राजनीतिक संस्कृति का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, इसकी प्रमुख विशेषताएं

राजनीतिक संस्कृति का अर्थ

राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा, संस्कृति के विचार पर आधारित है। संस्कृति में किसी देश के लोगों के व्यवहार, मान्यताएं, विश्वास, घृणा, स्वामिभक्ति, साहित्य, परम्पराएं, कला-कौशल, सामाजिक मूल्य, नैतिकता आदि बातें शामिल होती हैं। 

ग्राहम वालास के अनुसार-”संस्कृति विचारों, मूल्यों और उद्देश्यों का समूह है।” इसी तरह राजनीतिक विद्वानों ने राजनीतिक संस्कृति को राजनीतिक समाज के मूल्यों, विचारों व आदर्शों का समूह कहा है। इस अवधारणा को सबसे पहले ऑमण्ड ने 1956 में प्रयुक्त किया था। सामान्य तौर पर राजनीतिक संस्कृति किसी राज्य के अन्दर बसने वाले लोगों की उन सामूहिक अन्तर्भावनाओं का नाम है जिन्हें राजनीतिक व्यवस्था की प्रतिक्रियाओं के रूप में व्यक्त किया जाता है। 

राजनीतिक संस्कृति की परिभाषा

इसे विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने ढंग से निम्न तरह से परिभाषित किया है :-

1. लूशियन पाई के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति उन अभिवृतियों, विश्वासों तथा मनोभावों का सेट या समुच्चय है, जो राजनीतिक प्रक्रिया को अर्थ व सुव्यवस्था प्रदान करता है। वह राजव्यवस्था के व्यवहार को नियन्त्रित करने वाली अन्तर्निहित पूर्वधारणाओं तथा नियमों की भी व्याख्या करता है।” 

2. ऑमण्ड व पॉवेल के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति किसी भी राजनीतिक प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति व्यक्तियों के व्यवहारों तथा अभिमुखीकरण की पद्धति है।” 

3. फाईनर के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति मुख्यत: शासकों, राजनीतिक संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं की वैधता से सम्बन्धित है।”

4. ए0आर0 बाल के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति उन अभिवृतियों और विश्वासों, भावनाओं और समाज के मूल्यों से मिलकर बनती है जिनका सम्बन्ध राजनीतिक पद्धति तथा राजनीतिक प्रश्नों से रहता है।” 

5. पारसन्स के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति का सम्बन्ध राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति किया गया अनुकूलन है।” 

6. राय मैक्रीडस के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति का अर्थ एक मानव-समूह के द्वारा स्वीकृत सामान्य लक्ष्यों और सामान्य नियमों से होता है।” 

7. सिडनी वर्बा के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति में अनुभववादी विश्वासों, अभिव्यकतात्मक प्रतीकों और मूल्यों की वह व्यवस्था शामिल है जो उस दशा को परिभाषित करती है जिसमें राजनीतिक क्रिया सम्पन्न होती है।” 

8. नेटल के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति का अर्थ राज्यसत्ता से सम्बन्धित ज्ञान मूल्यांकन और संचारण के प्रतिमान या प्रतिमानों से है।” 

9. डेविज व लेविस के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति किसी निर्दिष्ट समाज के अन्दर राजनीतिक कार्यों के प्रति अभिमुखीकरण की पद्धति है।” 

10. रोवे के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति व्यक्तिगत मूल्यों, विश्वासों तथा संवेगात्मक अभिवृतियों का प्रतिमान है।” 

11. रोज एवं डोगन के अनुसार-”राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा ऐसे मूल्यों, विश्वासों और मनोभावों को संक्षेप में व्यक्त करने की सुविधाजनक रीति है, जो राजनीतिक जीवन को अर्थ प्रदान करती है।” 

12. बीयर व उलम के अनुसार-”समाज की सामान्य संस्कृति के कई पहलुओं का सम्बन्ध इस बात से होता है कि सरकार किस प्रकार चलाई जानी चाहिए और इसे क्या करने की कोशिश करनी चाहिए। संस्कृति के इस क्षेत्र को हम राजनीतिक संस्कृति कहते हैं।” 
इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक व्यवस्था के प्रति लोगों की अभिवृति व रुचि है जो राजनीतिक विश्वास की भावना पर आधारित है।

राजनीतिक संस्कृति की प्रकृति व विशेषताएं 

 इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-
  1. राजनीतिक संस्कृति एक व्यक्तिपरक धारणा है, क्योंकि इसमें लोगों के विचारों विश्वासों व मूल्यों का अध्ययन किया जाता है।
  2. राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है, क्योंकि यह राजनीतिक व्यवहार के अनेक तत्वों को अपने में समेटे रहती है। 
  3. राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का ही एक अंश होती है, क्योंकि इसमें लोगों के राजनीतिक मूल्य व विश्वास ही शामिल होते हैं।
  4. राजनीतिक संस्कृति का स्वरूप प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में अलग-अलग होता है, क्योंकि राजनीतिक संस्कृति के घटकों को प्रत्येक देश में अन्तर पाया जाता है। 
  5. राजनीतिक संस्कृति एक अमूर्त नैतिक अवधारणा है। 
  6. राजनीतिक संस्कृति एक गत्यात्मक व परिवर्तनशील अवधारणा है। 
  7. राजनीतिक संस्कृति व राजनीतिक विकास में गहरा सम्बन्ध होता है। 
  8. राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक समाजीकरण व आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है। अड़ियल प्रकार की राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक आधुनिकीकरण, समाजीकरण व विकास का मार्ग अवरुद्ध कर देती है। 
  9. भूगोल, परम्पराएं, इतिहास, आदर्श, जीवन मूल्य, जलवायु, सामाजिक तथा आर्थिक तत्व, राष्ट्रीय प्रतीक आदि तत्व राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में योगदान देते हैं। ;10द्ध राजनीतिक संस्कृति जन-सामान्य के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करती है।

राजनीतिक संस्कृति के प्रकार

राजनीतिक संस्कृति के प्रमुख रूप निम्नलिखित हो सकते हैं :-

1. संख्या व शक्ति के आधार पर 

इस आधार पर राजनीतिक संस्कृति के दो भेद माने जाते हैं :-

1. अभिजनात्मक संस्कृति - यह संस्कृति इस मान्यता का परिणाम है कि प्रत्येक शासन में गिने चुले लोग ही सत्ता के वास्तविक धारक होते हैं और उनका राजनीतिक व्यवस्था तथा लोगों की जीवन शैली पर व्यापक प्रभाव होता है। भारत में नेहरू व गांधी जी ने जिस संस्कृति को जन्म दिया वह अभिजनात्मक होते हुए भी उससे अधिक थी। यह संस्कृति समाज में विशिष्ट वर्ग के हितों की पोषक होने के साथ-साथ जनसामान्य के प्रति अपना दृष्टिकोण ईमानदारी को बनाए रखती है। 

2. जनसंस्कृति - यह संस्कृति लोकतन्त्रीय अवस्थाओं को समेटे हुए है। यह जन-आस्था एवं रचनात्मक वृत्तियों की द्योतक है। इसमें राजनीतिक प्रक्रिया में जनसाधारण की उपेक्षा नहीं की जा सकती और प्रत्येक स्तर पर जनता की भावनाओं की ख्याल रख जाता है। विकसित देशों में यह अभिन्न संस्कृति के साथ ही मिलकर चलती है। विकासशील देशों में इस प्रकार की संस्कृति का अधिक प्रचलन बढ़ रहा है।

2. निरन्तरता व सातत्व की दृष्टि से

इस आधार पर राजनीतिक संस्कृति को तीन भागों में बांटा जा सकता है:-
  1. परम्परागत राजनीतिक संस्कृति (Traditional Political Culture)
  2. आधुनिक राजनीतिक संस्कृति (Modern Political Culture) :-
  3. मिश्रित राजनीतिक संस्कृति (Mixed Political Culture)
परम्परावादी संस्कृति का सम्बन्ध जनसामान्य से होता है, जबकि आधुनिक राजनीतिक संस्कृति का सम्बन्ध विशिष्ट वर्गीय शासकों से होता है। ब्रिटेन तथा भारत में मिश्रित संस्कृति पाई जाती है। क्योंकि यहां परम्परा व आधुनिकता का सुन्दर मिश्रण है। ब्रिटेन में कुलीनतन्त्रीय राजनीतिक ढांचे का तादात्म्य ऐसे सामाजिक व आर्थिक ढांचे के साथ किया गया है कि उसमें विशिष्ट वर्ग व जनसाध् ाारण दोनों के हितों का पोषण हो जाता है। विकासशील देशों में इसी प्रकार की संस्कृति है। 

3. राजनीतिक सहभागिता के आधार पर

इस आधार पर वर्गीकरण करने वाले प्रमुख विद्वान ऑमण्ड व वर्बा हैं। उनका कहना है कि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में जनता सहभागिता चाहती है। लेकिन सभी व्यवस्थाओं में पूर्ण व सक्रिय राजनीतिक सहभागिता का होना आवश्यक नहीं है। इसलिए इस आधार पर कि जनसहभागिता का स्तर क्या है। लोग राजनीति के प्रति उदासीन हैं या सक्रिय, राजनीतिक संस्कृति को शुद्ध रूप में तीन भागों में बंट जाता है :-

1. संकीर्ण-राजनीतिक संस्कृति - इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति कम विकसित तथा परम्परागत राजनीतिक समाजों मेंं पाई जाती है। इसका प्रमुख कारण यह होता है कि इन समाजों में कम विशेषीकरण के कारण सभी भूमिकाएं शासक-वर्ग द्वारा ही अदा की जाती हैं। इसमें जनता राजनीति के प्रति प्राय: उदासीन ही रहती है। राजनीतिक नेता ही धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक भूमिकाओं का एक साथ निर्वहन करते हैं। इसमें जनता की तरफ से राजनीति के प्रति कोई मांग या निवेश नहीं होता और न ही निर्गतों की तरफ उसका ध्यान रहता है।

2. पराधीन-राजनीतिक संस्कृति - इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति का जन्म उन समाजों में होता है, जहां जनता राजनीति के प्रति अर्कमण्य रहती है और वह शासकीय आदेशों को विवशतावश चुपचाप सहन करती है और उनका पालन करती रहती है। यह राजनीतिक संस्कृति आश्रित उपनिवेशों में ही विद्यमान थीं। इस प्रकार की संस्कृति में जनता निवेशों से तो दूर रहती है, लेकिन निर्गतों पर ध्यान रखती है। इस संस्कृति में लोगों का राजनीतिक अभिमुखीकरण व्यवस्था से लेने के स्तर पर ही सक्रिय होता है। सार रूप में इसमें जनता की राजनीतिक सक्रियता प्राय: सीमित प्रकृति की होती है। कई बार इस प्रकार की संस्कृति निर्गतों के परिणामों के रूप में महान् आन्दोलनों की जनक भी बन जाती है। इस संस्कृति को प्रजामूलक संस्कृति भी कहा जाता है।

3. सहभागी-राजनीतिक संस्कृति - इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति उन समाजों में पाई जाती है, जहां जनता को राजनीतिक सहकारिता के पूरे अवसर प्रदान किए जाते हैं। इस संस्कृति में जनता निदेशों व निर्गतों पर समान नजर रखती है। इस प्रकार की संस्कृति विकसित देशों में पाई जाती है। इसमें लोगों का राजनीतिक व्यवस्था के प्रति लगाव व विश्वास उच्च स्तर का बना रहता है। इसमें जनता अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनी रहती है। इसे प्रजातन्त्रीय राजनीतिक संस्कृति भी कहा जाता है।

4. गुणात्मक स्वरूप के आधार पर

एस0ई0 फाइनर ने अपनी पुस्तक 'The Man on Horxe Back' में राजनीतिक संस्कृति के चार प्रकार बताये हैं :-

1. प्रौढ़ राजनीतिक संस्कृति - यह संस्कृति ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया तथा नीदरलैण्ड में पाई जाती है। इसमें राजनीतिक सर्वसम्मति व संगठन की मात्रा बहुत ऊँची होती है। इसमें सैनिक शक्ति का प्रयोग करने से परहेज किया जाता है। इसके अन्तर्गत शासन की सर्वोच्च सत्ता पर नागरिक सरकार का ही अधिकार रहता है। यह संस्कृति राजनीतिक स्थिरता वाले देशों में भी पाई जाती है।

2. विकसित राजनीतिक संस्कृति - यह संस्कृति मिस्र, अल्जीरिया और क्यूबा जैसे देशों में पाई जाती है। इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ सैनिक खतरों से भी भयभीत रहती है। ऐसे परिवेश में आम जनता को शक्ति का भय दिखाकर शान्त कराने का प्रयास किया जाता है, लेकिन क्रान्ति या तख्ता पलट की संभावनाएं सदा ही बनी रहती हैं। इसमें नागरिक सरकार पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं। ;

3. निम्न राजनीतिक संस्कृति - यह सस्कृति उन राजनीतिक समाजों में पाई जाती है, जहां लोकमत सशक्त नहीं होता। इसी कारण इसमें जन-विरोध की भावना का अभाव पाया जाता है। इसकी संस्कृति वाले देशों में राजनीतिक संस्थाएं बहुत ही कमजोर स्थिति में रहती है। इसमें जनता सुशासन की कामना तो रखती है, लेकिन उनका यह स्वप्न पूरा नहीं होता। इस व्यवस्था में लोकतन्त्रीय आस्थाओं पर सैनिक तानाशाही का शिकंजा कसा रहता है। जनाधार के बंटे होने के कारण यह संस्कृति वियतनाम, सीरिया, बर्मा, इन्डोनेशिया, पाकिस्तान आदि देशों में पाई जाती है।

4. पूर्व-फ्रांसीसी क्रांति-सम अल्पस्तरीय राजनीतिक संस्कृति - यह संस्कृति उन देशों में पाई जाती है, जहां सरकार जनता के विचारों की मनमानी अवहेलना कर सकती है। फ्रांसीसी क्रांति से पहले फ्रांस में यह संस्कृति विद्यमान थी। आज इस संस्कृति के लिए कोई स्थान नहीं है।

5. शासन-व्यवस्था जनित संवेगों के आधार

इस आधार पर ऑमण्ड ने राष्ट्रों की राजनीतिक व्यवस्था, भौगोलिक प्रणाली, विकासशील प्रवृति आदि के आधार पर राजनीतिक संस्कृति को चार भागों में बांटा है :-

1. आंग्ल-अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था - यह संस्कृति ब्रिटेन और अमेरिका में पाई जाती है। इसमें राजनीतिक साध्यों व साधनों पर आम सहमति पाई जाती है। इसमें आदिकालीन व वर्तमान धर्म-निरपेक्ष मान्यताओं का सुन्दर मेल होता है। इस संस्कृति से सम्बन्धित देशों में वैयक्तिक स्वतन्त्रता, अधिकार व सुरक्षा को विशेष म्ळत्व दिया जाता है। इसमें समाज का स्वरूप बहुलवादी होता है। इसमें सत्तावादी शासन की सम्भावनाएं कम होती हैं और यहां पर भूमिकाओं का स्थायित्व भी रहता है। इसमें विशेषीकरण तथा विभेदीकरण का गुण भी पाया जाता है। 

2. महाद्वीपीय-यूरोपीय राजनीतिक व्यवस्था - यह राजनीतिक संस्कृति फ्रांस, इटली, स्वीडन, नार्वे, जर्मनी आदि कम विकसित पश्चिमी लोकतन्त्रीय देशों में पाई जाती है। इस राजनीतिक संस्कृति में न तो जनता अपने नेताओं के प्रति पूर्ण आश्वस्त होती है और न ही नेतागण अपने लोगों पर पूर्ण रूप से निर्भर रहते हैं। इस प्रकार की संस्कृति में जनता की बजाय राजनीतिक प्रक्रिया में दबाव समूहों की भूमिका अधिक रहती है। इस प्रकार की संस्कृति कई उप-संस्कृतियों को भी जन्म देती है।

3. अपश्चिमी एवं आंशिक रूप से पूर्व-औद्योगिक राजनीतिक व्यवस्था - इस प्रकार की व्यवस्था में शासन प्रणाली पर एक ही दल का प्रभुत्व रहने के कारण राजनीतिक संस्कृति की एकता परिलक्षित होती है। इसमें शक्ति के आधार पर सत्ता व शासन को औचित्यपूर्ण बनाए रखा जाता है। इसमें नौकरशाही का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इसमें जन-सहभागिता के नाम पर जनता के साथ धोखा किया जाता है। इसमें अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इस प्रकार की संस्कृति चीन व अन्य साम्यवादी देशों में पाई जाती है।

इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि विभिन्न आधारों पर राजनीतिक संस्कृति अनेक प्रकार की होती है। उपरोक्त वर्गीकरण के अतिरिक्त भी कुछ विद्वानों द्वारा राजनीतिक संस्कृति के कुछ अन्य रूप भी बताए हैं। उन्होंने पंथ-निरपेक्ष, नागरिक, सैद्धान्तिक, समरूप, खण्डित आदि राजनीतिक संस्कृतियों का भी वर्णन किया है। लेकिन ये रूप भी उपरोक्त विवरण के अन्तर्गत ही घुलकर रह जाते हैं। इनके पृथक विवेचन की कोई आवश्यकता नहीं है। यह बात तो सत्य है कि प्रत्येक देश किसी न किसी प्रकार की राजनीतिक संस्कृति से जुड़ा हुआ है। आज सभी देशों में राजनीतिक संस्कृति के साथ-साथ उपराजनीतिक संस्कृतियां भी उभर रहीं हैं। अत: ऑमण्ड-कोलमैन का कथन सही है कि आज विश्व में राज-व्यवस्थाओं में राजनीतिक संस्कृति का मिश्रित रूप ही पाया जाता है।

3 Comments

  1. read more about it here https://hi.letsdiskuss.com/why-is-political-hindutva-growing-in-india

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  2. Political culture ka ye lekh kya school lecturer ki taiyari ke liye upyukt or prayapt h

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  3. Yes it's beneficial for school aspects as well great content ..

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