वित्तीय प्रबंधन का अर्थ, परिभाषा, कार्य एवं महत्व

वित्तीय प्रबंधन व्यावसायिक प्रबंधन का एक कार्यात्मक क्षेत्र है तथा यह संपूर्ण प्रबंधन का ही एक भाग होता है। वित्तीय प्रबंधन उपक्रम के वित्त तथा वित्तीय क्रियाओं के सफल तथा कुशल प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है। यह कोई उच्चकोटि के लेखांकन अथवा वित्तीय सूचना प्रणाली नहीं होती है। यह फर्म के वित्त तथा वित्त से संबंधित पहलुओं पर निर्णय करने तथा नीति निर्धारित करने से संबंधित क्रियाओं का समूह होता है। इसमें पूंजी, रोकड़, प्रवाह, साख, मूल्य एवं लाभ नीतियाँ, निष्पत्ति नियोजन एवं मूल्यांकन तथा बजटरी नियंत्रण नीतियाँ एवं प्रणालियाँ शामिल होती हैं। 

बजटरी नियंत्रण एवं प्रणालियाँ प्रमुख रूप से वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में आती हैं। परन्तु ये अन्य विभागों के सहयोग एवं सहमति के बगैर प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं किये जा सकते है। 

वित्तीय प्रबंधन उपक्रम के व्यापक हितों का प्रतिनिधित्व करता है। तथा वह इनके लिए संस्था का रखवाला कुत्ता होता है। 

वित्तीय प्रबंधन की परिभाषा

वित्तीय प्रबंधन का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाओं का अध्ययन किया जा सकता है : 

हॉबर्ड एवं उपटन के शब्दों में, “वित्तीय प्रबंधन नियोजन तथा नियंत्रण का वित्त कार्य पर लागू करना है।” 

वैस्टन एवं ब्रा्रा्राइगम के अनुसार, “ वित्तीय प्रबंधन वित्तीय निर्णय लेने की वह क्रिया है जो व्यक्तिगत उद्देश्यों और उपक्रम के उद्देश्यों में समन्वय स्थापित करती है।” 

जे. एल. मैसी के अनुसार, “वित्तीय प्रबधं एक व्यवसाय की वह सचं ालनात्मक प्रक्रिया है जो कुशल प्रचालनों के लिए आवश्यक वित्त को प्राप्त करने तथा उसका प्रभावशाली ढंग से उपयोग करने के लिए दायी होता है।

जे. एफ. बेडले के अनुसार, “वित्तीय प्रबंधन व्यावसायिक प्रबंधन का वह क्षेत्र है जिसका संबंध पूँजी के विवेकपूर्ण उपयोग एवं पूँजी साधनों के सतर्क चयन से है; ताकि व्यय करने वाली इकाई (फर्म) अपने उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर बढ़ सके। इजरा सोलोम के अनुसार, “वित्तीय प्रबंधन का तात्पर्य एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक òोते अर्थात् पूँजी कोष के कुशलतम उपयोग से होता है।

व्हीलर के अनुसार, “वित्तीय प्रबंधन का अर्थ उस क्रिया से होता है जो उपक्रम के उद्देश्यों एवं वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतू पूँजी कोषों के संग्रहण एवं उनके प्रशासन से संबंध रखती है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है वित्तीय प्रबंधनन व्यावसायिक प्रबंधन का एक वह क्षेत्र है जिसके अन्तर्गत व्यवसाय की वित्तीय क्रियाओं एवं वित्त कार्य का कुशल संचालन किया जाता है। इसके लिए नियोजन, आबंटन एवं नियंत्रण कार्य किये जाते हैं।

वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति अथवा विशेषताएँ

आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्त कार्य व्यावसायिक प्रबंधन में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। अत: इससे वित्तीय प्रबंधन की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण बन गई है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्त कार्य अथवा वित्तीय प्रबंधन की अग्र विशेषताएँ होती है।

1. व्यावसायिक प्रबंधन का एक अभिन्न अंग - वित्तीय प्रबंधन की परंपरागत विचारधारा के प्रचलन के समय वित्तीय प्रबंधन को व्यवसाय के प्रबंधन में अमहत्त्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता था, परन्तु आधुनिक व्यवसायिक प्रबंधन में वित्तीय प्रबंधन व्यावसायिक प्रबंधन का एक प्रमुख अंग है तथा वित्तीय प्रबंधन उच्च प्रबंधन टोली के सक्रिय सदस्यों में से एक होता है। व्यवसाय की गतिविधि के साथ वित्त का प्रश्न जुड़ा हुआ है, अत: वित्तीय प्रबंधन सभी महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णयों में आधारभूत भूमिका निभाता है।

2. सतत प्रक्रिया - परंपरागत वित्तीय प्रबंधन की धारणा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबंधन की प्रक्रिया निरन्तर नहीं चलती थी, बल्कि यह प्रक्रिया कुछ विशिष्ट घटनाओं के धटित होने पर जाग्रत होती थी तथा उनसे उत्पन्न वित्त प्राप्ति की समस्याओं के समाधान होने पर मंद हो जाती थी। परन्तु आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबंधन की प्रक्रिया सतत चलने वाली प्रक्रिया है तथा व्यवसाय की सफलता के लिए वित्तीय प्रबंधन को निरंतर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है।

3. वर्णनात्मक कम तथा विश्लेषणात्मक अधिक - परंपरागत वित्तीय प्रबंधन वर्णनात्मक अधिक तथा विश्लेषणात्मक कम था, जबकि आधुनिक वित्तीय प्रबंधन वर्णनात्मक कम तथा विश्लेषणात्मक अधिक है। आज वित्तीय विश्लेषण की सांख्यिकीय तथा गणितात्मक विधियाँ विकसित हो गई हैं, जिनके द्वारा किन्हीं दी हुई आन्तरिक तथा वाह्य परिस्थितियों के संदर्भ में संभावित विकल्पों में से श्रेष्ठ विकल्प को चुना जा सकता है।

4. लेखांकन कार्य से भिन्न - बहुत से लोग वित्त कार्य तथा लेखांकन कार्य को एक ही मानते हैं, क्योंकि दोनो में बहुत सी शर्तें एवं अभिलेख (Termsand records) एक समान ही होते हैं, परन्तु वित्त कार्य लेखांकन कार्य से भिन्न होता है। लेखांकन कार्य में वित्तीय एवं संबंधित समंकों का संग्रहण किया जाता है जबकि वित्त कार्य में इनका निर्णयों के लिए विश्लेषण एक उपयोग किया है।

5. केन्द्रीयकृत स्वभाग - आधुनिक व्यावसायिक प्रबंधन के विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय प्रबंधन का स्वभाव केन्द्रीयकृत है। जहाँ उत्पादन, विपणन तथा कर्मचारी प्रबंधन के कार्यों का अत्यधिक विकेन्द्रीकरण सम्भव है। वहाँ दिन कार्य का व्यावहारिक दृष्टिकोण से विकेन्द्रीयकरण वांछनीय नहीं है तथा वित्त कार्य के केन्द्रीयकरण द्वारा ही व्यवसाय के उद्देश्यों को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।

6. व्यापक क्षेत्र - वित्तीय प्रबंधन का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। वित्तीय प्रबंधन का कार्य उपक्रम की अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं के लिए साधनों को प्राप्त करना, उनका आबंटन करना तथा अनुकूलतम उपयोग करना है। वित्तीय प्रबंधन लेखांकन अंकेक्षण, लागत लेखांकन, व्यावसायिक बजटन, रोकड़ व साख प्रबंधन, सामग्री प्रबंधन आदि के लिए भी उत्तरदायी होता है।

7. उच्च प्रबंधकों के निर्णय में सहायक - वित्तीय प्रबंधन की आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबंधन उपक्रम के सर्वोच्च प्रबंधन को निर्णय लेने में सहायता पहुँचाता है। वित्तीय प्रबंधन उपक्रम की वित्तीय स्थिति तथा किसी अवधि विशेष के कार्यों की निष्पत्ति के संबंध में आवश्यक तथ्य, आंकड़े तथा प्रतिवेदन उच्च प्रबंधकों को प्रस्तुत करता है जिनके आधार पर उच्च प्रबंधन ठोस निर्णय लेते हैं। इसलिए आजकल वित्तीय प्रबंधन अथवा नियंत्रक संचालक मण्डल सदस्य होता है। 

8. कार्य निष्पत्ति का मापक - आधुनिक युग में व्यावसायिक उपक्रम में विभिन्न कार्यों की निष्पत्ति (Performance) को वित्तीय परिणामों (Financial Results) में मापा जाता है। यदि एक उपक्रम पूर्व निर्धारित यात्रा में आगम प्राप्त कर सका है तथा लागतों को उचित स्तर पर रख सका है तो वह अपने लाभ उद्देश्य अथवा संपदा के मूल्य को अधिक करने के उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होता है। वित्तीय प्रबंधन को संस्था के लिए तरलता तथा लाभदायक के कार्यों (Liquidity and Profitability Functions) को पूरा करना होता है। इन कार्यों के लिए उसे जोखिम तथा लाभदायकता का सही विभाजन करना होता है। ऐसा करने पर ही वांछित निष्पत्ति का स्तर प्राप्त किया जा सकता है।

9. उपक्रम के अन्य विभागों से समन्वय आवश्यक - एक वित्तीय प्रबंधन उपक्रम के अन्य विभागों के सहयोग तथा समन्वय के बगैर प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य नहीं कर सकता है। हर विभाग के कार्यों का वित्तीय परिणामों पर प्रभाव पड़ता है, अत: किसी भी एक अन्य विभाग के असहयोग की स्थिति में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैें। वित्त कार्य का अन्य सभी कार्यों से पूर्ण समन्वय आवश्यक होता है।

10. वित्तीय नियोजन, नियंत्रण एवं अनुवर्तन - आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबंधन में साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग के लिए योजना बनाना, उनके अनुसार साधन प्राप्त करना, प्रभावी उपयोग करना, बजट के अनुसार नियंत्रण करना विचलनों की खोज करना तथा अनुवर्तन (Feedback) द्वारा सुधारात्मक कार्य करना शामिल होता है।

11. सभी प्रकार के संगठनों पर लागू - वित्तीय प्रबंधन सभी प्रकार के संगठनों में लागू होता है।, चाहे वे संगठन निर्माण हों अथवा सेवा संगठन हों अथवा एकांकी स्वामित्व वाले अथवा नियमित संगठन। यह गैर लाभकारी संगठनों की क्रियाओं पर भी लागू होता है।

वित्तीय प्रबंधन का क्षेत्र अथवा कार्य

एक व्यावसायिक उपक्रम में वित्तीय प्रबंधन को कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य करने होते हैं, जिन्हें वित्त के कार्यों के रूप में जाना जाता है। इन्हें वित्त कार्य के क्षेत्र अथवा वित्त कार्य की विषय वस्तु के रूप में भी जाना जाता है। वित्तीय प्रबंधन के कार्यों तथा उनके नामों के बारे में वित्तीय विशेषज्ञ एक मत के नहीं हैं। विभिन्न विशेषज्ञ वित्तीय प्रबंधन के विभिन्न कार्य बताते हैं। तथा एक ही कार्य को विभिन्न विशेषज्ञ विभिन्न नामों से करते हैं, उदाहरण के लिए कुछ विशेषज्ञों ने वित्तीय प्रबंधकों द्वारा किये जाने वाले निर्णयों के अनुसार इनके कार्यों को विनियोग-निर्णय (Investment Decisions), वित्त प्रबंधन निर्णय (Financing Decisions) तथा लाभांश नीति निर्णय (Dividend Policy Decision) का नाम दिया है तथा कुछ अन्य ने वित्तीय नियोजन, संपत्तियों का प्रबंधन, कोषों का संग्रहण तथा विशेष समस्या का समाधान नाम दिया है। कुछ विशेषज्ञों ने वित्तीय प्रबंधन के कार्यों को आवर्ती वित्त कार्यों (Recurring finance Functions), अनावर्ती वित्त कार्यों (Non-recurring Finance Functions) तथा नैत्यक कार्यों (Routine Functions) में बाँट कर इनका वर्णन किया है। हम यहाँ पर सुविधा की दृष्टि से इन तीनों प्रकार के वित्त कार्यों का वर्णन कर सकते है :

1. आवर्ती वित्त कार्य -

आवर्ती वित्त कार्य वे होते हैें जो फर्म के कुशल संचालन तथा फर्म के उद्देश्य की पूर्ति हेतु निरन्तर पूरे किये जाते हैं। कोषों का नियोजन एवं संग्रहण, कोषों एवं आय का आबंटन, कोषों का नियंत्रण तथा वित्त कार्य का संस्था के अन्य कार्यों से समन्व आवर्ती वित्त कार्य माने जाते है। आवर्ती वित्त कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है :

1. कोषों का नियोजन - एक वित्तीय प्रबंधन का सर्वप्रथम कार्य व्यवसाय के लिए चाहे, वह नया हो अथवा पुराना, एक सुदृढ़ वित्तीय योजना तैयार करना होता है। वित्तीय योजना का तात्पर्य उस योजना से होता है जिसके द्वारा व्यवसाय के वित्तीय कार्यों का अग्रिम निर्धारण किया जाता है। फर्म की वित्तीय योजना का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे फर्म के कोषों का समुचित उपयोग हो सके तथा उनकी तनिक सी भी बर्बादी न हो। वित्तीय योजना के निर्माण के लिए फर्म के दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन वित्तीय उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न वित्तीय नीतियों एवं व्यवहारों की रचना की जाती है। वित्तीय नियोजना के लिए निम्न नीतियों का निर्मार्ण्ण किया जाता है : 
  1. पूँजी की मात्रा तथा अवधि को निर्धारित करने वाली नीतियाँ;
  2. पूँजीकरण को निर्धारित करने वाली नीतियाँ;
  3. कोष प्राप्त करने के लिए विभिन्न òोतो के चुनाव को निर्धारित करने वाली नीतियाँ;
  4. स्थायी तथा चालू संपत्तियों के विनियोजन से संबंधित नीतियाँ; तथा
  5. आय के निर्धारण एवं वितरण के संबंध में नीतियाँ
2. कोष का संग्रहण - वित्तीय प्रबंधन को वित्तीय योजना के निर्माण के बाद उसमें निर्धारित साधनों से कोषों का संग्रहण करना आवश्यक है। व्यवसाय की स्थापना के समय दीर्घकालीन कोषों की प्राप्ति के लिए अंशों का निर्गमन किया जाता है तथा इसके लिए अभिगोपकों की सेवाओं का प्रयोग किया जाता है। पूर्व-स्थापित प्रतिष्ठि उपक्रम की स्थिति में वित्तीय प्रबंधन को यह निर्णय लेना होता है कि दीर्घकालीन वित्तीय साधन अंशों के निर्गमन से प्राप्त किए जायें अथवा ऋण पत्रों द्वारा अथवा दोनों से। वित्तीय प्रबंधन यह निर्णय उपक्रम की लाभदायकता, वर्तमान वित्तीय स्थिति, पूंजी एवं मुद्रा बाजार की स्थिति, वित्तीय संस्थाओं की सहायता करने की नीति आदि बातों को ध्यान में रखकर कर सकता है। वित्तीय प्रबंधक को विभिन्न स्रोतों से पूंजी प्राप्त करने के वित्तीय परिणामों पर विचार कर के दी हुइर््र परिस्थितियों में श्रेष्ठ साधन का चुनाव करना चाहिए तथा उस साधन से अनुकूलतम शर्तों पर वित्त प्राप्त करना चाहिए। वित्तीय प्रबंधक को चुने गये स्रोत से वित्त प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझौता करना चाहिए।

3. कोषों का आबंटन - वित्तीय प्रबंधक का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य विभिन्न संपत्तियों में साधनों का आबंटन करना होता है। साधनों के आवंटनों में प्रतियोगी प्रयोगों, लाभदायकता, अनिर्वायता, संपत्तियों के प्रबंधन तथा फर्म के समग्र प्रबंधन को ध्यान में रखा जाना चाहिए यद्यपि स्थायी संपत्तियों का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी वित्तीय प्रबंधन की नहीं होती है परन्तु उसे उत्पादन प्रबंधक को स्थायी संपत्तियों की व्यवस्था करने में सहायता पहुँचानी चाहिए। वित्तीय प्रबंधन ही उत्पादन प्रबंधन को पूंजी परियोजनाओं के विश्लेषण तथा फर्म के पास उपलब्ध पूँजी की जानकारी देती है। वित्तीय प्रबंधक रोकड़ प्राप्यों तथा सामग्री के कुशल प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता है। वित्तीय प्रबंधन को चालू संपतियों में कोषों का विनियोजन करते समय लाभदायकता तथा तरलता में उचित समायोजन करना होता है।

4. आय का आबंटन - वित्तीय प्रबंधन को ही फर्म की वार्षिक आय विभिन्न प्रयोगों में आबंटित करनी होती है। फर्म की आय को विस्तार कार्यों के लिए रोका जा सकता है अथवा इसे देय ऋणों के भुगतान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है अथवा इसे मालिकों को लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। इस संबंध में निर्णय फर्म की वित्तीय स्थिति, वर्तमान तथा भावी नगदी आवश्यकताओं एवं अंशधारियों की रुचि के अनुसार लिए जाते है।

5. कोषों का नियंत्रण - वित्तीय प्रबंधन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य साधनों के प्रयोग को नियन्त्रित करना है। इस कार्य के लिए वित्तीय निष्पादन प्रमाप निर्धारित किया जाता है तथा उनके संदर्भ में वास्तविक निष्पादन की जाँच करके विचलनों को ज्ञात किया है। यदि ज्ञात विचलन सह्य सीमा (Tolerance Limit) के बाहर होते हैं तो वहाँ शीघ्र सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। कोषों का नियंत्रण कार्य कोषों की कमी के समय अधिक महत्त्वपूर्ण बन जाता है।

6. फर्म के अन्य विभागों से समन्वय - किसी भी उपक्रम की सफलता उपक्रम के विभिन्न विभागों के कार्यों में पाये जाने वाले समन्वय पर निर्भर करती है। वित्त कार्य व्यवसाय के प्रत्येक कार्य को प्रभावित करता है, अत: वित्त विभाग तथा अन्य विभागों में अच्छा समन्वय होना चाहिए। वित्तीय प्रबंधन का यह दायित्व है कि वह फर्म में लिये गये विभिन्न निर्णयों में इस प्रकार का समन्वय स्थापित करे कि जिससे उनमें एकरूपता हो तथा वित्तीय उद्देश्यों की पूर्ति हो तथा वित्तीय साधनों की बाधाएँ कार्यों को विपरीत रूप से कम से कम प्रभावित करें।

2. अनावर्ती वित्त कार्य -

अनावर्ती वित्त कार्य वे कार्य होते हैं जो एक वित्तीय प्रबंधन को यदा-कदा संपन्न करने होते हैं। कंपनी के प्रवर्तन के समय वित्तीय योजना का निर्माण, संविलयन के समय संपत्तियों का मूल्यांकन, तरलता के अभाव के समय पुनर्समायोजन का कार्य आदि अनावर्ती वित्त कार्यों के कुछ उदाहरण है। इन विशिष्ट घटनाओं के घटने के समय उत्पन्न होने वाली वित्तीय समस्याओं के समाधान के कार्य वित्तीय प्रबंधन को ही करने होते हैं।

3. नैत्यक कार्य अथवा दैनिक कार्य -

इस वर्ग में वे कार्य शामिल किये जाते हैं जो नैत्यक प्रवृत्ति अथवा दैनिक प्रवृत्ति के होते हैं। ये कार्य प्रतिदिन निम्नस्तरीय कर्मचारियों जैसे - लेखाकार, रोकड़ियों, लिपिक आदि द्वारा किये जाते हैं। सामान्य: इनमें निम्नलिखित कार्यों को शामिल किया जाना है
  1.  रोकड़ प्राप्ति एवं उसके वितरण का पर्यवेक्षण।
  2. रोकड़ शेषों को व्यवस्थित व सुरक्षित रखना।
  3. प्रत्येक व्यवहार का लेखा करके लेखों को सुरक्षित करना।
  4. उधार के व्यवहारों का प्रबन्ध करना।
  5. प्रतिभूतियों व महऋत्त्वपूर्ण प्रलेखों की सुरक्षा करना।
  6.  पेंशन व कल्याण योजनाओं का प्रशासन।
  7. शीर्ष प्रबंधन को सूचनाएँ भेजना।
  8. राजकीय नियमों का पालन करना।

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