वाष्पीकरण किसे कहते हैं वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

पृथ्वी के सभी जलीय भागों जैसे समुद्र, झील तालाब, नदी आदि से हर तापमान पर वाष्पीकरण होता रहता है। जल के तरल से गैसीय अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। एक ग्राम जल को जलवाष्प में परिवर्तित करने के लिए लगभग 600 कैलोरी ऊर्जा का प्रयोग होता है। इसे वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। वाष्पीकरण की मात्रा तापमान, विस्तार तथा पवन का वेग आदि पर निर्भर करती है।
 
वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जल गैस अवस्था में परिवर्तित होता है, वाष्पीकरण कहलाती है। वाष्पीकरण की प्रक्रिया ओसांक अवस्था को छोड़कर प्रत्येक तापमान, स्थान व समय में होती है, वाष्पीकरण की दर कई कारकों पर निर्भर करती है।
वाष्पीकरण से क्या समझते हैं

जिस प्रक्रिया द्वारा जल जलवाष्प में बदल जाता हैं उसे वाष्पीकरण कहते है। वाष्पीकरण की मात्रा तथा तीव्रता वायु की गति तापक्रम तथा शुष्कता पर निर्भर होती है। जितने ही उच्च तापक्रम पर वायु शुष्क होती है तथा गति तीव्र होती है। वाष्पीकरण उतना ही अधिक तथा तीव्र होता है क्योंकि हवा को संतृप्त होने में समय लगता है। स्थिर हवा में नमी का स्थान्तरण न हो सकने के कारण वायु शीघ्र संतृप्त हो जाती हैं। स्थल की अपेक्षा सागरों पर वाष्पीकरण अधिक होता है। 10०  उत्तर से 10०  कारण दक्षिण अक्षांशों के मध्य सर्वाधिक वाष्पीकरण महाद्वीपों पर होता है जहाँ पर वर्षा द्वारा प्राप्त जल तथा वनस्पतियों द्वारा निकाले गये जल वाष्पीकरण के लिये सुलभ हो जाते है। विषुवत्रेखा की अपेक्षा विषुवत्रेखा से 10० से 20० उत्तर तथा दक्षिण में सर्वाधिक वाष्पीकरण होता है क्योंकि वहाँ पवनों का वेग स्थायी और अधिक होता है। विषुवत्रेखा पर तो पवन का वेग बहुत कम होता है। फलतः वाष्पीकरण की गति बहुत घट जाती है।

वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक

वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक है -

1. जल की उपलब्धता  - स्थल भागों की अपेक्षा जल भागों से वाष्पीकरण अधिक होता है। यही कारण है कि वाष्पीकरण महाद्वीपों की तुलना में महासागरों पर अधिक होता है।

2. तापमान -  हम जानते हैं कि गर्म वायु ठंडी वायु की तुलना में अधिक नमी धारण कर सकती है। अत: जब किसी वायु का तापमान अधिक होता है, वह अपने अन्दर कम तापमान की तुलना में अधिक नमी धारण करने की स्थिति में होती है। यही कारण है कि शीत काल की तुलना में ग्रीष्म काल में वाष्पीकरण अधिक होता है, अत: गीले कपड़े सर्दियों की तुलना में गर्मियों में जल्दी सूख जाते हैं।

3. वायु की नमी - यदि किसी वायु की सापेक्ष आद्रता अधिक है तो वह कम मात्रा में अतिरिक्त नमी धारण कर सकती है। इसके विपरीत यदि सापेक्ष आद्रता कम है तो अधिक मात्रा में अतिरिक्त नमी धारण कर सकती है। ऐसी स्थिति में वाष्पीकरण अधिक तेजी से होगा। वायु की शुष्कता भी वाष्पीकरण की दर को तेज करती है। वर्षा वाले दिनों में वायु में अधिक नमी होने के कारण गीले कपड़े देर से सूखते हैं।

4. पवन - हवा भी वाष्पीकरण की दर को प्रभावित करती है। यदि वायु शांत है, तो जलीय धरातल से लगी वायु वाष्पीकरण होते ही संतृप्त हो जाएगी। वायु के संतृप्त होने पर वाष्पीकरण रूक जाएगा। यदि वायु गतिशील है तो वह संतृप्त वायु को उस स्थान से हटा देती है उसके स्थान पर कम आर्द्रता वाली वायु आ जाती है। इससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया फिर प्रारम्भ हो जाती है और तब तक होती रहती है जब तक संतृप्त वायु पवन द्वारा हटायी जाती रहती है।

5. बादलों का आवरण  - मेघाच्छादन सौर विकिरण में अवरोध डालता है और किसी स्थान की वायु के तापमान को प्रभावित करता है। इस प्रकार यह अप्रत्यक्ष रूप से वाष्पीकरण प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

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