संसदीय सरकार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं गुण एवं दोष

संसदीय सरकार को उत्तरदायी सरकार भी कहते हैं, इसमें कार्यपालक शक्तियां एक मन्त्रिमण्डल में निहित होती हैं, इसलिए मन्त्रिमण्डलात्मक सरकार भी कहा जाता है। संसदीय सरकार शासन की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका (मन्त्रिमण्डल) अपने कार्यों के लिए विधायिका (संसद) के प्रति उत्तरदायी होती है। इसलिए इसे उत्तरदायी सरकार भी कहा जाता है। इसमें कार्यपालिका अपने पद पर उसी समय तक रह सकती है, जब तक उसे विधायिका (संसद) का बहुमत या विश्वास प्राप्त है। इस सरकार में मन्त्रिमण्डल का नेता प्रधानमन्त्री होता है और समस्त कार्यपालक शक्तियां वास्तव में उसी के हाथ में होती हैं। इसमें देश का मुखिया नाममात्र का होता है। इसमें देश का शासन नाममात्र के मुखिया के नाम पर मन्त्रीमण्डल द्वारा ही चलाया जाता है। 

संसदीय सरकार की परिभाषा

संसदीय सरकार को कुछ विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है :-

गार्नर के अनुसार- “संसदीय शासन प्रणाली वह है जिसके अन्तर्गत वास्तविक कार्यपालिका (मन्त्रिमण्डल) विधानमण्डल या उसके एक सदन (प्राय: अधिक लोकप्रिय सदन) के प्रति प्रत्यक्ष तथा कानूनी रूप से और निर्वाचकों के प्रति अन्तिम रूप से अपनी राजनीतिक नीतियों और कार्यों के लिए उत्तरदायी रहती है, जबकि राज्य का नाममात्र का मुखिया अनुत्तरदायी होता है।”

सी0एफ0 स्ट्रांग के अनुसार- “संसदीय कार्यपालिका का सार यह है कि अन्तिम विश्लेषण में मन्त्रिमण्डल संसद की एक समिति है जिसमें लोकतन्त्र की प्रगति के साथ-साथ लोकसभा की समिति बन जाने की प्रवृत्ति निहित है।”

कार्टर और हजऱ् के अनुसार- “संसदीय शासन प्रणाली सरकार के कार्यपालिका व व्यवस्थापिका अंगों के अन्त:पाशन (interlocing) पर आधारित शासन है।”

बेजहॉट के अनुसार- “संसदीय सरकार व्यवस्थापिका और कार्यपालिका शक्तियों के संयोग और घनिष्ठ सम्बन्धों पर आधारित सरकार है।”

संसदीय शासन प्रणाली की विशेषताएं 

  1. संसदीय सरकार में देश का मुखिया नाममात्र का होता है। उसकी समस्त शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिमण्डल ही करता है।
  2. संसदीय सरकार में नाममात्र और वास्तविक दो तरह की कार्यपालिका होती हैं। प्रधानमन्त्री वास्तविक कार्यपालक होता है, जबकि राष्ट्रपति या शासनाध्यक्ष नाममात्र का। ऐसी व्यवस्था सभी संसदीय शासन-प्रणाली वाले देशों में होती है। संसदीय सरकार में नाममात्र और वास्तविक कार्यपालिका में भेद किया जाता है। संविधान द्वारा देश के प्रधान को जो शक्तियां दी जाती हैं उनका वास्तविक प्रयोग मन्त्रिमण्डल द्वारा ही किया जाता है। इस प्रकार राष्ट्रपति तो नाममात्र का मुखिया होता है, जबकि प्रधानमन्त्री वास्तविक कार्यपालिका है। 
  3. संसदीय सरकार में कार्यपालिका तथा विधायिका में आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। मन्त्रिमण्डल के सभी सदस्य विधानमण्डल के भी सदस्य होते हैं और वे व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं। ये सभी विद्यार्थी कार्यों को करने में व्यवस्थापिता की मदद भी करते हैं। इस तरह मन्त्रिमण्डल कार्यपालिका और व्यवस्थापिता को जोड़ने वाली प्रमुख कड़ी है। 
  4. संसदीय सरकार में कार्यपालिका का चयन व्यवस्थापिका द्वारा किया जाता है। वही व्यक्ति प्रधानमन्त्री बनता है, जिसे संसद में बहुमत प्राप्त हो। 
  5. संसदीय शासन में राज्य का मुखिया सरकार के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है। यद्यपि यह औपचारिकता मात्र ही होती है। संसद में बहुमत दल का व्यक्ति ही सरकार का अध्यक्ष बनता है। 
  6. संसदीय सरकार में प्रधानमन्त्री ही सरकार की धुरी होता है। देश का शासन चलाने की पूर्ण जिम्मेदारी उसी की होती है। 
  7. संसदीय सरकार में मन्त्रिमण्डल का गठन प्रधानमन्त्री द्वारा ही किया जाता है। 
  8. संसदीय सरकार में मन्त्रिमण्डल के सदस्यों कों संसद के किसी भी सदन का सदस्य होना जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति बिना सदन के सदस्य के रूप में मन्त्री बनता है तो उसे 6 महीने के अन्दर चुनाव लड़कर या मनोनयन द्वारा किसी भी सदन का सदस्य बनना पड़ता है। 
  9. मन्त्रिमण्डल में सजातीयता का गुण पाया जाता है। संसदीय सरकार में सभी मन्त्री एक ही दल के बनते हैं, लेकिन भारत इसका अपवाद है। भारत में वर्तमान सरकार में कई राजनीतिक दलों के सदस्य मन्त्री पद पर हैं। 
  10. संसदीय सरकार में मन्त्रिमण्डल एक सामूहिक संस्था होती है। सभी मन्त्री सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त के आधार पर प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में कार्य करते हैं। 
  11. संसदीय सरकार का कार्यकाल अनिश्चित होता है। इसमें सरकार उसी समय तक अस्तित्व में रह सकती है, जब तक उसे संसद में बहुमत या विश्वास मत प्राप्त है। 
  12. संसदीय सरकार में प्रधानमन्त्री संसद को संविधानिक मुखिया के साथ विचार-विमर्श करके विश्वास मत रहते भी भंग करवाने का अधिकार रखता है। 
  13. संसदीय सरकार में मन्त्रिमण्डल की कार्यवाही गोपनीय होती है। 
  14. संसदीय सरकार चुनावों को बहुत महत्व देती है। इसमें विधानमण्डल का चुनाव निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है।
  15. संसदीय शासन प्रणाली में प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष एक मन्त्री होता है। वही विभागीय नीतियों की सफल्ता या असफलता के लिए उत्तरदायी होता है। 
  16. संसदीय सरकार में संसद सर्वोच्च होती है। वही शक्ति का वास्तविक केन्द्र होती है।
  17.  संसदीय सरकार में विपक्षी दल को सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता है।

संसदीय सरकार के गुण 

आज संसदीय शासन प्रणाली भारत, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों में प्रचलित है और यह बड़ी सफलता के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कर रही है। इन देशों में इसका लोकप्रिय होना इसके महत्त्व को प्रतिपादित करता है। संसदीय शासन प्रणाली का गहन अवलोकन करने से इसके गुण दृष्टिगोचर होते हैं :-

1. उत्तरदायी सरकार - संसदीय सरकार उत्तरदायी सरकार होती है, क्योंकि इसमें मन्त्रिमण्डल आने सारे कार्यों तथा नीतियों के लिए विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। वह अपनी शक्तियों का प्रयोग निधानपालिका की इच्छा के अनुसार ही करता है। इस सरकार में व्यवस्थापिका प्रश्न व पूरक प्रश्न पूछकर, स्थगन प्रस्तावों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों, काम रोको प्रस्ताव आदि के माध्यम से कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाती है। विधानपालिका के सदस्य जन-प्रतिनिधि होने के कारण कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने के हर सम्भव प्रयास करते रहते हैं। इसी कारण संसदीय सरकार का प्रमुख गुण इसका उत्तरदायित्व है। 

2. निरंकुशता का अभाव - संसदीय सरकार में मन्त्रिमण्डल अपने कार्यों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। यदि मन्त्रिमण्डल कोई मनमानी करता है तो विधायिका उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास करके उसे हटा देती है। मन्त्रिमण्डल को संसदीय प्रणाली में विरोधी दल के विचारों का भी ध्यान रखना पड़ता है। यदि वह कोई मनमानी करता है तो विरोधी दल उसकी आलोचना करके उसे जनता के कोप का भाजन बना देता है। भारत में विरोधी दल सरकार को निरंकुश् बनने से रोकने में अहम् भूमिका निभाता है। इसलिए संसदीय सरकार में निरंकुशता का अभाव पाया जाता है। 

3. कार्यपालिका तथा विधायिका में पूर्ण सहयोग - संसदीय सरकार में सरकार के दो अंगों - विधायिका व कार्यपालिका में आपसी सहयोग पाया जाता है। इसमें मन्त्रिमण्डल के सदस्य विधानपालिका के भी सदस्य होते हैं। दोनों एक ही उद्देश्य से कार्य करते हैं। मन्त्रिमण्डल विधायिका की एक समिति की तरह कार्य करता है। वह उसका मार्गदर्शक, निरीक्षक और आशाओं का दीपक माना जाता है। इन दोनों के सहयोग के कारण ही अनेकों कानूनों का निर्माण होता है और शासन में दक्षता का गुण आता है। इस सहयोग व मतैक्य के कारण सत्ता में उत्तरदायित्व का गुण भी बना रहता है। 

4. शीघ्र निर्णय - संसदीय सरकार में शासन-शक्ति एक ही स्थान पर केन्द्रित रहने के कारण शीघ्र निर्णय लेना आसान होता है। शीघ्र निर्णय लेना संकटकाल में बहुत लाभदायक होता है। शीघ्र निर्णय लेकर सरकार उन्हें शीघ्र ही लागू करके प्रत्येक समस्या से निपटने में सक्षम होने के कारण प्रशंसा की पात्र बन जाती है। 

5. लचीली सरकार - संसदीय सरकार में कोई भी संकट आने पर उसे बदलना आसान होता है। कोई नई परिस्थिति पैदा होने पर इसमें शीघ्रता से निर्णय लिया जा सकता है। इसमें सरकार को बदलकर समस्या पर काबू पाया जा सकता है। द्वितीय वियव युद्ध के समय इंग्लैण्ड में चेम्बरलेन के असफल रहने के कारण उसके स्थान पर चर्चिल को प्रधानमन्त्री बनाया गया था। इसी तरह 1991 में भारत में आरक्षण की नीति को लेकर हुए देशव्यापी हंगामें के कारण वी0पी0 सिंह की जगह चन्द्रशेखर को प्रधानमन्त्री बनाया गया था। लचीलापन संसदीय सरकार का प्रमुख गुण है।

6. विरोधी दल का महत्व - संसदीय सरकार में आलोचना को बहुत महत्व दिया जाता है। इसमें विरोधी दल की रचनात्मक आलोचना को सत्तारूढ़ सरकार बहुत अधिक उपयोगी मानती है। इससे सरकार को अपनी कमियों का पता चल जाता है और भविष्य में उन दोषों की पुनरावृत्ति पर अंकुश लग जाता है। इससे जनता व सरकार दोनों का ही फायदा होता है। 

7. योग्य व्यक्तियों की सरकार - संसदीय शासन प्रणाली में जनता उसी दल को सत्तासीन करती है जो उसे अधिक योग्य लगते हैं। चुनावों के समय लोग लोकप्रिय नेताओं का ही चुनाव करते हैं। सरकार में शामिल होने से पहले शासक-वर्ग को जनता की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। यदि कभी गलत व्यक्ति को मन्त्रिमण्डल में स्थान प्राप्त हो जाए तो बाद में उसे हटा दिया जाता है। प्रत्येक नेता को शासन कार्यों में अपनी पूरी योग्यता दिखाने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस तरह संसदीय सरकार योग्य व्यक्ति ही बनाते हैं और योग्य ही चलाते हैं। 

8. वैकल्पिक शासन या सरकार का प्रावधान - संसदीय शासन प्रणाली में हमेशा उसी दल का शासन होता है जिसे संसद में बहुमत प्राप्त रहता है। सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध अविश्वास प्राप्त पास होने पर उसका स्थान विरोधी दल ले सकता है। यह सुविधा अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में नहीं होती। इस व्यवस्थ से बार बार चुनावी खर्च से बचा जा सकता है और प्रशासन भी सुचारु ढंग से चलता है। जेनिंग्स ने कहा है-”विरोधी दल का नेता प्रधानमन्त्री का स्थान लेने वाला होता है। जनमत में केवल थोड़ा सा परिवर्तन हिज मैजेस्टी के विरोधी दल को सदन में बहुमत दिलवाकर उसे हिज मैजेस्टी की सरकार बना सकता है।” अत: संसदीय शासन प्रणाली में वैकल्पिक सरकार की महत्वपूर्ण व्यवस्था होती है। 

9. राजनीतिक चेतना व शिक्षा - संसदीय सरकार में राजनीतिक दल लोगों को राजनीतिक रूप से शिक्षित करते रहते हैं। प्रत्येक दल चुनाव जीतकर शासन की बागडोर सम्भालने के चक्कर में जनता को अपने पक्ष में करने के लिए अपनी नीतियों का प्रचार तथा विरोधी दल की आलोचना करता है। इससे नागरिकों को राजनीति का ज्ञान प्राप्त होता रहता है और उनमें राजनीतिक चेतना का विकास होता है। 

10. जनमत की सरकार - संसदीय सरकार जनमत की इच्छा का परिणाम होती है। इसलिए उसे जनमत का आदर करना पड़ता है। इसमें सरकार लोगों की भावनाओं का निरादर नहीं कर सकती। इसमें सत्तारूढ़ दल चुनावी वायदों को पूरा करने का हर प्रयास करता है। इसमें मन्त्रिमण्डल जनमत की इच्छा के अनुसार ही सरकार में रहता है। यदि कोई सरकार जनमत की अवहेलना करता है तो आगामी चुनावों में उसे जनता का कोप सहना पड़ता है। इसी भय के कारण संसदीय सरकार में शासक वर्ग जनमत का आदर करता रहता है। 
इस प्रकार कहा जा सकता है कि संसदीय सरकार उत्तरदायी सरकार होती है और इसमें जनमत की इच्छा का पूर्ण ध्यान रखा जाता है। इसमें सत्तारूढ़ दल अपने अन्तिम क्षणों तक लोकप्रिय बने रहने के प्रयास करता रहता है। कार्यपालिका तथा विधायिका में घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण इस सरकार में आपातकाल में त्वरित निर्णय लेने तथा स्थिति से निपटने में सक्षमता इसका प्रमुख गण है। सभी वर्गों के हितों की पोषक होने के कारण संसदीय सरकार का महत्त्व निर्विवाद है।

संसदीय सरकार के दोष 

यद्यपि संसदीय सरकार के अनेक लाभ हैं, लेकिन फिर भी यह दोषों से मुक्त नहीं है। इसके दोषों को देखकर इसके गुणों पर आंच आने लगती है। इसलिए इसके प्रमुख दोषों को जानना भी अपरिहार्य है। अनेक विद्वानों ने संसदीय सरकार के निम्नलिखित अवगुण बताए हैं :-
  1. संसदीय सरकर में प्रधानमन्त्री की शक्तियां असीमित होती हैं। उसके साथ मतभेद होने पर मन्त्रियों या जनप्रतिनिधियों को उसकी निरंकुशता का शिकार बनना पड़ता है। यह लोकतन्त्र के विपरीत है। अत: संसदीय सरकार मन्त्रिमण्डलीय तानाशाही की जनक है। डॉयसी ने लिखा है कि संसदीय सरकार में कार्यपालिका विधायिका की तानाशाही का शिकार हो जाती है। 
  2. संसदीय सरकार का कार्यकाल अनिश्चित होता है। यह अपने पद पर उसी समय तक रह सकती है जब तक उसे संसद में बहुमत प्राप्त है। 
  3. कार्यपालिका और विधायिका के घनिष्ठ सम्बन्ध शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त के महत्व को कम कर देते हैं। इससे शासन व्यवस्था के वे लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाते जो इस सिद्धान्त के लागू होने से प्राप्त होते हैं।
  4. यह सरकार दलबन्दी को प्रोत्साहन देकर शासन व्यवस्था व समाज में संघर्ष व तनाव की स्थिति पैदा करती है। 
  5. संसदीय सरकार अदक्ष व्यक्तियों की सरकार होती है। इसमें किसी नौसिखिए मन्त्री को किसी विभाग को सौंपकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। इससे उत्तरदायी सरकार के कर्त्तव्य पूरे नहीं हो सकते। 
  6. संसदीय सरकार के राजनीतिक कार्यपालिका प्रशासनिक अधिकारियों पर अधिक आश्रित होने के कारण प्रशासनिक भ्रष्टाचार व नौकरशाही की निरंकुशता को जन्म देती है। 
  7. अनेक विद्वानों का यह भी मत है कि ऐसी सरकार संकटकाल के लिए अधिक उपयुक्त नहीं है। संसदीय शासन की शक्तियां एक व्यक्ति के हाथ में न होने के कारण महत्वपूर्ण निर्णय लेना सम्भव नहीं है। 
  8. इसमें विरोधी दल की भूमिका संसद की कार्यवाही के बाधक होती है। कई बार विरोधी दल के सदस्य जानबूझकर सरकार को नीचा दिखाने के लिए जनता में उसकी नीतियों का भ्रामक प्रचार करते हैं। 
  9. इस सरकार में कार्यपालिका हमेशा ही विधायिका की चमचागिरी के चक्कर में लगी रहती है ताकि उसका पद न चला जाए। उसे अपने कार्यों को करने के लिए विधायिका का समर्थन जुटाने के चक्कर में अपना स्वाभिमान भी दाव पर लगाना पड़ता है। इसलिए संसदीय सरकार में कार्यपालिका अधिक दुर्बल होती है। 
इस प्रकार कहा जा सकता है कि संसदीय सरकार में कानून निर्माण का सारा बोझ मन्त्रिमण्डल पर आ जाता है औक्र इससे कार्यपालिका अपने कर्त्तव्यों को सही ढंग से पूरा करने में असक्षम रहती है। कार्यपालिका की पराश्रिता राजनीतिक अस्थिरता का खतरा भी पैदा कर देती है। इसमें दलबन्दी को प्रोत्साहन मिलने के कारण संसद वाद-विवाद का अखाड़ा बनकर रह जाती है और जनहित के कार्यों पर सरकार का अधिक ध्यान नहीं रहता। मन्त्रियों के कम दक्ष होने तथा प्रशासन में नौकरशाही का महत्व अधिक बढ़ जाने के कारण जनता को नौकरशाही को निरंकुशता का शिकार होना पड़ता है। लेकिन आलोचकों के सभी तर्क अधिक सत्य नहीं हैं। कार्यपालिका और विधायिका का आपसी सहयोंग आज बहुत जरूरी है। संसदीय शासन प्रणाली में इन दोनों में पाया जाने वाला सहयोग अध्यक्षात्मक शासन की काफी कमियों को दूर कर देता है।

संसदीय सरकार की सफलता की शर्तें

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संसदीय शासन प्रणाली में गुणों के साथ-साथ कुछ दोष भी हैं। यदि संसदीय शासन प्रणाली के दोषों को दूर कर दिया जाए तो इससे अच्छी सरकार कोई नहीं दे सकता। आज संसदीय शासन दलबन्दी का अखाड़ा बनकर रह गया है। इसमें शासन कार्यों के निष्पादन का उत्तरदायित्व तो कार्यपालिका का है, लेकिन शक्तियां विधायिका के पास अधिक हैं। मन्त्रिमण्डल को विधायिका के नियन्त्रण में ही कार्य करना पड़ता है। इस तरह की अनेक कमियां संसदीय शासन के दृष्टिगोचर होती है। इन कमियों को यदि दूर कर दिया जाए तो संसदीय शासन से अच्छा विकल्प कोई नहीं है। इन कमियों को दूर करके संसदीय शासन प्रणाली को सफलता का ताज पहनाया जा सेता है। कुछ विद्वानों ने संसदीय सरकार को सफलता के लिए निम्न सुझाव दिये हैं :-
  1. संसदीय शसन प्रणाली में संसद को सर्वोच्च माना जाए और उसकी कार्यवाही में अनावश्यक गतिरोध उत्पन्न करने से परहेज किया जाएं 
  2. संसदीय शासन में कार्यपालिका के पास उत्तरदायित्वों का निवर्हन करने के लिए सम्पूर्ण शक्तियां होनी चाहिए। उसके विधायिका के निमन्त्रण से कुछ ढील दी जाए। 
  3. संसदीय कार्यवाही में स्पीकर को निष्पक्ष व निर्णायक भूमिका निभानी चाहिए। राजनीतिक तटस्थता ही संसदीय कार्यवाही को प्रभावी बना सकती है। स्पीकर को इसी तटस्थता का पालन करना चाहिए।
  4. संसदीय शासन प्रणाली की मर्यादा बनाए रखने के लिए समय पर ही चुनाव कराने चाहिए। चुनावों में पूरी पारदर्शिता बरतना भी संसदीय सरकार को विश्वासपात्र बनाता है। 
  5. संसदीय शासन प्रणाली में विरोधी दल को अनावश्यक आलोचना से परहेज करना चाहिए।
  6. संसदीय शासन प्रणाली में प्रतियोगी दल व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कड़े संघर्ष के बाद सत्तासीन हुआ जा सके। इसका तात्पर्य यह है कि दलों को मुकाबला बराबरी का होना चाहिए।
  7. संसदीय शासन प्रणाली में राष्ट्राध्यक्ष को ध्वजमात्र बनकर ही कार्य करना चाहिए। उसे प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल के कार्यों में अनावश्यक हस्त़ोप से बचना चाहिए। 
  8. सत्तारूढ़ दल को जनमत का सम्मान करते रहना चाहिए। उसे कभी भी जनभावनाओं के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए।
इस प्रकार उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर चलने से संसदीय सरकार उन दोनों से मुक्त हो सकती है, जो उस पर लगाए जाते हैं। इससे संसदीय प्रणाली की जो काया पलट होगी, वह विश्व के उन देशों में भी स्थान प्राप्त करने की अधिकारी बन सकती हैं, जहां पर संसदीय व्यवस्था नहीं है।

3 Comments

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