मानसिक रोग क्या है और क्यों होता है? मानसिक रोगों को दूर करने के लिए करें ये उपाय



जब मनुष्य का व्यवहार असामान्य होने लगे उसका मन रूग्ण व बीमार हो जाए, उसके मन में नकारात्मक चिन्तन, निराशा, अशान्ति, भय, घृणा, द्वेष, काम, क्रोध, ईर्ष्या, चिन्ता, वासना, कुढ़न, जलन, सनक, भ्रम व अविश्वास आने लगे तो सामान्यतः उसे मानसिक रोगी की संज्ञा दी जाती है और कहते हैं कि उसे मानसिक रोग हो गया है। 

वह मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जैसा व्यवहार नहीं कर पाते, सदैव दुःख व परेशानी, चिन्ता व कुढ़न, ईर्ष्या व जलन, भय व शंका, वासना, तृष्णा, क्रोध व अहंकार, अवसाद, निःसहायता, सनक व पागलपन, अपराध व आक्रामकता, तथा भ्रम व अविश्वास में जीता है। उसका मानसिक संतुलन अनियंत्रित हो जाता है, तब उसे मानसिक रोगी कहा जाता है। 

मानसिक रोग की परिभाषा

1. महर्षि पतंजलि के अनुसार, सभी मनोरोगों व दुःख का कारण है व स्वयं भी ये मनोरोग ही हैं। सभी प्रकार के मनोविकार, अज्ञान, अशान्ति, कष्ट, चिन्ता, भय, शोक, विषाद व अपराध इन्हीं से उत्पन्न होते हैं।

2. योग दर्शन के अनुसार- ‘‘चित्त की मूढ़ व क्षिप्त अवस्था, जिसमें तम एवं रज की प्रधानता रहती है, को मानसिक रोगों का प्रधान कारण माना गया है। चित्त की मूढ़ावस्था में तमोगुण प्रधान रहता है, रजस और सत्व दबे रहते हैं, अतः मनुष्य निद्रा, तन्द्रा, आलस्य, मोह, भय, भ्रम एवं दीनता की स्थिति में पड़ा रहता है। इस स्थिति में व्यक्ति की सोच-विचार की शक्ति कुन्द पड़ी रहती है, विवेकशून्य होने के कारण सही-गलत का विचार नहीं कर पाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह के वशीभूत होकर वह सब तरह के अवांछनीय और नीच कार्य करता है जिससे उसकी गणना अधम मनुष्यों में होती है। एक तरह से उसकी स्थिति मानसिक रोगी जैसी होती है। 

3. मनोविज्ञान की दृष्टि में वह सामान्य व्यवहार से विचलित की स्थिति है जिसे मानसिक विकारों से ग्रस्त माना जाता है। दूसरी स्थिति चित्त की क्षिप्तावस्था है जिसमें रजोगुण प्रधान रहता है तथा सत्व व तमस दबे रहते हैं। इस स्थिति में चित्त अति चंचल, सदैव अशान्त व अस्थिर रहता है। मानसिक क्रिया पर इस अवस्था में कोई नियंत्रण नहीं रहता है, संयम का अभाव रहता है, फलस्वरूप उसकी दशा राग-द्वेषपूर्ण होती है जो एक मनोरोग है। अतः उन्हीं के अनुरूप सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, चिंता एवं शोक के कुचक्र में उलझा रहता है।

4. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के अनुसार, ‘‘चिन्ता, भय, आशंका, असंतोष, ईर्ष्या, उद्वेग, आत्महीनता, अपराधी वृत्ति का ही मन पर नियंत्रण हो तो मन का सारा संतुलन गड़बड़ा जायेगा व उसका प्रभाव सारे शरीर पर व्याधियों के रूप में दिखायी देगा।

मानसिक रोग के कारण

अप्राकृतिक आहार, तामसिक आहार, नशीली वस्तुओं का सेवन, नकारात्मक या विकृत चिंतन, निराशा, निरूत्साह, काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार आदि गलत भावनायें ही मानसिक रोग का प्रमुख कारण है। 

1. डाॅ. प्रणव पण्ड्या के अनुसार, नकारात्मक विचार जब हमारे जीवन में ध्यान के रूप में प्रचंड हो जाते हैं और लंबे समय तक बने रहते हैं तो मनोरोग पनपते हैं। मनोरोग का मूल कारण है- वैचारिक विक्षोभ एवं भावनात्मक द्वन्द्व। इसी से तमाम तरह के मनोरोग पैदा होते हैं और यही मनोरोगों का वास्तविक कारण है।

2. आचार्य श्रीराम शर्मा के अनुसार - मनोरोग क्यों होते हैं ? इसमें अपना मत प्रतिपादित करते हुए आचार्य श्रीराम शर्मा लिखते हैं कि मनोरोग और कुछ नहीं कुचली, मसली, रौंदी हुई भावनाएँ हैं और इनकी यह दशा हमारे अपने अथवा परिवेश के बुरे विचार के कारण होती हैं। 

3. आयुर्वेद के अनुसार- सत्, रज एवं तम का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। सत्व, मन की चैतन्य, हल्की एवं सुखद अवस्था है और यह रोगों से मुक्त रहती है। रजस सक्रियता एवं गति का प्रतीक है। इसमें तमाम तरह की इच्छाएँ, कामनाएँ और आकांक्षाएँ जन्म लेती हैं। कई मानसिक रोग इससे जन्म लेते हैं। 

आयुर्वेद के मत में रजस एवं तमस अवस्थाएँ मानसिक स्वास्थ्य में व्यवधान डालती हैं। चरक ने विभिन्न स्थान में तमस एवं रजस दोषों द्वारा उत्पन्न विविध मानसिक रोगों का वर्णन किया है। वे हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हर्ष आदि। जब ये भाव संवेग सामान्य मात्रा में रहते हैं तो व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचाते, इनकी असामान्य मात्रा में वृद्धि मानसिक रोगों को पैदा करती है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मानसिक रोगों के कई कारणों में अप्राकृतिक आहार, तामसिक आहार, नकारात्मक सोच, चिंता, क्षोभ, निराशा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, उद्विग्नता, हीन भावना, अवसाद, पंच क्लेश, की अधिकता एवं मनोवैज्ञानिक कारण प्रमुख हैं। इसके विपरीत प्राकृतिक जीवन-यापन, सात्विक आहार, प्रेम, करुणा, मैत्री, सद्भावना, प्रसन्नता, प्रफुल्लता, व्यस्त व मस्त रहने की आदत, सकारात्मक चिन्तन व सत्व गुणों की अधिकता को अपने जीवन में लाया जाये तो मानसिक रोगों से बचा जा सकता है व स्वस्थ, सुखी व दीर्घायुपूर्ण जीवन जीना संभव हो सकता है।

मानसिक रोग दूर करने के उपाय

मानसिक रोग बड़े हठीले होते हैं पर असाध्य नहीं। मानसिक रोगों को मिटाने में मानसोपचार से बड़ी सहायता मिलती है। मानसिक रोगों को रोकने के लिए इन उपाय से मदद मिल सकती है-
  1. सबके प्रति मन में प्रेम हो, द्वेष, ईर्ष्या किसी से न हो, सभी को अपना मानकर से मन में बहुत शान्ति मिलती है।
  2. हमें दूसरों पर उपकार करते जाना चाहिए यदि उन उपकारों का बदला हमें न मिले तो दुःखी कभी नहीं होना चाहिए।
  3. दूसरे के हकों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि हम किसी से अपने हक का सम्मान तभी करा सकते हैं जब उसके हक का सम्मान हम स्वयं करें।
  4. हमें सांसारिक पदार्थों एवं व्यक्तियों से अधिक लगाव, मोह या अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से यदि उसकी प्राप्ति न हो तो हमें बहुत दुःख एवं कष्ट होता है और हम मानसिक रोगी बन सकते हैं। 
  5. संसार के सभी कार्यों को भगवान इच्छा समझते हुए अपने को निमित्त मात्र समझो। भगवान में आत्मसमर्पण की भावना को अपना रक्षा कवच समझो।
  6. अपने ऊपर विश्वास करें कि आपमें हर कार्य करने की शक्ति भरी है। अपने में आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मबल सदा भरते और अनुभव करते रहो। इससे मनोबल बढ़ेगा व मानसिक रोग दूर होगा।
  7. इस बात का स्मरण सदैव रखना चाहिए कि जो मानसिक दिक्कतें, अड़चनें तथा बाधायें उपस्थित होती हैं, वे सबके साथ हो सकती हैं, हमारे लिए ही नहीं होती। ऐसे विचार से आत्मसन्तोष की उपलब्धि होती है।
  8. समय-समय पर मनोरंजन करते रहना चाहिए। मनोरंजन से मन स्वस्थ व हल्का-फुल्का हो जाता है, मानसिक रोगों को दूर करने में दैनिक जीवन में मनोरंजन का विशेष भूमिका होती है। इससे मानसिक तनाव दूर होता है। व्यस्त जीवन में काम के बोझ या लगातार एक ही काम करने से मन बोझिल, सुस्त व बोर होने लगता है। अतः बीच-बीच में स्वस्थ मनोरंजन, जैसे- संगीत, कोई आकर्षक खेल, सर्कस, स्वस्थ या हंसाने वाले सीरियल आदि देखने से मन हल्का होता है व मानसिक तनाव एवं मानसिक विकारों को दूर करने में मदद मिलती है।
  9. प्रसन्नता का विशेष प्रभाव मानसिक रोगों पर पड़ता है। यदि मानसिक रोगी सदैव प्रसन्न रहें, खिन्नता व उदास रहना छोड़ दें तो उसका मानसिक रोग धीरे-धीरे ठीक होने लगता है क्योंकि प्रसन्न होने पर जो स्राव ग्रन्थियों से निकलता है उसमें एक ऐसी अलौकिक विद्युत् शक्ति का संचार हो जाता है जिससे शरीर की सब क्रियाएँ इस व्यवस्थित रूप से होने लगती हैं कि शरीर के कोषों का लचीलापन जो उनके उत्तम स्वास्थ्य की निशानी है, पुनः स्थापित हो जाता है। प्रसन्नता स्वास्थ्य है, इसके विपरीत उदासी रोग है। प्रसन्नता आत्मा को बल देती है।
  10. सकारात्मक चिन्तन- मन में सदैव सकारात्मक चिंतन रखें, जैसे- आशा, उत्साह, सुखद भविष्य, शुभ, सुन्दर, प्रेम, करूणा, उदारता, सेवा, सहायता आदि का भाव रखें। शुभ ही सोचें, शुभ ही बोलें, जो होगा अच्छा होगा, हम स्वस्थ, निरोग, सुखी होंगे, हमारा भविष्य उज्जवल होगा, हम सफल होंगे आदि भाव रखने से मानसिक रोग दूर होते हैं और व्यक्ति शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है।
  11. नियम में शौच अर्थात पवित्रता, शुद्धता से रहना, शरीर व मन को शुद्ध पवित्र रखना, संतोष अर्थात जो मिला है उसी में प्रसन्न रहना, तप अर्थात श्रेष्ठ कार्य या ऊँचे उद्देश्यों के लिए कष्ट सहन करना, स्वाध्याय अर्थात सत्साहित्य, आर्ष ग्रन्थ, महापुरूषों के ग्रन्थों व जीवनी को पढ़ना,ईश्वरप्रणिधान अर्थात अपने सारे कर्मों व स्वयं को ईश्वर में समर्पण करना, ये पांचांे नियम के अंतर्गत आते हैं। नियम के पालन से मानसिक स्वास्थ्य बना रहता है व मानसिक रोग दूर होता है।
  12. आसन का अभ्यास करने से शारीरिक व मानसिक रूप से व्यक्ति स्वस्थ होता है। आसन से दृढ़ता आती है व बहुत से मर्म स्थान व चक्र भी प्रभावित होकर सुचारू रूप से अपना कार्य करते हैं जिससे कई प्रकार के शारीरिक, मानसिक रोग दूर होने में सहायता मिलती है।
  13. प्राणायाम से मन की शुद्धि होती है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है तथा ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति सबल बनती है। विधिपूर्वक खींचा गया श्वांस शरीर स्थित प्राण के भण्डार में वृद्धि करता है तथा मस्तिष्क के शक्तिकेन्द्रों को जागृत कर सामान्य को असामान्य बनाने तथा रोगी मनःस्थिति वाले के विकारों का शमन करने में सहायक सिद्ध होता है। 
  14. मनुष्य अपने मन में जिस बात को बैठा लेता है या जिस विषय को स्वीकार कर लेता है, वह विषय उसे अच्छा लगने लगता है और वह सदैव या बार-बार उस विषय का चिंतन करता है, यही धारणा है। और इसकी निरंतरता या एकतानता ही ध्यान है। यदि शुभ विचारों या स्वास्थ्य या ईश्वर का निरंतर ध्यान व चिंतन किया जाए तो उसका चमत्कारिक प्रभाव देखने में मिलता है। ध्यान के अनुरूप ही फल मिलता है। व्यक्ति धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगता है, उसके सभी शारीरिक व मानसिक रोग दूर होने लगते हैं। मनोबल व आत्मविश्वास बढ़ाने में ध्यान एक कारगर उपाय है।
  15. आराम, विश्राम व नींद- शारीरिक, मानसिक थकान को दूर करने में इन तीनों की बहुत आवश्यकता है। इससे शरीर व मन में शक्ति का संचार होता है, थकान दूर होता है। मस्तिष्क को नींद से नई ऊर्जा मिलती है तथा शरीर व मन पुनः कार्य करने लगता है। इन तीनों के उचित उपयोग से मानसिक रोग दूर करने में मदद मिलती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सकारात्मक चिंतन या दृष्टिकोण, आशा, उत्साह, धैर्य, यम-नियम के पालन, आसन-प्राणायाम, धारणा-ध्यान, स्वाध्याय, समुचित विश्राम व निद्रा, मनोरंजन, प्रसन्नता, सात्विक आहार-विहार रखने व मैत्री, करूणा, मुदिता व उपेक्षा आदि चित्त प्रसादन के उपाय करने व सदैव व्यस्त रहकर मस्त रहने की आदत डालने व सदाचार रखने से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर मानसिक रोगों से बच
सकता है।

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