानी हो सकती है, क्रिकेट खेलने, कैरम खेलने, निशानेबाजी, हाथ से लिखने, जूते का फीता बॉंधने आदि में कठिनाई हो सकती है। इस विकृति की डायग्नोसिस तभी की जाती है जब कि इस प्रकार की समस्याओं से बच्चे की शैक्षिक उपलब्धि या दैनिक क्रियायें गंभीर रूप से प्रभावित हो रही हों।

अधिगम असमर्थता के कारण

वैसे तो कारण एवं कारक कई हो सकते हैं परन्तु जो प्रमुख हैं एवं जिनकी आपको जानकारी होनी चाहिए - अधिगम असमर्थता के अंतर्गत अधिगम विकृति पर किये गये शोध अनुसंधानों एवं सिद्धान्तों के अनुसार इस विकृति के कारकों में जैविक (genetic), न्यूरोबायलॉजिकल (neurobiological), एवं वातावरणीय (environmental) कारक प्रमुख हैं। इनका समवेत विवेचन इस प्रकार है।

उपरोक्त तीनों प्रकार के कारकों में आनुवॉंशिक कारकों का विश्लेषण सर्वाधिक जटिल है। यद्यपि वैज्ञानिक फ्लेचर एवं उनके सहयोगियों के अनुसार जुड़वॉं युग्मों तथा उन्नत परिवारों पर किये गये अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि अधिगम विकृति परिवारों में वृक्ष की शाखाओं के समान फैलती है एवं पायी जाती है तथापि इस विकृति के लिए जिम्मेदार जीन्स का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि अलग अलग प्रकार के अधिगम विकृति के लिए अलग अलग प्रकार के कौन से जीन्स इसके विकसित होने के लिए उत्तरदायी हैं उनका विशिष्ट रूप से अभी तक प्रकाशन नहीं हो पाया है। उदाहरण के लिए पठन विकृति (reading disorder) या गणित विकृति (mathematics disorder) के लिए विशिष्ट रूप से जिम्मेदार जीन्स की पहचान वैज्ञानिक अभी तक नहीं कर पाये हैं। हालॉंकि यह अधिगम विकृति के लिए जिम्मेदार जीन्स की पहचान अवश्य हो गयी है जो कि पठन विकृति आदि अन्य सभी प्रकार की अधिगम विकृति के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अधिगम विकृति से जुड़ी हुई अलग-अलग प्रकार की समस्याओं के लिए अलग अलग कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए बच्चों में पठन विकृति से संबंधित विभिन्न समस्याओं जैसे कि शब्द पहचान (word recognition), शब्द प्रवाह (fluency) एवं समझ (comprehension) के लिए अलग अलग कारक हो सकते हैं। टैनोक (2009) के अनुसार शब्द पहचान से संबंधित विकृति के लिए अभी तक हुए अनुसंधानों से दो प्रकार के प्रमाण मिलते हैं एक प्रकार के प्रमाण इस विकृति के लिए आनुवांशिक कारकों यानि कि जीन्स को इसके लिए प्रमुख कारक सिद्ध करते हैं वही दूसरे तरह के प्रमाण इसमें वातावरणीय असर को प्रदर्शित करते हैं। 

टैनोक यह भी कहते हैं कि इस प्रकार की विकृति के लिए क्रोमोसोम्स में स्थित जीन संख्या 1, 2, 3, 6, 11, 12, 15 एवं 18 को विभिन्न अनुसंधानों में बार-बार संबंधित पाया गया है। वहीं पेट्रिल एवं उनके सहयोगी (2006) ने अपने शोध अनुसंधानों में वातावरणीय प्रभावों को इस विकृति से सहसंबंधित पाया है। उनके अनुसार परिवारों में पढ़ने का वातावरण बच्चों की पठन आदत को महत्वपूर्ण रूप में प्रभावित करता है उनके अनुसार जिन परिवारों में पठन विकृति होने के बावजूद रीडिंग आदत को कुशलतापूर्वक बच्चों में स्थापित किया गया है उन परिवारों में अन्य परिवारों के बच्चों की अपेक्षा पठन विकृति की समस्या सार्थक रूप से कम विद्यमान होती है। यहॉं तक कि यदि योजनाबद्ध रीति से यदि पठन विकृति से ग्रस्त बच्चों में घर के स्नेहिल वातावरण में पठन-पाठन का अभ्यास कराया जाये एवं उनमें इस आदत को विकसित किया जाये तो विशेष रूप से उनके शब्द पहचान की समस्या के खतरे को कम किया जा सकता है।

सूक्ष्म मस्तिष्कीय विघटन अथवा क्षति को भी अधिगम विकृति से जोड़ा जाता रहा है। एवं वैज्ञानिक हिन्सेलवुड (1996) जैसे पूर्ववर्ती विद्वान इसकी न्यूरोलॉजिकल व्याख्या भी करते रहे हैं। शेविट्ज एवं उनके सहयोगियों (2006) के अनुसार अधिगम असमर्थता से ग्रस्त रोगियों के मस्तिष्क में संरचनात्मक (structural) एवं प्रकार्यात्मक (functional) विभिन्नताओं के प्रमाण उपलब्ध हैं खासतौर पर शब्द पहचान समस्या यानि की डिस्लेक्सिया की व्याख्या हेतु बॉंये हिमेस्फियर के तीन प्रमुख हिस्सों के माध्यम से की जाती है। इन तीन हिस्सों में पहला है ब्रोका एरिया (Broca's area) जो कि शाब्दिक अभिव्यंजना एवं शब्द विश्लेषण को प्रभावित करता है, तथा दूसरा एरिया बॉंया पैराइटोटेम्पोरल (left- parietotemporal) एरिया है जो कि शब्द विश्लेषण को प्रभावित करता है तथा तीसरा एरिया बॉंया ऑक्सीटिपोटेम्पोरल (left- occitipotemporal) एरिया है जो कि शब्द के स्वरूप की पहचान (recognition of word form) को प्रभावित करता है।

फ्लेचर एवं उनके सहयोगियों (2007) के अनुसार संख्या ज्ञान के विकसित होने में मस्तिष्क के बॉंये हिमेस्फियर का इन्ट्रापैराइटल सलकस (intra-parietal sulcus) एक ऐसा एरिया है जो कि इसमें महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है तथा इसकी गणित विकृति में अहम् भूमिका होती है।

उपरोक्त सभी प्रकार की अधिगम विकृति की तुलना में लेखन अभिव्यक्ति विकृति के संबंध में अभी तक कोई भी विशिष्ट कारक संबंधी प्रमाण नहीं मिले हैं। इसके अलावा संचार विकृति के प्रमुख प्रकार चाइल्ड-ऑनसेट-फ्लूयेन्सी विकृति (हकलाना विकृति) के संबंध में फिबिगर एवं उनके सहयोगियों (2010) का कहना है कि इसका प्रमुख कारण आनुवांशिक है। उनके अनुसार अनुमानत: कहा जा सकता है कि इस विकृति के लिए संभाषण करने के लिए जो मांसपेशियॉं सम्मिलित होती हैं उन्हें नियंत्रित करने वाले जीन्स ही इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। 

वैज्ञानिक कांग एवं उनके सहयोगियों (2010) के अनुसार एक विशेष प्रकार के जीन के म्यूटेशन को हकलाने वाले बच्चों में विभिन्न वैज्ञानिकों के शोध अनुसंधानों में रिपोर्ट किया गया है संभवतया वह म्यूटेशन भी हकलाने की विकृति से संबंधित हो सकता है। हालॉंकि इसकी वैधता के संबंध में अनुसंधान जारी हकलाने की इस विकृति के कारण कई सांवेगिक प्रभाव एवं परिणाम भी इससे ग्रस्त बच्चों में अधिकांशत: देखने को मिलते हैं। 

करास एवं उनके सहयोगियों के अनुसार इस विकृति से ग्रस्त बच्चे जब तनाव अथवा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में फंस जाते हैं या उनसे उनका सामना होता है तब वे सामान्य बच्चों के तुलना में कहीं अधिक उत्तेजित एवं क्षुब्ध हो जाते हैं। इसके अलावा इनमें नहीं हकलाने वाले बच्चों के अपेक्षा सांवेगिक प्रतिक्रिया वृत्ति भी काफी अधिक होती है। 

क्राइमात एवं उनके सहयोगियों (2002) के अनुसार हकलाने वाले बच्चों में इस विचार को लेकर कि उनके हकलाने को देखकर दूसरे लोग क्या कहेंगे अथवा उनकी हंसी उड़ायेंगे सोचकर, सामाजिक चिंता (social anxiety) की संमस्या भी काफी मात्रा में उत्पन्न हो जाती है। हकलाने वाले बच्चों में प्राय: उनकी इस समस्या के साथ बोलने के संबंध में चिंता की समस्या, वैसी परिस्थितियॉं जहॉं बोलने की आवश्यकता पड़ती है का परिहार करने की प्रवृत्ति भी पायी जाती है। यह प्रवृत्ति प्राय: व्याकुलता से उत्पन्न होती है।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होती है कि अधिगम असमर्थता अथवा अधिगम विकृति, संचार विकृति आदि के कई कारण होते हैं अभी इस क्षेत्र में पर्याप्त शोध अनुसंधान नहीं हो पायें है जिन्हें किये जाने की महती आवश्यकता है।

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