अनुक्रम
जीवन बीमा की संविदा से अभिप्राय भविष्य में होने वाली ऐसी विनिर्दिष्ट घटना से संरक्षा प्रदान करना होता है जो अनिश्चित होती हैं। ऐसे विनििदृष्ट घटना से आस्तियों (Asscites) को पहुंचने वाली क्षतियों से संरक्षा प्रदान करना तथा विनिर्दिष्ट घटनाओं से होने वाली हानियों की भरपाई करना होता है एवं विनिर्दिष्ट घटनाओं के कारण नष्ट अस्तियों का पुनर्निर्माण करने हेतु बीमादार एवं बीमाकर्ता के बीच लिखित एक दस्तावेज रूपी समझौता होता है।
जीवन बीमा की परिभाषा
जीवन बीमा संविदा वह संविदा है जिसमें एक पक्षकार (बीमाकर्ता) को एक निश्चित प्रतिफल के बदले में बीमादार की मृत्यु होने या निश्चित अवधि बीतने पर बीमादार अथवा उसके द्वारा नियति व्यक्ति को बीमित राशि देने का दायित्व ग्रहण करता है।जीवन बीमा के आवश्यक तत्व
जीवनबीमा की प्रसंविदा विधि रूप में तभी विधिपूर्ण होगी जब इसमें संविदा अधि0 1972 के सभी आवश्यक तत्व उपस्थित होगे (धारा-10)। जीवनबीमा की संविदा में साधारण संविदा की तरह नियमों का अनुपालन करना होगा-- बीमा की प्रस्थापना वैध रूप में होनी चाहिए इसके लिये बीमा कराने के इच्छुक व्यक्ति बीमादाता द्वारा निर्धारित प्रस्ताव पत्र को भरकर अपना प्रस्ताव देना होता है।
- जीवन बीमा के प्रस्थापना का प्रतिग्रहण-शर्तरहित होनी चाहिए। बीमादाता इसके लिये एक निर्धारित स्वीकृति पत्र द्वारा अपनी स्वीकृति सूचित करता है। इस स्वीकृति पत्र में यह स्पष्ट कर दिया जाता कि बीमा कब से प्रारम्भ होगा।
- जीवन की संविदा में दोनों पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति (Free Consent) होनी चाहिये। एवं दोनों पक्षकारों में संविदा करने की वैध सक्षमता होनी चाहिये।
- जीवन बीमा की संविदा में विधिपूर्ण उ्देश्य विधिपूर्ण प्रतिफल द्वारा प्रतिबन्धित नहीं होना चाहिये।
- जीवन बीमा की संविदा किसी विधि द्वारा प्रतिबन्धित नहीं होना चाहिये।
जीवन बीमा की प्रकृति
प्रकृति-जीवन बीमा की संविदा की प्रकृति में जीव बीमा की संविदा में संविदा की प्रकृति बीमित घटना पर आधारित होती है जो दो भागों में विभाजित कर सकते हैं 1. स्वत: जीवन में, 2. दूसरे जीवन में।1. स्वत: जीवन में - एक व्यक्ति अपने जीवन में बीमित घटना आयोप्य हित रखता है वह सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में आगोप्य हित रखता है। यदि ऐसा मान लिया जाय कि जीवन को बीमित करने से वह अपनी सम्पत्ति की रक्षा कर सकता है जिससे असामयिक मृत्यु के कारण भविष्य में प्राप्त होने वाले लाभ और बचत की हानि हो सकती है साथ ही साथ चूंकि इसकी कोई सीमा नहीं है बीमित व्यक्ति आगोप्य हित की भी कोई सीमा नहीं है। इसलिए जीवन में बीमित घटना में आगोप्य हित की कोई सीमा नहीं है परन्तु
बीमा कम्पनी कुछ दशाओं में काफी सतर्क रहती है और असीमित रकम तक बीमा निर्गमित नहीं किया जा सकता। जहां पर उसकी आय और बीमा की रकम में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है वहां पर बीमा कम्पनी पर्याप्त जांच पड़ताल करती है। स्वास्थ्य, उद्देश्य और सम्पत्ति आदि को देखते हुए बीमापत्र निर्गमित किये जाते हैं। बीमाकर्ता की रकम तथाा अवधि इन बातों पर आधारित है। जीवन बीमा में प्रव्याजि की रकम कोई भी दे सकता है।
2. दूसरे जीवन में - दूसरे के जीवन में बीमित घटना आगोपय हित दो प्रकार से होता है-1. वह दशा जिसमें यह मान लिया जाता है कि आगोप्य हित मौजूद है, 2. वह दशा जिसमें आगोप्य हित के प्रमाण देने की आवश्यकता है। जीवन बीमा की संविदा की प्रकृति भारतीय संविदा अधि0 1872 की धारा 10 पर पूर्णत: आधारित है क्योंकि भारतीय संविदा की प्रकृति पक्षकारों के बीच करारों को जो पूर्णत: विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो सके उसी भांति जीवन बीमा की संविदा भी होती है। वह संविदा जो अधिनियम द्वारा प्रवर्तनीय कराये जा सके अर्थात बीमादार एवं बीमाकर्ता के बीच ऐसी कोई भी संविदा होगी जो विधि द्वारा प्रर्वतीय न कराये जाय क्योंकि संविदा की प्रकृति शून्य एवं शून्यकरणीय संविदा आधारित होता है। वैसे ही जीवन बीमा की संविदा की भी प्रकृति शून्य एवं शून्यकरणीय संविदा पर आधारित होगा। जीवनबीमा की संविदा की प्रकृति संविदा के सामान्य सिद्धान्त एवं विशिष्ट संविदा के सिद्धान्त पर आधारित है यदि सामान्य सिद्धान्त के विरुद्ध विशिष्ट सिद्धान्त के विरुद्ध संविदा की जाती है तो वह शून्य एवं शून्करणीय होगी।
3. सन्तान हेतु व्यवस्था- बच्चों की उच्च शिक्षा या कन्या के विवाह का जब समय आता है तब रुपयों की समस्या खड़ी होती है। चालू आय में से इसके लिए व्यवस्था कर सकना सबके लिए सहज या सरल नहीं हो सकता। पहले ही बचत द्वारा इसके लिए प्रबंध करना होता है, किन्तु यदि परिवार के कर्ता-धर्ता की अल्पायु में मृत्यु हो जाए तब ऐसी बचत से काम नहीं चल सकता। इसलिए सन्तान की शिक्षा, विवाह आदि की व्यवस्था के लिए जीवन बीमा बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसके लिए विशेष प्रकार की जीवन बीमा पॉलिसी ली जाती है जिसके अन्तर्गत समय आने पर कम्पनी शिक्षा के लिए किस्तों में और विवाह के लिए एकमुश्त रकम दे देती है। यदि इसी बीच बीमादार की मृत्यु हो जाए तब प्रीमियम नहीं देना पड़ता और नियत समय पर बीमा की रकम प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार जीवन बीमा द्वारा मृत्यु की जोखिम संवृत्त हो जाती है, सन्तान का भविष्य सुरक्षित हो जाता है और उनके लिए एक निश्चित धनराशि संचित हो जाती है।
जीवन बीमा के क्षेत्र
जीवन बीमा की संविदा का क्षेत्र विस्तृत है क्योंकि आधुनिक व्यवसाय में जीवन बीमा का सर्वोच्च स्थान इसकी व्यापकता, विस्तार क्षेत्र और महत्व का मूल रहस्य यह है कि इसका मानव जीवन में प्रत्यक्ष एवं घनिष्ठ सम्बन्ध है और सुरक्षा साधन के रूप में यह बहुत आवश्यक, उपयोगी और हितकर सिद्ध हुआ है। जीवन बीमा संविदा क्षेत्र मुख्यत: है-1. सुरक्षा साधन के रूप में जीवन बीमा-
सुरक्षा साधन के रूप में जीवन बीमा की संविदा का क्षेत्र अतिव्यापक है क्योंकि जीवन बीमा की संविदा के क्षेत्र में पारिवारिक सुरक्षा-सन्तान हेतु व्यवस्था, वृद्धावस्था की व्यवस्था, व्यावसायिक सुरक्षा, सम्पदा कर की व्यवस्था, जीवन बीमा बनाम धनसंचय और निवेश के रूप में जीवन बीमा और निवेश संस्था के रूप में जीवन बीमा तथा जीवन बीमा के अन्य सम्मिलित है:-
2. पारिवारिक सुरक्षा- जीवन बीमा मृत्योपरांत पारिवारिक सुरक्षा का अनुपम साधन है। परिवार का कर्ता-धर्ता अपने जीवन का बीमा कराकर यह प्रबंध कर लेता है कि उसकी मृत्यु हो जाने पर उसके आश्रितों के लिए आर्थिक व्यवस्था हो जाए। अत:
.’जीवन बीमा पारिवारिक सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था है। परिवार के भविष्य के लिए चिन्तित बीमादार को जीवन बीमा निश्चितता देता है और उसे आश्वस्त करता है कि उसके न रहने पर भी परिवार के लोग असहाय या पराश्रित नहीं रहेंगे, क्योंकि उन्हें आर्थिक संकट से सुरक्षा मिल जाएगी। जीवन बीमा एक निश्चित मूल्य की सम्पदा है जो बीमा कराते ही उत्तराधिकारियों के लिए निर्मित हो जाती है।
4. वृद्धावस्था की व्यवस्था - दीर्घजीवी होने पर आर्थिक संकट उपस्थित हो सकता है। ऐसे सौभाग्यशाली लोग बहुत कम होंगे जिन्होंने अपनी कमाई से इतना धन संचित किया हो जिससे बुढ़ापा सुख-सुविधा से कट सके। वृद्धावस्था में मनुष्य कार्य-निवृत्त होकर शान्ति और सुख से रहना चाहता है। यह थकान की उम्र होती है। इस उम्र में सामान्यतया आयोपार्जन-शक्ति समाप्तप्राय होती है। इसके अतिरिक्त, दीर्घजीवी होने पर अस्वस्थता की जोखिम रहती ही है क्योंकि इन्द्रियां धीरे-धीरे शिथिल होती जाती हैं और रोग व्याधि से संघर्ष करने की शारीरिक शक्ति क्षीण होने लगती है। यदि ऐसे समय आय का कोई साधन न हो तब उसे औरों के सहारे सहना होगा, जो बुढ़ापे की अत्यन्त दयनीय स्थिति होती है। इसलिए वृद्धावस्था के लिए नियमित आय की योजना पहले से बना लेनी चाहिए। इसके निमित्त जीवन बीमा बड़ा उपयोगी और व्यावहारिक होता है। जीवन बीमा बुढ़ापे की लकड़ी है। इसके लिए नियमित आय की व्यवस्था करके निश्चित रहा जा सकता है।
5. व्यावसायिक सुरक्षा - व्यावसायिक कार्य-कलाप में केवल सम्पत्ति बीमा या दायित्व बीमा की विभिन्न प्रणालियों का ही महत्व नहीं है वरन् जीवन बीमा भी उपयोगी पाया गया है। व्यावसायिक सुरक्षा की व्यवस्था जीवन बीमा द्वारा अनेक प्रकार से की जाती है। जो इस प्रकार है-
7. जीवन बीमा बनाम धन संचय - सुरक्षा की व्यवस्था के लिए यदि नियमित रूप से बचत करके धन का संचय करते रहा जाए तब जीवन बीमा से लाभ क्या है? यह जीवन बीमा का महत्व न जानने वाले प्राय: ही पूदते हैं। उनका मुख्य तर्क यह होता है कि पारिवारिक सुरक्षा, सन्तान के भविष्य और वृद्धावस्था की आर्थिक व्यवस्था तो बचत की योजना द्वारा भी सुनिश्चित की जा सकती है इसलिए जीवन बीमा की कोई आवश्यकता नहीं है। इस तर्क में बीमा की वास्तविक प्रकृतिक की जानकारी का स्पष्ट अभाव प्रकट होता है। इस प्रकार में तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है।
1. जीवन बीमा व्यक्तियों को चिन्ता विमुक्त बना देता है-
बीमा खरीदने से लोग आने वाली कठिनाइयों के प्रति निश्चित हो जाते हैं। उन्हें वृद्धावस्था, अपंगता और रोजगार हानि की चिन्ता कम हो जाती है, क्योंकि वृद्धावस्था में या अधिक दिन जीवित रहने पर होने वाली हानियों को पूरा करने के लिए बीमादाता एक निश्चित रकम देता है। जब व्यक्तियों को यह मालूम रहे कि उनके मरने के बाद बच्चों और स्त्रियों के लिए कुछ रकम मिल जायेगी तो निश्चत होकर अपना कार्य करेंगे। साथ ही ज्यादा दिन जीवित रहने पर होने वाली आर्थिक कठिनाइयों के प्रति निश्चित रहने से वर्तमान आय को अपने ऊपर स्वास्थ्य-वृद्धि के लिए ज्यादा खर्च कर सकते हैं। लेकिन बीमा करा लेने से इस कठिनाइयों का सामना किया जाता है। और मनुष्य को निश्चित होकर कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। इसलिए यह कहा गया है कि पर्याप्त रकम काबीमाहोने से बीमापत्रधारी को बीमा अच्छा, भोजन, गहरी निद्रा, वास्तविक आत्म-सन्तोष और कार्य करने का प्रोत्साहन प्रदान करता है।
1. महत्वपूर्ण कर्मचारी का बीमा-महत्वपूर्ण कर्मचारी से तात्पर्य ऐसे कर्मचारी से है, जिसका मृत्यु या अयोग्यता पर व्यापार को गम्भीर क्षति होती है तथा उस क्षति को पूरा करने में काफी समय लगता है। यह भी अन्य सम्पत्तियों की तरह से एक मूलयवान सम्पत्ति है, जिसके ऊपर व्यापार की आय निर्भर है। उसकी पूंजी, शक्ति, प्रावैधिक ज्ञान, अनुभव, योजना बनाने की शक्ति एवं कार्यरूप देने की योग्यता उसे एक मूल्यवान सम्पत्ति बना देते हैं।
1. साधारण आजीवन बीमा की संविदा (Ordinary whole life policy)- यह प्रसंविदा ही आजीवन बीमा का मुख्य रूप है। इस पॉलिसी को प्राय: मृत्योपरान्त सम्पदा कर (Estate Duty) का भुगतान करने या पारिवारिक सुरक्षा की व्यवस्था के उद्देश्य से लिया जाता है। इसमें बीमादार को नियमित रूप से तब तक प्रीमियम देते रहना पड़ता है जब तक वह जीवित रहे। इस पॉलिसी की प्रीमियम दर सबसे कम होती है। किन्तु जीवन भर प्रीमियम देते रहने पर बोझ दीर्घजीवियों के ऊपर बहुत अधिक हो सकता है। इसी कारण मनोवैज्ञानिक आधार पर इस पॉलिसी के प्रति बहुधा लोग आकर्षित नहीं होते यद्यपि मृत्योपरान्त पारिवारिक सुरक्षा की दीर्घकालिक बीमा योजना के रूप में यह सबसे सस्ती पॉलिसी है।
2. सीमित संदाय आजीवन पॉलिसी (Limited Payment whole life policy)- जो बीमादार अपनी आजीवन पॉलिसी का भुगतान 70 वर्ष या इससे कम आयु तक सीमित रखना चाहता हो उसके लिए यह पॉलिसी है। इसमें प्रीमियम अदा करने की एक निश्चित अवधि चुन ली जाती है, प्रीमियम अदा करने का दायित्व उसी चुनी हुई अवधि तक सीमित रहता है। इसकी प्रीमियम दर साधारण आजीवन पॉलिसी की दर उतनी ही अधिक होगी। सीमित संदाय आजीवन पॉलिसी का एक रूप है ‘एकमुश्त आजीवन पॉलिसी’ (Single Premium Whole Life Policy)। इस बीमादार बीमा कराते समय पॉलिसी के समस्त प्रीमियमों को एकमुश्त अदा कर देता है और भविष्य में उसे प्रीमियम की कोई किस्त जमा नहीं करनी होती।
3. परिवर्तनशील आजीवन पॉलिसी (Convertible Whole Life Policy)- यह लाभ रहित आजीवन पॉलिसी है जिसमें बीमादार को यह सुविधा दी जाती है कि वह चाहे तो पॉलिसी के चालू होने के पांच वर्षों बाद इसे किसी भी अवधि के लाभ-रहित या लाभ सहित बन्दोबस्ती बीमा में परिवर्तित करा ले। बन्दोबस्ती पॉलिसी में परिवर्तित कराते समय पुन: डाक्टरी परीक्षा नहीं करानी होगी और बीमादार से पिछले पांच वर्ष की प्रीमियम की शेष रकम नहीं ली जाएगी। इसे ‘वैकल्पिक आजीवन पॉलिसी’ (Optional Whole Life Policy) भी कहते हैं। परिवर्तन की तिथि से उसे बन्दोबस्ती बीमा का प्रीमियम देना पड़ेगा। यदि बीमादार इस विकल्प को प्रयुक्त न करें तब यह लाभ-रहित आजीवन पॉलिसी के रूप में चालू रहेगी। यह पॉलिसी उन लोगों के लिए सही है जिन्होंने अभी अपना रोजगार प्रारम्भ किया है और जीवन बीमा कराना चाहते हैं किन्तु अपनी सीमित आय के कारण अपेक्षाकृत ऊँची दर वाला बन्दोबस्ती बीमा नहीं करा सकते, और कुछ वर्षों बाद आय में वृद्धि होने पर बन्दोबस्ती बीमा कराने के इच्छुक हैं। आजीवन बीमा कराने वाले प्राय: परिवर्तनीय आजीवन पॉलिसी ही लेना पसंद करते हैं क्योंकि इसे बन्दोबस्ती पॉलिसी में परिवर्तित कराने की सुविधा रहती है।
1. साधारण बन्दोबस्ती बीमा की संविदा (Ordinary Endowment Insurance Policy)-
साधारण बन्दोबस्ती एक निश्चित अवधि की पॉलिसी है और यही सबसे अधिक प्रचलित है। इसमें प्रीमियम देने का दायित्व बीमा अवधि तक सीमित रहता है, और इस बीच बीमादार की मृत्यु होते ही यह दायित्व समाप्त हो जाता है। बीमा का रूपया पॉलिसी की अवधि पूर्ण जाने पर बीमा की अवधि में मृत्यु होते ही यह दायित्व समाप्त हो जाता है। इस पॉलिसी के अन्तर्गत मृत्योपरान्त आश्रितों की सुरक्षा तथा जीवित रहने पर वृद्धावस्था के जीवन-निर्वाह दोनो ही के लिए धनराशि का प्रबन्ध होता है। यह पॉलिसी शुद्ध बन्दोबस्ती बीमा और दीर्घकालिक अवधि बीमा का मिश्रित रूप माना जाता है। इसकी प्रीमियम दर आजीवन बीमा पॉलिसी की अपेक्षा ऊंची होती है। इसकी न्यूनतम बीमा राशि बीस हजार रूपए हैं।
2. सीमित संदाय बन्दोबस्ती बीमा की संविदा (Limited Payment Insurnace Endowment Policy)- सीमित संदाय बन्दोबस्त बीमा की संविदा में यदि बीमादार चाहता हो कि बन्दोबस्ती पॉलिसी की अवधि से कम अवधि तक प्रीमियम अदा करके बाद प्रीमियम देने के दायित्व से वह मुक्त हो जाए तब इसके लिए सीमित संदाय बन्दोबस्ती पॉलिसी सही होगी। जैसे 25 वष्र्ाीय बीमादार 35 वर्ष की बन्दोबस्ती पॉलिसी ले रहा है लेकिन प्रीमियम संदाय 20 वर्ष तक करेगा तब ऐसी पॉलिसी के लिए उसे प्रतिवर्ष अपेक्षाकृत आर्थिक प्रीमियम देना होगा किन्तु 20 वर्ष बीत जाने के बाद उसे प्रीमियम नहीं देना पड़ेगा। ऐसी पॉलिसी उन बीमादारों के लिए उपयुक्त होती है जो प्रीमियम अदा करने का दायित्व बीमा अवधि की तुूलना में अपेक्षाकृत कम अवधि का रखना चाहते हैं।
- एक महाजन अपने ऋणी का जीवन बीमा कराकर ऋण की रकम सुरक्षित कर सकता है।
- कोई व्यावसायिक संस्था अपने महत्वपूर्ण कर्मचारी (Key Employee) का जीवन बीमा कराकर उसकी मृत्यु होने पर एक निश्चित रकम प्राप्त करती है और इससे काफी हद तक उस आर्थिक हानि की पूर्ति हो सकती है जो ऐसे अनुभवी, गुणी और योग्य कर्मचारी की मृत्यु के कारण पहुंचती है।
- साझेदारी फर्म में अनेक साझेदारों की पूंजी लगी रहती है। यदि किसी साझेदार की मृत्यु हो जाए तब उसकी पूंजी वापस करने की दशा उपस्थित होने से व्यापार में वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है। किन्तु यदि साझेदारों का संयुक्त जीवन बीमा करा लिया गया हो तब किसी साझेदार की मृत्यु होने पर उसकी पूंजी वापस करने के लिए एक निश्चित रकम बीमा कम्पनी से मिल सकती है, और इस प्रकार व्यवसाय में अस्थिरता या आर्थिक संकट नहीं आने पाता।
- जीवन बीमा पॉलिसी के आधार पर ऋण भी प्राप्त किया जा सकता है। कोई व्यवसायी अपनी जीवन बीमा पॉलिसी की प्रतिभूति पर व्यवसाय के लिए ऋण प्राप्त कर सकता है।
- बचत योजना द्वारा धन संचय की एक सीमा यह भी है कि सभी व्यक्तियों में इतनी इच्छा-शक्ति (will power) नहीं होती कि वे नियमित रूप से बचत की धनराशि संचित करते रहें। लम्बे समय तक ऐसी बचत योजना चलाने के लिए दृढ़ संकल्प चाहिए। फिर बचत द्वारा संचित धन आसानी से खर्च भी कर दिया जाता है, और यह भी देखा गया है कि वह व्यय बहुत आवश्यक प्रयोजन के लिए नहीं होता। किन्तु जीवन बीमा करा लेने की आदत बन जाती है। जीवन बीमा अनिवार्य बचत (compulsory saving) का सुन्दर साधन है। अन्य प्रकार की बचत योजनाओं में ऐसी अनिवार्यता नहीं होती अत: उन पर अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता।
- इसके अतिरिक्त, जीवन बीमा के लिए जो प्रीमियम दिया जाता है उस पर एक निश्चित सीमा तक आय-कर से छूट मिलती है, और बीमित रकम पर भी सम्पदा कर से छूट मिलती है। यह छूट जीवन बीमा को धन संचल के अन्य साधनों की तुलना में अधिक उपयोगी और आकर्षक बनाती है। इन विभिन्न कारणों से जीवन बीमा को आर्थिक सुरक्षा की सर्वोत्तम व्यवस्था माना जाता है।
9. जीवन बीमा के अन्य लाभ-
जीवन बीमा संविदा में कार्यों लाभों के अतिरिक्त जीवन बीमा से अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं, जो हैं-
- कार्यक्षमता-जीवन बीमा व्यक्तियों को चिन्ता-मुक्त करके उनकी दक्षता बढ़ाता है। चिन्ता तो चिंता होती है, यह मनुष्य को घुला देती है। जीवन बीमा कराने से निश्चितता और मानसिक शान्ति मिलती है, आत्म-बल बढ़ता है जिससे मनुष्य अपनी शक्ति का भरपूर प्रयोग करता हुआ अपनी कार्यक्षमता में अपेक्षित वृद्धि कर सकता है।
- मितव्ययिता और बचत- जीवन बीमा मितव्ययिता और बचत को बढ़ावा देता है। बीमादार जानता है कि उसे नियमित रूप से प्रीमियम अदा करते रहना है। इसके लिए उसे बचत करना आवश्यक होता है, क्योंकि प्रीमियम वस्तुत: अनिवार्य व्यय की भांति हो जाता है। इसलिए जीवन बीमा को अनिवार्य बचत का साधन माना जाता है।
- सामाजिक लाभ- जीवन बीमा एक उत्कृष्ट कोटि की सामाजिक सेवा भी है यह परिवारों को विघटित होने बचाता है, आश्रितों को अपने सहारे खड़े होने की शक्ति प्रदान करता है और समाज में दीन, हीन, असहाय और पराश्रित व्यक्तियों की बाढ़ को रोक देता है। इसके अतिरिक्त जीवन बीमा व्यक्तियों में उत्तरदायित्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करता है और आश्रितों के भविष्य को सुरक्षित रखने का भाव जाग्रत करता है, जो समाज के दृष्टिकोण से बड़ा मूल्यवान गुण माना जाना चाहिए।
जीवन बीमा का महत्व
जीवन बीमा संविदा का महत्व पारिवारिक, व्यापारिक एवं अन्य क्षेत्रों में इस प्रकार है-1. पारिवारिक महत्व-
2. बीमा बचत को सम्भव बनाता है-
जीवन बीमा बचत करने के लिए प्रेरित करता है। कुछ लोगों का विचार है कि वे बिना जीवन बीमा के भी बचत कर लेते हैं, परन्तु ऐसे उत्साही एवं अध्यवसायी व्यक्तियों के लिए भी बीमा बचत कर लेते हैं, परन्तु साधारण बचत से सम्भव नहीं है, क्योंकि मृत्यु के कारण ये व्यक्ति बचत नहीं कर पायेंगे, जीवन बीमा मृत्यु होने पर कुछ इच्छित बचत को देता है, चाहे उतना जमा किया गया हो या नहीं। जीवन बीमा के अतिरिक्त अन्य बचत योजनाओं में बचत सम्भव नहीं हो पाता, क्योंकि
बचत करना अनिवार्य नहीं रहता, बचत के लिए लगातार इच्छा नहीं रह पाती, आय की अपर्याप्तता प्रबल होकर सामने दिखाई पड़ती है, बचत का लगातार प्रबन्ध नहीं किया जा सकता, बचत के लिए कोई प्रोत्साहन स्वरूप सूचना नहीं प्राप्त होती और बचत की सुरक्षा का भी प्रश्न उठ सकता है। अत: लगातार बचत करना सम्भव प्रतीत नहीं होता। यदि किसी प्रकार संचय कर भी लिया तो उसका सफलतापूर्वक विनियोग करना है।
3. जीवन बीमा सुरक्षित एवं लाभदायक विनियोग है-
जीवन बीमा में जमा की गयी प्र्रव्याजि सुरक्षित रहती है, उसकी बीमित रकम, समर्पित मूल्य या प्रदत्त मूल्य के रूप में लौटाया जाता है। विशेष रूप से इस विनियोग का लाभ यह है कि जितनी रकम को संचित करना है वह रकम संचित हो जायेगी, चाहे बीमित व्यक्ति की मृत्यु क्यों न हो जाय? अन्य किसी प्रकार के विनियोग में यह सुरक्षा नहीं है। बीमाकर्ता के पास जमा की गयी रकम उचित रूप से लाभदायक प्रतिभूतियों में विनियोजित किया जाता है जिससे लाभ सहित बीमापत्रों पर लाभ भी मिलता रहता है। विनियोजित रकम न केवल उसके लिए ही लाभदायक होती है, बल्कि उसके आश्रितों के लिए भी लाभदायक होगी। उसके आश्रित संचित रकम को वृित्त के रूप में लेकर विनियोग की तमाम कठिनाइयों से छुटकारा पा जाते हैं। बीमित रकम का वृित्त के रूप में लेना अति ही लाभदायक विनियोग होगा। इसके अतिरिक्त ज्यादा दिन जीवित रहने पर आर्थिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसलिए यह कहा जाता है कि बीमा एक सुरक्षित एवं लाभदायक विनियोग है।
4. मितव्ययिता को बढ़ावा मिलता है-
यदि किसी प्रकार की रूकावट न हो तो वे अपनी सम्पूर्ण आय का उपभोग करना चाहते हैं। भविष्य में आने वाली कठिनाइयों के प्रति कम लोग जागरूक रहते हैं। यदि वे सभी आय वर्तमान समय में नष्ट कर दें तो जीवन के अन्तिम समय में कठिनाई हो सकती है। बीमा प्रसंविदा उन्हें बचत की आदत डालकर अतिरिक्त आय को जमा करने के लिए बाध्य कर देता है, जिससे लोगों की आदत थोड़ी ही आय में जीवन-निर्वाह की हो जाती है। जितना कम खर्च करेंगे उतनी ही बचत होगी और भविष्य उतना ही सुखमय होगा। बैंक बचत खातों में इस प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिल सकता, वहाँ तो आवश्यकता पड़ने पर इसे निकाला भी जा सकता है। बीमा का बहुत ही प्रभावशाली गुण मृत्यु पर निश्चित रकम का भुगतान है, चाहे उतनी रकम जमा हो या न हो। इसके अतिरिक्त बीमा के अन्य लाभों को पाने के लिए व्यक्ति बीमा खरीद कर बचत के लिए प्रयत्नशील हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मितव्ययिता की आदत बन जाती हैं।
2. व्यावसायिक महत्व-
बीमा के द्वारा केवल परिवार को ही लाभ नहीं मिलता, बल्कि व्यवसाय में भी इसका बहुत महत्व है। जो इस प्रकार है-1. महत्वपूर्ण कर्मचारी का बीमा-महत्वपूर्ण कर्मचारी से तात्पर्य ऐसे कर्मचारी से है, जिसका मृत्यु या अयोग्यता पर व्यापार को गम्भीर क्षति होती है तथा उस क्षति को पूरा करने में काफी समय लगता है। यह भी अन्य सम्पत्तियों की तरह से एक मूलयवान सम्पत्ति है, जिसके ऊपर व्यापार की आय निर्भर है। उसकी पूंजी, शक्ति, प्रावैधिक ज्ञान, अनुभव, योजना बनाने की शक्ति एवं कार्यरूप देने की योग्यता उसे एक मूल्यवान सम्पत्ति बना देते हैं।
2. साख में वृद्धि शोध क्षमता में वृद्धि- किसी व्यापार की ऋण प्राप्त करने की क्षमता उसकी सम्पत्ति, लाभ, नकद रकम, चरित्र, व्यापार की दशाएँ आदि पर निर्भर है। बीमापत्र भी एक सम्पत्ति है, अत: बीमापत्र की रकम जितनी अधिक होगी साख की मात्रा उतनी ही अधिक होती है। दूसरी आत बीमा करा लेने से ऋणदाता को वापस पाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रव्याजि के साथ संचित रकम में वृद्धि होती रहती है। जिससे व्यापार की तरलता बढ़ती है। यदि लेनदारों या ऋणदाताओं को यह पता रहता है कि बीमा के कारण मृत्यु के उपरान्त भी व्यापार चलता रहेगा तो वे अधिक ऋण देने के साथ सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करने में सशंकित नहीं रहेंगे।
1. देश के विकास में योगदान- समाज का संचित कोष समाज और देश की प्रगति में लगाया जा सकता है। औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। पिछले क्षेत्रों में विनियोग करके विकास को सन्तुलित किया जा सकता है। इस प्रकार देश की प्रगति होगी, व्यक्तियों की आय बढ़ेगी और वे फिर अधिक बीमा ले सकेंगे। इस प्रकार देश के विकास के लिए पर्याप्त रकम मिलती रहेगी। इतना ही नहीं, प्रति व्यक्ति को रहने के लिए घर, काम करने के लिए रोजगार, भोजन के लिए कृषि उत्पादन, कपड़े आदि के लिए विशेष उद्योगों का विकास सम्भव होगा, जिससे सामाजिक कल्याण सम्भव हो जायेगा।
3. अन्य महत्व-
व्यापारिक और व्यक्तिगत लाभों को देखा जाय तो सामाजिक लाभ अपने आप समझ में आ जाता है। जब समाज का प्रत्येक वर्ग और व्यक्ति इससे लाभान्वित होता है तो समाज अपने-आप लाभान्वित होगा। बीमा से व्यक्तियों में जिम्मेदारी की भावना आती है जिससे वे परिवार के लिए बचत करेंगे, परिवार सुखी रहेगा और समाज के अन्य व्यक्ति इस प्रकार परिवार की रक्षा कर लेंगे।1. देश के विकास में योगदान- समाज का संचित कोष समाज और देश की प्रगति में लगाया जा सकता है। औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। पिछले क्षेत्रों में विनियोग करके विकास को सन्तुलित किया जा सकता है। इस प्रकार देश की प्रगति होगी, व्यक्तियों की आय बढ़ेगी और वे फिर अधिक बीमा ले सकेंगे। इस प्रकार देश के विकास के लिए पर्याप्त रकम मिलती रहेगी। इतना ही नहीं, प्रति व्यक्ति को रहने के लिए घर, काम करने के लिए रोजगार, भोजन के लिए कृषि उत्पादन, कपड़े आदि के लिए विशेष उद्योगों का विकास सम्भव होगा, जिससे सामाजिक कल्याण सम्भव हो जायेगा।
2. स्वास्थ्य में वृद्धि- व्यक्तियों के स्वास्थ्य में वृद्धि होगी, क्योंकि लोग बीमा के लाभों को पाने के लिएअपने स्वस्थ बनाये रखने का प्रयास करेंगे। बीमा खरीदने के समय कुछ अज्ञात बीमारियों के पता लग जाने से व्यक्ति उसके प्रति सचेत होगा। बीमा करा लेने से वृद्धावस्था और अपंगता आदि के समय मदद मिलेगी। समाज में स्वस्थ सबल वातावरण बनने से सामाजिक लाभ होगा। लोगों के स्वस्थ रहने से मृत्यु दर में कमी आयेगी, परिणामस्वरूप प्रव्याजि की रकम कम होगी जिससे लोग ज्यादा बीमा खरीदेंगे और स्वस्थ रह सकेंगे।
3. मुद्रा प्रसार में कमी- देश में बढ़ते हुए मूल्य, जो मुद्रा प्रसार के कारण हैं, बीमा के द्वारा कम किया जा सकता है। समाज की अतिरिक्त आय को यदि प्रव्याजि के रूप में जमा किया जा सकता तो उतनी रकम से मुद्रा प्रसार कम हो जायेगा। दूसरी ओर उस संचित रकम को उत्पादन कार्य में लगाकर मुद्रा प्रसार के इस अवकाश को पूरा किया जा सकेगा।
4. सामाजिक बुराइयों में कमी- जिस समाज में व्यक्ति वृद्धावस्था और असामयिक मृत्यु के प्रति निश्चिन्त है, सामाजिक उत्थान के लिए निरन्तर प्रयास करेंगे। जैसा बताया जा चुका है कि लोगों में कम खर्च की आदत बनेगी। थोड़े खर्च में ज्यादा संतोष पायेंगे और अधिक रकम के लिए प्रयास नहीं करेंगे, तो समाज में अपने आप असामाजिक कार्यों में कमी होगी। लोग बेईमानी या लालच को कम कर देंगे। दूसरी तरफ सामाजिक और पारिवारिक अव्यवस्था में भी कमी आयेगी, क्योंकि रह एक व्यक्ति दुर्घटना, अपंगता वृद्धावस्था और मृत्यु के समय बीमा से सहायता पायेगा। इस प्रकार व्यवस्थित और संतुलित समाज मे उत्पादन कार्य अपने आप बढ़ेंगे, जो समाज ओर देश की प्रगति के लिए स्वयं एक साधन और साध्य है।
5. शिक्षा एवं विज्ञान में वृद्धि- जीवन बीमा से आश्रितों को अच्छी शिक्षा मिले, क्योंकि जिस शिक्षा को बच्चे नही पा सकते, उसके लिए व्यवस्था पहले से की गई है, उनके माता-पिता चाहे जीवित रहें या न रहें। ये व्यक्ति विज्ञान में वृद्धि करने में सफल होंगे। ऊँची शिक्षा से उनका मानसिक और शारीरिक विकास होगा। देश में उच्च, प्रावैधिक और वैज्ञानिक शिक्षा में वृद्धि होने से देश के लिए पर्याप्त कुशल व्यक्ति मिलेंगे, को स्वयं भी कुछ उत्पादन कार्य कर सकेंगे।
6. समाज में स्नेह एवं प्रेम तथा आनन्द में वृद्धि- जब हर एक माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा, विवाह पालन-पोषण के लिए व्यवस्था किये रहेंगे। पति अपने विधवा पत्नी के लिए आय छोड़ेगा और स्वयं वृद्धावस्था में दूसरों पर आश्रित नहीं रहेगा।
जीवन बीमा के प्रकार
1. आजीवन बीमा -
आजीवन बीमा में बीमित रकम बीमादार की मृत्यु होने पर ही देय होती है, यह रकम बीमादार स्वयं प्राप्त नहीं कर सकता है। आजीवन पॉलिसी उन लोगों के लिए सही है जो अपनी मृत्यु के उपरान्त पारिवारिक सुरक्षा के लिए सम्पदा कर का भुगतान करने के लिए किसी को उपहार या दान देने के लिए एक निश्चित धनराशि का प्रबन्ध करना चाहते हों। आजीवन पॉलिसी की प्रीमियम दर बन्दोबस्ती बीमों की तुलना में कम होती है, इसीलिए आजीवन पॉलिसी को पारिवारिक सुरक्षा के लिए सबसे सस्ता बीमा माना जाता है। आजीवन पॉलिसियों के प्रकार-आजीवन बीमा प्रसंविदा मुख्यत: तीन प्रकार की होती है-(i) साधारण, (ii) सीमित संदाय, तथा, (iii) परिवर्तनीय।1. साधारण आजीवन बीमा की संविदा (Ordinary whole life policy)- यह प्रसंविदा ही आजीवन बीमा का मुख्य रूप है। इस पॉलिसी को प्राय: मृत्योपरान्त सम्पदा कर (Estate Duty) का भुगतान करने या पारिवारिक सुरक्षा की व्यवस्था के उद्देश्य से लिया जाता है। इसमें बीमादार को नियमित रूप से तब तक प्रीमियम देते रहना पड़ता है जब तक वह जीवित रहे। इस पॉलिसी की प्रीमियम दर सबसे कम होती है। किन्तु जीवन भर प्रीमियम देते रहने पर बोझ दीर्घजीवियों के ऊपर बहुत अधिक हो सकता है। इसी कारण मनोवैज्ञानिक आधार पर इस पॉलिसी के प्रति बहुधा लोग आकर्षित नहीं होते यद्यपि मृत्योपरान्त पारिवारिक सुरक्षा की दीर्घकालिक बीमा योजना के रूप में यह सबसे सस्ती पॉलिसी है।
2. सीमित संदाय आजीवन पॉलिसी (Limited Payment whole life policy)- जो बीमादार अपनी आजीवन पॉलिसी का भुगतान 70 वर्ष या इससे कम आयु तक सीमित रखना चाहता हो उसके लिए यह पॉलिसी है। इसमें प्रीमियम अदा करने की एक निश्चित अवधि चुन ली जाती है, प्रीमियम अदा करने का दायित्व उसी चुनी हुई अवधि तक सीमित रहता है। इसकी प्रीमियम दर साधारण आजीवन पॉलिसी की दर उतनी ही अधिक होगी। सीमित संदाय आजीवन पॉलिसी का एक रूप है ‘एकमुश्त आजीवन पॉलिसी’ (Single Premium Whole Life Policy)। इस बीमादार बीमा कराते समय पॉलिसी के समस्त प्रीमियमों को एकमुश्त अदा कर देता है और भविष्य में उसे प्रीमियम की कोई किस्त जमा नहीं करनी होती।
3. परिवर्तनशील आजीवन पॉलिसी (Convertible Whole Life Policy)- यह लाभ रहित आजीवन पॉलिसी है जिसमें बीमादार को यह सुविधा दी जाती है कि वह चाहे तो पॉलिसी के चालू होने के पांच वर्षों बाद इसे किसी भी अवधि के लाभ-रहित या लाभ सहित बन्दोबस्ती बीमा में परिवर्तित करा ले। बन्दोबस्ती पॉलिसी में परिवर्तित कराते समय पुन: डाक्टरी परीक्षा नहीं करानी होगी और बीमादार से पिछले पांच वर्ष की प्रीमियम की शेष रकम नहीं ली जाएगी। इसे ‘वैकल्पिक आजीवन पॉलिसी’ (Optional Whole Life Policy) भी कहते हैं। परिवर्तन की तिथि से उसे बन्दोबस्ती बीमा का प्रीमियम देना पड़ेगा। यदि बीमादार इस विकल्प को प्रयुक्त न करें तब यह लाभ-रहित आजीवन पॉलिसी के रूप में चालू रहेगी। यह पॉलिसी उन लोगों के लिए सही है जिन्होंने अभी अपना रोजगार प्रारम्भ किया है और जीवन बीमा कराना चाहते हैं किन्तु अपनी सीमित आय के कारण अपेक्षाकृत ऊँची दर वाला बन्दोबस्ती बीमा नहीं करा सकते, और कुछ वर्षों बाद आय में वृद्धि होने पर बन्दोबस्ती बीमा कराने के इच्छुक हैं। आजीवन बीमा कराने वाले प्राय: परिवर्तनीय आजीवन पॉलिसी ही लेना पसंद करते हैं क्योंकि इसे बन्दोबस्ती पॉलिसी में परिवर्तित कराने की सुविधा रहती है।
2. बन्दोबस्ती बीमा -
बन्दोबस्ती पॉलिसी के एक निश्चित अवधि 10, 20 या 30 वर्ष के लिए जीवन बीमा कराया जाता है। यदि इस अवधि में बीमादार की मृत्यु हो जाए या यदि इस अवधि के अन्त तक बीमादार जीवित रहे, तब बीमित रकम का भुगतान कर दिया जाता है। बन्दोबस्ती बीमा के मुख्य छ: प्रकार होते हैं : (i) साधारण, (ii) सीमित, संदाय, (iii) विलम्बित, (iv) दुगुना, (v) शुद्ध, (vi) संयुक्त जीवन।2. सीमित संदाय बन्दोबस्ती बीमा की संविदा (Limited Payment Insurnace Endowment Policy)- सीमित संदाय बन्दोबस्त बीमा की संविदा में यदि बीमादार चाहता हो कि बन्दोबस्ती पॉलिसी की अवधि से कम अवधि तक प्रीमियम अदा करके बाद प्रीमियम देने के दायित्व से वह मुक्त हो जाए तब इसके लिए सीमित संदाय बन्दोबस्ती पॉलिसी सही होगी। जैसे 25 वष्र्ाीय बीमादार 35 वर्ष की बन्दोबस्ती पॉलिसी ले रहा है लेकिन प्रीमियम संदाय 20 वर्ष तक करेगा तब ऐसी पॉलिसी के लिए उसे प्रतिवर्ष अपेक्षाकृत आर्थिक प्रीमियम देना होगा किन्तु 20 वर्ष बीत जाने के बाद उसे प्रीमियम नहीं देना पड़ेगा। ऐसी पॉलिसी उन बीमादारों के लिए उपयुक्त होती है जो प्रीमियम अदा करने का दायित्व बीमा अवधि की तुूलना में अपेक्षाकृत कम अवधि का रखना चाहते हैं।
3. विलम्बित बन्दोबस्ती पॉलिसी (Deferred Endowment Policy) - विलम्बित बन्दोबस्त बीमा संविदा में साधारण बन्दोबस्ती प्रसंविदा के समान है अन्तर केवल यह है कि बीमा अवधि में बीमादार की मृत्यु होने पर बीमा का रूपया तुरन्त देय नहीं होता वरन् बीमा की अवधि पूर्ण होने पर ही मिलता है। यह पॉलिसी उनके लिए उपयुक्त है जो एक निश्चित समय आने पर ही बीमित रकम का प्रबन्ध करना चाहते हों, भले ही मृत्यु पहले हो जाए। ऐसी पॉलिसी सन्तान की शिक्षा, विवाह आदि के लिए ली जाती है। इसकी प्रीमियम दर साधारण बन्दोबस्ती पॉलिसी से कम होती है। जीवन बीमा निगम सन्तान की शिक्षा या विवाह के निमित्त उपर्युक्त प्रकार की पॉलिसी जारी करता है जिसका नाम विवाह बन्दोबस्ती/शिक्षा वृत्ति पॉलिसी कहते है।
4. शुद्ध बन्दोस्ती पॉलिसी (Pure Endowment Policy):- शुद्ध बन्दोबस्ती बीमा संविदा पॉलिसी में यह शर्त रहती है कि बीमित अवधि में यदि बीमादार की मृत्यु हो जाए तब बीमा संस्था बीमा की रकम देने के दायित्व से मुक्त हो जायेगी। इस पॉलिसी के अधीन बीमित रकम तभी मिल सकती है जब बीमादार बीमा अवधि पूरी होने तक जीवित रहे। यदि किसी व्यक्ति ने 20-वष्र्ाीय शुद्ध बन्दोबस्ती पॉलिसी ली हो तब बीमित राशि तभी देय होगी जब बीस वर्षों के उपरान्त वह जीवित रहे। यदि बीमा अवधि में उसकी मृत्यु हो जाए तो बीमा संस्था बीमित राशि का भुगतान नहीं करेगी। इस बीमा पॉलिसी के लिए डॉक्टरी जॉंच नहीं की जाती। यह पॉलिसी दो प्रकार की होती है-(1) वापसी रहित (2) वापसी सहित। वापसी-रहित (Without Return) पॉलिसी के अन्तर्गत बीमा अवधि में बीमादार की मृत्यु होने पर प्राप्त प्रीमियमों की पूरी रकम बीमा संस्था अपने पास रख लेती है। इस रूप में यह पॉलिसी अब लागू नहीं है। इसका दूसरा रूप है शुद्ध वापसी (Pure Endowment with Return Policy) जिसमें मृत्यु होने पर बीमादार द्वारा जमा की गई प्रीमियम राशि दावेदारों को वापस कर दी जाती है।
5. दुगुना बन्दोबस्ती पॉलिसी (Double Endowment Policy):- इस पॉलिसी में बीमा अवधि में बीमादार की मृत्यु होने पर, साधारण बन्दोबस्ती पॉलिसी की भांति, बीमा की रकम तुरन्त दे दी जाती है, किन्तु यदि अवधि पूर्ण होने तक बीमादार जीवित रहा तब बीमा की दुगुनी रकम दी जाती है। यह पॉलिसी साधारण बन्दोबस्ती तथा शुद्ध बन्दोबस्ती बीमा (वापसी-रहित) का सम्मिश्रण है। यह पॉलिसी उन व्यक्तियों के लिए विशेष आकर्षक होती है जिनको यह विश्वास हो कि वे बीमा अवधि तक जीवित रहेंगे, यद्यपि वे यह चाहते हैं कि यदि बीमा अवधि के अन्तर्गत उनकी मृत्यु हो जाए तब परिवार के लिए भी आर्थिक व्यवस्था हो सके।
6. संयुक्त जीवन बन्दोबस्ती की संविदा (Joint Life Endowment Policy)- यह पॉलिसी एक से अधिक जीवनों का संयुक्त बीमा करने में प्रयुक्त होती है। इसकी शर्तों के अनुसार-(1) बीमा अवधि में संयुक्त बीमादारों में से किसी की मृत्यु हो जाने पर, अथवा (2) अवधि बीत जाने पर बीमित रकम का भुगतान होता है। यह पॉलिसी प्राय: पति-पत्नी के जीवन पर, या साझेदारों के जीवन पर ली जाती है। जहॉं पति और पत्नी दोनों ही स्वतंन्त्र रूप से आय उपार्जित करते हैं, वहॉं किसी की भी मृत्यु होने के कारण पारिवारिक आय घट जाएगी। इसी प्रकार, साझेदारों का संयुक्त जीवन बीमा करा लेने से मृत साझेदार की पूजी लौटाने के लिए समुचित धनराशि की व्यवस्था हो जाती है।
Comments
Post a comment