जॉन लॉक का जीवन परिचय, रचनाएँ, लाॅक के चिन्तन को प्रभावित करने वाले तत्व एवं परिस्थितियाँ

जाॅन लाॅक केवल राजनीतिक विचारक और अनुभववादी तत्ववेत्ता ही नहीं है अपितु पश्चिमी यूरोप और अमरीका की आधुनिक सांविधानिक सांस्कृतिक विचारधारा के निर्माण में भी उसका महत्वपूर्ण योगदान है। लोकतान्त्रिाक दर्शन की पृष्ठभूमि के निर्माण में उसका गौरवपूर्ण स्थान है।

जॉन लॉक का जीवन परिचय 

जॉन लॉक का जन्म 29 अगस्त, 1632 में सामरसेंट शायर के रिंग्टन नामक स्थान पर एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। जब लॉक का जन्म हुआ, उस समय हॉब्स की आयु 43 वर्ष थी और ब्रिटिश संसद अपने अधिकारों के लिए राजा के साथ संघर्ष कर रही थी। जब लॉक की आयु 12 वर्ष थी, इंगलैण्ड में गृहयुद्ध शुरू हो गया। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त करके लॉक ने 15 वर्ष की आयु में वेस्ट मिन्स्टर स्कूल में प्रवेश किया। 

लॉक ने 1652 ई0 में 20 वर्ष की आयु में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा की प्राप्ति हेतु गया। उसने वहाँ यूनानी भाषा, दर्शनशास्त्र तथा अलंकारशास्त्र का अध्यापक कार्य किया, परन्तु उस समय के संकीर्ण अनुशासन ने औपचारिक अध्ययन के लिए उसके उत्साह को मन्द कर दिया। 

उसने 1656 में बी0 ए0 तथा 1658 में एम0 ए0 की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में यूनानी भाषा, काव्यशास्त्र और दर्शनशास्त्र के अध्यापक के रूप में कार्य किया। इसके बाद लॉक ने एक चर्च में बिशप बनने का प्रयास किया, लेकिन उसको सफलता नहीं मिली। 

1660 में डेविड टॉमस नामक डॉक्टर के सम्पर्क में आने पर उसने चिकित्साशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करके इस क्षेत्र में अपनी रुचि बढ़ाई और एक सफल चिकित्सक बन गया। चिकित्सक के नाते सन् 1666 में उसके सम्बन्ध उस समय के सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और विग दल के संस्थापक लार्ड एश्ली से हुए। इसके बाद आगामी 15 वर्षों तक लॉक उनका निजी डॉक्टर रहा। उसने इस दौरान एश्ली के विश्वस्त सचिव के रूप में भी कार्य किया। इससे उसको ब्रिटिश राजनीति और राजनीतिज्ञों को जानने का मौका मिला। 

1672 में एश्ली चांसलर बने तथा लॉक ने उनकी कृपा से कतिपय महत्त्वपूर्ण शासकीय पदों पर कार्य किया। परन्तु रोमन कैथोलिक चर्च का पक्ष लेने की राजा की प्रवृत्ति का विरोध करने के कारण उसे 1673 में चांसलर के पद से हटा दिया गया। लॉक पर भी इसका प्रभाव पड़ा। लॉक इसके बाद 1675 में स्वास्थ्य लाभ हेतु फ्रांस चला गया और 1679 तक वहाँ रहा। वापिस लौटने पर उसे पुराने पद पर बिठाया गया। इस दौरान इंगलैण्ड में राजनीतिक विद्रोह की आग फिर से भड़क गई और राजा ने एश्ली से नाराज होकर 1681 में उसे पद से हटा दिया और प्रोटैस्टैण्ट धर्म का समर्थ करने के कारण उसे राजद्रोह का दोषी मानकर उस पर मुकद्दमा चलाया गया। बाद में मुक्त होकर वह हालैण्ड पहुँचा और 1688 तक वहीं रहा। इस दौरान उसने हालैण्ड में देश निर्वासित राजनीतिज्ञों से भेंट की। इस दौरान वह विलियम ऑफ ऑरेंज के सम्पर्क में आया। 

1688 में इंगलैण्ड की रक्तहीन क्रान्ति ;ठसववकेमसस त्मअवसनजपवदद्ध के सफल होने पर तथा विलियम ऑफ ऑरेंज द्वारा निमन्त्रण भेजे जाने पर वापिस इंगलैण्ड लौट आया। वहाँ पर लॉक को ‘कमिश्नर ऑफ अमील्स’ का पद दिया गया। 1700 में स्वास्थ्य की कमजोरी के कारण उसने इस पद से त्याग-पत्र दे दिया और 1704 में 72 वर्ष की उम्र में इस महान दार्शनिक की मृत्यु हो गई।

जॉन लॉक की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ

हालैण्ड से लौटकर लॉक ने लेखन कार्य प्रारम्भ किया। लॉक ने राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, शिक्षा, दर्शनशास्त्र आदि विषयों पर 30 से अधिक ग्रन्थ लिखे। यद्यपि उसकी सारी कृतियाँ 50 वर्ष की आयु के पश्चात प्रकाशित हुई। जॉन लॉक के महत्त्वपूर्ण लेखन कार्य के कारण उसकी गिनती इगलैण्ड के महान् लेखकों में की जाती है। लॉक के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं :-
  1. मनुष्य स्वभाव के सम्बन्ध में निबन्ध 
  2. शासन पर दो निबन्ध 
  3. सहिष्णुता पर पहला पत्र
  4. सहिष्णुता पर दूसरा पत्र
  5. सहिष्णुता पर तीसरा पत्र 
  6. शिक्षा से सम्बन्धित कतिपय विचार 
  7. केरोलिना का मौलिक संविधान
इन सभी रचनाओं में से ‘शासन पर दो निबन्ध’ लाॅक की महत्वपूर्ण रचना है। दूसरे निबन्ध में लेवियाथन में हाॅब्स द्वारा प्रतिपादित निरंकुशतावाद का विरोध किया गया है। वस्तुतः लाॅक के ग्रन्थ का उद्देश्य निरंकुशतावाद के आधारों का खण्डन करना और यह सिद्ध करना था कि 1688 की रक्तहीन क्रान्ति से राजा विलियम को प्राप्त राजसत्ता जनता की सहमति पर आधारित थी।

लाॅक के चिन्तन को प्रभावित करने वाले तत्व एवं परिस्थितियाँ 

लाॅक का समय राजनीतिक दृष्टि से उथल-पुथल का समय था। वह उस समय की परिस्थितियों, घटनाओं और विचारकों से प्रभावित हुआ। सर्वप्रथम वह 1688 की गौरवपूर्ण क्रान्ति की घटना से प्रभावित हुआ। नवम्बर 1688 में राजवुफमार विलियम तथा रानी मेरी का इंगलैण्ड में स्वागत किया गया और दिसम्बर में जेम्स द्वितीय ने वहां से भागकर प्रफांस में शरण ली। इस प्रकार रक्तहीन क्रान्ति पूरी हो गयी और ‘बिल आफ राइट’ राजसत्ता का नया अधिकार पत्र पार्लियामेण्ट द्वारा 1689 में पारित कर दिया गया। इस अधिकार पत्र के आधार पर राज्य की सम्प्रभुता पार्लियामेण्ट में निहित मान ली गयी और राजा को उसके अधीन करके उसके उत्तराधिकार के नियमों को निर्धारण कर दिया गया। वित्त और सेना को संसद के अधीन करके उसके वार्षिक अधिवेशन को अनिवार्य बना दिया गया जिससे भविष्य में कोई भी राजा उसकी अवहेलना नहीं कर सके। 

द्वितीय, हूकर के दर्शन से लाॅक अत्यधिक प्रभावित हुआ है। हूकर का कहना था कि सरकार सामाजिक हित की प्रतिनिधि है और इसलिए वह समुदाय के प्रति उत्तरदायी है। लाॅक द्वारा प्रतिपादित सहमति की अवधारणा का आधार हूकर का विचार दर्शन ही है। 

तृतीय, हाॅब्स के व्यक्तिवादी विचारों ने भी लाॅक को प्रभावित किया है। कोई भी अंग्रेज बिना व्यक्तिगत हित की भावना के सामाजिक हित को मान्य नहीं करता। समाज को व्यक्तियों के समूह के रूप में ही स्वीकार करते हैं और सामाजिक हित को व्यक्तिगत हितों का संग्रह। राज्य की रचना हाॅब्स के दर्शन में व्यक्तिगत हित के लिए गयी। इस व्यक्तिगत हित के प्रलोभन का संवरण शायद लाॅक भी नहीं कर सकते थे विशेषकर ऐसे युग में जब व्यक्ति की उपेक्षा समाज कर नहीं सकता था और कोई भी सिद्धांत लोगों की दृष्टि में तब तक मान्य नहीं होता था जब तक व्यक्ति उसमें अपना निजी हित देख लेता था। 

लाॅक के सिद्धांत को इसीलिए कुछ लोग हूकर और हाॅब्स के दर्शन का योग मानते हैं यद्यपि वह केवल इतना ही नहीं है।

जॉन लॉक की अध्ययन पद्धति

जहाँ हॉब्स की पद्धति तार्किक, दार्शनिक एवं चिन्तनात्मक है, वहाँ लॉक की पद्धति अनुभववादी व बौद्धिक है। लॉक के अनुसार मानव ज्ञान, अनुभव द्वारा सीमित होता है। अनुभव के बिना ज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती। लॉक के अनुसार अनुभव ज्ञान का स्रोत है और अनुभव से ही ज्ञान की उत्पत्ति होती है। लॉक के अनुसार मानव मस्तिष्क एक कोरे कागज की तरह है, जिसमें जन्मजात कोई विचार नहीं होता। सभी विचारों की उत्पत्ति दो स्रोतों से होती है : 1. संवेदना से और 2. प्रत्यक्ष बोध से। इन स्रोतों द्वारा प्राप्त अनुभव मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं जो उसमें चेतना तथा प्रतिबिम्ब उत्पन्न करते हैं। बुद्धि द्वारा मस्तिष्क में तब उन विचारों का विश्लेषण होता है एवं तुलना होती है। फलस्वरूप जटिल विचार उत्पन्न होकर ज्ञान का साधन बनते हैं। ज्ञान तब उत्पन्न होता है जब बुद्धि अपने विचारों की परस्पर तुलना करके उनके परस्पर मतैक्य तथा मतवैभिन्य देखती है। यही ज्ञान लॉक की अनुभववादी पद्धति का आधार है।

लॉक की अनुभववादी पद्धति में तीन मुख्य बातें हैं। (i) ज्ञान की उत्पत्ति का एक मात्र स्रोत अनुभव है। कोई भी विचार अंतर्जात नहीं होता। स्वत: साक्ष्य विश्वसनीय नहीं है। विचार इन्द्रिय सापेक्ष होता है और उसकी उत्पत्ति अनुभव से होती है। (ii) ज्ञान का स्वभाव विवेकसम्मत होता है। वास्तविक ज्ञान तभी प्राप्त होता है जबकि बुद्धि विचारों में पारस्परिक सम्बन्धों की स्थापना करती है। (iii) ज्ञान का क्षेत्र उसके अज्ञान के क्षेत्र से बहुत छोटा है। लॉक के अनुसार मनुष्य एक ससीम प्राणी है जो इस अनंत, असीम और महान् ब्रह्माण्ड की सभी बातों को जान नहीं सकता है। इसलिए व्यक्ति का ज्ञान उसके अज्ञान की तुलना के स्वल्प है।

लॉक की अध्ययन पद्धति हॉब्स की अध्ययन पद्धति से भिन्न थी। लॉक हॉब्स की तरह एक दार्शनिक नहीं है। उसमें हॉब्स की तरह मौलिकता नहीं है। लॉक का विचार न तो गहन अध्ययन का प्रतिफल है, न तर्क का। वह सिर्फ व्यावहारिक बुद्धि का धनी है। जहाँ हॉब्स ने वैज्ञानिक, भौतिक, मनोवैज्ञानिक तथा तार्किक पद्धति को अपनाया, वहीं लॉक की अध्ययन और विचार-पद्धति अनुभवजन्य, मनोवैज्ञानिक तथा बुद्धिपरक है। 

लॉक ने प्रबुद्ध विचारकों के विचारों व विश्वासों को सरल, गम्भीर और हृदयग्राही वाणी दी है। इसके बाद भी लॉक की पद्धति में कुछ दोष हैं। प्रथम, यद्यपि लॉक ने यह बताया है कि विचार की उत्पत्ति अनुभव से होती है, तथापि उसने समपूर्ण अनुभूतिजन्य ज्ञान की निश्चितता को स्वीकार नहीं किया। द्वितीय, लॉक की पद्धति की मौलिक त्रुटि यह भी है कि वह संगत नहीं है। शुद्ध तर्क की दृष्टि से उसके विचार पूर्णतया असंगत हैं। 

इस प्रकार लॉक ने ज्ञान के क्षेत्र को उसके अज्ञान के क्षेत्र से बहुत छोटा माना है। यदि अनुभव आधारित ज्ञान का क्षेत्र सीमित है, तो उस पर विश्वास क्यों किया जाए। लॉक ने बहुत सी अनुभव प्रधान मान्यताओं को स्वयंसिद्ध मानकर गलती की है। अत: उसके विचार अपूर्ण तथा असंगत होने के दोषी हैं। लेकिन संगीत के अभाव में भी विचार पूर्णत: गलत नहीं हो सकता। लॉक की अनुभववादी पद्धति अपने दोषों के बाद भी एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है।

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