अनुक्रम
भारतीय रिजर्व बैंक पारम्परिक कार्यों के साथ विविध प्रकार के विकास एवं प्रचार के कार्य भी करता है। भारतीय रिजर्व बैंक, अधिनियम 1934, के अनुसार यह विविध कार्य करता है जैसे नोट जारी करने वाला प्राधिकारी, सरकार का बैंकर, बैंको का बैंकर, इत्यादि।
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भारतीय रिजर्व बैंक |
भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य
भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के अनुसार नोटो को जारी करना और बैंक के सामान्य बैंकिंग कारोबार को दो अलग-अलग विभागों द्वारा किया जाता है। निर्गम विभाग की जिम्मेदारी नये नोटो को जारी करने की है। नये नोट जारी करने के लिए विभाग अपनी सम्पत्ति रखता है जो कि बैंकिग विभाग की संपत्ति से अलग होती है। कारोबार बैंकिंग विभाग के अन्र्तगत आता है जो अपने पास मुद्रा का भण्डार रखती है। जरूरत पड़ने पर बैंक विभाग मुद्रा का भण्डार रखती है। जरूरत पड़ने पर , बैंक विभाग मुद्रा का भण्डार उपलब्ध कराता है, निर्गम विभाग से जिसके लिए समान मूल्य की आस्तियां का अन्तरण किया जाता है। इसी तरह से बैंकिग विभाग के पास मुद्रा का भण्डार यदि जरूरत से ज्यादा है तो निर्गत विभाग अतिरिक्त मुद्रा को समान मूल्य की आस्तियों से बदल लेता है। निर्गम विभाग की सम्पत्ति जिसके विरूद्व नोट जारी किये जा सकते है, वह है:-- सोने के सिक्के और बहुमूल्य धातुऐं।
- विदेशी प्रतिभूतियॉ।
- रूपये के सिक्के।
- भारत सरकार की रूपया प्रतिभूतियां।
- विनियमन के बिल व वचनपत्र भारत में देय हो जो कि बैंक द्वारा खरीदे जा सके।
1. करेंसी चेस्ट -
मुद्रा नोटो और सिक्को के वितरण का कार्य रिजर्व बैंक द्वारा प्रशासित किया जाता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये निर्गम विभाग द्वारा 10 बड़े शहरो में इसका कार्यालय खोला गया। करेंसी चेस्ट (अर्थात बाक्स या कंटेनर) है जिसमें नये या पुन:जारी सिक्के , रूपये के सिक्को के साथ जमा करता है। भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय स्टेट बैंक के साहयक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको, सरकारी भण्डारों व उप भण्डारो के द्वारा करेंसी चेस्टों व कोशों का प्रबन्धन किया जाता है। नये नोटो का भण्डार देश भर में फैले हुये करेंसी चेस्ट में रखे जाते है जो अधिकांश मामलों में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंको द्वारा संचालित किये जाते है। करेंसी चेस्ट को बनाये रखने में बैंक व सरकारी भण्डार (कोशागार) के कई लाभ है :-- यदि किसी दिन बैलेंस से अधिक भुगतान हो जाये, तो तुरन्त ही चेस्ट से धन निकाल लिया जाता है। इसी तरह अगर फंड जरूरत से ज्यादा अधिक हो तो, धन को तुरन्त ही जमा कर दिया जाता है। ऐसा करने से धन के भौतिक हस्तान्तरण से बचा जा सकता है। भण्डार व बैंक की शाखायें सापेक्षतया: कम अन्त: शेश के साथ काम करते है।
- करेंसी चेस्ट रूपये व सिक्कों को नोटो से बदलने की सुविधा देती है और छोटे मूल्यवर्ग के नोटो की जगह बड़े मूल्यवर्ग के नोटो की आपूर्ति व निकासी का कार्य करती है साथ ही साथ पुराने व फटे हुये नोटो को बदल कर नये नोट निर्गत करती है।
- करेंसी चेस्ट जनता व बैंको को प्रेषण सुविधा भी प्रदान करती है।
2. सरकार के बैंकर के रूप में रिजर्व बैंक -
केन्द्रीय व राज्य सरकारों के लिये भारतीय रिजर्व बैंक बैंकर के रूप में कार्य करता है। धारा 20 के अनुसार, सरकारी लेनदेन करना एवं सार्वजनिक क्षेत्र के ऋण का प्रबन्धन करना भारतीय रिजर्व बैंक के लिये अनिवार्य है। धारा 21 के द्वारा केन्द्र सरकार को बाध्य किया गया है कि अपने समस्त नकद धन को एवं ब्याज मुक्त जमा राशियों को एवं धन, धन के प्रेषण, धन के अन्तरण एवं बैंकिंग लेन देन को वह बैंको को सौंप दे और विशेश रूप से धारा 21 ए के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक, केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारो की तरफ से भी उक्त सभी कार्य करता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन कार्यो को करने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारो के साथ अनुबन्ध किया है। सरकार के साधारण बैंकिंग व्यवसाय को करने के लिये बैंको को किसी प्रकार की पारिश्रमिक नही दी जायेगी। यह सरकार की नकदी ब्याजमुक्त रखती है। सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के लिए बैंक कमीशन प्राप्त करता है। सरकार द्वारा घोशित किये गये स्थानो पर निर्गम विभाग के करेंसी चेस्ट का अनुरक्षण करना और साथ ही साथ पर्याप्त नोट व सिक्के बनाये रखना भी भारतीय स्टेट की जिम्मेदारी है।धारा 45 के अनुसार, रिजर्व बैक के लिए अनिवार्य है कि वह अपने एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भारतीय स्टेट बैंक की नियुक्ति सभी स्थानों पर करता है जहां भारतीय रिजर्व बैंक की कोई शाखा या कार्यालय नही है लकिन वहॉ स्टेट बैंक या उसके सहायक बैंक की शाखा हो। स्टेट बैंक ने अपने सहायक बैको के साथ अभिकरण व्यवस्था के लिये अनुबन्ध स्थापित किया है। एजेंसी और उप एजेंसी बैंको के द्वारा सरकार के सामान्य बैंकिग व्यापार का परिचालन करते हैं और उसी के लिए कमीशन प्राप्त करते है। रिजर्व बैंक केन्द्र व राज्य सरकारो को ऐसे माध्यम एवं प्रकीर्ण अग्रिम देने के लिये अधिकृत है जो कि अग्रिम प्रदान करने की तारीख से 3 महीने के भीतर वापसी योग्य हो। भारतीय रिजर्व बैंक महत्वपूर्ण आर्थिक और वित्तीय मामलो में सरकार के वित्तीय सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है।
3. बैंकर्स बैंक के रूप में रिजर्व बैंक -
भारतीय रिजर्व बैंक सभी वाणिज्यिक बैंको, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको और सहकारी के लिये एक बैंकर के रूप में कार्य करता है। इसका संबंध तभी स्थापित हो जाता है जैसे ही बैंक का नाम भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल हो जाता है। ऐसे बैको को अनुसूचित बैंक कहा जाता है जो रिजर्व बैक से पुनर्वित्त की सुविधा का लाभ उठा सकते है। 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक के उदघाटन के समय वाणिज्यिक बैको का वर्गीकरण अनुसूचित व गैर अनूसूचित में किया गया । इसका उद्देश्य रिजर्व बैक और वाणिज्यिक बैंक के बीच में सुदृढ़ वित्तीय सम्बन्ध स्थापित करना था। इस प्रकार इस अधिनियम के अन्र्तगत बैको को अनुसूचित बैको की सूची में शामिल करने के लिय कुछ शर्ते रखी गयीं । 1966 से राज्य सहकारी बैंको को भी अधिनियम के दूसरी अनूसूची में शामिल कर लिया गया है। 1975 से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको की स्थापना अनुसूचित बैंको में की गयी। सार्वजनिक क्षेत्रों के बैको (स्टेट बैंक समूह सहित) को केन्द्र सरकार द्वारा अनुसूचित बैको के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है केन्द्र सरकार के द्वारा अनुसूचित बैको की श्रेणी के अन्र्तगत सम्मिलित हैं-- वाणिज्यिक बैंक-भारतीय और विदेशी
- राज्य सहकारी बैंक और
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ।
- चुकता पूंजी और भण्डार कुल मूल्य के 5 लाख से कम नही होना चाहिए ।
- इसे रिजर्व बैक को संतुष्ट करना होगा कि यह अपनी कार्यवाहियों को तरीके से अंजाम नहीं देगा जिससे जमाकर्ताओं के हितों को हानि पहुंचे।
- यह
- एक राज्य सहकारी बैक;
- कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्र्तगत कंपनी के रूप में परिभाषित;
- केन्द्रिय सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित एक संस्था, या
- भारत से बाहर किसी भी जगह पर लागू कानून के तहत निगमित निगम या कम्पनी होनी चाहिए। दूसरी अनुसूची में बैंक का नाम शामिल करने से पहले, रिजर्व बैंक की संतुष्टि के लिये बैंक को दो शर्तो को पूरा करना होगा
2. जमाकर्ताओ का हित :-रिजर्व बैंक संतुष्ट होना चाहिये कि बैंक जमाकर्ताओं के हितो के विरूद्ध किसी भी प्रकार का कार्य नहीं करेगा। बैंक के काम करने के सभी पहलुओं की पूरी तरह विस्तृत जॉच की आवश्यकता होती है और अंतत: जमाकर्ताओं के हितों के लिये रिजर्व बैंक, बैंक के विभिन्न पहलुओं पर जैसे प्रबंधन की गुणवत्ता, निवेश एवं अग्रिमों की सुरक्षा वित्तीय सुदुढता आदि के संबंध में अपनी राय रखती है।
तरल सम्पत्ति के रखरखाव से संबंधित वैधानिक आवश्यकताओं को बदल कर क्रेडिट पर नियंत्रण रखता है । बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अनुसार, हर बैकिंग कम्पनी के लिये आवश्यक है कि वह भारत में नकद, सोना या भार रहित अनुमोदित प्रतिभूतियों को कारोबार के किसी भी दिन, 25 प्रतिशत की शुद्व मांग व समय देनदारियो से कम न हो। इसे वैधानिक चलनिधि अनुपात (एस0एल0आर0) कहा जाता है। रिजर्व बैक इसे 40 प्रतिशत तक बढाने के लिये सशक्त है । सांविधिक तरलता अनुपात को बढाकर , रिजर्व बैक अन्य बैंको को तरल सम्पत्ति के जमा देनदारियों के एक बडे अनुपात को विशेश रूप से सरकारी व अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाये रखने के लिये मजबूर करता है, जिससे इस प्रकार बैको के ऋण सक्षम संसाधनो को तदनुसार कम किया जा सके। वर्तमान में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैको को 30 सितम्बर 1994 को बकाया जमा देनदारियों पर 31.8% दर से एवं इस तारीख के बाद जमा की गई धनराशियों पर 25 प्रतिशत की दर से एस0एल0आर0 बनाये रखना आवश्यक है जो कि वृद्विषील है।
बैंकिग विनियमन अधिनियम, 1948 की धारा 21 के अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक बैकिंग कम्पनियों को निर्देश जारी करने के लिये सशक्त किया गया है एवं निर्देश जारी करता है कि रिजर्व बैंक सशक्त है कि उनके द्वारा पालन किये गये अग्रिम के सम्बंध में नीति का निर्धारण करें। इन निर्देषों निम्न से संबंधित हो सकते हैं-
4. रिजर्व बैंक और वाणिज्यिक बैंकों के बीच सम्बंध -
भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक और अनुसूचित वाणिज्यिक बैको के बीच बहुत करीब और विविध प्रकृति का सम्बंध होता है।- बैंकों का पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण करने के प्राधिकारी के रूप में -बैंकिग विनियमन अधिनियम 1948 भारतीय रिजर्व बैक को बैंकिग कम्पनियों पर पर्यवेक्षण व नियंत्रण करने के लिये व्यापक अधिकार प्रदान करता है जो है:-
- बैंकिंग कम्पनियों को लाईसेंस धारा 22 के अनुसार भारत में बैकिंग कारोबार करने के लिये हर कम्पनी को भारतीय रिजर्व बैक से लाइसेंस प्राप्त करने की जरूरत है। इसके लिये रिजर्व बैक को बैंकिंग कम्पनियो की किताबों का निरीक्षण करने का अधिकार प्राप्त है और अगर वह संतुष्ट है तो लाइसेंस जारी कर सकती है, इन शर्तो पर :-
- कम्पनी वर्तमान या भविष्य में ऐसी परिस्थिति में हो कि वह वर्तमान या भविष्य जमाकर्ताओं के दावों को पूरी तरह अर्जित कर सके।
- अपने वर्तमान या भविष्य जमाकर्ताओं के हितों के लिये हानिकारक तरीके में कार्य करने की कम्पनी को कोई सम्भावना न हो।
- कम्पनी के प्रस्तावित प्रबंधन का सामान्य चरित्र जनता के हित में या जमाकर्ताओं के हित में हानिकारक नही होगा।
- कंपनी के लिये पर्याप्त पूंजी संरचना और कमाई की संभावनाएं हो।
- भारत में बैंकिग व्यापार करने के लिये कम्पनी को लाइसेंस जारी किया जाये जो कि सार्वजनिक हित में हो।
- यह कि बैंकिंग कम्पनी को लाइसेस दिया जाना बैंकिंग तंत्र के संचालन एवं समग्रता के विरूद्व नहीं होगा।
- भारत में ऐसे बैको द्वारा बैंकिग व्यापार करने के लिये जनता के हित को ध्यान में रखा जाना चाहिये ।
- जिस सरकार या राष्ट्र के विधान के अन्तर्गत इसका गठन किया गया हो वह भारतीय बैंकिंग कम्पनियों के साथ कोई भेदभाव न रखती हों।
- कम्पनी ऐसी सभी कम्पनियों के लिये लागू कम्पनी अधिनियम के सभी प्रावधानों का अनुपालन करती हों।
5. बैंकिग कम्पनियों का निरीक्षण करने की शक्ति -
धारा 35 के तहत, रिजर्व बैंक या तो खुद से पहल करके या केन्द्रीय सरकार के कहने पर किसी भी बैकिंग कम्पनी व उसकी पुस्तको व खातों का भी निरीक्षण कर सकता है। यदि रिजर्व बैंक की निरीक्षण आख्या पर केन्द्र सरकार यह विचार करती है कि कम्पनी की कार्यप्रणाली उसके जमाकर्ताओं के हितों के विपरीत है,तब यह कम्पनी को नई जमाराशियों को लेने से निशिद्व कर सकती है या रिजर्व बैंक को कम्पनी का व्यापार समेटने के लिये लिखित रूप में निर्देषित कर सकती है।6. निर्देश देने की शक्ति -
धारा 35 ए रिजर्व बैंक को निर्देश देने की शक्तियॉ प्रदान करता है जिसके अनुसार बैंकिंग कम्पनी या कम्पनियॉ जनता के हित में या बैंकिंग नीतियों के हित में ही कार्य करें एवं भारतीय रिजर्व बैंक बैंकिंग कम्पनियों को जमाकर्ताओं के हितो के विरूद्व कार्य करने से रोकने या बैकिंग कम्पनी के हित के विपरीत कार्य करने से रोकने के लिये निर्देषित कर सकती है तथा बैंकिंग कम्पनी को सुनिश्चित ढंग से प्रबंधन करने के लिये भी निर्देषित कर सकती है। धारा 36 रिजर्व बैंक को शक्ति देता है कि वह बैकिंग कम्पनियों को किसी भी प्रकार के विशेष लेन-देन में प्रवेश करने पर चेतावनी दे सकती है या निशेध कर सकती है और सामान्यत: किसी भी बैंकिंग कम्पनी को सलाह दे सकता है। यह बैंको को सुचारू रूप से कार्य करने के लिये निर्देश देने का आदेश भी पारित कर सकता है।7. शीर्ष प्रबंधन पर नियंत्रण -
भारतीय रिजर्ब बैंक को बैंको के शीर्ष प्रबंधन पर सम्पूर्ण नियंत्रण रखने के लिये व्यापक शक्तियां प्राप्त है। बैंकिंग कम्पनी के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक, प्रबंधक या मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति या नियुक्ति के समापन के सम्बंध में रिजर्व बैक से पूर्व अनुमोदन लेना आवश्यक है। धारा 36 ए भारतीय रिजर्व बैंक को शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी भी बैंक के कार्यालय से अध्यक्ष , निदेशक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी या अन्य अधिकारी या बैक के कर्मचारी को आवश्यक या अवॉछनीय समझने पर हटा सकता है। एवं उस हटाये हुये व्यक्ति के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है। रिजर्व बैक बैंकिग नीति के हित में या सार्वजनिक हित में या बैंक और उसके जमाकर्ताओं के हित में आवश्यक समझे तो बैको के निदेशक मंडल में एक या अधिक अतिरिक्त निदेशक को नियुक्त कर सकता है,।8. क्रेडिट के नियंत्रक के रूप मे -
भारतीय रिजर्व बैक निम्न तरीको से वाणिज्यिक बैको द्वारा प्रदान क्रेडिट पर नियंत्रण रखता है :-तरल सम्पत्ति के रखरखाव से संबंधित वैधानिक आवश्यकताओं को बदल कर क्रेडिट पर नियंत्रण रखता है । बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अनुसार, हर बैकिंग कम्पनी के लिये आवश्यक है कि वह भारत में नकद, सोना या भार रहित अनुमोदित प्रतिभूतियों को कारोबार के किसी भी दिन, 25 प्रतिशत की शुद्व मांग व समय देनदारियो से कम न हो। इसे वैधानिक चलनिधि अनुपात (एस0एल0आर0) कहा जाता है। रिजर्व बैक इसे 40 प्रतिशत तक बढाने के लिये सशक्त है । सांविधिक तरलता अनुपात को बढाकर , रिजर्व बैक अन्य बैंको को तरल सम्पत्ति के जमा देनदारियों के एक बडे अनुपात को विशेश रूप से सरकारी व अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाये रखने के लिये मजबूर करता है, जिससे इस प्रकार बैको के ऋण सक्षम संसाधनो को तदनुसार कम किया जा सके। वर्तमान में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैको को 30 सितम्बर 1994 को बकाया जमा देनदारियों पर 31.8% दर से एवं इस तारीख के बाद जमा की गई धनराशियों पर 25 प्रतिशत की दर से एस0एल0आर0 बनाये रखना आवश्यक है जो कि वृद्विषील है।
बैंकिग विनियमन अधिनियम, 1948 की धारा 21 के अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक बैकिंग कम्पनियों को निर्देश जारी करने के लिये सशक्त किया गया है एवं निर्देश जारी करता है कि रिजर्व बैंक सशक्त है कि उनके द्वारा पालन किये गये अग्रिम के सम्बंध में नीति का निर्धारण करें। इन निर्देषों निम्न से संबंधित हो सकते हैं-
- अग्रिम बनाने या न बनाये जाने का उद्देश्य।
- सुरक्षित अग्रिम के सम्बंध में मार्जिन बनाये रखना।
- किसी भी उधारकर्ता को दी गयी अग्रिम की अधिकतम राशि ।
- बैंकिग कम्पनी द्वारा किसी भी फर्म, कम्पनी इत्यादि के द्वारा ली गयी अधिकतम राशि की गारंटी, और
- अग्रिम देने के लिये ब्याज दर और अन्य शर्ते।
9. बैको के लिये बैंकर के रूप में -
बैको के लिये बैकर के रूप में, रिजर्व बैक ऋणदाता के रूप में कार्य करता है और निम्न रूपों में अनुसूचित बैको को अनुदान दे सकता है।- योग्य बिलों को पुन: रियायत करना या खरीद करना।
- निश्चित प्रतिभूतियों के विरूद्व ऋण व अग्रिम प्रदान करना
(अ) बिलों पर पुन: छूट :- धारा 17(2) के अनुसार बिलों की श्रेणियो पर रिजर्व बैक से पुन: छूट ली जा सकती है।
- वाणिज्यक बिल:-वाािज्यिक विल की उत्पत्ति वाणिज्यिक या व्यापार लेन-देन से होती है। यह भारत में देय होना चाहिए व खरीद या छूट की तारीख से 90 दिनो के भीतर परिपक्व हो जाना चाहिए। अगर भारत से वस्तुओं का निर्यात होता है तो परिपक्वता की अवधि को 180 दिनो की अवधि के अन्दर लेन-देन करना होता है। यह जरूरी है कि बिल पर दो या दो से अधिक हस्ताक्षर हो जिनमे एक अनुसूचित बैक या राज्य सहकारी बैक शामिल हो।
- कृषि कार्यो के वित्त पोशण के लिये बिल:- इस तरह के बिल तब जारी किये जाते है जब मौसमी कृषि संचालन के लिये वित्त या फसलो के विपणन खरीद या पुन: छूट की तारीख से 15 महीने के अन्दर परिपक्व होना हो। इन्हे भारत में दर्शाया व देय होना चाहिये व दो या दो से अधिक हस्ताक्षर जिनमे एक अनुसूचित बैक या राज्य सहकारी बैक सहित हो।
- लघु उघोगो को वित्त उपलब्ध कराने के लिये बिल - इस बिल को लाने का उद्वेष्य कुटीर एवं लघु उघोगो में उत्पादन व विपणन गतिविधियो के लिये वित्त उपलब्ध कराना है जो कि रिजर्व बैक द्वारा अनुमोदित हो व छूट की तारीख से 12 महीने के अन्दर परिपक्त हो। भारत मे देय हो व दो या दो से अधिक हस्ताक्षर हो जिनमे राज्य सहकारी बैक या राज्य वित्त निगम शामिल हो और बिल का मूलधन व उस व्याज के भुगतान की गारंटी राज्य सरकार देती है।
- सरकारी प्रतिभूतियों में व्यापार करने के लिये विधेयक-इस तरह के बिल पर अनुसूचित बैक के हस्ताक्षर होने चाहिए व खरीद या पुन: छूट की तारीख से 90 दिन के भीतर परिपक्व होना चाहिए और भारत मे देय हो।
- विदेशी बिल - इस तरह के बिल तब बनते है जब भारत से वस्तुओं का निर्यात होता है और 180 दिनो के भीतर परिपक्त होता है। ऐसा बिल भारत से बाहर किसी ऐसे देश के नाम निर्गत होना चाहिये जो अन्र्तराश्ट्रीय मुद्रा कोश का सदस्य हो। अगर बिल भारत से वस्तुओं के निर्यात से सम्बंधित नही है तो परिपक्वता की अवधि 90 दिन हो जायेगी। यह ध्यान रखना चाहिए कि वह बिल पुन: छूट के पात्र हो उनके निष्चित परिपक्वता हो। पुन: छूट के बिलो की प्रथा को प्रोत्साहित करने के लिये, रिजर्व बैक ने 1 नवम्बर 1971 से पुन: छूट योजना लागू की है। भारतीय रिजर्व बैक (संशोधन) अधिनियम, 1974 लागू होने के बाद, विनिमय पत्रों में श्रेणियां आती है उपरोक्त (i),(ii),(iii) और किसी भी वित्तीय संस्था के हस्ताक्षर जो कि मुख्य रूप से विनिमय पत्रों की छूट पर स्वीकृति और वचन पत्रों और इस सम्बंध में रिजर्व बैक से मंजूरी प्राप्त है जो कि पुन: छूट के लिये भी पात्र होगा।
- स्टाक , फंड या प्रतिभूतियों (अचल सम्पत्तियों के अलावा) जिसमे एक न्यासी अधिकृत है न्यास धन को निवेश करने के लिये।
- समान स्वामित्व के सोने या चॉदी या दस्तावेज
- इस तरह के विनिमय पत्र और वचन पत्र, रिजर्व बैक से खरीदने या पुन: छूट (ऊपर वर्णित) के लिये पात्र है और मूलधन व ब्याज के पुर्नभुगतान के लिये राज्य द्वारा गारंटी दी जाती है।
- वस्तुओं के स्वामित्व के दस्तावेजो द्वारा समर्थित किसी भी अनुसूचित बैक या सहकारी राज्य बैक के वचन पत्र, (इस तरह के दस्तावेजो का स्थानान्तरण, सुपुर्दगी या किसी अन्य बैक को ऋण के लिये सुरक्षा का वचन देना या वाणिज्यिक या व्यापार के लिये वास्तविक अग्रिम उपलब्ध कराना या कृषि प्रयोजन के लिये वित्तपोशण या फसलो का विपणन)। धारा 17 (3-A) 1962 में सम्मिलित की गयी थी जो बैको को सक्षम बनाती है रिजर्व बैक से आसान शर्तों पर सुरक्षित समायोजन के लिए निर्यात वित्त के सम्बंध में जो भारतीय रिजर्व बैक प्रदान करता है। भारतीय रिजर्व बैक वचन पत्र के बदले ऋण और अग्रिम किसी भी अनूसुचित बैक को दे सकता है अगर मॉग पर वचन पत्र प्रतिदेय हो या 180 दिन की समय सीमा से अधिक न हो। उधार लेने वाला बैंक यह लिखित रूप में धोशणा प्रस्तुत करें :-
- यह इन विनिमय पत्रों को धारण करेगा जिनकी उत्पत्ति भारत से वस्तुओं के निर्यात से सम्बंधित लेन-देन से होती है, जो कि भारत में और भारत के बाहर देश के किसी भी स्थान से जो कि आई0एम0एफ0 का सदस्य होया रिजर्व बैक द्वारा अधिसूचित हो में लिखित हैं और ऋण व अग्रिम की तारीख से 180 दिनों में परिपक्व हों। उधार लेने वाला बैंक रिजर्व बैक से ली गयी ऋण राशि के बराबर मूल्य के बिल अपने पास रखेगा एवं उन्हें अपने पास तब तक बनाए रखेगा जब तक बकाया ऋण की राशि का कीमत तक का ऋण चुकता न कर दिया जाये।
- यह भारत में निर्यातक या किसी अन्य व्यक्ति को भारत से वस्तुओं के निर्यात के लिये सक्षम बनाने के लिए पूर्व षिपमेन्ट ऋण या अग्रिम प्रदान करेगा। इस तरह के ऋण की राशि बैंक द्वारा रिजर्व बैक से उधार ली गयी राशि से कम नही होना चाहिये। इस प्रावधान को प्रभावी करने के लिये भारतीय रिजर्व बैक ने मार्च 1963 में निर्यात बिल क्रेडिट योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना और विदेशी बिल में छूट में मुख्य अन्तर यह है पूर्व के मामले में बैको को विदेशी बिल रिजर्व बैक से विवर (lodge) करने की आवश्यकता नही (जो कि पुन: छूट के तहत आवश्यक है)। उन्हे सिर्फ घोषणा कर देनी चाहिये कि वह ऋण की राशि के बराबर बिल धारण कर चुके है। एक नयी उप धारा 3 ब भारतीय रिजर्व बैक अधिनियम (संशोधन) 1974 द्वारा स्थापित की गई। इस उपधारा के तहत भारतीय रिजर्व बैक किसी भी अनुसूचित बैक या राज्य सहकारी बैक को ऋण या अग्रिम देता है ऐसे बैको के बचन पत्रो के विरूद्व जो मॉग पर प्रतिदेय हो या तय अवधि के भीतर जो कि 180 दिनो से अधिक न हो। उधार लेने वाले बैक के लिये यह लिखित में घोषणा करना आवश्यक है कि के लिए ऋण और अग्रिम किया गया है-
- सद्भावनापूर्ण व्यवसायिक या व्यापार लेन-देन या
- वित्तपोशक कृशि संचालन या फसलो के विपणन या अन्य कृषि के उद्वेष्यो की उद््घोशणा के लिये । इस घोषणा के अन्र्तगत अन्य विवरण भी शामिल होगे जो रिजर्व बैक को आवश्यक हो।
- किसी भी ऐसे विनिमय पत्र या वचनपत्र के खरीद, बेचने या रियायत करने की, जो कि धारा 17 के अन्र्तगत भारतीय रिजर्व बैक द्वारा खरीद या रियायत के लिये पात्र न हो ।
- ऋण और अग्रिम प्रदान करने के लिये
- राज्य सहकारी बैक को या
- राज्य सहकारी बैक की सिफारिश पर पंजीकृत सहकारी समिति जो कि राज्य सहकारी बैक के क्षेत्र के भीतर हो या
- किसी अन्य व्यक्ति, मॉग पर प्रतिदेय या निर्धारित अवधि की समाप्ति पर जो 90 दिनो से अधिक न हो, इस तरह के नियम व शर्तो पर बैक विचार कर सकता है।
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