उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ताओं को दिये गए 6 अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण का अर्थ

उपभोक्ताओं को उत्पादकों एवं विक्रेताओं के अनुचित व्यवहारों से बचाना उपभोक्ता संरक्षण कहलाता है। इसके माध्यम से न केवल उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं उत्तरदायित्व के बारे में शिक्षित किया जाता है अपितु उनकी शिकायतों का निवारण भी किया जाता है।

मान लीजिए आप किसी दुकान पर खाना पकाने का तेल खरीदने गये। दुकानदार आपसे कहता है कि तेल बंद टीन या डिब्बे में उपलब्ध है। आप आश्वस्त होना चाहते हैं कि तेल मिलावटी तो नहीं है, अर्थात् उसमें कोई घटिया हानिकारक तेल तो नहीं मिलाया गया। अब दुकानदार आपको लेबल पर उत्पाद का नाम दिखायेगा और कहेगा कि यह जानी-मानी कम्पनी है, जो कभी भी अशुद्ध  और घटिया चीजों की आपूर्ति नहीं करती। आप उस तेल का प्रयोग करते हैं और उसे 'खाकर बीमार पड़ जाते हैं। अब क्या आप दुकानदार के पास जाकर तेल को लौटा सकते हैं? नहीं, अब वह खुले टिन में थोड़ा-बहुत इस्तेमाल हो चुका तेल वापस नहीं लेगा। 

शायद वह आपसे यह भी कहे कि आपकी बीमारी किसी और वजह से हुई होगी। तो अब आप यही कर सकते हैं कि आगे उस लेबल का तेल इस्तेमाल करना बंद कर दें। लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि दूसरे ब्रांड के तेलों के साथ फिर यही समस्या आपके सामने नहीं आएगी?

उपभोक्ता संरक्षण का अर्थ 

उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने तथा उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया गया था। इसके अनुसार उपभोक्ता की परिभाषा निम्नलिखित है:-
  1. कोई भी व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले माल को क्रय करता है, इसमें क्रेता की स्वीकृति से माल का उपयोगकर्त्ता भी शामिल है, परन्तु इसमें ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं है जो माल को पुन: विक्रय के लिए खरीदता है।
  2. कोई भी व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले सेवा को किराये पर लेता है। इसमें सेवाओं का लाभग्राही भी शामिल है, परन्तु इसमें ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं है जो सेवा को वाणिज्यक उद्देश्य से प्राप्त करता है।

उपभोक्ता के अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ताओं को 6 अधिकार दिये गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:-

(1) सुरक्षा का अधिकार :- इसका अभिप्राय है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों तथा सेवाओं के विरुद्ध संरक्षण प्राप्त करना। (उदाहरण आइएसआई चिन्ह वाले बिजली के उपकरणों का उपयोग)। उपभोक्ता को ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं से सुरक्षा का अधिकार होता है जिनसे उसे कोई  हानि हो सकती है।

(2) सूचना प्राप्त करने का अधिकार :- इसका अभिप्राय है उपभोक्ता का वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता आदि के संबंध में पूर्ण सूचना प्राप्त करना ताकि वह खरीदने से पूर्व ठीक निर्णय ले सके। उदाहरण के लिए- उत्पाद की मात्रा, शुद्धता, प्रयोग में बढ़ती जाने वाली सावधानियाँ, पुनपर््रयोग, संभावित जोखिम एवं साइडइफेक्ट।

(3) चुनाव/चयन का अधिकार :- उपभोक्ता को उपलब्ध वस्तुओं तथा सेवाओं में से अपनी इच्छानुसार चयन/चुनाव करने का अधिकार है। वह किसी भी संस्था द्वारा उत्पादित किसी भी मूल्, गुण एवं किस्म की वस्तु पसन्द कर सकता है। कोई  भी व्यक्ति उसकी पसन्द को अनुचित ढंग से प्रभावित करता है, यह उसके अधिकार में विघ्न माना जाता है।

(4) शिकायत का अधिकार :- उपभोक्ता को अधिकार है कि वह वस्तुओं अथवा सेवाओं से असंतुष्ट होने की स्थिति में उपयुक्त मंच अथवा अधिकार के समक्ष शिकायत दर्ज कर सके।

(5) क्षतिपूर्ति का अधिकार :- उपभोक्ता के पास अधिकार है कि यदि किसी वस्तु अथवा सेवा से उसे कोई  हानि हुई  है तो वह क्षतिपूर्ति/उचार पा सकता है। इसके लिए सरकार द्वारा त्रि-स्तरीय प्रवर्तन तंत्र की स्थापना की गई  है जो कि जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करती है।

(6) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार :- उपभोक्ता को आजीवन भली प्रकार सूचना प्राप्त करने तथा जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। इसके माध्यम से उपभोक्ता जागरूक बना रहता है। उपभोक्ताओ को जन संचार माध्यमों से अधिकारों और उपलब्ध उपचारों से अवगत कराया जाना चाहिए। भारत सरकार ने विद्यालय शिक्षा पाठ्यक्रम में उपभोक्ता शिक्षा को शामिल किया है तथा मीडिया का सहारा भी ले रही है। उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी देने के लिए।

उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता

व्यवसाय में अपनाये जाने वाले गलत ओर अनुचित तरीके तथा उनसे बचने में आम उपभोक्ताओं की लाचारी के कारण ही उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित करने के उपायों की आवश्यकता पड़ती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सेवाओं में कमी या खराब वस्तु की वजह से होने वाले नुकसान या हानि से स्वयं को बचाना, एक उपभोक्ता का मूलभूत अधिकार है। लेकिन इसके बावजूद अज्ञानता या जागरूकता के अभाव के कारण उपभोक्ता अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पाते। 

उदाहरण के तौर पर एक उपभोक्ता के रूप में हम सबको बाजार में उपलब्ध एक वस्तु के विभिन्न प्रकारों में से अच्छी किस्म की वस्तु चुनने का अधिकार है, लेकिन हम भ्रामक विज्ञापनों की वजह से सही चुनाव करने में असफल होते हैं और हल्की गुणवत्ता वाली चीजें खरीद लेते हैं।

कुछ परिस्थितियों में तो हम बिल्कुल लाचार हो जाते हैं, जैसे किसी उत्पाद की गुणवत्ता की पुष्टि करने में हम अपने आपको असमर्थ पाते हैं। चालाक दुकानदार अपनी लच्छेदार बातों से हमें आसानी से ठग सकता है। यदि दवा की गोलियों की पट्टठ्ठी पर उसकी एक्सपायरी डेट ठीक से पढ़ी नहीं जा रही है तो हम इतनी जल्दी में होते हैं कि दुकानदार जो कहता है उसे मान लेते हैं। अब अगर उस दवा का असर नहीं होता है तो हम पिफर डॉक्टर के पास जाते हैं और उनसे कोई दूसरी दवा लिखने का अनुरोध् करते हैं। हम बिल्कुल भूल जाते हैं कि जो दवा हमने खरीदी थी, शायद उसका वांछित असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि हमें वह दवा दी गयी थी जिसका असर समाप्त हो चुका था।

कई बार तो ऐसा होता है कि हम अपनी ही कुछ निराधर मान्यताओं की वजह से ठगे जाते हैं। जैसे हममें से कई लोगों का विश्वास होता है कि ऊंची कीमत का मतलब है बेहतर गुणवत्ता और ऐसे में अगर विक्रेता ने किसी उत्पाद की गुणवत्ता के अच्छी होने की सिपफारिश कर दी तो हम उसके लिए ऊंची से ऊंची कीमत चुकाने की भी परवाह नहीं करते। इसके अलावा यह भी एक आम धरणा है कि आयातित वस्तुओं की गुणवत्ता बेहतर होगी ही। तो अगर किसी उत्पाद पर कोई भी लेबल या निशान लगा हो जो इसे विदेश में निर्मित बताए तो हम उत्पादन या निर्माण स्थल की कोई पुष्टि किये बिना ही इसे ऊंची कीमत पर खरीद लेते हैं।

पैकेटों में बिकने वाले तैयार खाद्य पदार्थ जैसे आलू के चिप्स सेहत के लिए अच्छे नहीं होते। लेकिन बच्चे इन चीजों को खरीदते हैं, क्योंकि ये स्वादिष्ट होते हैं। शीतल पेय के कुछ ब्रांड युवाओं के बीच कापफी लोकप्रिय हैं क्योंकि टेलीविजन पर नजर आने वाले इनके विज्ञापनों में नामी गिरामी पिफल्मी कलाकार होते हैं और उनकी कही गई बातों का उनके ऊपर कापफी प्रभाव होता है। अब तो ऐसा लगता है हम एक स्वादिष्ट पेय के रूप में चीनी और नमक के साथ ताजे नींबू पानी का स्वाद और महत्व बिल्कुल भूल ही गये हैं।

कई वस्तुओं के निर्माता प्राय: पैकिंग पर गुणवत्ता का स्तरीय प्रामाणिकता का मानक जैसा चिन्ह लगा देते हैं, जो कि कड़ी जांच परख के बाद ही लगाया जाने वाला प्रमाणिक चिन्ह होता है। इसी तरह यदि पैक किया सामान इस पर अंकित वजन से कम होता है तो खरीदने से पहले हमेशा इसमें वजन की पुष्टि कर पाना बहुत कठिन होता है। कभी-कभी तो तोलने की मशीनें भी त्राुटिपूर्ण होती है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि उपभोक्ताओं को, वस्तुओं के त्राुटिपूर्ण होने या सेवा में कमी होने की स्थिति के उपचार के रूप में अपने लिए सुलभ उपायों की सही जानकारी तक नहीं होती।

अब आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि उपभोक्ताओं को ऐसी अनुचित व्यापारिक गतिविधियों से बचाने के उपाय करना क्यों आवश्यक है, जिनसे उनका आर्थिक नुकसान तो होता ही है, वे उनके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकती है।

उपभोक्ताओं के दायित्व/जिम्मेदारी

(1) उपभोक्ता को अपने अधिकारों का उपयोग करना चाहिए - उपभोक्ता को बाजार से क्रय की गई वस्तुओं अथवा सेवाओं के संबंध में अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए ताकि उनका प्रयोग किया जा सके।

(2) उपभोक्ता को सावधान उपभोक्ता होना चाहिए :- उत्पाद अथवा सेवाएं क्रय करते समय उपभोक्ता को सदैव जागरूक रहना चाहिए ताकि शोषण से बचा जा सके।
 
(3) उपभोक्ता को शिकायत अवश्य दर्ज करवानी चाहिए:- प्राप्त की गई किसी वस्तु अथवा सेवा में कमी निकलने पर उपभोक्ता को उपयुक्त फोरम में अपनी शिकायत अवश्य दर्ज करवानी चाहिए।

(4) केश-मेमो लेना चाहिए :- उपभोक्ता को कैश मीमो पर जोर देपा चाहिए जो कि क्रय का सबूत होता है, जिससे बाद में कहीं शिकायत हो सके और हर्जाना मिल सके।

(5) उपभोक्ता को गुणवत्ता जागरूक होना चाहिए :- उपभोक्ता को केवल मानक वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए जैसे बिजली के उपकरण पर आईएसआई  चिन्ह, खाद्य उत्पादों पर एफपीओ तथा गहनों पर हालमार्क का चिन्ह आदि देखकर ही खरीदना चाहिए। यानि कि उसे वस्तु की गुणवत्ता के संबंध में सदैव जागरुक रहना चाहिए।

(6) विज्ञापन विसंगतियों की जानकारी :- उपभोक्ता को विज्ञापन सम्बन्धित विसंगतियों को प्रयोजक की जानकारी में लाना चाहिए और उसे बन्द करवाना चाहिये।

(7) अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करना:- यदि निर्माता या क्रेता द्वारा उपभोक्ता के किसी अधिकार का उल्लंघन किया जाता हो तो उपभोक्ता को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत गठित कानूनी तंत्र में अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिये।

उपभोक्ता की शिकायतों को निपटाने की प्रक्रिया

जैसा कि पहले बताया जा चुका है, कोई व्यक्तिगत उपभोक्ता या उपभोक्ताओं का संघ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकता है। शिकायतें उस जिले फोरम में दर्ज करायी जा सकती है जहां यह मामला हुआ या जहां विरोधी पक्ष रहता है या राज्य सरकार या केन्द्र शासित प्रदेश की सरकार द्वारा अधिसूचित राज्य आयोग के समक्ष, अथवा नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आयोग के समक्ष दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने का बहुत कम शुल्क है। शिकायत, शिकायत कर्ता द्वारा या व्यक्तिगत रूप से उसके अधिकृत एजेंट द्वारा दर्ज करायी जा सकती है या डाक से भेजी जा सकती है। निम्नलिखित सूचनाओं के साथ शिकायत की पांच प्रतियां जमा कराई जानी चाहिए।
  1. शिकायत कर्ता का नाम, पता और विवरण।
  2. विरोधी पक्ष या पक्षों का नाम, पता और विवरण।
  3. शिकायत से सम्बंध्ति तथ्य और यह जानकारी, कि मामला कब और कहां हुआ।
  4. शिकायत दर्ज आरोपों के समर्थन में दस्तावेज, यदि कोई हो तो (जैसे कैशमेमो, रसीद वगैरह)
  5. यह ब्यौरा कि शिकायत कर्ता किस तरह की राहत चाहता है।
शिकायत पर शिकायत कर्ता या उसके अधिकृत प्रतिनिधि(एजेंट) के हस्ताक्षर होने चाहिए। यह जिला पफोरम, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष को संबोधित होनी चाहिए। कोई भी शिकायत, मामला उठाने की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर दायर की जानी चाहिए।

यदि इसमें देर होती है और सम्बंध्ति फोरम या आयोग इसे क्षम्य मान लेता है तो विलम्ब का कारण रिकार्ड किया जाना चाहिये। जहां तक संभव हो शिकायतों पर विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस ग्रहण करने के तीन महीने के भीतर फैसला कर दिया जाना चाहिए। उन मामलों में जहां उत्पादों की, प्रयोगशाला में जांच या विश्लेषण की व्यवस्था हो, निपटान की समय सीमा पांच महीने की होती है। फोरम या आयोग, शिकायतों की प्रकृति, उपभोक्ता द्वारा मांगी गयी राहत और मामले के तथ्यों के अनुरूप, इनमें से एक या एक से अधिक राहतों का आदेश दे सकता है।
  1. वस्तुओं में त्रुटि/सेवाओं में कमी को दूर करना।
  2. वस्तुओं के बदले दूसरी वस्तु देना, सेवाओं को बहाल करना।
  3. वस्तु के लिए चुकायी गयी कीमत या सेवाओं के लिए चुकायी गयी अतिरिक्त शुल्क की वापसी।

उपभोक्ताओं की समस्याओं का स्वरूप

1. मिलावट : बेची जा रही वस्तु में उससे घटिया क्वालिटी की चीज मिला देना। इस तरह की मिलावट अनाज, मसालों, चाय की पत्ती, खाद्य तेलों और पेट्रोल में की जाती है। 

2. नकली चीज : असली उत्पाद के बदले उपभोक्ताओं को ऐसी चीज की बिक्री करना जिसकी कोई खास कीमत नहीं है। ऐसा अक्सर दवाओं और स्वास्थ्य रक्षक उत्पादों के साथ होता है। ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें इंजेक्शन में सिर्फ पानी मिला पाया गया है या ग्लूकोज के पानी की बोतल में आसुत (डिस्टिल्ड) जल पाया गया है।

3. नाप तोल के गलत इस्तेमाल : तोल कर बिकने वाली चीजें जैसे सब्जी, अनाज, चीनी और दालें, या नाप कर बेची जाने वाली चीजें जैसे कपड़े, या सूट पीस वगैरह कभी-कभी वास्तविक तोल या नाप से कम पाई जाती है। जाली भारक (जैसे एक किलोग्राम, 500 ग्राम या 250 ग्राम के वजन) या गलत निशानों वाले गज या टेप अकसर खरीददार को धोखा देने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। 

4. जाली माल की बिक्री : चीजों पर जिस बेहतर क्वालिटी का निशान दिया गया है, वास्तव में सामान का उसके अनुरूप न होना। या जैसे स्थानीय तौर पर बनायी गयी चीजों को भी विदेशों से आयातित बताकर, ऊंचे दाम पर बेचना, आयातित चीजें अक्सर बेहतर समझी जाती है। कुछ उत्पाद जैसे धुलाई का साबुन या पाउडर, ट्यूब लाइट, जैम, खाने का तेल और दवाओं पर जाने-माने ब्रांड का लेबल लगा होता है। 

5. जमाखोरी : जब कोई आवश्यक वस्तु खुले बाजार में उपलब्ध नहीं करायी जाती है और जानबूझकर व्यापारी इसे गायब कर देते हैं तो इसे जमाखोरी कहा जाता है। इसका उद्देश्य होता है उस चीज का कृत्रिम अभाव पैदा कर देना ताकि इसकी कीमत में उछाल लाया जाये। इस तरह से जमा किये गये सामान को चोरी-छिपे, ऊंची कीमत पर बेचना कालाबाजारी कहलाता है। 

6. भ्रमात्मक विज्ञापन : भ्रमात्मक विज्ञापनों के जरिये भी उपभोक्ताओं को छला जाता है। ऐसे विज्ञापन किसी उत्पाद या सेवा की गुणवत्ता अच्छी होने का दावा करते हैं और इस उत्पाद या सेवा की उपयोगिता का झूठा आश्वासन देते हैं। 

7. हल्के स्तर के उत्पादों की बिक्री : यानि ऐसी वस्तुएं बेचना जो गुणवत्ता के घोषित स्तर या मानक स्तर, विशेषकर सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं होती हैं। ऐसे उत्पादों में प्रेशर कुकर, स्टोव, बिजली के हीटर या टोस्टर, रसोई गैस सिलेण्डर आदि हैं।

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