क्षेत्रीय असमानता क्या है भारत में असमानता के कारण?

क्षेत्रीय असमानता का अभिप्राय है देश के विभिन्न राज्यों के आर्थिक तथा प्रति व्यक्ति आय के स्तर में पाई जाने वाली असमानता। देश के कुछ राज्यों जैसे पंजाब, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात आदि के आर्थिक विकास की दर एवम् प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है। इसके विपरीत कई राज्यों जैसे, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, असम आदि के आर्थिक विकास की दर एवम् प्रति व्यक्ति आय काफी कम है।

भारत में असमानता के कारण

1. भूमि के स्वामित्व में पाई जाने वाली असमानता - भारत में असमानता अर्थात आय तथा सम्पत्ति में पाई जाने वाली असमानता का मुख्य कारण जमींदारी प्रथा तथा भूमि के स्वामित्व में पाई जाने वाली असमानता है। स्वतन्त्रता से पहले देश में जमींदारी प्रथा पाई जाती थी। इसके फलस्वरूप भू-स्वामित्व में सारी असमानता पाई जाती थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई परन्तु भूमि के स्वामित्व की असमानता में कोई कमी नहीं हुई है। इस समय देश की 10 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या के पास कृषि भूमि का 56 प्रतिशत भाग है तथा 70 प्रतिशत जनसंख्या के पास केवल 14 प्रतिशत भाग है। भूमि के स्वामित्व में पाई जाने वाली असमानता ग्रामीण क्षेत्र में पाई जाने वाली आय की असमानता का मुख्य कारण है। 

2. शहरी क्षेत्र में सम्पत्ति का निजी स्वामित्व - शहरी क्षेत्र में उद्योगों, व्यापार, भूमि, मकानों आदि सम्पत्ति पर निजी स्वामित्व पाया जाता है। कुछ लोगों के अधिकार में अधिकतर शहरी सम्पत्ति होती है। शहरों में पूंजीपति, उद्योगों, व्यापार, यातायात तथा अन्य व्यवसायों में पूंजी का निवेश करके अधिक आय प्राप्त कर पाते हैं, परन्तु शहरों का मध्यम तथा निर्धन वर्ग अपना जीवन निर्वाह भी बड़ी कठिनाई से कर पाता है। यह वर्ग अधिक शिक्षित तथा योग्य होता है परन्तु पूंजी की कमी के कारण इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होने पाता। इसके फलस्वरूप शहरी क्षेत्र में भी आय तथा सम्पत्ति के वितरण की असमानता बना रहती है।

3. विरासत का कानून - भारत में प्रचलित उत्तराधिकार के नियमों के फलस्वरूप भी आय तथा सम्पत्ति के वितरण की असमानता में वृद्धि हुई है तथा यह स्थाई बन गई है। उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार किसी धनी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी सम्पत्ति उसकी सन्तान को मिलती है। इस प्रकार धनी व्यक्ति की सन्तान प्रारम्भ से ही धनी हो जाती है। इसके विपरीत किसी निर्धन व्यक्ति की मृत्यु पर उसकी सन्तान को कोई सम्पत्ति प्राप्त नहीं होती बल्कि ऋण प्राप्त होते हैं और वे आरम्भ से ही निर्धन होते हैं। निर्धन अपने परिश्रम द्वारा ही अपनी आय तथा सम्पत्ति मेंं वृद्धि करने का प्रयत्न कर सकते हैं। परन्तु इसकी सम्भावना बहुत कम होती है क्योंकि इसके लिए उन्हें अवसर नहीं मिलते। इसलिए उत्तराधिकार के नियमों ने भारत में असमानता को स्थायी बना दिया है।

4. व्यावसायिक प्रशिक्षण की असमानता - कुछ व्यवसायों जैसे - डाक्टर, इंजीनियर, कम्पनी प्रबंधक तथा वकीलों आदि की आय अन्य व्यवसायों में लगे हुए लोगों की तुलना में बहुत अधिक होती है। यह प्रशिक्षण के कारण सम्भव हो पाता है। इन व्यवसायों में प्रशिक्षण ग्रहण करना महंगा तथा अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है। इन व्यवसायों का प्रशिक्षण प्राप्त करना निर्धन व्यक्तियों के बच्चों के लिए साधारणतया सम्भव नहीं है। इन व्यवसायों में अधिकतर धनी वर्ग के बच्चे ही प्रशिक्षण प्राप्त कर पाते हैं। इसके फलस्वरूप आय की असमानता बढ़ती जाती है।

5. महंगाई - कीमतों के बढ़ने का धनी वर्ग की तुलना में निर्धन वर्ग पर अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप निर्धन वर्ग की वास्तविक आय में काफी कमी हो गई है। मुद्रा स्फीति भी वास्तविक आय की असमानता में होने वाली वृद्धि के लिए जिम्मेदार है।

6. वित्तीय संस्थाओं की क्रेडिट पॉलिसी - देश में बैंकिंग तथा विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं जैसे - औद्योगिक बैंक, औद्योगिक वित्तीय तथा साख निगम राज्य वित्त निगम तथा जीवन बीमा आयोग की स्थापना हुई है। इन संस्थाओं ने पूंजीपतियों को ही अधिक ऋण दिए हैं। निर्धन वर्ग को कम साख सुविधाएं दी गई हैं। इसके फलस्वरूप पूंजीपति ही अपने उद्योगों तथा व्यवसायों का अधिक विकास कर सके हैं। उनकी आय तथा सम्पत्ति में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। इसके विपरीत निर्धन वर्ग पर्याप्त साख के अभाव में अपनी आर्थिक स्थिति में विशेष सुधार करने में असमर्थ रहा है। वित्तीय संस्थाओं की वर्तमान साख नीति के फलस्वरूप भी आय की असमानता में वृद्धि हुई है।

7. अप्रत्यक्ष करों का अधिक बोझ -भारत में भारी मात्रा में कर लगाए गए हैं। परन्तु प्रत्यक्ष करों जैसे - आय कर, निगम कर आदि की तुलना में अप्रत्यक्ष करों जैसे - उत्पादन कर, बिक्री कर, आयात-निर्यात कर आदि के भार में काफी अधिक वृद्धि हुई है। अप्रत्यक्ष करों का धनी वर्ग की तुलना में निर्धन वर्ग को अधिक भार उठाना पड़ता है। इसके फलस्वरूप निर्धन वर्ग की वास्तविक आय कम होती है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष करों के भार में वृद्धि होने के कारण वास्तविक आय की असमानता में अप्रत्यक्ष रूप से वृद्धि हुई है।

8. भ्रष्टाचार - देश में भ्रष्टाचार और स्मगलिंग में काफी वृद्धि हुई है। इसके फलस्वरूप भी आय की असमानता बढ़ी है। जो लोग रिश्वत देने की क्षमता रखते हैं उन्हें कोटा, परमिट, औद्योगिक लाइसेंस आसानी से मिल जाते हैं। इनके द्वारा एक ओर तो उनकी आय में बहुत अधिक वृद्धि होती है और दूसरी ओर जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को रिश्वत दी जाती है उनकी आय में तेजी से वृद्धि होती है। इसके विपरीत ईमानदारी और कानून के अनुसार कार्य करने वाले लोगों की आय में बहुत कम वृद्धि होती है। भ्रष्टाचार के फलस्वरूप काला धन उत्पन्न होता है। सरकार ने भी समय-समय पर काले धन को कानूनी बनाने अथवा सफेद धन में बदलने के अवसर प्रदान किए हैं। इन सबके फलस्वरूप देश में आय और सम्पत्ति के वितरण की असमानताओं में वृद्धि हुई है।

9. बेरोजगारी - बेरोजगारी भारत में आय की असमानता के प्रमुख तत्व हैं। बेरोजगारी की अवस्था में व्यक्ति आय के सभी स्रोतों से वंचित रह जाता है। भारत में बेरोजगारों की संख्या प्रत्येक योजना के साथ बढ़ी है। अधिकांश बेरोजगार व्यक्ति समाज के निर्धन वर्गों से जुड़े हुए हैं, समय के साथ इनकी संख्या में वृद्धि होने से आय की असमानता में वृद्धि हुई है।

10. कर चोरी - जिन अधिकारियों पर करों के इकट्ठा करने की जिम्मेवारी है, वे कार्यकुशल नहीं है। इसके फलस्वरूप लोग करों से बचने में सफल हो जाते हैं। ये लोग या तो कर देते ही नहीं अथवा वास्तविक कर देय राशि से कम कर देते हैं। ऐसे अनैतिक लोग कराधिकारों को झूठे हिसाब-किताब दिखलाते हैं और स्थिति का इस विधि में जोड़-तोड़ करते हैं कि उनके ऊपर कर-भार कम से कम हों। भारतीय अर्थव्यवस्था में काले धन की मात्रा की वृद्धि ने देश में सम्पत्ति तथा आय के वितरण में असमानता को ओर अधिक बढ़ावा दिया है।

1 Comments

  1. शिक्षा के क्षेत्र में क्या क्या असंतुलन है

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