अनुक्रम
परमाणु विभाज्य है और तीन सूक्ष्म कणों से बना है। सवाल
यह उठता है कि यह अवपरमाणु कण परमाणु में किस तरह व्यवस्थित है? प्रायोगिक जानकारी के आधार पर परमाणु की संरचना के भिन्न-भिन्न माडल प्रस्तावित किये गये।
α-कणों के विक्षेपण प्रयोग का परिणाम 1911 में रदरफोर्ड ने समझाया और परमाणु के एक दूसरे मॉडल का प्रस्ताव किया गया। रदरफोर्ड के मॉडल के अनुसार- चित्र (a) रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल- (b) रदरफोर्ड के प्रकीर्णन प्रयोग का वर्णन
इस प्रस्तावित माडल के आधार पर प्रकीर्णन प्रयोग का प्रयोगात्मक/प्रेक्षण समझाया जा सकता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि α-कण परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन के क्षेत्र से गुजरते हैं वह बिना विक्षेपित हुये सीधी रेखा में पारित होते हैं। केवल वह कण जो घनआवेशित नाभिक के पास आते है; अपने मूल पथ से थोड़ा विक्षेपित हो जाते हैं। बहुत कम α-कण नाभिक से टकराने के बाद प्रतिक्षेपित हो जाते हैं।
अवधारणा 1 : इलेक्ट्रॉन परमाणु में नाभिक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा के वृत्तीय कक्षाओं में घूमते रहते हैं। जैसाकि हमारे सौर प्रणाली में विभिन्न ग्रह निश्चित प्रक्षेपचक्र में सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। ग्रहों की तरह इलेक्ट्रान केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही घूम सकते हैं। इन रास्तों को वृत्तीय कक्षा या ऊर्जा का स्तर कहा जाता है। इलेक्ट्रॉन कुछ निश्चित कक्षाओं में बिना ऊर्जा का उत्सर्जन किये घूमते हैं। इन निश्चित कक्षाओं को स्थार्इ कक्षायें कहते हैं। इस स्थिर अवस्था की साहसी अवधारणा ने रदरफोर्ड मॉडल में स्थिरता की कमी का सामना कर, इस समस्या का समाधान कर दिया।
बाद में यह महसूस किया गया कि बोर के द्वारा प्रस्तावित परिपत्रा कक्षा की अवधारणा पर्याप्त नहीं थी और यह निश्चित ऊर्जा के साथ ऊर्जा कोश में संशोधित किया गया। एक वृत्तीय कक्षा दो आयामी है। एक कोश के तीन आयामी क्षेत्रा है। निश्चित ऊर्जा वाले कोशों को अक्षरों (K.L.M.N आदि) के द्वारा या घन पूर्णांक (1, 2, 3 आदि) के द्वारा प्रतिनिधित्व करते हैं। कोशों की ऊर्जा की, संख्या की द के साथ वृद्धि होती है। द त्र 1 स्तर सबसे कम ऊर्जा का है। इसके अलावा प्रत्येक कोश में अधिकत्म इलेक्ट्रॉन की संख्या 2n2 को समायोजित किया जा सकता है। यहां द कोश की क्रम संख्या है। इस प्रकार पहले, कोश में अधिकतम 2 इलैक्ट्रॉन हो सकते हैं। जबकि दूसरे कोश में 8 इलैक्ट्रान और इसी तरह। हर कोश को आगे, विभिन्न उप स्तर, नामक उपकोश में बांटा गया है।
अवधारणा 2 : इलेक्ट्रॉन अवशोषण या उत्सर्जन के द्वारा अपना कोश या ऊर्जा का स्तर बदल सकते हैं। एक इलैक्ट्रान ऊर्जा का एक फोटोन अवशोषित करने के बाद ऊर्जा के निचले स्तर Ei से ऊर्जा के अंतिम उच्च स्तर Ef तक जा सकता है।
इसी तरह जब एक इलेक्ट्रॉन अपना कक्षक बदल कर उच्च ऊर्जा Ei के प्रारम्भिक स्तर से अंतिम निचले स्तर में आता है तो ऊर्जा का एक फोटोन (hv) निकलता है।
संख्या) के बीच संबंध की व्याख्या की अक्षमता थी। आइये अब हम जाने कि कैसे इस समस्या का समाधान-न्यूट्रॉन की खोज के साथ किया गया।
परमाणु के थामसन माडल
सभी पदार्थ परमाणु से बने हैं। और सभी परमाणु विद्युत उदासीन होते हैं। परमाणु के एक घटक के रूप में इलेक्ट्रान की खोज करने के बाद थामसन ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु में एक बराबर मात्रा का घनआवेश भी होना चाहिये। इस आधार पर उन्होंने परमाणु की संरचना के लिये एक माडल प्रस्तुत किया जिसके अनुसार परमाणु एक बड़ा गोलाकार क्षेत्र जिसमें एक समान घनावेश है और ऋणावेशित सूक्ष्म इलेक्ट्रोन इसमें चारों ओर बिखरे हुये हैं। इस माडल को प्लम पुडिंग का नाम दिया गया जिसमें इलेक्ट्रॉन प्लम हैं जो घनआवेशित पुडिंग में मौजूद हैं। यह माडल तरबूज के समान है जिसमें गूदा घनावेश के रूप है और इलेक्ट्रॉन बीजों का रूप हैं हालांकि आप ध्यान दें कि तरबूज में बीज की संख्या अधिक होती है और परमाणु में इतने अधिक इलेक्ट्रान नहीं होते हैं।![]() |
थामसन का प्लम बुडिंग माडल |
परमाणु के रदरफोर्ड माडल
अर्नेस्ट रदरफोर्ड और उसके सहकर्मी रेडियोधर्मिता के क्षेत्र में काम कर रहे थे। वह α-कणों का पदार्थो के ऊपर प्रभाव का अध्ययन कर रहे थे। α-कण हालियम परमाणु के नाभिक होते हैं। α-कणों को हीलियम के परमाणु से दो इलेक्ट्रॉन को निकाल कर प्राप्त किया जा सकता है। वर्ष 1910 में हैंस गीजर (रदरफोर्ड का तकनीशियन) और अर्नेस्ट मार्सडेन (रदरफोर्ड का छात्रा) ने α-कणों के प्रसिद्ध प्रकीर्णन प्रयोग का प्रदर्शन किया। इसके कारण थामसन के माडल का खण्डन हो गया। आइये इस प्रयोग को जाने :α-किरणों के प्रर्कीणन का प्रयोग
इस प्रयोग में एक रेडियोधर्मी स्रोत से निकली α-किरणों की धारा को स्वर्ण धातु की (.00004 से.मी.) पतली पन्नी के माध्यम से पारित किया गया और पन्नी के पीछे दीप्तिशील प्लेट पर गिरने से उत्पन्न चमक की जांच की थामसन माडल के अनुसार यह अनुमान था कि α-कण, सोने की परत के पार सीधे जायेंगे और फोटोग्राफिक प्लेट जो कि परत के पिछे रखी गर्इ है से प्राप्त किए जा सकते हैं। परन्तु इस प्रयोग (चित्रा 5.5) के परिणाम काफी आश्चर्य जनक थे और यह ज्ञात हुआ कि –- अधिकतर α-कण सोने की पन्नी से सीधे पारित होते है।
- कुछ α-कण अपने पथ से थोड़ा विक्षेपित हो जाते हैं।
- कुछ कम α-कण अधिक कोण पर विक्षेपित हो जाते हैं।
- हर 12000 कणों में एक कण प्रतिक्षेपित होता है।
![]() |
गीजर व मार्सडेन के द्वारा किया गया α-किरण विक्षेप प्रयोग का प्रदर्शन |
α-कणों के विक्षेपण प्रयोग का परिणाम 1911 में रदरफोर्ड ने समझाया और परमाणु के एक दूसरे मॉडल का प्रस्ताव किया गया। रदरफोर्ड के मॉडल के अनुसार- चित्र (a) रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल- (b) रदरफोर्ड के प्रकीर्णन प्रयोग का वर्णन
- परमाणु के केंद्र में एक सघन और घनावेशित क्षेत्रा होता है जिसे नाभिक कहा जाता है।
- परमाणु का घनावेश और समस्त द्रव्यमान उसके नाभिक में संचित है
- परमाणु का बाकी भाग खाली जगह है जिसमें अति सूक्ष्म और ऋणावेशित इलैक्ट्रॉन संचित हैं।
![]() |
रदरफोर्ड माडल में इलेक्ट्रॉन की सर्पिल शैली में नाभिक के चारों ओर घूमने की संभावना |
इस प्रस्तावित माडल के आधार पर प्रकीर्णन प्रयोग का प्रयोगात्मक/प्रेक्षण समझाया जा सकता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि α-कण परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन के क्षेत्र से गुजरते हैं वह बिना विक्षेपित हुये सीधी रेखा में पारित होते हैं। केवल वह कण जो घनआवेशित नाभिक के पास आते है; अपने मूल पथ से थोड़ा विक्षेपित हो जाते हैं। बहुत कम α-कण नाभिक से टकराने के बाद प्रतिक्षेपित हो जाते हैं।
रदरफोर्ड के मॉडल की कमियां
रदरफोर्ड मॉडल के अनुसार ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन गोलाकार कक्षाओं में घनावेशित नाभिक के चारों ओर घूमते हैं। हालांकि मैक्सवैल के विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत के अनुसार (जिसके बारे में आप उच्च कक्षाओं में सीख सकते है) अगर एक आवेशित कण, दूसरे आवेशित कण की तेज परिक्रमा करता है तो वह लगातार विकिरण के रूप में ऊर्जा खो देता है। ऊर्जा के उत्सर्जन के कारण इलैक्ट्रॉन की गति कम हो जाती है। इसलिये इलैक्ट्रान नाभिक के चारों ओर सर्पिल शैली में परिक्रमा करेगा और अंत में नाभिक में गिर पड़ेगा जैसा कि चित्रा 5.6 में दिखाया गया है। दूसरे शब्दों में परमाणु स्थार्इ नहीं होगा। यद्यपि हम जानते हैं कि परमाणु स्थार्इ है। और इस तरह पतन नहीं होता है। अत: रदरफोर्ड मॉडल परमाणु की स्थिरता की व्याख्या करने में असमर्थ है। तुम्हें पता है कि परमाणु में इलैक्ट्रॉन की एक संख्या संचित है। रदरफोर्ड माडल की जिस तरह से इलैक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर किस प्रकार वितरित है, के बारे में कुछ नहीं कहता है। रदरफोर्ड मॉडल की एक चित्र बोर मॉडल के अनुसार परमाणु में विभिन्न कक्षायें या तय ऊर्जा का स्तर ओर कमी, परमाणु द्रव्यमान और परमाणु संख्या (प्रोटोनों की संख्या) के बीच संबंधों की व्याख्या करने में असमर्थता थी इस समस्या को बाद में चैडविक द्वारा न्यूट्रॉन, तीसरे परमाणु कण गठन के द्वारा हल किया गया। परमाणु की स्थिरता की समस्या और परमाणु में इलेक्ट्रॉन का वितरण नील बोर द्वारा प्रस्तावित परमाणु के एक और माडल के द्वारा हल किया गया।बोर का परमाणु मॉडल
वर्ष 1913 में नील बोर, रदरफोर्ड के छात्रा ने रदरफोर्ड मॉडल की कमियों को दूर करने के लिये एक मॉडल का प्रस्ताव रखा। बोर मॉडल को उसके द्वारा प्रस्तावित दो अवधारणा के संदर्भ में समझा जा सकता है। ये अवधारणायें हैं।अवधारणा 1 : इलेक्ट्रॉन परमाणु में नाभिक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा के वृत्तीय कक्षाओं में घूमते रहते हैं। जैसाकि हमारे सौर प्रणाली में विभिन्न ग्रह निश्चित प्रक्षेपचक्र में सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। ग्रहों की तरह इलेक्ट्रान केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही घूम सकते हैं। इन रास्तों को वृत्तीय कक्षा या ऊर्जा का स्तर कहा जाता है। इलेक्ट्रॉन कुछ निश्चित कक्षाओं में बिना ऊर्जा का उत्सर्जन किये घूमते हैं। इन निश्चित कक्षाओं को स्थार्इ कक्षायें कहते हैं। इस स्थिर अवस्था की साहसी अवधारणा ने रदरफोर्ड मॉडल में स्थिरता की कमी का सामना कर, इस समस्या का समाधान कर दिया।
![]() |
एक परमाणु में इलैक्ट्रॉन ऊर्जा की उपयुक्त मात्रा में अवशोषित या उत्सर्जन ऊर्जा से अपनी ऊर्जा के स्तर को बदल सकता है। |
बाद में यह महसूस किया गया कि बोर के द्वारा प्रस्तावित परिपत्रा कक्षा की अवधारणा पर्याप्त नहीं थी और यह निश्चित ऊर्जा के साथ ऊर्जा कोश में संशोधित किया गया। एक वृत्तीय कक्षा दो आयामी है। एक कोश के तीन आयामी क्षेत्रा है। निश्चित ऊर्जा वाले कोशों को अक्षरों (K.L.M.N आदि) के द्वारा या घन पूर्णांक (1, 2, 3 आदि) के द्वारा प्रतिनिधित्व करते हैं। कोशों की ऊर्जा की, संख्या की द के साथ वृद्धि होती है। द त्र 1 स्तर सबसे कम ऊर्जा का है। इसके अलावा प्रत्येक कोश में अधिकत्म इलेक्ट्रॉन की संख्या 2n2 को समायोजित किया जा सकता है। यहां द कोश की क्रम संख्या है। इस प्रकार पहले, कोश में अधिकतम 2 इलैक्ट्रॉन हो सकते हैं। जबकि दूसरे कोश में 8 इलैक्ट्रान और इसी तरह। हर कोश को आगे, विभिन्न उप स्तर, नामक उपकोश में बांटा गया है।
अवधारणा 2 : इलेक्ट्रॉन अवशोषण या उत्सर्जन के द्वारा अपना कोश या ऊर्जा का स्तर बदल सकते हैं। एक इलैक्ट्रान ऊर्जा का एक फोटोन अवशोषित करने के बाद ऊर्जा के निचले स्तर Ei से ऊर्जा के अंतिम उच्च स्तर Ef तक जा सकता है।
E = hν = Ef – Ei
इसी तरह जब एक इलेक्ट्रॉन अपना कक्षक बदल कर उच्च ऊर्जा Ei के प्रारम्भिक स्तर से अंतिम निचले स्तर में आता है तो ऊर्जा का एक फोटोन (hv) निकलता है।
![]() |
परमाणु में इलेक्ट्रॉन उचित मात्रा का उ+र्जा अवशोषित या उत्सर्जन करके अपनी उ+र्जा स्तर परिवर्तित कर सकता है। |
संख्या) के बीच संबंध की व्याख्या की अक्षमता थी। आइये अब हम जाने कि कैसे इस समस्या का समाधान-न्यूट्रॉन की खोज के साथ किया गया।
Comments
Post a comment