Showing posts from October, 2018
सामाजिक समूह की अवधारणा का अंतर हमें इससे मिलती-जुलती दो और धारणाओं से करना चाहिए। ये धारणाएँ है : (1) समुच्चय, और (2) सामाजिक कोटियाँ। समुच्चय और सामाजिक कोटियाँ निश्चित रूप से व्यक्तियों का जोड़ है। सामाजिक समूह की परिभाषा सामाजिक समूह न तो अन…
एन्थेनी गिडेन्स ने आज के समाज में द्वितीयक समूह के महत्व को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनका कहना है कि हमारा दैनिक जीवन - सुबह से लेकर शाम तक - द्वितीयक समूहों के बीच में गुजरता है। एक तरह से हमारी श्वास दर श्वास द्वितीयक समूहों के सदस्यों के साथ निक…
सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या समाजशास्त्रियों ने कतिपय सिद्धांतों के संदर्भ में की है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को हम किस उपागम से देखते है। यह उपागम ही सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत है। उदाहरण के लिये इतिहासकार टोयनबी या स…
मनुष्य को इस धरती पर रहते हुए कोई 5 लाख से अधिक वर्ष हो गये है। कृषि और आवास उसके जीवन के साथ कोई 10-12 हजार वर्ष हजार वर्ष पहले जुड़े है। इतिहासकारों की अटकल है कि दुनिया में सभ्यता का सूत्रपात कोई 6 हजार वर्ष से अधिक पुराना नहीं हैं। आज जब सामाजिक …
सामाजिक वर्ग किसी समाज में निश्चित रूप से समान सामाजिक प्रतिष्ठा वाले लोगों को एकत्रित स्वरूप को कहते है। यह समुदाय का एक भाग अथवा ऐसे लोगों का एकत्रण है। जिनका आपस में एक दूसरे के साथ समानता का सम्बन्ध या व्यवहार होता है और जो समाज के अन्य भागों से म…
समाज में अनेक प्रकार की जातियाँ होती है। जाति या वर्ण के चार प्रकार होते है (1) ब्राह्मण (2) क्षत्रिय (3) वैश्य (4) शूद्र। यह समाज चार वर्णो में बटा हुआ है सभी वर्ग के लोग अपनी जाति के अनुसार कार्य करते है। जाति शब्द की उत्पत्ति जाति शब्द 'Spanish…
मानव का जन्म परिवार में होता है, यहीं से उसका पालन-पोषण प्रारम्भ होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति परिवार से निरन्तर कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है। परिवार में ही उसे अपने रीति-रिवाज, परम्पराओं एंव रूढि़यांे की शिक्षा मिलती है। परिवार क…