थॉमस हॉब्स का जीवन परिचय एवं थॉमस हॉब्स की प्रमुख रचनाएँ

थॉमस हॉब्स Thomas Hobbes एक अतिशय महान् विचारक और राजनीतिशास्त्र का प्रणेता था। राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में आज भी हाॅब्स का नाम प्लेटो, माण्टेस्क्यू, मेकियावेली, रूसो जैसे दार्शनिकों की प्रथम पंक्ति में लिया जाता है।

थॉमस हॉब्स का जीवन परिचय

थॉमस हॉब्स का जन्म 5 अप्रैल 1588 को विल्टरशायर (इंगलैण्ड) में माम्सबरी (Malmesbury) नामक स्थान पर हुआ। उस समय इंगलैण्ड के तट पर स्पेन के आरमेड़ा के आक्रमण के भय से त्रस्त थॉमस हॉब्स की माँ ने उसे समय से पूर्व ही जन्म देकर उसमे जन्मजात डर की भावना डाल दी। 

थॉमस हॉब्स ने स्वयं कहा है कि- “थॉमस हॉब्स और भय जुड़वाँ बच्चों की तरह पैदा हुए।” थॉमस हॉब्स के पिता को उसके जन्म के समय ही आत्म-सुरक्षा हेतु परिवार छोड़कर इंगलैण्ड से भाग जाना पड़ा। इसलिए थॉमस हॉब्स का पालन-पोषण उसके चाचा ने किया।

थॉमस हॉब्स एक विलक्षण गुणों वाला बालक था। उसने चार वर्ष की अवस्था में शिक्षा प्रारम्भ की और छ: वर्ष की आयु में ही उसने ग्रीक तथा लैटिन भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करके अपनी विलक्षण बुद्धि का परिचय दिया। उसने 14 वर्ष की आयु में ही यूरीपीडीज के ‘मीडिया’ नाटक का यूनानी भाषा से लैटिन भाषा में अनुवाद किया। 

1603 में वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ और 1608 में मात्र 20 वर्ष की आयु में स्नातक परीक्षा पास करके, इंगलैण्ड के एक उच्च परिवार में विलियम कैवेण्डिश को पढ़ाने लगा। थॉमस हॉब्स ने इस परिवार से अपना आजीवन नाता जोड़े रखा। उसने कैवेण्डिश के बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यही विलियम कैवेण्डिश बाद में डिवोनशॉथर का अर्ल बना। 

1610 में थॉमस हॉब्स को अपने इसी शिष्य के साथ यूरोप की पहली यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। अपने इसी शिष्य के कारण उनकी बेकन तथा बेन जॉनसन जैसे बुद्धिजीवियों से भेंट हुई। 1634 से 1637 तक उसे यूरोप की पुन: यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। इस बार इटली में गैलिलियो से और पेरिस में फ्रैंच दार्शनिक डेकार्ट से उनका परिचय हुआ। जब 1637 में वह अपनी विदेश यात्रा पूरी करके वापस इंगलैण्ड लौटा तो उस समय इंगलैण्ड पर गृहयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे। अपने देश के तत्कालीन राजनीतिक वातावरण से प्रभावित होकर, उसने राजतन्त्र के समर्थन में कुछ पुस्तकों की रचना की जिन्होंने उसके जीवन की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया और उसे इंगलैण्ड छोड़कर वापिस पेरिस जाना पड़ा।

एक निर्वासित व्यक्ति के रूप में वह फ्रांस में मानसिक रूप से राजनीतिक चिन्तन में व्यस्त रहा और इसी दौरान उसने दो प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘डीसीवे’ (De cive 1642) तथा ‘लेवियाथन’ (Leviathan 1651) की रचना की, जिसमें उसने निरंकुश राजतन्त्र को सही मानते हुए सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इन पुस्तकों के प्रकाशित होते ही फ्रांसीसी शासक उसके विरोधी बन गए। अपने खिलाफ इसी विरोध के चलते उसे वापिस इंगलैण्ड आना पड़ा। 

1652 में इंगलैण्ड में आने के बाद वह पुन: डिवोनशॉपर के अर्ल के परिवार के साथ रहने लगा। यहाँ उसने ‘डी कारपोरे’ (De Corpore 1655) तथा 1959 में ‘डी होमाइन’ (De Homine 1658) की रचना की। 1660 में कामनवेल की समाप्ति पर जब पुन: राजतन्त्र की स्थापना हुई तो थॉमस हॉब्स का शिष्य चाल्र्स द्वितीय गद्दी पर बैठा। चाल्र्स द्वितीय के सत्तारूढ़ होते ही थॉमस हॉब्स के जीवन के संकट का भय तो कम हो गया लेकिन उसके अधार्मिक विचारों से मठाधीश अब भी नाराज थे। इस कारण उसकी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और चाल्र्स द्वितीय की कृपा से उसे सजा नहीं दी गई। उसने राजा की सलाह पर अपना जीवन शांति से व्यतीत करने का संकल्प किया और वह लन्दन छोड़कर कैटसवर्थ में रहने लगा। इस दौरान वह अध्ययनरत रहा और 84 वर्ष की आयु में उसने लैटिन भाषा में अपनी आत्मकथा लिखी और 87 वर्ष की आयु में यूनान के प्राचीन कवि होमर की 

प्रसिद्ध पुस्तकों ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’ का अंग्रेजी में अनुवाद करके अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। 1679 में 91 वर्ष 10 महीने की दीर्घायु में इस महान दार्शनिक की इस संसार में जीवन यात्रा समाप्त हो गई।

थॉमस हॉब्स की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ

वास्तव में थॉमस हॉब्स ही पहला अंग्रेज विचारक है जिसने राजनीतिक दर्शन पर विस्तार से लिखा और अपना अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उसने राजनीतिशास्त्र के अतिरिक्त साहित्य तथा अन्य क्षेत्रों में भी लेखन कार्य किया है। वह जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ लिखता ही रहा। थॉमस हॉब्स की प्रमुख रचनायें हैं :-

1. दॉ ऐलिमैंटस आफ लॉ : थॉमस हॉब्स ने इस ग्रंथ की रचना 1640 में की। यह थॉमस हॉब्स की प्रथम दार्शनिक कृति है। इस समय इंगलैण्ड में गृहयुद्ध चल रहा था, इसलिए 1650 तक यह पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी। थॉमस हॉब्स ने इस कृति में विधि तथा उसके प्रकार की विस्तारपूर्वक विवेचना की है।

2. डीसिवे : थॉमस हॉब्स ने इस ग्रन्थ में सम्प्रभुता के सिद्धान्त का वर्णन किया है। इस पुस्तक ने थॉमस हॉब्स ने सार्वभौमिक शासक की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने इस पुस्तक में सम्प्रभुता को परिभाषित कर उसकी सम्पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की है।

3. लेवियाथन: यह थॉमस हॉब्स की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है। यह ग्रन्थ चार भागों में विभाजित है। इस ग्रन्थ में निरंकुशतावादी राजतन्त्र का समर्थन किया गया है। प्रथम भाग में प्राकृतिक अवस्था का, दूसरे भाग में राज्य की उत्पत्ति तथा सम्प्रभुता सम्बन्धी विचारों का, तृतीय व चतुर्थ भाग में राज्य एवं धर्म के बीच सम्बन्ध का उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में थॉमस हॉब्स की वैचारिक प्रौढ़ता एवं परिपक्वता का निर्वाह अन्य ग्रन्थों की तुलना में अधिक हुआ है।

4. डी कारपोरे: इस ग्रन्थ में थॉमस हॉब्स ने प्रकृति की विवेचना करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि जनता को सम्प्रभु शासक का विरोध क्यों नहीं करना चाहिए। थॉमस हॉब्स ने इस ग्रन्थ में सार्वभौम धार्मिक सहिष्णुता का वर्णन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि प्रजा का अधिकार है कि वह अपनी इच्छानुसार अपने धर्म के मार्ग पर चलती रहे और अपने सम्भ्प्रभु का सम्मान करती रहे।

5. डी होमाइन (De Homine 1658) :

6. बिहेमोथ (Behemoth 1668) : इस पुस्तक में थॉमस हॉब्स ने गृहयुद्ध के कारण और प्रसरण की आलोचनात्मक समीक्षा की है।

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