वंशागति किसे कहते हैं?

वंशागति किसे कहते हैं?

एक मनुष्य का बच्चा मनुष्य की ही तरह क्यों दिखाई देता है और माता-पिता, दादा दादी या चचेरे भाई या चाचा-चाची के सदृश मिलता जुलता ही दिखाई देता है? एक बिल्ली का बच्चा छोटी बिल्ली की तरह क्यों दिखाई देता है? क्यों एक अंकुर अपने जन्मदाता पौधे की समान, पत्तियां, तना या फूल अधिग्रहण करता है? इसी प्रकार सभी जीवों की संरचना माता-पिता के समान क्यों होती है? समान लक्षणों का पीढ़ी दर पीढ़ी संतानों में पहुंचना, वंशागति कहलाता है। वंशागति जीन द्वारा नियंत्रित होती है। जीन संयोजन में अंतर विभिन्नतायें, अथवा एक ही परिवार के बीच विविधतायें आती हैं। वंशागति और विभिन्नता का विज्ञान आनुवंशिकी कहा जाता है।

वंशागति-लक्षणों का माता-पिता से संतान में पहुंचना वंशागति कहलाता है। जीन वंशागति के लिये उत्तरदायी हैं।

विभिन्नता (विविधता) - अपने आसपास देखिए और आप को एक ही प्रकार के जीवों के बीच बहुत सारे अंतर मिल जायेंगे। उदाहरण के लिये गुलाब के बगीचे में अलग-अलग पौधे पर लगे फूलों का रंग भी अलग है। एक ही कुतिया के पिल्लों के बाल या फर का रंग अलग है। ऐसे सभी अंतर विभिन्नता कहलाते हैं। विभिन्नतायें जीन या पर्यावरण के कारण उभरती हैं।

आनुवंशिकी के संस्थापक ग्रेगर जोहान मेंडल का योगदान

वंशागति के विषय में प्रश्न अतीत के कई वैज्ञानिकों को परेशान करते रहे। ऑस्ट्रिया के ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1844) एक पादरी ने इसका उत्तर खोजने के लिये श्रमसाध्य कार्य चलाया। उन्होंने मटर के कुछ पौधे चुने, उन्हें साल दर साल उगाया, काफी आंकड़े इकट्ठे किये, और उनका विश्लेषण करके पहली बार आनुवंशिकी के सिद्धान्तों की अभिधारणा की। हालांकि उनके उल्लेखनीय काम को उनकी मृत्यु के वर्षों बाद तब मान्यता मिली, जब, कोरेंस, शेरमाक, और ह्यूगो डी व्रीज स्वतंत्र रूप से, अपने अपने देशों में प्रयोग करने के बाद मेंडल के समान उसी निष्कर्ष पर पहुंचे।

मेंडल के आनुवंशिकी सिद्धांत

मेंडल के सिद्धान्तों के अनुसार -

  1. हर लक्षण या गुण (उदाहरणार्थ फूलों का रंग, पौधे की ऊंचाई, बीज का रंग और बनावट, फली का रंग और बनावट और पादप पर फूलों के स्थान) कारकों की एक जोड़ी द्वारा नियंत्रित होता है। युग्मकों के गठन के दौरान एक कारक एक युग्मक में और उसका जोड़ा दूसरे युग्मक में चला जाता है इस प्रकार दो कारकों की एक जोड़ी युग्मकों के गठन के दौरान अलग अलग हो जाती हैं। निषेचन के समय कारकों का संयोजन लक्षणों को व्यक्त करता है। (प्रथम नियम)
  2. कुछ लक्षणों को व्यक्त कर रहे दो कारकों में से एक प्रभावी कारक है जो दूसरे की उपस्थिति के बावजूद व्यक्त कर सकता है। दूसरा कारक प्रमुख कारक की अनुपस्थिति में ही व्यक्त किया जाता है उसे अप्रभावी कहा गया है। (दूसरा नियम)
उदाहरणार्थ मटर के पादप की दीर्घता लम्बापन का कारक सन्तान में हमेशा व्यक्त होता है लेकिन दीर्घता का कारक मौजूद न होने पर ही सन्तान में बौनापन प्रकट होता है। मेंडल ने दो अन्य नियम, ‘माता-पिता तुल्यता का नियम और ‘स्वतंत्र चयन के सिद्धांत’ की भी अवधारणा की। परन्तु वे यहां सविस्तार नहीं है।

यहां परिभाषित पहला सिद्धांत सार्वभौमिक है। वैज्ञानिकों ने बाद में मेंडल के अन्य सिद्धान्तों में विचलन पाया।

1902 में सटन ने टिड्डे के गुणसूत्रों के साथ काम करते हुये यह पुष्टि की कि मेंडल के कारक गुणसूत्रों में मौजूद होते हैें। बाद में कारक शब्द के स्थान पर जीन शब्द का प्रयोग हुआ। अर्थात् गुणसूत्रों पर जीन मौजूद हैं।

गुणसूत्र और जीन

जीन वंशागति के लिये उत्तरदायी हैं। यह गुणसूत्रों पर नियत स्थानों पर पाये जाते हैं।

गुणसूत्र - 

हर कोशिका के नाभिक (स्तनधारियों की लाल रूधिर कोशिकाओं को छोड़कर) में गुणसूत्रों की एक निश्चित संख्या है। सुकेंद्रकी जीवों की सभी कोशिकाओं के गुणसूत्रों में निम्नलिखित विशेषतायें पाई जाती हैं।
  1. वे जोड़े में मौजूद होते है, एक पिता से व दूसरा माता से मिलता है। 
  2. गुणसूत्र कोशिका विभाजन के दौरान ही देखे जा सकते हैं। विभाजन के समय के अतिरिक्त कोशिका के नाभिक में यह क्रोमेटिन जाल के रूप में दिखाई देते हैं। 
  3. गुणसूत्र जोड़े एक निश्चित संख्या में मौजूद हैं। गुणसूत्रों का एक निश्चित सेट द्विगुणित संख्या कहलाता है और 2n के रूप में मनोनीत हैं। 
  4. प्रत्येक गुणसूत्र डी.एन.ए. या डी आक्सी राइबोन्यूक्लिक एसिड के एक अणु और कुछ प्रोटीन से बना है। 
  5. कोशिका विभाजन से पहले गुणसूत्र के डीएनए अणु प्रतिकृति के द्वारा डीएनए के दो अणु, जिन्हें क्रोमेटिड (Chromatid) कहते हैं, बनाते हैं। गुणसूत्रों के दोनों क्रोमेटिड एक बिंदु गुणसूत्र बिंदु (Centromere) पर संलग्न रहते हैं। और कोशिका विभाजन के समय अलग होकर दो गुणसूत्र बनाते हैं।
बैक्टीरिया में केवल एक ही गुणसूत्र (डीएनए का केवल एक अणु) मौजूद है क्योंकि वहां कोई निश्चित नाभिक नहीं है। एक गुण सूत्र कोशिका द्रव्य में न्यूक्लिआयड नामक स्थान में मौजूद होता है।

बेक्टीरिया का क्रोमोसोम
बेक्टीरिया का क्रोमोसोम

यूकैरयोट क्रोमोसोम
यूकैरयोट क्रोमोसोम

मानव गुणसूत्र - मानव शरीर की प्रत्येक कोशिका में 46 गुणसूत्र होते हैं अर्थात् उनकी द्विगुणित संख्या 46 है। इसकी अभिव्यक्ति इस प्रकार है 2n = 46। क्योंकि युग्मक में गुणसूत्रों की संख्या आधी अथवा अगुणक (Haploid) होती है इसलिये एक शुक्राणु और डिंब (अंड) में केवल 23 गुणसूत्र होते हैं। हर प्रजाति में गुणसूत्रों की एक निश्चित संख्या है।

चित्र में दिखायी गयी आकृति के अनुसार हर गुणसूत्र में दो समान क्रोमेटिड गुणसूत्र बिंदु के द्वारा जुड़े हुये हैं। कोशिका विभाजन की पश्चावस्था (एनाफेज) में क्रोमेटिड स्वतंत्र गुणसूत्र बनकर अलग-अलग कोशिका में चले जाते हैं।
एक विभाजनशील कोशिका की माइटोसिस की मध्यावस्था में गुणसूत्रों की तस्वीर खींची जा सकती है और जोड़े संघटित करके उनका प्रदर्शन सम्भव है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। एक जीनयुक्त समान गुणसूत्रों की एक जोड़ी (एक पिता से प्राप्त और एक मां से) को समजात गुणसूत्र (Homologous Chromosomes) कहते हैं।

गुणसूत्रों के 23 जोड़े में 22 जोड़े औटोसोम (Autosomes) कहलाते हैं। 23वीं जोड़ी (X और X मादा में और X व Y नर में) को लिंग गुणसूत्र कहते हैं। X गुणसूत्र पर कई जीन होती हैं जिनमें कुछ अस्तित्व के लिये आवश्यक हैं। Y गुणसूत्र पर केवल नरत्व के ही जीन मौजूद होती है। ऐसी ही एक जीन ‘‘वृषण निर्धारण कारक’’ के नाम परिचित है।

मानव गुणसूत्र
मानव गुणसूत्र

जीन - 

जीन गुणसूत्रों पर मौजूद है। ‘मेंडल के कारक’ के नाम से जाने वाले ‘जीन’ गुणसूत्रों पर जोड़ों में (एक पिता से प्राप्त, दूसरा मां से प्राप्त) मौजूद होते हैं। इस प्रकार गुणसूत्रों पर मौजूद जीन की जोड़ी के दोनों सदस्य समजात गुणसूत्रों पर एक ही स्थान पर मौजूद होते हैं।

जीन वंशानुगत लक्षणों के धारक या वंशागति की इकाई हैं। यह पहले ही उल्लेख किया गया है कि गुणसूत्र में डीएनए नामक रसायन का एक अणु मौजूद होता है। गुणसूत्र पर मौजूद जीन डीएनए अणु के खण्ड होते हैं।

क्योंकि हर जीव का जीवन एकल कोशिका के रूप में शुरू होता है, एक जीव की सभी कोशिकाओं में निहित डीएनए एक समान है।

डीएनए फिंगर प्रिंटिग - आपने सुना होगा कि आजकल अपराधियों को उनके डीएनए परीक्षण द्वारा पहचाना जा सकता है जिसे DNA फिंगर प्रिटिंग कहते हैं। ऐसा इसलिये है कि व्यक्ति विशेष के शरीर की प्रत्येक कोशिका का डीएनए एक समान होता है और वह माता-पिता के डीएनए से मिलता जुलता होता है। ऐसा होना स्वाभाविक ही है क्योंकि बच्चों को अपना डीएनए अपने माता-पिता से ही मिलता है। हमारी उंगलियों के निशान की तरह, हर व्यक्ति का अपना डीएनए भी सबसे अलग होता है। यदि अपराध स्थल पर अपराधी का कोई एक बाल, रक्त की एक बूंद अथवा वीर्य पड़ा मिला हो तो उससे अपराधी का डीएनए पहचानने में मदद मिलती है और संदिग्ध व्यक्ति के डीएनए से तुलना करके सच का पता लगाया जा सकता है।

डीएनए अणु

डीएनए अणु एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड है। (पौली-कई) यह पॉलीन्यूक्लियोटाइड नामक इकाईयों से बना है। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में मौजूद है’
  1. एक नाइट्रोजन युक्त बेस (Nitrogenous Base)
  2. एक डीओक्सी राइबोज शर्करा (Deoxyribose sugar)
  3. एक फॉस्फेट अणु
नाइट्रोजनयुक्त बेस चार प्रकार के हैं एडिनिन, गुआनिन, थाईमिन और साइटोसिन। इसीलिये डीएनए अणु में चार प्रकार के न्यूक्लीओटाइडस हैं। डीएनए के एक खण्ड में इन न्यूक्लियोटाइड के विभिन्न संयोजनों से विभिन्न जीन बनती हैं। शारीरिक संचरना में डीएनए के एक अणु में पॉलीन्यूक्लियोटाइड के दो स्टै्रंड अथवा दो तंतु कुण्डलित होकर डबल हैलिक्स बनाते हैं।

डीएनए प्रतिकृति

कोशिका विभाजन इस प्रकार होता है कि कोशिका गुणसूत्रों की समान संख्या लेकर दो समान कोशिकाएँ बन जाती है। इसलिये, कोशिका विभाजन से पहले प्रत्येक गुणसूत्र में दो समान डीएनए अणु से बने दो क्रोमेटिड मौजूद होने चाहिये। यह डीएनए प्रतिकृति की प्रक्रिया के माध्यम से संपादित होता है। डीएनए प्रतिकृति के मुख्य चरण नीचे सरल रूप में दिये गये हैं।
  1. डीएनए अणु की दोनों स्ट्रेंड कुछ एंजाइम की मदद से अलग हो कर दो स्ट्रेन्ड में अनावरित हो जाते हैं।
  2.  डीएनए पोलीमरेज एन्जाइम की सहायता से एक नया संतति स्ट्रैन्ड बनाता है जो जनक डीएनए अणु के एक स्ट्रैन्ड के साथ मिलकर डबल हैलिक्स बना सकता है। अत: डीएनए के दो अणु जिसमें प्रत्येक में एक जनक स्ट्रैन्ड और एक नया संतति स्ट्रैन्ड बनता है। 
  3. यह दो एक समान डीएनए अणु अब क्रोमेटिड में बदल कर सेन्ट्रोमियर द्वारा संलग्न रहते हैं।
इस प्रकार डीएनए प्रतिकृति के द्वारा प्रत्येक गुणसूत्र में दो एक समान डीएनए के अणु क्रोमेटिड के रूप में विद्यमान होते हैं। कोशिका विभाजन के समय दोनों क्रोमेटिड, गुणसूत्रों का रूप लेकर अलग हो जाते हैं। समान गुणसूत्रों की जोड़ी में से एक एक गुणसूत्र दोनों नई संतति कोशिका में चले जाते हैं।

मनुष्य में रक्त समूहों की वंशागति

हम में से हर एक अपने माता-पिता से विरासत में मिली जीनों को लेकर पैदा होते हैं। माता पिता से विरासत में पाई रक्त समूह जीन की एक जोड़ी के संयोजन पर निर्भर करता है मनुष्य का रक्त समूह (Blood Group)।

मानव में चार रक्त समूह A, B, AB और O पाए जाते हैं। प्रत्येक मानव चार रक्त समूहों में से किसी एक समूह में शामिल होगा। रक्त समूहों की आनुवंशिकता को नियंत्रित करने वाली जीनों को 1A, 1B और i द्वारा व्यक्त किया जाता है। जब एक भ्रूण (मां के गर्भ में पल रहा बच्चा) विकसित होता है, उसका रक्त समूह ऊपर उल्लेख की गई किसी भी दो जीनों (प्रत्येक जनक से एक जीन प्राप्त), के संयोजन से नियंत्रित होता है।

तालिका में इन जीनों के संयोजक और उनसे बनने वाले रक्त समूहों को दर्शाया गया है

रक्त समूहरक्त समूह
IA IA या IA i
IB IB या IB i
IA IB
ii
A
B
AB
O

इस तालिका से आप समझ सकते हैं कि जीन IA और IB प्रभावी हैं और i अप्रभावी जीन है। इन रक्त समूह के अतिरिक्त मनुष्य रीसस समूह, सकारात्मक रीसस या नकारात्मक रीसस नामक समूह से संबंधित हैं। अधिकतर मनुष्य (Rh+) सकारात्मक रीसस (Rh+) हैं। कुछ नकारात्मक रीसस (आर एच) (Rh–) है। Rh++ जीन Rh– जीन पर प्रभावी है। आपको अपना रक्त समूह पता होना क्यों चाहिये:-

एक आपात स्थिति जैसे कि दुर्घटना या रोगग्रस्त अवस्था में रक्त आधान को आवश्यकता होती है। रक्त दाता का रक्त केवल रक्त समूह मेल करने के बाद ही रक्त आधान किया जाता है। रक्त समूह A का एक व्यक्ति रक्त समूह A और AB के व्यक्ति को ही रक्त दान कर सकता है। AB रक्त समूह चार रक्त समूहों में से किसी से भी रक्त प्राप्त कर सकता है। O रक्त समूह केवल O से ही रक्त प्राप्त कर सकता है। लेकिन चारों रक्त समूह को रक्त दान कर सकता है। कभी-कभी रक्त समूह का पता पहले लगाने के लिये समय या सुविधा उपलब्ध नहीं हो तो यदि रक्त समूह का ज्ञान हो तो तत्काल रक्त आधान संभव है। अज्ञात रक्ताधान के लिये सुरक्षित रक्त समूह O– (O समूह और Rh–) है। B, रक्त समूह B और AB को रक्त दान कर सकता है। O रक्त समूह सार्वभौमिक दाता है। और AB सार्वभौमिक प्राप्तकर्त्ता है।

संपूर्ण मानव जाति को रक्त समूह के आधार पर केवल चार ही समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। आपको क्या लगता है कि, आगे मनुष्यों के द्वारा बनाया भेद, जाति, धर्म और लिंग के आधार पर मानवजाति का वर्गीकरण उचित है?

मनुष्यों में लिंग निर्धारण

अलिंग गुणसूत्रों के साथ लिंग गुणसूत्रों का संयोजन निर्धारण करता है कि भ्रूण एक लड़का पैदा होगा अथवा लड़की। भ्रूण दो युग्मकों, नर युग्मक या शुक्राणु और मादा युग्मक या अडें के द्वारा बनाये गये के संलयन युग्मज से विकसित होता है। युग्मक अगुणित (गुणसूत्रों की संख्या केवल N) है जबकि युग्मज द्विगुणित (2n) है।

अण्ड या ova सभी एक प्रकार के होते है। इनमें 22 अलिंग सूत्र तथा एक अकेला X गुणसूत्र होता है। शुक्राणु दो प्रकार के होते हैं। (i) 22 गुणसूत्र तथा एक X गुणसूत्र या (ii) 22 गुणसूत्र तथा एक Y गुणसूत्र वाले। जब अण्डे से X धारी शुक्राणु संलयित होता है संतान मादा होती है जिसमें 44 अलिंगसूत्र और दो X गुणसूत्र होते हैं। यदि X धारी शुक्राणु द्वारा अण्डे का निषेचन हो तो भ्रूण में 44 अलिंग गुणसूत्र व एक X व एक Y गुणसूत्र होंगे।

मनुष्यों में गुणसूत्रों के आधार पर लिंग निर्धारण
 मनुष्यों में गुणसूत्रों के आधार पर लिंग निर्धारण

आपने पहले ही कोशिका विभाजन के विषय में सीखा है और आपको पता है कि मध्यावस्था गुणसूत्रों को विषुवत रेखा पर पड़े हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। और इनका अध्ययन चित्र या सूक्ष्मदश्र्ाी के द्वारा किया जा सकता है। फिर आप आसानी से पहचान कर सकते हैं कि मानव पुरुष में गुणसूत्र 44 अलिंग गुणसूत्र +XY और महिला में 44 अलिंग गुण सूत्र +XX हैं। अत: यदि कोई स्त्री नर संतान उत्पन्न नहीं करती तो उसे दोष देना बिल्कुल गलत होगा जैसा कि हमारे देश में कुछ अनजान परिवारों में होता है। व्यक्ति का लिंग पूर्णत: एक संयोग की बात है उसके लिये न तो मां और न ही पिता जिम्मेदार हैं।

प्रसव पूर्व निदान तकनीक (विनियमन और दुरूपयोग निवारण) अधिनियम 1994 अधिनियमित करने के पश्चात 1 जनवरी 1996 से मादा भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिये प्रयोग में लाया गया। इस अधिनियम ने भ्रूण का लिंग निर्धारण और उसका खुलासा करने पर प्रतिबंध लगा दिया। यह किसी भी प्रसव पूर्व लिंग का निर्धारण करने से संबंधित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है और उसके उल्लंघन के लिये सजा पाने का प्रावधान है। जो व्यक्ति इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। वह कारावास और जुर्माने के साथ दंडनीय हैं।

वंशानुगत विकार

आपको पहले से ही पता है कि जीन सभी लक्षणों को नियंत्रित करती हैं। कभी कभी किसी जीन का युग्मक या युग्मज में बदलाव उत्परिवर्तन आ जाता है। उत्परिवर्तित जीन सामान्य नहीं रह सकती। इसके अलावा कभी-कभी जनक में मौजूद कोई दोषी जीन की अभिव्यक्ति नहीं होती क्योंकि दोषी जीन की अभिव्यक्ति उसके जोड़े के दूसरे सामान्य जीन ने दबा छिपा रखा हो। परंतु हो सकता है कि संतान में प्रत्येक जनक से वही एक-एक दोषी जीन पहुंच जाये और दोषी जीन की जोड़ी की उपस्थिति से एक हानिकारक प्रभाव आ जाए। इस तरह के विकार को वंशानुगत या आनुवंशिक विकार कहा जाता है।

वंशानुगत विकार

वंशानुगत या आनुवंशिक विकार किस प्रकार होता है यह दिखाया गया है

वंशागत दोष अनेक प्रकार के होते हैं। इनमें से कुछ केवल एक दोषपूर्ण प्रभावी जीन के कारण हो सकते हैं। और कभी कभी दो दोषी अप्रभावी जीनों के कारण होते हैं। आनुवंशिक दोषों का औषधियों से उपचार नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिक ऐसी विधियों की खोज में लगे हुये हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति में मौजूद दोषपूर्ण जीन को हटाया जा सके अथवा उसके स्थान पर एक सामान्य जीन डाला जा सके। इसे जीन प्रस्थापन चिकित्सा (Gene Replacement Therapy) कहते हैं।

सामान्य आनुवंशिक (वंशानुगत) विकार

आनुवंशिक (वंशानुगत) विकार कई हैं। सामान्यत: पाये जाने वाले तीन वंशागत दोष हैं थैलेसीमिया, हीमोफीलिया और रंगान्धता

  1. थैलेसीमिया - इस दोष से ग्रस्त रोगियों में सामान्य हीमोग्लोबिन बना सकने की क्षमता नहीं होती (हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का वह वर्णक है जो आक्सीजन को ऊतक तक पहुंचाता है) ऐसा इसी लिये होता है क्योंकि थैलसीमिक व्यक्ति में हीमोग्लोबिन के उत्पादन करने वाले जीन के जोड़े में दोनों ही जीन दोषपूर्ण होती है। थैलेसीमिया रोगियों को जीवित रखने के लिये उन्हें बार-बार रक्त आधान करना (रक्त चढ़ाना) पड़ता है।
  2. हीमोफीलिया - हीमोफीलिया से पीड़ित रोगियों में या तो केवल एक ही जीन दोषी है या वह जीन जो रक्त के स्कंदन को नियंत्रण के लिये जिम्मेदार पदार्थ का उत्पादन करती, है, की कमी होती है। ऐसे पदार्थ के अभाव में रक्त का स्कंदन नहीं होता है। एक बार रक्त बहना शुरू हो जाय तो वह आसानी से बहना बंद होता है।
  3. रंगांधता - अनेक प्रकार की रंगांधता पाई जाती हैं। परंतु इस विकार के सबसे सामान्य रूप में एक व्यक्ति हरे और नीले रंग में भेद नहीं कर पाता। यह भी एक दोषपूर्ण जीन की उपस्थिति या रंग दृष्टि के लिये जिम्मेदार जीन की अनुपस्थिति के कारण होता है।
हीमोफीलिया और रंगांधता दोनों में ही दोषपूर्ण जीन एक्स (X) गुणसूत्र पर स्थित है। और इसलिये विकार मां से बेटे को पारित हो जाता है। क्योंकि बेटा X गुणसूत्र मां से और Y गुणसूत्र पिता से प्राप्त करता है। मां में दो X गुणसूत्र के कारण दोष दिखाई नहीं देता। इसके अतिरिक्त बेटी में एक X गुणसूत्र मां से विरासत में मिला दोषपूर्ण जीन के साथ होता है परन्तु वह पिता से प्राप्त ग् गुणसूत्र के सामान्य जीन के प्रभाव से ढक जाता है। क्योंकि दोषपूर्ण जीन X गुणसूत्र पर स्थित है, बेटा आनुवंशिक विकार से ग्रस्त होता है। क्योंकि नर में केवल एक X गुणसूत्र और एक Y गुणसूत्र है इसलिये दोष पूर्ण जीन ढकी नहीं जा पाती है।

आनुवंशिक परामर्श

थैलेसीमिया एक अलिंगसूत्री आनुवंशिक विकार है। जबकि हीमोफीलिया और रंगांधता लिंगसूत्री और X गुणसूत्री विकार हैं। अब आप इस बात की सराहना करेंगे कि क्यों करीबी रिश्तेदारों के बीच विवाह जिसे सजातीय विवाह भी कहते है; उसे हतोत्साहित किया जाता है। रिश्तेदारों के बीच विवाह में दोषपूर्ण जीन के वंश द्वारा विरासत में पाने की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि दोनों जनक रिश्तेदार होने के कारण दोषपूर्ण जीन के अधिकारी हो सकते है। और यदि दो दोषपूर्ण जीन माता पिता से संतानों में पारित होती है तो वह व्यक्त (दिखायी) हो जाती है इसलिये यह आवश्यक है कि वंश में होने वाली आनुवंशिक दोष की संभावना को समझें और पेशेवर आनुवंशिक सलाहकारों की सलाह लें। आनुवंशिक परामर्श से एक आनुवंशिक विकार की विरासत की संभावना का पता लगने में मदद मिलती है ताकि लोग सूचनार्थ निर्णय ले सकते हैं।

मानव जीनोम

आप अच्छी तरह कल्पना कर सकते हैं कि मनुष्य की संरचना, व्यवहार और शरीर के कार्य जटिल हैं। अत: मनुष्यों के लक्षणों को बहुत सारी जीन नियंत्रित करती हैं। सन 2003 में मनुष्य के इन जीनों की पहचान, गुणसूत्रों पर उनका स्थान और न्यूक्लीओटाइड के गठन के संयोजन की जानकारी संभव हुई। विभिन्न जीनों के गठन को जीनोम (Genome) कहते हैं। मानव जीनोम की सहायता से आनुवंशिक दोष की जानकारी और उसके लिये उपचार तैयार किये जा सकते हैं। आनुवंशिक विकारों से पीड़ित लोगों के लिये यह आशा बंधाता है क्योंकि अब मानव जीनोम की हर जीन का स्थान ज्ञात है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग

जेनेटिक इंजीनियरिंग को पुन: संयोजक डीएनए तकनीक (Recombinant DNA Technique) भी कहा जाता है। इस तकनीक में एक प्रजाति के एक जीव से जीन एक अन्य प्रजाति के जीव के जीनोम का हिस्सा बनने के लिये स्थानांतरित किया जा सकता है। बैक्टीरिया में मौजूद प्लाज्मिड के माध्यम से स्थानान्तरण संभव है। प्लाज्मिड बैक्टीरिया में स्थित एक वृत्ताकार डीएनए अणु है। यह बैक्टीरिया के गुणसूत्र का भाग नहीं है। स्थानांतरण वायरस के माध्यम से भी इस प्रकार का स्थानांतरण संभव है। यह वायरस जीवाणु पर हमला करता है, इसे जीवाणुभोजी कहते हैं। यह कोशिकाओं के संबंध (बैक्टीरिया की कोशिकायें कृत्रिम पोषण में) से जीन लेकर जीवाणु में स्थानांतरण करता है। एक आवश्यक-जीन-युक्त जीवाणु का ‘क्लोन’ (Clone) दूसरी जाति के जीन बनाता है जो जीन प्रतिस्थापन के दौरान एक दोषपूर्ण जीन की जगह प्रयोग में लाई जा सकती है। जेनेटिक इंजीनियरिंग के अन्य भी कई फायदे हैं। कोशिश करके और कम से कम ऐसे दो लाभ खोजिए। आप किताबों या इंटरनेट की मदद ले सकते हैं।

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