लाभांश का अर्थ, परिभाषा एवं लाभांश के प्रमुख रूपों का विस्तार से वर्णन

भारतीय आयकर अधिनियम 1961 की धारा 2(22) के अनुसार इसके अतिरिक्त बिना कुछ लिए ऋण पत्र और जमा प्रमाण पत्र देना और किन्हीं विशेष परिस्थितियों में कम्पनी द्वारा अंशधारियों को ऋण दिया जाना भी लाभांश है । 

कम्पनी की अर्जनों का वह भाग जो पूंजी प्रदाताओं को प्रत्याय के रूप में वितरित किया जाता है, लाभांश कहलाता है। किन्तु लाभांश वितरण से पूर्व विभाजन योग्य लाभ की गणना आवश्यक है। ऐसे लाभ जो अंशधारियों को लाभांश के लिए उपलब्ध है एवं जिनकी गणना कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 394 एवं धारा 205 के प्रावधानों को ध्यान में रखकर की गई है, विभाजन योग्य लाभ कहलाते हैं। 

इन्स्टीटयूट आफ चार्टर्ड एकाउण्टेन्ट्स आफ इण्डिया के अनुसार ”उपलब्ध लाभों एवं रिजर्व में से अंशधारियों को किया गया वितरण ही लाभांश है।“ 

एस. एम. शाह के अनुसार ”लाभांश एक व्यावसायिक कम्पनी के लाभ हैं, जो उसके सदस्यों में अंशों के अनुपात में बांटे जाते हैं“ इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि कम्पनी को प्राप्त समस्त लाभों में से समायोजन के पश्चात् जो लाभ अंशधारियों में वितरण हेतु उपलब्ध कराया जाता है, उसे लाभांश कहते हैं।

लाभांश का अर्थ

विभाजन योग्य लाभ (Divisible Profits) का वह भाग जो कम्पनी के प्रत्येक सदस्य को उसके द्वारा धारित अंशों के अनुपात में प्राप्त होता है, ‘लाभांश’ कहलाता है। विभाजन योग्य लाभ से अवश्य कम्पनी के उन लाभों से है, जो वैधानिक तौर पर अंशधारियों में लाभांश के रूप में बाँटे जा सकते है। 

इस आशय के लिए शुद्ध लाभ का अभिप्राय उस लाभ से होता है जो कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 394 की व्यवस्थाओं के अनुसार है तथा इसमें आयकर की राशि घटा दी गई है व कम्पनी अधिनिमय की धाना 205 के अनुसार ह्रास घटा दिया गया है। कम्पनी द्वारा लाभांश की घोषणा तब तक नहीं की जा सकती है जब तक कि कम्पनी के पास पर्याप्त लाभ न हो, संचालक मण्डल सिफारिश न करें एवं वार्षिक साधारण सभा में अंशधारियों द्वारा अनुमोदन न हो।

लाभांश की परिभाषा

एस.एम. शाह के अनुसार, “लाभांश एक व्यावसायिक कम्पनी के लाभ हैं जो उसके सदस्यों में अंशों के अनुपात में बाँटे जाते हें।

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, “लाभांश कम्पनी के लाभों का वह भाग है जो अंशधारियों में बाँटने के लिए नियम कर दिया गया है।

इिन्स्टट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टेन्ट्स ऑफ इंडिया के अनुसार “उपलब्ध लाभों एवं रिजर्व में से अंशधारियों को किया गया वितरण ही लाभांश है।”

लाभांश के प्रकार

यहाँ लाभांश के प्रमुख रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

1. रोकड़ लाभांश - 
रोकड़ लाभांश रोकड़ में दिया जाता है। यह लाभांश अदा करने का सामान्य तरीका है। रोकड़ कम्पनी के शुद्ध मूल्य को कम करता है, इसलिए प्रबन्धो को सोच समझ कर योजना बनानी चाहिए। नियम के अनुसार रोकड़ लाभांश कार्य द्वारा उगाहे रोकड़ में से दिया जाता है । पर कई प्रबन्ध उधार लिए पैसों में से देते हैं क्योंकि उनकी योजना सोच समझ पूर्वक नहीं बनाई गई होती। ऐसी स्थिति को वर्जित करना चाहिए क्यों कि उधार लिया पैसा उत्पाीदक प्रयोगों के लिए होता है न कि लाभांश अदायगी के लिए । 

कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 205 (3) के अनुसार रोकड़ के अलावा कोई लाभांश नहीं दिया जाएगा। हालांकि धारा 205 (5) के अनुसार लाभांश चैक या वारण्ट द्वारा अंशधारियों के पते पर रजिस्टार्ड डाक से या उन व्यक्तियों को भेज सकती है जिनका निर्देश लिखित में अंशधारी ने दिया हो। एक बार घोषित लाभांश 42 दिनों के भीतर देना पड़ता है । वह हर एक नियंत्रक जो जानबूझ कर समय पर लाभांश न देने का अपराधी है उसे सजा दी जाती है । 

2. स्टॉक लाभांश - 
स्टॉंक लाभांश का आशय बोनस अंश जारी करना भी है । स्टॉंक लाभांश कम्पनी के अतिरिक्त अंशों में दिया जाता है। यह अंश श्रेष्ठ अंश या सामान्यम अंश भी हो सकते हैं। अंशधारियों को ऐसे अंशों के लिए पूर्ण आजादी है । वह यह अंश बेच भी सकते हैं और रख भी सकते हैं । स्टॉेक लाभांश (बोनस अंश जारी करना) लाभों का पूंजीकरण है, वितरण नहीं। स्टॉक लाभांश का कम्पनी की सम्पत्तियों पर कोई प्रभाव नहीं क्योंकि कोई अदायगी रोकड़ में नहीं करनी होती। हालांकि स्टॉक लाभांश अंशधारियों के हाथों में कम्पनी के अंशों को बढ़ा देता है। इसलिए कम्पनी का प्रबन्ध् जो कि बोनस अंश जारी करने के विषय में सोच रहा है उसे इस बारे में सोच लेना चाहिए कि बोनस अंश जारी करने के बाद अधिक अंशों पर भी पूर्व रोकड़ लाभांश दर बना रहेगा । बोनस अंश सामान्य तौर पर पूर्व एकत्रित लाभों में से जारी किए जाते हैं पर चालू लाभों में से इन्हें जारी करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है । बोनस अंश पूंजी लाभों में से भी जारी किए जा सकते हैं बशर्ते यह लाभ रोकड़ में अर्जित किए गए हों। बोनस अंश कुछ खास कार्य के लिए इकट्ठे रिजर्व, रोकड़ के अलावा मिले अंश प्रीमीयम और सम्पित्तियों के मूल्यांकन से हुए रिजर्व में से जारी करने की अनुमति नहीं है। 

कम्पनी ऐक्ट की धारा 78(2) और 80(5) क्रमशः के अनुसार रोकड़ में मिला अंश प्रीमीयम और श्रेष्ठ अंशों के भुगतान के समय में से बोनस अंश जारी कर सकती है । 

3. सक्रिय/पत्रक लाभांश - सक्रिय लाभांश कम्पनी द्वारा अंशधारियों को अन्य) कम्पनी के अंशों या ऋृण पत्रों के रूप में दिया जाता है । यह प्रतिज्ञा पत्र के रूप में भी दिया जा सकता है । जिसमें यह वायदा किया जाता है कि भविष्य में लाभांश रोकड़ में दिया जागा। यह नोट लाभांश प्रभावपत्र या सक्रिय कहलाता है । ऐसी सेक्रिप्स कम्पनी द्वारा तब जारी की जाती है जब कम्पनी रोकड़ में लाभांश अदा करने के लिए मजबूत नहीं होती । सक्रिय/पत्रक लाभांश बैंक से ऋण लेने के लिए प्रतिभूति के तौर पर प्रयोग की जा सकती है ।

कम्पनी (संशोधन) ऐक्टर 1960 के अनुसार भारत में कम्पनियों पर सक्रिय लाभांश देने पर सरल प्रतिबन्धं है। यह इसलिए किया गया ताकि उन कम्पनियों पर रोक लागाई जा सके जो अंशधारियों के बीच रोकड़ लाभांश के बदले उन अन्य कम्पनियों के ऋण पत्र या अंश दे देती थी जिनका कोई मूल्य नहीं है । 

4. मलकियत लाभांश - मलकियत लाभांश रोकड़ के अलावा कम्पनी की सम्पत्ति के रूप में दिया जाता है। यह असामान्य परिस्थितियों में दिया जाता है जैसे कम्पनी का दोबारा से संगठन। ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं होती और हो सकता है कम्पनी की जिंदगी में एक ही बार हों। मलकियत लाभांश कम्पनी की उस सम्पत्ति के रूप में दिया जाता है जिसकी अब कम्पनी को जरूरत नहीं है,कम्पनी की प्रतिभूतियां या वर्तमान कम्पनी की प्रतिभूतियां । 

5. अधिमान अंश लाभांश - वह लाभांश जो कम्पनी द्वारा निर्गमित अधिमान अंशों पर चुकाया जाता है, अधिमान अंश लाभांश कहलाता है। इन अंशों पर लाभांश की दर अंश निर्गमन के समय ही निश्चित कर दी जाती है। जिसका भुगतान लाभ होने पर समता अंशधारियों को भुगतान से पूर्व किया जाता है। अधिमान अंशों के प्रकार के अनुसार कुछ अधिमान अंशों पर वर्तमान में लाभ नहीं होने पर भविष्य में चुकाया जाता है (संचयी अधिमान अंश), कुछ अंशधारियों को पूर्व निश्चित दर के अतिरिक्त समता अंशों को चुकान के पश्चात् बचे लाभ में भी हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार (अवशिष्टभागी अधिमान अंश) होता है। 

6. समता अंश लाभांश - कम्पनी के सामान्य अंश जिन्हें समता अंश या वास्तविक मालिक के नाम से जाना जाता है, पर चुकाये जाने वाले लाभांश को समता अंश लाभांश कहा जाता है। इन अंशों पर लाभांश दिया जाये या नहीं, लाभांश की दर कितनी होगी, लाभांश कब व कैसे चुकाया जाये आदि का निर्धारण करने में संचालक मण्डल पूर्णतः स्वतंत्र होता है, संचालक मण्डल द्वारा प्रस्तावित दर का अनुमोदन वार्षिक साधारण सभा द्वारा आवश्यक है। किन्तु साधारण सभा को दर में वृद्धि करवाने का अधिकार नहीं होता है। 

7. अंतरिम लाभांश - वह लाभांश जो दो वार्षिक साधारण सभाओं के मध्य वर्ष के अनुमानित लाभ के आधार पर संचालकों द्वारा घोषित किया जाता है, अंतरिम लाभांश कहलाता है। यह अंतिम खाते बनाने से पूर्व (साधारणतः लेखा वर्ष के मध्य में) अधिक लाभ होने की संभावना को देखते हुए दिया जाता है। संचालक मण्डल उक्त घोषणा पार्षद् अंतर्नियमों द्वारा अधिकृत होने पर ही कर सकता है वर्ष के अंत में लाभ कम रह जाने पर संचालक मण्डल को पूँजी में कमी का दोषी माना जाता है अतः अंतरिम लाभांश देने से पूर्व लाभों का सही निर्धारण अत्यावश्यक है।

8. अंतिम या नियमित लाभांश - संचालक मण्डल की सभा में घोषित लाभांश जिसे साधारण सभा की स्वीकृति मिलने पर अंशधारियों में वितरित कर दिया जाता है, अंतिम या नियमित लाभांश कहलाता है। ऐसी घोषणा वर्ष के अंत में की जाती है, लाभांश नीति का निर्धारण मुख्यतः इस लाभांश पर ही निर्भर करता है।

9. नकद लाभांश - लाभांश का यह सबसे प्रचलित एवं लोकप्रिय रूप है। साधारणतया अंशधारी इस रूप में लाभांश लेना सबसे अधिक पसन्द करते हैं, क्योंकि लाभांश प्राप्ति का यह एक सुविधाजनक तरीका है। जिन कम्पनियों की तरल स्थिति ठीक होती है वे कम्पनीयाँ लाभांश नकद में ही वितरित करना पसन्द करती हैं। भारतीय कम्पनी अधिनियम की धारा 205 के अनुसार भारतीय कम्पनियाँ नकद व स्कन्ध लाभांश के अलावा अन्य किसी प्रकार से लाभांश नहीं बाँट सकती हैं।

10. स्कन्ध लाभांश - स्कन्ध लाभांश को “बोनस अंशों” के रूप में लाभांश के नाम से जाना जाता है तथा ऐसा संचित कोषों या लाभों का पूँजीकरण करके किया जाता है। जिन कम्पनियों की तरल स्थिति ठीक नहीं होती, वे साधारणतया अपने लाभों का पूँजीकरण करके स्कन्ध लाभांश वितरित करती है। इसके अन्तर्गत कम्पनी नकद लाभांश नहीं देती है। ऐसे अंशों को बोनस अंश के नाम से जाना जाता है। ऐसा करने से लाभ का समुचित उपयोग व्यवसाय में ही हो जाता है तथा लांभाश का वितरण भी सम्भव हो जाता है।

11. बन्ध-पत्रों के रूप में लाभांश - कम्पनी नकद लाभांश न देकर बन्ध-पत्रों या ऋण-पत्रों के रूप में भी लाभांश वितरित करती है। बन्ध-पत्र या ऋण-पत्र दीर्घकालीन हो सकते हें। इसका अभिप्राय यह हुआ कि कम्पनी लाभांश का वितरण तत्काल न करके भविष्य की किसी तिथि को करना चाहती है। इस प्रकार का लाभांश तभी वितरित किया जाता है जब कम्पनी ब्याज सम्बन्धी बढ़े हुए दायित्वों का सम्पूर्ण भार उठाने में अपने आपको असमर्थ पाये। कभी-कभी लाभांश के लिए प्रतिज्ञा-पत्र भी दिये जाते हैं जिन पर ब्याज भी दिया जा सकता है। इसे स्क्रिप लाभांश (Scrip Dividend) कहा जाता है। स्क्रिप्ट लाभांश की अवधि अल्पकालीन होती है।

12. सम्पित्त लाभांश -  नगद के अतिरिक्त लाभांश सम्पित्त के रूप में भी वितरित किया जा सकता है। अन्य कम्पनियों की तथा सरकार की प्रतिभूतियों को लाभांश के रूप वितरित किया जा सकता है। इसी प्रकार कम्पनी की अन्य किसी विभाजन योगय सम्पित्त को भी लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। लाभांश वितरण का यह रूप बहुत ही कम संस्थाओ द्वारा अपनाया जाता है, क्योंकि यह अंशधारियों को असुविधाजनक होता है। पश्चिमी देशों में कुछ मदिरा उत्पादक कम्पनियाँ मदिरा की बोतलें निर्धारित मूल्यों पर लाभांश के बदले वितरित करती हैं। इसे “वस्तुओं के रूप में लाभांश” (Dividend in Kind) के नाम से जाना जा सकता है। भारतीय कम्पनियों में लाभांश वितरण कायह तरीका अभी प्रचलित नहीं है।

13. संयुक्त लाभांश - जब लाभांश का कुछ हिस्सा नकद में तथा शेष सम्पित्त के रूप में दिया जाता है, तो यह संयुक्त लाभांश कहलाता है।

किन परिस्थितियों में लाभांश नहीं दिया जा सकता है

निम्न परिस्थितियों में लाभांश नहीं दिया जा सकता है-
  1. जब लाभांश का भुगतान किसी भी अधिनियम के लागू होने के फलस्वरूप नहीं दिया जा सका हो। 
  2. यदि अंशधारियों द्वारा इस संबंध में कोई निर्देश दिए गए हों तथा उनका पालन नहीं किया गया हो।
  3. यदि भुगतान को प्राप्त करने के अधिकार संबंधी कोई विवाद हो।
  4. यदि लाभांश की राशि को वैधानिक रूप में अंशधारियों द्वारा देय राशि के साथ समायोजित कर ली हो।
  5. जब लाभांश के भुगतान के संबंध में कंपनी द्वारा कोई त्रुटि रही हो।
  6. लाभांश के प्रस्तावित दर को वार्षिक सर्वसाधारण सभा में अंशधारियों द्वारा अस्वीकृत कर दिया हो।
सन्दर्भ -
  1. “Financial Management”- M.Y. Khan & P.K. Jain, Tata Mc GrawHill.
  2. Shrivastava R.M. : Financial Decision Making Text, Problems and Cases.
  3. Arora M.N. : Cost and Management Accounting.
  4. Ravi M. Kishore : Advance Management Accounting.
  5. Prasanna Chandra : Financial Management.
  6. Sahaf M.A. : Management Accounting : Principle's and Practices.

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